कैसा चमार चूट्टा सा लग रहा है "मुहावरा"
>> 30 April 2009
पता नहीं दोस्तों ये मुहावरा है या लोकोक्ति....पर मैंने अक्सर सवर्ण जाति के इंसान को किसी अपने ही इंसान से बोलते हुए कई बार पाया है ...अगर कोई ज़रा सा गन्दा दिखा या साफ़ सुथरा ना लगा तो अक्सर बोलते देखा है कि कैसा चमार चूट्टा सा लग रहा है .....
"ये लेख लोग पढेंगे जरूर और पढ़कर खिसक भी लेंगे या कुछ कहेंगे कि वाकई कुछ लोगों की मानसिकता बहुत ख़राब है ..लेकिन कोई अपने इस सम्बन्ध में विचार नहीं रखेगा ...कि आखिर क्यों करते हैं ये सब ...किस लिए करते हैं ये सब ...आखिर ये जुमला क्यों बना और आज तक क्यों इस्तेमाल होता है कही न कहीं"
इस बात का क्या मतलब निकाला जाये ...भाई मुझे तो यही समझ आता है कि ....लोगों की जुबान को आदत है ....उन्हें संस्कार में ये बात बताई जाती रही है कि जो भी सबसे गन्दा ...गया गुजरा इंसान हो तो समझ लो वो चमार है .....जो भी बेढंगे से कपड़े पहनता हो ....लाचार सा दिखे ....साफ़ सुथरा न लगे ...तो समझ लो कि वो चमार है ...हाँ यही तो परिभाषा बनायीं गयी होगी ...तभी तो लोग आज भी यही बोलते पाए जाते हैं ...यार वो बड़ा चमार टाइप कपड़े पहनता है ...या चमार चूट्टा दिखता है ...कैसा चमार सा लग रहा है ....
कहने को तो हम सब कब के आजाद हो चुके हैं .... पर क्या कुछ भी कहने को ...बस मुंह खोला और भक्क से उगल दिया ...होना है जो हो हमारी बला से ....भाई हमारा तो मन यही करता है ...यही बात रही है लोगों के मन में ...दिमाग में ...जो भी ये जुमला इस्तेमाल करते आये हैं ...और आज तक कर रहे हैं .....क्यों भाई ...किस लिए ....एक तरफ आप जाति व्यवस्था को ख़त्म करने की बात करते हैं ...ढकोसला दिखाते हैं .... तो आखिर भाई कैसे ख़त्म करना चाहते हो .....क्या यही तरीका है
आज से बीस बरस पहले आर.ई.सी. कुरुक्षेत्र इंजीनियरिंग कॉलेज(R.E.C. Engineering College) में चमारों की खाने की टेबिलें अलग लगती थीं ...हाँ क्योंकि सवर्ण दलित शब्द ठीक से नहीं समझते ...उन्हें उन्हें नहीं पता की दलित समुदाय में ढेर सारी जातियाँ हैं ....वो दलित का मतलब चमार ही समझते हैं .....तो क्यों भला ...किस लिए ....तब भी तो भारत महान था ...लोग महान थे ..नेता महान थे ...सोच भी बदल रही थी ..... जाति व्यवस्था तब भी लोग ख़त्म करने की बात करते थे ....पर खाने की टेबलें अलग लगवाते थे ...हैं न ....सही है जी .....अरे वो तो खुद चमार समुदाय के छात्र आगे आये ....लड़े ...मरे ... और जब एक जाट समुदाय का छात्र मारा गया ...और देखा कि सबके सब चमार एक साथ रहते हैं हर जगह ...और उन्होंने अपने हक़ की लड़ाई लड़ी ....तो टेबलें भी तब से साथ लगने लगी ...
अरे दूर की ही बात क्यों करें ....वर्ष 2005 मेरी अपनी ही क्लास का एक लड़का जिसका नाम में यहाँ नहीं रखना चाहूँगा ...वो एक दलित को चमार -चमार कहकर संबोधित कर रहा .... घृणा भरे अंदाज में .... क्यों भाई ये शब्द क्या मजाक है ...और फिर दूजे कमरे में जाकर ऐसी बातें कर रहे हो कि ..अरे हमने अपने गाँव में चमारों की लड़कियों को "......... " ये करते थे वो करते थे ......जब 4-5 पांच लड़के दलित उर्फ़ चमार इकट्ठे हुए मार पीट करने को को तो वो भागा हुआ एक ब्राहमण के कमरे में छुप गया ...आखिर उस वक़्त उन उलटी सीधी बातों को करने के खिलाफ कोई उच्च जातीय क्यों नहीं आया .... आखिर फिर कैसे ख़त्म करना चाहते हैं जात पात ....
कुछ लोगों का कहना है है कि भाई आरक्षण ख़त्म कर दो ...जात पात अपने आप ख़त्म हो जायेगी .....भाई एक बात बताओ .....आरक्षण के बाद ही जात पात शुरू हुई थी क्या .....या अचानक से जिस दिन आरक्षण ख़त्म होने का ऐलान होगा ...उसी दिन ये मानसिकता ख़त्म हो जायेगी ..." कि कैसा चमार सा लग रहा है "
कुछ का कहना है की आराक्षण की वजह से ही उच्च जाति के लोगों में घृणा भर गयी है ...वो जलते हैं चमारों से ...कि ये तो फायदा उठा रहे हैं ....अरे भाई जब आराक्षण नहीं था ..तब किस बात की घृणा करते थे ....किस लिए शोषण करते थे ...तब कौन सा हक़ छीन लिया था चमारों ने इन सवर्णों का ...अपने आप कुछ नहीं बदला ...बदला है तो खुद दलितों / चमारों ने लड़कर और मिले आरक्षण की सहायता से
जब कभी किसी ट्रेन में बैठे हो ... तो कोई ना कोई उच्च जातीय महानुभाव ये बकते हुए मिल जाएगा ....कि अब तो हीरो बनेंगे ही ये सब ...वो चमरिया मायावती कुर्सी पर जो बैठी है ...इनकी बुआ है ...इनकी बहिन है है ....वगैरह -वगैरह ...इतनी घृणा...भाई वाह ...मान गए उस्ताद ...आपकी बात कि आप जाति प्रथा बंद करना चाहते हैं .....आखिर इस बात का तात्पर्य क्या है .....इस बात का सीधा सीधा तात्पर्य है ...कि मानसिकता क्या है ...सोच क्या है समाज के लोगों की ...समाज की सोच में आज भी कितना बदलाब आया है ...हालात क्या है ...और अगर वो बढ़ रहे हैं तो क्यों ..और कही न कहीं ये सोच की दलित/चमार इतना क्यों बढ़ रहे हैं ....ये सोच भी कहीं न कहीं शामिल है .....
एक रोज़ मेरी ब्राहमण दोस्त बोलती है कि कल तो मैंने अपनी मम्मी को मजाक में बोल दिया मेरी शादी करा दो ....वो बोली लड़का तो मिले ...तो मैंने कहा ...कि किसी चमार चूट्टा से ही करा दो ....चलेगा ...और हंसने लगी ....मैंने कहा जानती हो कि चमार चूट्टा क्या होता है ...बोली नहीं ...तो मैंने कहा फिर ये सब क्यों बोलती हो ...बोलने लगी घर में और आस पास के लोग बोलते हैं तो मैं भी सीख गयी ...फिर मैंने उसे ठीक से समझाया तब उसको बात समझ आई
अभी दो रोज़ पहले की बात है ...दो जाट समुदाय के लोग ...मसखरी के मूड में थे ....एक अपनी कार में बैठा था ...दूसरा अपने अन्य दो दोस्तों से गप्पे लड़ा रहा था ....जो कार में बैठा था ...वो गप्पे लड़ाने वाले से बोलता है ...अबे ओ चमार ...चल बे ....चमार कहीं के चल रहा है कि नहीं ..... वो बोल रहा है क्या है बे ....और फिर जब वो ज्यादा परेशान करता है तो ...वो ईट फेंक कर कार में मार देता है ....वो कहता है कि तेरी इतनी हिम्मत हो गयी ...हाँ हो गयी ...चमार में इतनी हिम्मत आ गयी .....साले चमार ....अभी ले ....वो बोलता है अबे मैं चौधरी हूँ ...जाट ...मुझमें हिम्मत नहीं होगी तो किसमें होगी ...
अब आप इन सब बातों का क्या तात्पर्य लगायेंगे ....इसका क्या हल निकालेंगे .....क्या सोच है ...क्या भावना है ....कहाँ तक जाति प्रथा को ख़त्म कर देने की भावना है ...कहते हैं कि आजकल जाति प्रथा बहुत कम हो गयी है ...लेकिन जब भी प्रेम विवाह की बात आती है ...तब गाडी जाति पर ही आकर रूकती है ...टूटती है ...बिखरती है .....लड़की को लड़के को खूब धमकाया जाता है ...कहीं कहीं लड़के या लड़की की जान पर बन आती है ...अंततः होता क्या है लड़के या लड़की की कहीं और शादी
खासकर लड़कियों में एक आदत देखी है ...वो जब भी किसी लड़के से दोस्ती करती हैं ..और अगर उसमें इंटरेस्ट दिखाती हैं ...तो दूजे ही पल उसकी जाति पूँछने लग जाती हैं ...क्यों भला ...क्या बात है ..भाई दोस्ती तुम जाति से करोगे क्या ...या तुम अपनी शादी का प्लान बना रही हो ....ये फिट कर रही हो कि अगर सवर्ण ही है तो आगे चक्कर चलाया जाय ...नहीं तो छोडो .....वरना जाति पूँछने का क्या औचित्य बनता है ...
मुझसे खुद हर दोस्ती बढाने वाली कुंवारी लड़की ...दोस्ती आगे बढ़ाने से पहले मेरी जाति पूँछने बैठ जाती है ....हाँ भाई देखती होगी ....कि शादी वादी हो भी सकती है या नहीं ...जाति तो मैच करती है ना ...सवर्ण ही है कि नहीं
और हम समाज के लोग कहते हैं कि हम सुधर रहे हैं ...समाज अच्छा हो रहा है ...सोच बदल रही है ....जाति प्रथा की सोच बदल रही है .....फिर इस बनाये हुए मुहावरे का मतलब बताओ "कि कैसा चमार चूट्टा सा लग रहा है "
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