उसका अपराध आत्महत्या थी ।

>> 25 September 2010

प्रथम बीयर के अंतिम घूँट के साथ ही उसकी आँखें बहकने लग गयीं । अभी चार की गिनती शेष थी । हम सन् 2002 की बीती सर्दियों की शाम को याद करके पीने में ख़ुशी महसूस कर रहे थे । उसके पास उन सर्दियों को याद करके ख़ुशी मनाने का अच्छा बहाना रहता था । और फिर बिना ख़ुशी, बिना गम के पीने में अपराधबोध होने लगता था । उसका यूँ एकाएक उन्हें याद करना मुझे भी अच्छा लगने लगा था । हालाँकि उन बरसात के बाद के दिनों को याद करना दुःख की बात थी किन्तु धीमे-धीमे वह सुख देने लगीं थीं ।

हर एक बीयर और सिगरेट के कशों के साथ उसका उन प्रेमपत्रों को पढने का रिवाज़ था जो कि बीते हुए समय के प्रथम और अंतिम तौहफे थे । हर बार की तरह मुझे याद हो आता कि पिछली दफा किस प्रेम पत्र को पढ़ते हुए उसने कौन सी कहानी सुनाई थी या किस बात पर वो हँस दिया था और किस बात को याद करते हुए उसकी आँखें छलक आयीं थीं । उसकी इन सभी आदतों को प्रारम्भ के दिनों में मैंने बदलने की यथासंभव कोशिश की थीं । जो बाद के दिनों में धीमे-धीमे ख़त्म हो गयी थीं ।

उसे उस लड़की से प्रेम था और शायद उस लड़की को भी । इस बात का मैं यकीनी तौर पर गवाह नहीं बन सकता किन्तु हाँ उनका प्रेम उन बीते दिनों की रातों में एक दूजे को थपकियाँ देकर अवश्य सुलाता था । ऐसा उसने पिछली से पिछली सर्दियों में तीसरी बीयर के पाँचवें घूँट पर कहा था । मुझे उनके इस तरह से सोने की आदत पर हँसी आयी थी । जिसे मैंने बीयर के घूँट तले दबा लिया था ।

मुफ्त की बीयर पीने का मैं शौक नहीं रखता, ऐसा मैंने शुरू के दिनों में उससे कहा था । हमारी दोस्ती तब कच्ची थी, जिसे उसने अपने प्रेम पत्रों के पढ़ते रहने के बीच पक्का कर दिया था । मेरा काम केवल उसकी यादों का साक्षी भर होना नहीं था बल्कि उसमें अपनी राय को शामिल करना भी था । ऐसे कि जैसे मेरे उन गलत-सही विश्लेषणों से उसके प्रेम के वे मधुर-मिलन के दिन फिर से नई कोपिलें फोड़ देंगे । यह ठीक रिक्त स्थान को अपनी उपस्थित से भरने जैसा था ।

यह तीसरी बीयर थी जब उसने मुझे बताया कि इस बार की सर्दियों के अंतिम दिनों में वह ऑस्ट्रेलिया जा रहा है । उसके ऑस्ट्रेलिया जाने के कहने के बाद से ही मुझे उसके वे मरे हुए दिन याद हो आये जिनमें वो किसी और से शादी करके वहाँ बस गयी थी । अब ऑस्ट्रेलिया शब्द का अर्थ मुझे उसके वे मृत दिन लग रहे थे । जो वहाँ खुशहाली से चारों ओर पसरे होंगे । इसका वहाँ जाना जैसे बारिश कर देना था ।

हम अब पूर्णतः बीयर की गिरफ्त में थे । उसका ये कहना कि वो वहाँ जाकर उसे तलाश कर उसके तौहफे दे देगा । उसका मुझे आसमान से जमीन पर बेरहमी से पटक देना था । वो एक कस्बा नहीं था, ना ही कोई अजमेर जैसा शहर, जोकि हर गुजरता आदमी बता दे कि मन्नत कहाँ जाकर माँगनी है । वो एक देश था, अपने में सम्पूर्ण और अंजान । उसका वहाँ जाना, उसका खो जाना था । उसके बीयर के दिनों को भूल जाना था, जो कि बहुत भयानक था । उसने बीते दिनों में जीना सीख लिया था किन्तु अब वह खुद के लिये पुरानी वजह तलाशेगा । यह ख़ुशी से आत्महत्या करने जैसा था ।

कहते हैं आत्महत्या करना कानूनन अपराध है ......


* चित्र गूगल से

15 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) 26 September 2010 at 00:27  

बहुत मानसिक वेदना से जुडी कथा

kavita verma 26 September 2010 at 00:38  

bahut marmik par kisi ki yadon ki gahrai aur vedna ko sajhna sachmuch kathin hai.

अनिल कान्त 26 September 2010 at 00:48  

गजेन्द्र जी क्षमा चाहूँगा किन्तु मुझे आपके उन चुटकुलों में दिलचस्पी नहीं....आशा करता हूँ आप अब बिना पढ़े अपनी पोस्ट का लिंक देने की मेहनत नहीं करना चाहेंगे

Unknown 26 September 2010 at 02:16  

अच्छा लिखा

Asha Joglekar 26 September 2010 at 03:11  

कहानी दर्दभरी है पर पसंद आई ।

प्रवीण पाण्डेय 26 September 2010 at 08:18  

पुराने व्यक्तित्व को त्याग नया धारण करना तो पुनर्जीवन हुआ।

Anonymous,  26 September 2010 at 10:40  

उसने बीते दिनों में जीना सीख लिया था किन्तु अब वह खुद के लिये नई वजह तलाशेगा ।...

इसे क्या खूब तरीके से आत्महत्या कहा है आपने...

बेहतर...

निर्मला कपिला 26 September 2010 at 12:16  

दर्द भरी दास्तान दिल को छू गयी
शुभकामनायें

VICHAAR SHOONYA 26 September 2010 at 12:44  

बढ़िया लिखते हो दोस्त.

vandana gupta 26 September 2010 at 13:00  

यही तो आपकी कहानिये कि विशेषता है कि इंसान सोचने को मजबूर हो जाता है।

vandana gupta 26 September 2010 at 18:35  

आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (27/9/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com

sonal 26 September 2010 at 22:43  

वो एक कस्बा नहीं था, ना ही कोई अजमेर जैसा शहर, जोकि हर गुजरता आदमी बता दे कि मन्नत कहाँ जाकर माँगनी है ।

vaise to poori kahani laa jawaab hai par ye panktiaan khaas pasad aai

उपेन्द्र नाथ 27 September 2010 at 12:44  

Anil ji,
Bahoot hi sunder kahani chayan jo bhavo ko bakhoobi vayakta karta hai. Aur sath me aatmahatya ko sonchne valo ko jine ka naya sandesh deti hui...

शरद कोकास 28 September 2010 at 18:40  

बहुत बढ़िया शिल्प है इस कहनी का

Ritika Rastogi 23 December 2010 at 02:25  

Behtareen!!! :)
Devdaas ko aajtak kisi ne is kon se nahin dekha hoga! Agli rachna ke liye shubhkaamnaayein!

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