मेरी ब्लाइंड डेट

>> 31 May 2009

इन्टरनेट आया तो अपने साथ बहुत सी अच्छाईयों के साथ कुछ बुराइयाँ भी लाया. अब भली बातें कितनी हैं और बुरी बातें कितनी हैं ...इसकी चर्चा न ही की जाये तो बेहतर है.

हाँ लेकिन इसी इन्टरनेट की दुनिया के कई किस्से हैं...ढेर सारी प्रेम कहानियां तो इसी इन्टरनेट की देन हैं और कई बच्चे भी इस इन्टरनेट की उपज ...अरे नहीं समझे ...अरे सोचो भला कि अगर उनके माता पिता इन्टरनेट का उपयोग न करते और आपस में चैट न करते तो उनकी लव स्टोरी कैसे शुरू होती....और अगर लव स्टोरी शुरू न होती तो फिर शादी कैसे होती ...हाँ ये बात अलग है कि किसी के माँ बाप ने भाग के शादी की होगी तो किसी के माँ बाप ने कोर्ट मैरिज या अरेंज .....खैर ये मसला बहुत पेंचीदा है.....उलझोगे तो उलझते ही रह जाओगे

तो भैया हम भी एक समय चैट करने में बहुत बिजी हो गए थे....तो हाँ उसी समय की बात है कि हमसे एक लड़की चैट पर टकरा गयी ...बातें हुई ....अब भाई चैट है तो अच्छी अच्छी ही ही बातें होंगी न .....कमाल है (इधर उधर कि ना सोची जाये )

तो भाई बात करते हुए बहुत समय बीत चुका था....उन्होंने हमारा दीदार भी कर लिया था ...अरे वो जी उन्होंने हमारा फोटो देख लिया था जी ...अब ये सवाल तो कतई मत पूंछना कि हमने उनका दीदार किया कि नहीं ...नहीं जी बिलकुल नहीं ...अरे वही लड़कियों की आदत...मैं नहीं दिखाउंगी ...वगैरह वगैरह.....हम सीधे मिलेंगे ...अरे भाई जब ऐसी ही बात थी तो फिर हमारा चेहरा क्यों देखा ...हाँ शायद ये देखने के लिए कि लड़का दिखता कैसा है ....अच्छा तो दिखता है न ...और दूसरा सिक्यूरिटी रीजन की वजह से भी ...चलो अब क्या कर सकते थे ...हमने कहा ठीक है ...कोई बात नहीं

तो कुछ दिनों बाद हमारा आगरा जाना हुआ ....और वो महोदया ग्वालियर की थी....जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं आगरा आया हुआ हूँ ...उन्होंने अपनी मंशा जाहिर की कि वो हमसे मिलना चाहती हैं....हमने सोचा कि चलो २ घंटे का रास्ता है ...मिलने जाया जा सकता है....तो भाई हमने बोल दिया कि हम कल आपसे मिलने आ रहे हैं ....हमने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था....तो जाहिर है कि हम सिर्फ और सिर्फ मोबाइल पर भरोसा करके गए थे ...कि मोबाइल ही हमे सही जगह, सही इंसान से मिला देगा :) :)

हम सही समय पर ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए...अब जैसा कि उन्होंने कहा था कि वो अपनी ऑफिस से सीधे हमसे मिलने रेलवे स्टेशन आ जायेंगी ....और वही से हम कहीं जायेंगे....भैया जी हम तो जो है फोन कर दिए उन्हें ....कि जी हम आ गए हैं ...उन्होंने कहा कि वो आधा घंटे में आ जायेंगी... आधा का एक घंटा हुआ ...चलो कोई बात नहीं ...फिर एक का डेढ़ घंटा हुआ ....चलो कुछ बात हुई ...अब डेढ़ का दो घंटा हुआ ...भाई बहुत बड़ी बात हो गयी ...थक गए इंतजार करते करते....

अब जो है उन्होंने हमसे रोमिंग मैं ढेर सारी फालतू बातें करके ...सारे पैसे उड़ा दिए हमारे ...कि मैं यहाँ पहुँच गयी ..कि मैं बस पहुँचने वाली हूँ ...कि मैं थोडी देर मैं आउंगी ...वगैरह वगैरह.... जैसे तैसे वो रेलवे स्टेशन पर पहुंची .... बोली कि तुम कहाँ हो ....हमने बताया कि रिज़र्वेशन करने वाली खिड़की के पास ...अब भाई बहुत हुआ ....उन्होंने कहा हमे तो दिखाई नहीं दे रहा ...इस वाले गेट पर या उस वाले गेट पर ...हमने एक जगह से दूसरी जगह के करीब 10 चक्कर लगाये ....पर उन्हें हम न दिखे ....वो हमेशा गलत जगह पहुँच जाए....वो ग्वालियर की थी लेकिन उन्हें खुद ठीक से नहीं पता था कि रिज़र्वेशन काउंटर कहाँ है ...खैर मोबिल के सारे पैसे खर्च हो चुके थे ...हमने वहाँ के लोकल पीसीओ से फ़ोन करके जैसे तैसे 8-10 बार में बताया कि हम फलां जगह खड़े हैं ...खुद आ जाओ ....करीब 10 मिनट बाद तीन लडकियां हमें घूर रही थी

थोडी देर घूरते रहने के बाद वो हमारे पास आयी...हम तो डर ही गए...कि भला हमसे क्या गलती हो गयी ...घूर तो वो रही थीं ....पास आकर उन्होंने पूंछा कि क्या आपका नाम अनिल है ....हाँ जी नाम तो हमारा अनिल ही है ....फिर तीनों मुस्कुरा दी ....और हमें मन ही मन गुस्सा आये ....खैर हमने अपने आप को संभाला ...मन ही मन सोच रहे थे कि पूरी की पूरी पलटन साथ लाने की क्या आवश्यकता थी ...हम कौन से तुम्हें खा जाते ....

फिर पास के ही एक रेस्टोरेंट में हमे लेकर वो गयीं ....हमने अपनी जेब की तरफ ध्यान दिया ...सोचकर आये थे एक का और आ गयी तीन ...अब क्या होगा हमारा और हमारी जेब का ...खैर हम चारों लोग उस रेस्टोरेंट में बैठ गए ....फिर हमे ठीक से पता चला कि हमारी वाली कौन सी है ...अरे मतलब जिससे हम चैट किया करते थे ....फिर उसकी दोनों सहेलियों ने हमारा साक्षात्कार लेना प्रारंभ कर दिया ....मन में आ रहा था कि कहाँ फंस गए ....

एक बोली आप तो बड़े सीधे साधे लग रहे हैं ...लो कर लो बात अब तीन तीन हो तो कोई भी आपके सामने भला मानुष इतनी हिम्मत कर सकता है कि मुंह भी खोल सके :) :) ....आप खोलने दो तब न ....हम तो बस हाँ और ना में ही जवाब दे रहे थे ....दूसरी बोली अच्छा आप हमारी सहेली से शादी कब कर रहे हो ....मेरे दिमाग में घंटी बजी ...टन टन टन ...व्हाट ...what a silly question is this ? ...मन किया दो चार खरी खोटी सुना दूं ......फिर जवाब टालने के लिए बोला ....अभी तो मैं बच्चा हूँ ...अभी शादी कहाँ...अभी तो खेलने खाने के दिन हैं हमारे :) :) ...बोली आप बड़े मजकिये हो ....

फिर उसकी एक सहेली अपने प्रेम के किस्से सुनाने लगी ...और दूसरी लड़कों के प्रति अपनी नफरत की गाथा ....और जो मोहतरमा हमसे चैट किया करती थी ....उनकी तो पूंछो ही मत.... आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हो ...वैसे कितनी बातें करते हो ...वगैरह वगैरह....खैर जैसे तैसे उनका बात करने का दिल भरा ....हमे तो बस वहाँ से भागने की पड़ रही थी .....खैर वहाँ के लोकल रेस्टोरेंट वाले ने भी हमे खूब लूटा ....15 रुपये के जूस के गिलास के उन्होंने हमसे 60 रुपये वसूले ....और भी कुछ था जो हमे याद नहीं उसके भी अच्छे खासे दाम लिए उन्होंने ...और कहने को वो बिलकुल घटिया रेस्टोरेंट था .....बिलकुल लोकल ...खैर अब फंसे थे ...तो क्या करते....हमने अपना पर्स निकाला ...और जानबूझकर बोला देखो पैसे तो मैं ही दूंगा ....तो वो बोली क्यों आप क्यों दोगे ....नहीं ये अच्छा नहीं लगता...अब ऐसे बात करो तो उन्हें ऐसा लगा कि शायद ये इज्जत की बात हो रही हो ...तो बोली नहीं पैसे तो हम ही देंगे ...मैंने कहा नहीं नहीं पैसे तो हम ही देंगे...अब वो जबरजस्ती पर उतर आयीं ...नहीं पैसे तो हम ही देंगे ...हमने फिर कोई जबरजस्ती नहीं की ....ठीक है आप इतनी जिद कर ही रही हैं तो .....हम तो यही चाहते थे :) :) :) ....आखिर हमने थोड़े कहा था कि पूरी पलटन लेके आओ ...इस ब्लाइंड डेट पर .....

उनकी सहेलियां पहले ही जाने लगी...कि हमे काम है वगैरह वगैरह ...हमने भी कहा हमे भी चलना है ....बहुत लेट हो गए ...गाड़ी भी आने वाली है .....बस हमे भागने की पड़ रही थी ....वो दोनों बोली अरे आप दोनों बातें करो न....हमने खामखाँ आपका सारा टाइम खा लिया ....हमने मन ही मन सोचा अब जब खा लिया तो अब डकार क्यों ले रही हैं आप

तो इस तरह लौटते लौटते हमारे बारह बज चुके थे ....जैसे तैसे आगरा पहुंचे ...और एक आंटी जी के घर रुके रात को ...फिर सुबह अपने घर फिरोजाबाद को निकल लिए ....और सोचा कि क्या ब्लाइंड डेट ऐसी भी होती है
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बीते हुए उन दिनों में

>> 29 May 2009

- तुम मुझे बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते ।
-बिल्कुल भी नहीं ?
-ह्म्म्मम्म .....बिल्कुल भी नहीं ।
-इत्ता सा भी नहीं ?
-अरे कहा ना बिल्कुल भी नहीं फिर इत्ता सा कैसे कर सकती हूँ ।
-"मैं सोच रहा था कि इत्ता सा तो करती होगी ।" कहते हुए मैं मुस्कुरा जाता हूँ ।

वो उठकर चल देती है । मैं सिगरेट फैंक देता हूँ और उसके पीछे चलने लगता हूँ ।
-अच्छा बाबा मान लिया कि तुम इत्ता सा भी प्यार नहीं करती । अब ठीक ....खुश

वो आगे बढ़ते हुए पत्थर उठाकर नदी में फैंकते हुए कहती है "तुम सिगरेट पीते हुए बिल्कुल भी अच्छे नहीं लगते । "
-बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता क्या ?
-नहीं, बिल्कुल भी नहीं
-अच्छा तो ठीक है, कल से बीड़ी पीना शुरू करता हूँ ।
-ओह हो...तुम ना...करो जो करना है मुझे क्या ?

मैं मुस्कुरा जाता हूँ ।
-हाँ, तुम्हें क्या ? देखना कोई मुझे जल्द ही ब्याह के ले जायेगी और तुम बस देखती रहना ।

वो खिलखिला कर हँस पड़ती है ।
-जाओ जाओ बड़े आये ब्याह करने वाले । कौन करेगा तुम से शादी ?
-क्यों तुम नहीं करोगी ?
-मैं तो नहीं करने वाली ।
-क्यों ?
-क्यों, तुमने कभी कहा है कि तुम मुझसे शादी करना चाहते हो ।

मैं मुस्कुराते हुए कहता हूँ -
-क्यों, कभी नहीं कहा ?
-चक्क (अपनी जीभ से आवाज़ निकलते हुए वो बोली)
-कल, परसों या उससे पहले कभी तो कहा होगा (मुस्कुराते हुए)

वो नाराज़ होकर चल देती है ।
-"अच्छा ठीक है । नहीं कहा तो अब कह देता हूँ ।" (मैं उसका हाथ पकड़ कर रोकते हुए कहता हूँ )

मैं उस बड़े से पत्थर पर चढ़ जाता हूँ और कहता हूँ
-सुनो ए हवाओं, ए घटाओं, ए नदी, पंक्षियों और हाँ पत्थरों । मैं अपनी होने वाली बीवी से जो मुझे इत्ता सा भी प्यार नहीं करती और जिसे मैं इत्ता सा भी अच्छा नहीं लगता, बहुत प्यार करता हूँ । मैं उससे और सिर्फ उसी से शादी करना चाहता हूँ । (कंधे ऊपर करते हुए मैं उसको देखकर मुस्कुराता हूँ !)
-होने वाली बीवी ? (वो बोली )
-हाँ (मुस्कुराते हुए )
-तुम ना टूमच हो कहते हुए वो मुस्कुरा जाती है ।

वो चल देती है । मैं पीछे चलते हुए सिगरेट जला लेता हूँ । वो पीछे मुड़कर देखती है और पास आकर सिगरेट छीनकर फैंक देती है । प्यार से "आई हेट यू" जैसा कुछ बोलती है ।

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माँ तुम हो कितनी अनमोल

>> 28 May 2009

गोद में सिर रख कर के अपनी
जब लोरियां सुनाया करती थी तुम

बेखौफ ही नीद के आगोश में
चला जाता था मैं

दूर जबसे हुआ हूँ तुमसे
नीद भी ठीक से आती नही

रात को सर्द मौसम जब
अपने आगोश में लेता था मुझे

चुप से ही पास आकर मेरे
प्यार से चादर उढा जाया करती थी तुम

अच्छा हूँ मैं
तुम्हारा दुलारा हूँ मैं
हर पल ही जताती थी तुम

हो मुझे कोई पीड़ा तो
दर्द से सिंहर उठती थी तुम

सिरहाने पर बैठ कर
अक्सर सिर को मेरे सहलाती थी तुम

माँ
जब से दौड़ा जिंदगी की दौड़ में
दूर तुमसे होता गया
कभी इस नगर
तो कभी उस नगर

अब उस प्यार के स्पर्श को
तरस जाता हूँ मैं
लगता है कि जैसे कोई प्यास है
जो कभी बुझती नहीं

हाँ माँ
तुम हो कितनी अनमोल
और तुम्हारे वो मीठे बोल
हर पल ही याद आते हैं मुझे
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जिंदगी ख़त्म होती सी तेरे खतों के दरमियाँ

>> 25 May 2009

दिल के रिश्ते कब बन जाते हैं पता ही नहीं चलता ...शायद वो एक मीठा सा और प्यारा सा एहसास ही होता है जो हमें यकीन दिलाता है ...कि हाँ यही है ...जिसे देखते ही न जाने क्यूँ दिल को कुछ हो जाता है ...हमारा रोम रोम खिलने लगता है .... उसके सामने आते ही ना जाने क्यों हमें ऐसा कुछ एहसास होने लगता है जो और किसी के आने पर नहीं होता ...हाँ यही तो इश्क है ... जो दिल का रिश्ता होता है ...एहसास का रिश्ता होता है

और जब इस एहसास के रिश्ते को नाम देने का मन करता है तो कैसे हम सकुचाते से हैं ..शरमाते से हैं ...सोचते हैं कि ऐसा क्या कहें कि ये भी हमारे दिल का हाल जान सके ...हम जान सकें कि क्या वो भी हमारे लिए ऐसा महसूस करता है क्या ...या क्या वो हमारे इस दिल के रिश्ते को कबूल करेगा/ करेगी ....हाँ ऐसा ही तो होता है ....शायद तभी ये ख़त का सिलसिला चला होगा ...जो जुबान कहने से लड़खडाए ...उसे ख़त में कह दो ...और छोड़ दो उस खुदा की मर्ज़ी पर ...हाँ शायद हम में से बहुत से ऐसा ही तो करते हैं ...ना जाने कितने ही होंगे जिनका प्यार एक ख़त से ही परवान चढा होगा ....या कई ख़त....

हाँ हमारा रिश्ता भी तो ऐसा ही था ...दिल का रिश्ता ...एहसास का रिश्ता ...कैसे तुम मेरे सामने आते ही अजीब सा हाल कर लेती थी ... याद है तुम बहुत खुश हो जाया करती थीं ... और मैं इस बात से डरता कि अगर मैंने तुम्हें अपने दिल का हाल बयां कर दिया तो कहीं तुम बुरा ना मान जाओ ...क्या तुम भी वही सोचती हो जो मैं सोचता हूँ ...
क्या तुम्हारा हाल भी वैसा ही होता है जैसा मेरा ...हाँ यही तो सोचा करता था मैं ...

और फिर एक रोज़ तुमने वो मुझे अपना पहला ख़त दिया था ...याद है न तुम्हें ...चुपके से रख दिया था मेरी उस किताब के दरमियान जो तुमने मुझे गिफ्ट की थी ...शायद यही तरीका सही था ... और किस तरह तुमने उन शब्दों के माध्यम से अपने दिल का हाल बयान किया था ...सच आज भी मुझे जब तब याद आ जाते हैं ....

याद है मुझे तुम्हें ख़त लिखना अच्छा लगता था ....और जब जब मैंने तुम्हें ख़त लिखा ...तो कैसे तुम उसे अपने सीने से लगाये रहती थीं ...सच कहूं तो उस ख़त से मुझे जलन सी होने लगती थी ...भला ये क्या बात हुई ...महबूबा हमारी और सीने से वो निगोड़ा ख़त लगा हुआ है ...दूर होने का नाम ही नहीं लेता ....और मेरे ये कहने पर तुम कैसे खिलखिला कर हँस दी थीं .... कसम से ये ख़त कभी कभी तो लगता है आशिकों के सबसे बड़े दुश्मन होते होंगे ....

और उस रोज़ का भेजा हुआ तुम्हारा ख़त ...उस ख़त ने मेरी दुनिया ही बदल दी ....जिसमें तुमने अपने दिल का हाल रखा था ...शायद आखिरी बार ...नहीं नहीं मुझे कोई गिला नहीं तुमसे ....गिला हो भी कैसे सकता है .... तुम और तुम्हारी वो मजबूरियां ....काश कि मैं ही उस पल कुछ कर पाया होता ...तो आज यूँ तन्हा और अकेला न होता ....

हाँ वो एक ख़त ही था जिसने तुम्हें मेरे दिल के इतना नज़दीक कर दिया कि अब दूर होने का नाम ही नहीं लेता ...तुम आज भी दिल मैं बसी हुई हो ...वो एहसास और वो हमारे दिल के दरमियान की जुगलबंदी ... तुम्हारे उस आखिरी ख़त ने भले तुम्हें मुझसे दूर कर दिया हो ...लेकिन तुम इस दिल पर आज भी राज़ करती हो ...तुम्हारा एहसास और वो दिल का रिश्ता ख़त्म ही नहीं होता ...

हाँ शायद ये एहसास के रिश्ते ...ये दिल के रिश्ते एक बार जुड़ जाने पर यूँ ख़त्म नहीं होते ....
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पेज 3 असली नारी शक्तिकरण है क्या ?

>> 21 May 2009

सबने देखा है उस औरत को जिसके सर पर छत है ? उसके नाम पर नारी शक्तिकरण की खूब चर्चा भी की है. जो पेज 3 की पार्टियों की तस्वीरों में छपी होती है. ये जताने के लिए कि देखो संसार कहाँ पहुँच गया है. स्त्री कितनी आगे पहुँच गयी है. चाहे उन्होंने बुटीक भर खोल रखी हो ...जो शौकिया फैशन डिजाइनिंग के कोर्से करके अपने बाप के पैसों से झूठा राग अलाप रही हों.

जिन्हें नारी शक्तिकरण की A, B, C भी न आती हो. अरे वो क्या जाने जिन्होंने अपने अमीर बाप के घर में पहला कदम रखा हो. अंग्रेजी स्कूल में पढाई लिखाई की हो ...विदेश जाकर डिग्री हासिल की हो और फिर वापस भारत आकर...बाप के पैसों से खुली दुकान या कोई कंपनी उनका इंतज़ार करती हो...जिनकी रात डिस्को में कटती हो ..पेज 3 की पार्टियों से जिन्हें फुर्सत न हो ...जो चूमा चाटी करते हुए फोटो खिचवा कर खुश हो रही हों .....उन्हें क्या पता होगा नारी शक्तिकरण का ...लेकिन जब भी नारी शक्तिकरण की बात की जाती है ...तो जी वो आ जाती हैं एक साडी पहन कर....जो रटे रटाये डायलोग बोलकर वाह वाह बटोरती हैं ...मैं उनके खिलाफ नहीं ...तरक्की उन्होंने भी की है ...क्या मगर नारी शक्तिकरण की जमीनी सच्चाई वही है...(और क्या उच्च वर्गीय उस समाज में भी स्त्री की दशा वाकई अच्छी होगी ?)...या सिर्फ उन्हें शो पीस बनाकर दिखाया जाता है

क्या नारी शक्तिकरण की बात करने वालों को वो नारी नहीं दिखाई देती जो ईट की भट्टी में झुलसती है, कारखानों में काम कर कर के अपने बच्चों को पालती है ...अपने बच्चों को उनके पैरों खडा करती है ...उनकी शादी करती है ...जो अपने जमीर के लिए लड़ती है ...जो समाज में रह रहे भूखे भेडियों से लड़ते हुए आगे बढती है ...

या जो अपनी जिंदगी का बहुत बड़ा हिस्सा कपडों पर प्रेस कर कर के अपने बच्चों को पढ़ा लिखा कर काबिल बनाती है ...जो सुबह के 6 बजे से रात के 12 बजे तक काम करती रहती है ...जो बच्चों की खातिर जगती है ...उनकी फिकर करती है ....जो अपनी पूरी जिंदगी इस आस में निकाल देती है कि इन्हें पढ़ा लिखा कर आगे बढ़ाना है ...

हाँ मैं सलाम करता हूँ ऐसी नारी को जो ईट की भट्टी में तपती है...ईट उठा उठा कर आगे बढती है, कपडे प्रेस करती है, सिलाई, कडाई, बुनाई कर कर के अपने बच्चों को पालती है ...दर्द सहती है ...फिर भी उफ़ नहीं करती इस आस में कि बच्चों को पालना है आगे बढ़ाना है

ऐसी ही दो स्त्रियों को मैं सलाम करता हूँ जिन्हें मैं जानता हूँ ..एक मेरे गृहनगर फिरोजाबाद में ...जिसके पति की मौत कारखाने में काम करते हुए हो गयी ...जिसके चार बच्चे थे और उसके पास कोई विकल्प नहीं था...उसने ईट के भट्टे में खुद को झुलसाया, मेहनत की ...दिन रात एक कर दिया ...और अपने 4 बच्चों को काबिल बनाया, उनकी शादी की, पढाया-लिखाया, उन्हें इस काबिल बनाया कि वो अपने पैरों पर खड़े हो सकें ...हाँ उस अशिक्षित नारी को मैं सलाम करता हूँ ...जिसने अपनी जिंदगी में इतना संघर्ष किया

एक जहाँ में रहता अर्थात फरीदाबाद मैं अक्सर देखता हूँ कि एक महिला सुबह 8 बजे से रात को 8 बजे तक प्रेस करती है ...मेहनत करती है ..अपने बच्चों को पालती है...आस पास वाले बोलते हैं कि पिछले 10 साल से वो यूँ ही प्रेस करती आ रही है ....उस महिला का पति 15 साल पहले उसे छोड़ कर चला गया.. लेकिन वो टूटी नहीं ...उसने अपने बच्चों को पाला...खुद से लड़ी ..ज़माने से लड़ी ...मेहनत की...बच्चों को पढाया लिखाया ...और आज भी मेहनत कर रही है ...हाँ मैं इस महिला को सलाम करता हूँ ...इस महिला के जज्बे को ...अगर नारी शक्तिकरण की बात करें...अगर जमीनी शक्तिकरण की बात करें तो ये नारी शक्तिकरण है ....वो लड़ती हैं, आगे बढती हैं...वो आज जहाँ भी हैं खुद के दम पर हैं ...और इस नारी शक्तिकरण को मैं सलाम करता हूँ
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एक अधूरी प्रेम कहानी का हिस्सा

>> 19 May 2009

तुम न बिल्कुल भी रोमांटिक नहीं हो ....अच्छा तो रोमांटिक लोग कैसे होते हैं मैंने कहा....वो मुस्कुरा दी....बताओ न कैसे होते हैं रोमांटिक लोग.... जो ढेर सारा प्यार करते होंगे....और जो ढेर सारी प्यार की मीठी मीठी बातें करते होंगे.... तो करता हूँ न मैं तुमसे ढेर सारा प्यार ... अच्छा पर कभी कहते तो हो नहीं...क्या कहूँ ...अच्छा तो बताओ कि तुम मुझसे कितना प्यार करते हो

ह्म्म्म्म मैं तुम्हें बहुत प्यार करता हूँ ... मैं तुम्हें सबसे ज्यादा प्यार करूँगा...बहुत ज्यादा ...हमेशा ऐसे ही.....जब तुम मुझसे रूठ जाया करोगी तो तुम्हें मनाया करूँगा ....जब तुम थक जाया करोगी तो तुम्हारे बालों को सहलाया करूँगा....और चुपके से तुम्हारे कानों में कहा करूँगा 'आई लव यू' ...कहूँगा कि हाँ तुम ही हो सबसे प्यारी ... हाँ तुमसे ही है मेरी दुनियाँ ...

तुम जब नहीं होती हो आस पास मेरे तो लगता है जैसे बिल्कुल अकेला हूँ ....सुनसान हैं ये गलियाँ ...ये रास्ते...वीरान है ये जिंदगी...कोई भी तुम बिन अब मंजिल नहीं ... न ही कोई सोच है ...न अब कोई सवाल है ...न ही किसी जवाब का इंतजार है...क्योंकि जब तुम नहीं तो कुछ भी नहीं

जब हम हो जायंगे मियाँ और बीवी ....कहोगी जब तुम कि अजी सुनते हो ... तो मुस्कुराता हुआ तुम्हारे पास जाया करूँगा ... कहूँगा कि क्यों पुकारा ...और तुम्हारे कहने पर कि चखना ज़रा इसका स्वाद कैसा है ...कड़वे को भी मीठा बताया करूँगा ... हो जाओगी जब तुम परेशां ...तो पिकनिक पर तुम्हें ले जाया करूँगा ... शोपिंग ही सही ...तुम्हारी ख़ुशी की खातिर हँसते हँसते अपनी जेब हलाल करवाया करूँगा ....

चली जाया करोगी जो मायके...पीछे से...मायके से ले जाने आ जाया करूँगा....हाँ तुम हो मुझे जान से प्यारी ये तुमको जतलाया करूँगा...करेंगे जो परेशान बच्चे कभी तो... उनकी खबर लिया मैं करूँगा

अच्छा ख़बरदार जो मेरे बच्चों पर हाथ भी उठाया तो.... अच्छा जी अब बच्चे इतने प्यारे हो गए अभी से ....और नहीं तो क्या ...ओके बच्चों को कुछ नहीं बोलूँगा...अब खुश ...अच्छा इतना प्यार करते हो मुझसे ....हाँ बहुत-बहुत-बहुत .....सच्ची .....हाँ सच्ची मुच्ची ...पक्की पक्की ....

उफ़ ये अलार्म की घंटी को भी अभी बजना था ....हाँ पर सच ही तो है बहुत बहुत प्यार था ...तभी तुमसे की हुई बातें आज भी सपना बनकर रातों को जगाती हैं .... हाँ ये खुली आँखों के सोचते से सपने ऐसे ही होते हैं ....
तुम ना जाने कहाँ होगी ..... मेरे पास तो बस अब तुम्हारा ख़याल ही है
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घोषित प्रेमी - प्रेमिका उर्फ़ 'COMMITTED'

>> 16 May 2009

नया दौर अपने साथ ढेर सारी सौगातें लेकर आता है .... आजकल उनमें से एक है 'committed' अर्थात मैं किसी सज्जन पुरुष या सज्जन स्त्री से committed हूँ ...दूसरे लफ्जों में कहें तो घोषित प्रेमी-प्रेमिका ...चलो अच्छा है कुछ घोषणाएं होती तो है ...वरना लोगो ने आजकल घोषणाएं करना बंद सा ही कर दिया है ....वरना एक टाइम था राजा-महाराजाओं का ...जब समय समय पर ढेर सारी घोषणाएं होती रहती थीं ...

आज के समय में ज्यदातर लड़के और लडकियां घोषित प्रेमी-प्रेमिका हैं ....हाँ अगर प्रतिशत की बात करें तो लडकियां कहीं ज्यादा अधिक घोषित प्रेमिका उर्फ़ 'committed' हैं.... और आजकल इस तरह की घोषणा करना बहुत आसान हो गया है... अब आपको चिल्ला चिल्ला कर गली गली जाकर कहने की जरूरत नहीं कि भाइयों और बहनों मैं committed हूँ ...ऑरकुट जैसी तमाम कम्युनिटी हैं जिसके माध्यम से आप ये घोषणा कर सकते हैं कि आप committed हैं...

सोचो कि अगर हीर-राँझा, लैला-मजनू के ज़माने में ऐसा होता तो उन्हें कितनी दिक्कत होती ...कितनी परेशानियों का सामना करना पड़ता....बेचारों को जगह जगह जाकर चिल्ला चिल्ला कर कहना पड़ता कि हम committed हैं ...अर्थात घोषित प्रेमी-प्रेमिका....

पर ये 'committed' शब्द है बड़ा कमाल का ....बहुत फायदे हैं इसके जी ...बहुत सी मंशाएं हो सकती हैं इसके पीछे ....जैसे committed लिखने से लड़की को लाइन मारने वालों में कमी आ जाती हो ....जैसे committed लिखने से आपने अपने घर वालों और रिश्तेदारों को अपनी मंशा जाहिर कर दी कि अब चाहे जो भी हो जाये हम तो प्यार करते हैं और उसी से शादी करेंगे...committed लिखने से आपको आपकी सहेलियों या दोस्तों में इज्जत की नज़रों से देखा जाने लगे ...कि भाई इसकी तो गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड है

जैसे committed लिख कर आप स्वतंत्र हो जाते हैं चाहे जिस के साथ घूमने के ....तभी ज्यादातर समय पर पता चलता है कि लड़की committed तो किसी दूसरे लड़के के साथ है पर डेट पर किसी और के साथ गयी है... बहुत से committed हो जाने पर फक्र महसूस करते हैं तो अपनी ख़ुशी को शेयर करने के लिए ऑरकुट जैसी कम्युनिटी पर लिख देते हैं "committed"..... मतलब लो जी अब तो हम भी committed हो गए... अब कोई दोस्त ऊँगली नहीं उठा सकता कि कैसे लड़के हो तुम्हारी कोई गर्ल फ्रेंड भी नहीं या फिर कैसी लड़की हो तुम्हारा कोई आशिक भी नहीं ....क्या फायदा तुम्हारे लड़की होने का ....तो इस तरह की बात शांत करने के लिए ये बहुत अच्छा तरीका है

अगर प्रतिशत निकला जाये तो लड़कियां ज्यादा committed मिलेंगी और लड़के कम ...फिर मन में ख्याल आता है कि इतनी ज्यादा संख्यां में लड़कियां committed हैं किन लड़कों के साथ ...कहीं एक लड़के के साथ २-३ लड़कियां committed तो नहीं ...अब लड़के तो वैसे ही बदनाम हैं ...धोखा देने के मामले में....हाँ पर 4 रोज़ पहले पता चला कि मेरे एक दोस्त का प्यार 5 साल से चल रहा था ...पर लड़की ने कहीं और किसी के साथ शादी पक्की कर ली....उसे मेरे दोस्त का साथ 'Irritate' करता था ...वो अपनी पूरी जिंदगी उसके साथ नहीं बिता सकती थी ....जबकि वो अपनी मर्ज़ी से उसके साथ कई बार शारीरिक सम्बन्ध बना चुकी थी....और मेरे दोस्त के साथ committed रहते हुए भी वो अपने होने वाले पति के साथ डेटिंग करती थी ...चलो जिस से शादी कर रही है उसके साथ ही खुश रह ले

वहीँ कुछ लड़कों से सुना है कि यार अगर committed लिख लो तो दूसरी लड़कियां आसानी से बात कर लेती हैं ...खूब घुल मिल कर बात करती हैं ....शायद उन्हें committed लड़कों पर भरोसा होता है कि ये अच्छे लड़के हैं ...यहाँ तक कि वो हम जैसे committed लड़कों से खूब फ्लर्टिंग करती हैं... committed लडकियां अपने बॉय फ्रेंड से खूब लडेंगी, रूठेंगी, खरी खोटी सुनाएंगी ....और अपने अन्य पुरुष दोस्तों से अच्छे से पेश आएँगी...प्यार से बात करेंगी...अगर बॉय फ्रेंड लाइन पर है तो उसे वेटिंग में डालकर अन्य दोस्त का फ़ोन committed करेंगी...उनके साथ बाहर घूमने का प्लान बनायेंगी ...पर अगर बॉय फ्रेंड कह दे बाहर घूमने के प्लान के बारे में तो 'घर वाले क्या सोचेंगे या घर वाले इजाज़त नहीं देंगे कहेंगी'.....खैर ये committed शब्द है बड़ा कमाल का

कुछ लड़के-लडकियां अपना ये ख्वाब तब पूरा कर पाते हैं जब उनके घर वाले उनकी शादी पक्की करते हैं ...तब कहीं जाकर वो अपने प्रोफाइल पर committed लिख पाते हैं ...और जब उनकी कोई सहेली या दोस्त पूँछता है ..तब मुस्कुरा कर कहते हैं कि शादी तय हो गयी है ...चलो अच्छा है ये वाला committed उस वाले committed से जुदा तो है

तो आजकल के इस दौर में ये committed शब्द बड़ा ही यूजफुल हो गया है ....बस आप अपने आपकी घोषणा कर दीजिये कि आप committed हैं और निश्चिंत हो जाइये ....बस एक बार आप घोषित प्रेमी-प्रेमिका बन गए तो आपकी चाँदी ही चाँदी है ....
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माँ, त्याग और प्यार

>> 11 May 2009

कई महीनों की भागदौड़ और जिंदगी को जीने की जद्दोजहद के बीच से चन्द रोज़ मुझे मिले ...तो मैं चल पड़ा उस आँचल तले वो पल बिताने ....जिसकी याद हर रोज़ आ जाती है ....चन्द रोज़ माँ के साथ बिताने को मिले ....वही खिलखिलाता चेहरा ....वही ढेर सारा प्यार ....वही ख़ुशी और वही सारा प्यार एक साथ लुटा देने की जल्दबाजी ...सच दिल को बहुत सुकून मिला ....पता ही नहीं चला कि ये चन्द रोज़ कैसे बीत गए

कभी कभी लगता है कि माँ होना ही अपने आप में एक सुकून है ....जिनकी माँ नहीं होती होगी उन पर क्या गुजरती होगी ...ये सोच कर भी दिल घबरा सा जाता है .....माँ का प्यार सबसे ज्यादा प्यारा और सुकून देने वाला होता है

और जब मैं घर पहुंचा तो उनके चेहरे से साफ़ झलक रहा था कि जैसे मेरी ही राह तक रही थी तब से .....जबसे मैंने बताया कि हाँ मैं कल सुबह आऊंगा ....सच माँ भी न ....बहुत प्यारी, भोली और त्याग की मिसाल होती हैं ....मुझे कई महीनों से ये याद था कि इस बार माँ के लिए साडी लेनी है .....और जब इस बार उनके पास गया तो मैंने उनसे साफ़ साफ़ बोल दिया कि अबके बार तो मैं आपके लिए साडी लेकर ही रहूँगा ...आप हर बार कोई न कोई बहाना कर जाती हैं

वो जब कपडे धोने बैठी तो बोलने लगी नहीं तुम इस बार अपने लिए पेंट बनवा लो देखो उधड गयी है ...मैंने कहा माँ इस बार आपकी एक ना चलेगी ....इस बार तो आपको साडी लेनी ही पड़ेगी ..... मेरे पास पेंट बहुत हैं ....बहुत दिन हुए आपको साडी लेनी ही पड़ेगी .....उस शाम छोटी बहन अपनी सहेली के साथ उनके लिए एक साडी लेकर आयी ....माँ के लिए ...जानकार अच्छा लगा कि उन्हें वो बहुत पसंद आयी..... कहने लगी इस बार सैलरी मिलने पर तुम अपने लिए पेंट बनवा लेना ....मैंने कहा माँ आप भी ना ...बस हम सबके बारे में ही सोचती रहती हैं ....कहने लगीं बेटा अभी तो तुम सबके दिन हैं .....और माँ के लिए बच्चों की ख़ुशी ही सब कुछ है ...उसी में मुझे ख़ुशी मिलती है....

वो 5-6 रोज़ बहुत प्यार से बीते ....हाँ माँ का प्यार खाने में सबसे ज्यादा झलकता है ...ये भी खाओ ...वो भी खाओ ....लगता है कि उतने रोज़ में साल भर का खाना खिला देना चाहती हों ....पर कसम से अच्छा लगता है ये सब ...जब वहाँ से चला आता हूँ तो यही सब बहुत याद आता है ...बहुत ..बहुत ...बहुत याद आती हो माँ तुम ...और तुम्हारा प्यार

10 मई को ही मुझे लौटना था ....मैंने जब माँ को बोला तो थोडी उदास सी हो गयी ....कहने लगी कल चले जाना ....पहले तो यही सोच रखा था कि 10 को ही जाना है ...पर माँ की बात टाल ना सका ...दिल ने कहा कि आज माँ की बात मान लेता हूँ ....मैं उस रोज़ ठहर गया ....और जब आज सुबह वापस लौटने को हुआ ...तो उनकी आँखें मुझे दूर तक छोड़ने को आई ...जब तक कि मैं उनकी आँखों से ओझल ना हो गया ....

और हाँ माँ तुम्हारा ढेर सारा प्यार मेरे बैग में अभी भी है ....जब उधर से लौटता हूँ तो बैग इतना भारी हो जाता है कि पूँछो मत ....पर जब यहाँ पहुँच उस बैग को खोल देखता हूँ तो दिल बहुत खुश होता है ....अचानक से लगता है कि जैसे तुम रसोई से निकल एक परांठा मेरी प्लेट में रखने आई हो ...और कह रही हो एक और खा लो बेटा
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मेरा बचपन और वो मेरा गरीब दोस्त

>> 04 May 2009

कुछ चीजीं हमेशा अच्छी लगती हैं ...जैसे मम्मी का प्यार, भाई बहन के साथ नोंक झोंक.... और जैसे बचपन की यादें ...जब याद आ जाती हैं तो आये हाय ....यूँ लगता है मानो...बचपन सामने खडा हो गया हो आकर...जैसे बारिश हो रही हो और वो सामने से बुला रहा हो ...कि आओ चलो भीगें चलकर ...कागज़ की एक नाव तुम बनाना और एक मैं बनाऊंगा ...देखें किसकी ज्यादा देर तैरती है .... हाँ सचमुच कभी कभी ऐसा ही तो होता है ....

कभी कभी तो लगता है कि जैसे बचपन को खोकर बहुत बड़ी गलती की ...क्यूँ भला हम इतनी जल्दी बड़े हो गए ...और जब छोटे थे तो सोचा करते थे बड़ी कब हम बड़े होंगे ...उफ़ कैसे खयाली पुलाव बनाते थे

और वो जब माँ टिफिन में खाना रखकर स्कूल भेजा करती थी ...तो कैसे हम दोस्त लोग अपनी अपनी टेबल के नीचे ही टिफिन खोलकर ...एक एक टुकडा खाते थे ...बड़ा मज़ा आता था ...आधा तो इंटरवल के आने से पहले ही चट कर जाते थे .....अब याद आता है तो हंसी आती है ....कि बचपन भी क्या अजीब चीज़ थी ....क्या दौर था ...क्या आजादी थी ...खुलकर जीने की ... बस स्कूल जाओ ...स्कूल से आओ ...और माँ के आँचल तले जिंदगी बिताओ ....अब तो माँ का चेहरा देखे बिना भी कभी कभी महीनो बीत जाते हैं .... कभी वो दिन भी हुआ करते थे ...जब सुबह शाम हम बस फरमाइशें करते रहते थे ...और माँ हमारी हर फरमाइश पूरी करती रहती थी ...

एक दोस्त हुआ करता था मेरा ....मेरे बचपन का हमसफ़र....दिल का साफ़ ....बिलकुल नेक और शरीफ .... हम साथ साथ स्कूल में रहते और साथ ही खाना खाते .... बहुत चाहता था मुझे ...और हम मैदान में क्रिकेट भी साथ खेलते थे ....बहुत अच्छा लगता था उसके साथ रहना ...हम बिल्कुल पक्के दोस्त हुआ करते थे .... कभी कभी हम आपस में होम वर्क भी शेयर किया करते थे....और खाना तो कौन किसका खाता था पता ही नहीं चलता ..... पर जब हम पाँचवी से छटवीं क्लास में पहुंचे तो कुछ दिन तक तो वो साथ रहा

लेकिन कुछ रोज़ बाद उसका आना बंद हो गया ....मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता था ...उसकी बहुत याद आती थी ... कई दिनों तक मैं उदास रहा ...वो नहीं आया ...एक रोज़ मैं घुमते घामते ....पूंछते पांछ्ते उसके घर पहुँच गया ...वो मुझे देख कर बहुत खुश हुआ ...पर उसके घर के हालात अच्छे नहीं थे

उसने बताया कि अब वो स्कूल नहीं आ सकेगा ...अब वो अपने पिताजी के साथ सिनेमा हॉल जाया करेगा ...वही नौकरी करेगा ....उसकी इस हालत पर मुझे अच्छा नहीं लग रहा था ...दुःख हो रहा था ....उसका चेहरा बहुत मायूस था ...एक दुःख साफ़ झलक रहा था कि अब वो पढ़ नहीं सकेगा .....उस रोज़ मैं मायूस और सुस्त क़दमों से घर वापस लौटा ....कई दिनों तक मेरा कोई दोस्त नहीं बना ...हमेशा सोचता रहता कि कितना होशियार था वो ..पर गरीबी ने उसे पढने नहीं दिया ....और शायद उसके बाप ने भी ....मैं जानता था कि वो भी बड़े होकर सफल और बड़ा आदमी बनता ....लेकिन अब उसे वहां सिनेमा हॉल में ड्यूटी बजानी पड़ेगी .....

कई रोज़ बाद मैं उसके घर फिर गया पर वो मिला नहीं ...वो ड्यूटी पर गया हुआ था ...मैं जब भी उससे मिलने जाता वो न मिलता ...उसके ड्यूटी का टाइम बदल जाता था ....मैं हर बार उदास होकर वापस लौटा ...फिर धीरे धीरे मैंने जाना बंद ही कर दिया ....पर जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ ...मैं यही सोचता कि कब गरीबी कम होगी ..कब लोग शिक्षित हो सकेंगे ..भर पेट खाना खा सकेंगे ....कब उस मेरे दोस्त की तरह के बच्चे स्कूल में रहकर पूरी पढाई कर सकेंगे ....मगर अफ़सोस कुछ ज्यादा बदलाव नहीं आया ...आज भी जब देखता हूँ तो कोई न कोई बच्चा काम करते हुए मिल जाता है ....

उसके लिए बचपन की यादें क्या होती होंगी ...दिल सोचकर भी घबराता है ....कभी कभी सोचते हुए पलकें भी गीली हो जाती हैं ...आज जब मैं अपनी माँ से दूर हूँ ....उनका चेहरा तक देखने को नसीब नहीं होता ...जब तब 1-2 महीने बाद घर जा पाता हूँ ...तब लगता है कि इंसान और इंसान की मजबूरियाँ भी बड़ी अजीब चीज़ होती हैं .... जिंदगी कब किससे क्या क्या कराये पता नहीं चलता ....

अभी अभी ऐसा लगता है कि जैसे बारिश हो रही हो और वो मेरा दोस्त बारिश में भीगता हुआ मुझे हाँथ देकर बुला रहा हो ...कि आ चल खेलते हैं ...चल एक दौड़ लगाते हैं .....मगर फिर दूजी ही ओर वो बारिश अजीब सी लगती है...मेरी पलकें बिना बारिश में जाए भी गीली हो जाती हैं
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यार तेरी यारी के वो किस्से पुराने याद आए

>> 02 May 2009

कुछ रिश्ते एहसास के दायरे से बड़े होते हैं ....शायद इतने बड़े कि वो कब बड़े हो जाते हैं ...और इतने मजबूत कि उसका एहसास भी नहीं होता ...पता ही नहीं चलता कि वो रिश्ता कब सबसे प्यारा और दिल के करीब हो गया ....ऐसा ही एक रिश्ता है दोस्ती.... कहते कि ऊपर वाले ने बनाने को तो बहुत कुछ बनाया लेकिन ये काम शायद हम पर छोड़ दिया ....तभी तो एक यही काम हमारा दिल कभी गलत नहीं करता ...दोस्ती ...हाँ दोस्ती एक प्यारा सा एहसास ....शायद ये चन्द लाइनें पढ़ते हुए भी मन में एक चेहरा या कई चेहरे घूमने लगते हैं ....ठीक वैसे ही जैसे मेरे जहन में लिखते हुए ...कुछ चेहरे बार बार दस्तक दे रहे हैं ....वो हंसते हुए चेहरे ...कॉलेज की कैंटीन में हँसते खिलखिलाते चेहरे .... साथ क्रिकेट खेलते हुए चेहरे ...गली के मोड़ पर गप्पे लड़ाते हुए चेहरे ....पहले इश्क के चर्चे में शामिल चेहरे ....गले लगाते हुए चेहरे ...रुठते हुए चेहरे ...मनाते हुए चेहरे ...और जिंदगी भर दोस्ती निभाते हुए चेहरे

सुन ऐ मेरे दोस्त आज यूँ ही तन्हाई में बैठे हुए ...तेरी वो बातें याद आ गयीं ... जो चाय और सिगरेट के कश के साथ ....तूने किसी रोज़ दिल से कही थीं ... कहने को तो वो चन्द अल्फाज़ थे ...जो उस रोज़ तूने धुंए के छल्लों के साथ हँसते हुए कहे थे ...पर सच दिल आज भी वो फुर्सत के दिन याद करता है ....वही बीते दिन ...वही आवारगी के दिन ...वही बेचारगी के दिन ...वही बिन जेब में पैसों के तफरी के दिन ...वही अपनी महबूबा के गम में दिलासा देने के दिन ...वही कॉलेज के मैदान में तेरे संग अकेले घंटों बैठे हुए दिन ...वही बचपन के दिन ...वही चढ़ती जवानी के दिन ....वही आशिकी के दिन ...वही रूठने के दिन ...वही मनाने के दिन ...सच आज भी याद आते हैं

ये एहसास भी बहुत अजब है ...ऐसे जैसे कि कल की ही बात हो ...सच अब तो हंसी सी आती है जब ...उन पलों की याद आती है ...जब रूठकर हम एक दूजे से महीनों नहीं बोले थे ....वो फिर भी हर रोज़ एक दूजे के घर जाना ....वो सबसे बात करना और एक दूजे से कतराते से रहना...और फिर बनाना एक बहाना कि जैसे आये हों लेकर कोई जबरन काम ...और देखनी हो सिर्फ सूरत भर यार की .... कैसे जब घंटों बात करते रहने वाले हम ...कई महीनों एक दूजे से नहीं बोले ...दिल ही दिल में तड़पते से ....हसरतें करते से ...कि बस इस पल ही ख़त्म कर दें दूरियां ये ...पर सच कितने बच्चे से थे ....

और जब फिर से उस रोज़ बात शुरू हो चली ...तो कैसे हमने कई रातें बिन सोये अपनी बातें सुनाने में निकाली ...सच दिल करता है फिर से खिड़की खोलूं और ले आऊँ कहीं से वो रातें ....वो बातें ...काश ऐसा हो पाता ...दिल इस पल यूँ ही अचानक ही ख्वाब सा बुनने लगता है ...

जिंदगी भी एक अजब पहेली है ...कैसे कैसे दिल के रिश्ते बनाती है ....कितने प्यारे जो तोडे से भी न तोडे जाएँ ... दिलों को बांधे रखने के लिए किसी डोर की जरूरत महसूस नहीं होती ....शायद तभी ये दोस्ती ...ये एहसास इतना पवित्र है ..इतना सुखद है ....काश ये सब में तुझसे अभी इसी पल ...उस दिन की चाय और सिगरेट के कश के साथ भर जैसा कह पता...देख पाता तेरी मुस्कुराती हुई आँखों को .....वो सिरहाने तकिया लगाये जब घंटों ....बेसिर पैर की बातें करते हुए ...बिस्तर पर यूँ ही उल्टे सीधे पड़े रहते थे ...सच वो पल भी अब याद दिला जाते हैं ...उन हसीन पलों की खूबसूरती आँखों पर बार बार आकर छा जाती है ...मदहोश कर जाती है ....और मैं घंटों यूँ ही उन ख्यालों में डूबा रहता हूँ ...हाँ दोस्त तू सुन रहा है न

शहर की ना जाने कितनी उल्टी सीधी ...टेडी मेडी गलियों से गुजर हम वापस घर को पहुँचते थे ...यूँ ही बेपरवाह ....बेहिसाब चलते थे ...कदम जैसे रुकने का नाम न लेते थे ...शायद ही हम साथ होते हुए कभी थके हों ....हर पल साथ रहने की ख़ुशी जो रहती थी दिल में ....फिर ना जाने जिंदगी में कैसा मोड़ आया ....कि वहां जाकर जिंदगी ने तुझे उस रास्ते भेज दिया ...और मुझे इस रास्ते ..... शायद इसी को जिंदगी कहते हैं ....बड़े अजीब हैं ये रास्ते, ये गलियाँ ..कमबख्त कहीं जाकर आज तक ना जुड़े ....जैसे हम पहले साथ बचपन में रहते हुए ...किसी भी टेडी मेडी गली से गुजरते ...उसे कहीं न कहीं अपने रास्ते से जोड़ लेते थे ....पर इस बार हमें जिंदगी ने मौका नहीं दिया ....आज भी हम अपने अपने रास्तों पर चल रहे हैं ...क्या कभी ऐसा होगा कि गली के किसी मोड़ पर हम फिर से टकरा जाएँ ....सच कितना सुखद होगा ...वो मोड़ ...बिलकुल अपना सा ...तब दिल करेगा कि उस मोड़ पर चन्द पल सुस्ता लें ...साथ बैठ ...ढेर सारी गप्पे मार ले ...चाय पियें और धुऐं में उडे दे सारे गम

हाँ शायद तब कितना सुकून मिलेगा हमारे दिल को ....बिलकुल वैसे ही जैसे हम फुर्सत के उन दिनों में ...एक दूजे के साथ बेपरवाह हो ...मदहोश हो जाया करते थे ....हाँ शायद फिर से एक पल के लिए ऐसा हो ....ऐ मेरे दोस्त तू सुन रहा है न
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