ख्वाब कभी नहीं मरते
>> 31 July 2009
'ख्वाब कभी नहीं मरते' और जो मर जाए तो वो ख्वाब ही कैसे...जानती हो तुमने ये एक बार कहा था...याद है ना तुम्हें...हाँ याद ही होगा...हाँ शायद...सोचता हूँ 'मरे हुए ख्वाब कैसे होते होंगे'...जिनका जीते जी कोई वजूद ना रहा...उन मरे हुए ख्वाबों का क्या होता होगा...क्योंकि किसी भी ख्वाब को 'शहीद' तो घोषित नहीं किया जा सकता...हाँ उसे थपथपी देकर सुलाया जरूर जा सकता है....हाँ शायद...जब मैंने ये कहा था तब तुम कैसे देखती रह गयी थीं मुझे...और मैं अनजान सा खोया सा उस रेत पर आडी तिरछी लकीरें खींचे जा रहा था...बिलकुल जिंदगी की तरह...जो कमबख्त सीधी चलने का नाम नहीं लेती...काश इसमें भी ट्रेन के स्टेशन की तरह कोई बंदोबस्त होता....तो हम भी एक स्टेशन से चढ़ अपने मनपसंद स्टेशन तक जाकर उतर जाते...और कुछ पल सुस्ताने के बाद...आगे की सोचते...मगर शायद खुदा को ये कहाँ मंजूर...
पर अगर ख्वाब मर जाते हैं तो वो यहीं कहीं भटकते होंगे हमारे आस पास...है ना...ऐसा मैं जब कहता था तो तुम कैसे प्यार से मुझे निहारने लगती थीं....ये भी अजीब इत्तेफाक है...नहीं इत्तेफाक नहीं हो सकता...कल रात को जब उनींदा सा अपनी हसरतों को खूँटी पर टांग जब बाहर चहल कदमी कर रहा था तो जानती हो क्या हुआ...एक मरा हुआ ख्वाब अचानक से मेरे पास आया...उसने देखा मुझे...मुस्कुराया...ठीक वैसे ही जैसे तुम मुस्कुराती थीं...सिगरेट के धुंए की लड़ी को हटाते हुए मैंने उसे गौर से देखा...एक पल वो मुझे तुमसा जान पड़ा...वही आँखें...वही शक्ल...वही अंदाज...
कहने लगा कैसे हो जनाब...मैं मुस्कुराया...ठीक तो हूँ मैं...ठीक हूँ...वो आगे बढा...मुस्कुराते हुए मेरे गालों को थपथपाया...बोला मैं ख्वाब हूँ...तुम्हारा सबसे हसीन ख्वाब...और चलने को हुआ...फिर मुडा,और 'हाँ उसका भी'...मैंने उसे गौर से देखा...वो वही चाहता था कि मैं मुस्कुराऊं...ठीक वैसे ही जैसे तुम हमेशा चाहती थीं...वो हाथ हिलाते हुए बोला मैं यहीं हूँ तुम्हारे आस पास...और आँखों से ओझल हो गया...ये तुम्हारा ही ख्वाब था....हाँ तुम्हारा ही होगा...तुमने ही इसे छोडा है मेरा साथ देने के लिए...है ना...हाँ तुम ठीक ही कहती थीं ख्वाब कभी नहीं मरते...वो हमारे आस पास ही तो रहते हैं...बिल्कुल पास...इतने कि हाथ से छुओ तो एक नरमी सी दे जाएँ
अबकी जो दोबारा मिला तो उससे पूछूँगा क्या तुम आज भी आइसक्रीम खाती हो...क्या तुम्हें आज भी पानी पूडी खाने पर आंसू बहाना अच्छा लगता है....क्या तुम्हें आज भी ठण्ड में पंखा चलाना भाता है...क्या तुम आज भी हवाओं में अपना दुपट्टा ख़ुशी से झूम कर लहराती हो...क्या तुम आज भी तरह तरह की शक्लें बनाती हो...क्या तुम आज भी हंसते हंसते रो जाती हो...
क्या तुम आज भी...ख्वाब बुनती हो