एक प्रेम कहानी ऐसी भी
>> 21 July 2009
रात लौट आई लेकर फिर से वही ख्वाब
कई बरस पहले सुला आया था जिसे देकर थपथपी
कमबख्त रात को भी अब हम से बैर हो चला है
अक्सर कहानी शुरू होती है प्रारंभ से...बिलकुल शुरुआत से...लेकिन इसमें ऐसा नहीं...बिलकुल भी नहीं...ये शुरू होती है अंत से...जी हाँ दी एंड से...कहानी का नहीं...उनके प्यार का...हाँ वहाँ से जहाँ से उनका प्यार ख़त्म होता है...उनकी आखिरी मुलाकात के साथ...जब प्रेरणा और अभिमन्यु आखिरी बार मिलते हैं...प्रेरणा की शादी के साथ..
और फिर 5 साल बाद.....
एक छोटा सा स्टेशन है...गाडी रूकती है...स्टेशन सुनसान है...अभिमन्यु ट्रेन से उतरता है...एक परिवार और उतरा है...उन्हें लेने कोई आया है...वो उन्हें लेकर चले जाते हैं...अभिमन्यु काले कोट वाले साहब से कुछ पूंछता है...उसके बाद वो आगे बढ़ जाता है...वहाँ बैंच दिखाई दे रही हैं...वो वहाँ बैठ जाता है...पीछे की बैंच पर कोई शौल ओढे बैठा है...हाड कपाने वाली ठण्ड में वो कुछ ज्यादा गर्म कपडे नहीं पहने हुए...अपनी फिक्र करना छोड़ दिया है उसने...वो सिगरेट जला लेता है...धुंआ उड़कर बादलों सा आस पास पसरने लगता है पीछे से खांसने की आवाज़ आने लगती है...एक्सक्यूज मी, प्लीज....अभिमन्यु आवाज़ सुनकर अचानक से मुड़ता है...क्योंकि ये आवाज़ तो जानी पहचानी थी...हाँ ये प्रेरणा की आवाज़ थी...उधर प्रेरणा भी अभिमन्यु को देखकर अजीब सी रह जाती है....कुछ पल के लिए सन्नाटे में भी एक ऐसा सन्नाटा पसर जाता है...ठीक वैसा ही सन्नाटा जैसा दोनों के बीच उस आखिरी मुलाक़ात पर पसरा था....जो आज तक खामोशी कायम किये हुए था....
प्रेरणा तुम...अभिमन्यु बोलता है...हाँ अभिमन्यु के लिए तो ये एक ख्वाब जैसा ही था उसे दोबारा देखना...और फिर दोनों बैंच की एक ही तरफ बैठ जाते हैं....कुछ सवाल प्रेरणा की आँखों में थे तो कुछ अभिमन्यु की में...पर दोनों खामोश...सिगरेट का धुंआ अभी भी उड़ रहा था...छोड़ी नहीं ये आदत...प्रेरणा के सवाल के साथ सन्नाटा ख़त्म होता है....ह्म्म्म...अभिमन्यु प्रेरणा की तरफ देखता है....फिर सिगरेट की तरफ...आदतें....आदतें....ये आदतें भी अजीब होती हैं....कुछ अपने आप छूट जाती हैं....और कुछ चाहने पर भी नहीं छूटती....फिर से पीना कब शुरू कर दी...प्रेरणा कहती है...पता नहीं कब शुरू हुई...ठीक से अब तो याद भी नहीं...खैर...तुम यहाँ...कैसे...वो यहाँ के नवोदय विद्यालय में नौकरी मिल गयी है...अच्छा कब से...1 साल हो गया...और आप...ह्म्म्म...सरकारी नौकरी जब जहाँ भेज दें चला जाता हूँ....वैसे यहाँ एक कंपनी है उसका सोफ्टवेयर बनाने का प्रोजेक्ट मिला हुआ है...उसी के सिलसिले में....ओह अच्छा...पहली बार आना हुआ है आपका....हाँ...यहाँ से जाने के लिए बस तो सुबह ही मिलेगी...हाँ वो काले कोट वाले भाई साहब बता रहे थे...
एक बहुत ही ठंडी हवा का झोंका अभिमन्यु के कानों से गुजरता है...अभिमन्यु कपकपाने लगता है...ये क्या दो कपडों में इतनी ठण्ड में चले आये...मालूम है कि इतनी ठण्ड है फिर भी....प्रेरणा अपना बैग खोलकर गरम शौल देखने लगती है....अरे नहीं मेरे पास है वो...माँ ने चलते वक़्त रख दिया था...प्रेरणा शौल निकालकर देती है...ओढ़ लीजिये इसे जल्दी से...अभिमन्यु के मुंह से माँ के बारे में सुनकर...माँ कैसी हैं...अभिमन्यु शौल ओढ़ते हुए...अच्छी हैं...चलते वक़्त तमाम हिदायतें दे रही थीं...
तभी प्रेरणा को याद आता है वो बीता हुआ पल...जब प्रेरणा अभिमन्यु से कहती है "क्या माँ बहुत प्यार करती हैं...हाँ बहुत...बहुत प्यार करती हैं...बहुत प्यारी हैं...वो तुम्हें मुझसे भी ज्यादा चाहेंगी देखना तुम...अच्छा...सच...हाँ वो अपनी बहू के बहुत ख्वाब बुनती हैं"...फिर एक ही पल में प्रेरणा अतीत से उस बैंच पर लौटती है...और मन ही मन सोचती है...उनकी बहू के बारे में....अभिमन्यु की बीवी के बारे में....पर सोचती है कि वो क्या हक़दार है ये पूँछने की....वो बस सोचकर रह जाती है....पूंछती नहीं...
ठाकुर साहब कैसे हैं ? अभिमन्यु सवाल की तरह पूँछता है प्रेरणा से...वो जानती है कि वो उसके पापा के बारे में पुँछ रहा है....हाँ यही तो कहता था...अभिमन्यु उन्हें...ठाकुर साहब....वो अच्छे हैं...पहले की ही तरह...प्रेरणा अभिमन्यु की तरफ देखती है पर कुछ कहती नहीं...अभिमन्यु सिगरेट जला लेता है...एक वो समय भी था जब प्रेरणा के एक बार कहने पर अभिमन्यु ने सिगरेट छोड़ दी थी....कभी नहीं पीता था फिर....धुएं के साथ एक वो सच भी धुंधला सा पड़ गया...
अभिमन्यु इधर उधर देखता है...कुछ तलाशता सा...चाय वाला कहीं...प्रेरणा अपने बैग से थर्मस निकाल कर अभिमन्यु की तरफ चाय बढाती है...ये चाय...वो मैंने चाय की दुकान बंद होने से पहले ही थर्मस में भरवा ली थी...आज भी उस्ताद हो...थैंक यू कहते हुए अभिमन्यु चाय ले लेता है...और मन ही मन सोचता है कि प्रेरणा तो शुरू से ही उस्ताद थी...हर काम में...ख्याल रखने में हर बात का...
अभिमन्यु अपने बैग की जेब तलाशने लगता है...क्या हुआ...देख रहा हूँ शायद कुछ खाने को पड़ा हो....अरे मेरे पास है ना...प्रेरणा अपने बैग से नमकीन निकालती है...तब तक अभिमन्यु अपने बैग से कुछ निकालता है....अरे गुजिया...प्रेरणा कहती है....माँ ने बनायीं है....हाँ....लो जानता हूँ तुम्हें बहुत पसंद है....प्रेरणा गुजिया लेती है...खाती हुई कहती है...आपकी बीवी तो बड़ी किस्मत वाली होगी जो इतनी प्यारी माँ मिली उन्हें...नहीं किस्मत ने माँ का साथ नहीं दिया...क्या मतलब...प्रेरणा बोली....प्यार लुटाने के लिए बहू का होना भी बहुत जरूरी है....कहते हुए अभिमन्यु चाय का घूँट गले से नीचे उतारता है...अभी...प्रेरणा के मुंह से निकला...और वो अभिमन्यु के चेहरे की तरफ देख रही थी...ढेर सारे सवाल...और ढेर सारी पुरानी बातें साफ साफ प्रेरणा के चेहरे पर पढने को मिल जाती इस समय...
खैर मेरा छोडो....तुम बताओ...तुम इतना दूर कैसे नौकरी करने आ गयी...तुम्हारे पति कहाँ हैं आजकल...ऐसा सवाल जिससे बचने के लिए वो यहाँ सबसे दूर पड़ी थी...आखिरकार बरसों बाद पूंछा गया....और वो भी उस इंसान ने जिसके एक तरफ जिंदगी कुछ और थी...और उसके परे जिंदगी कुछ और...
प्रेरणा के चेहरे पर खामोशी छा गयी...वो कुछ नहीं बोली...सिगरेट का एक कश लेकर धुंआ छोड़ते हुए उसने कहा...तुमने जवाब नहीं दिया...प्रेरणा नमकीन का पैकेट बैग में रखने लगी...और थर्मस को भी उसने बैग में रखना चाहा...एक अजीब सी खामोशी लिए हुए...अभिमन्यु के लिए ये खामोशी एक लम्बा सवाल बन चुकी थी...अभिमन्यु ने बोला....बोलती क्यों नहीं क्या हुआ...प्रेरणा के खामोश चेहरे की आँखें भर आई...अभिमन्यु उसकी आँखों की नमी को अपने दिल की गहराइयों तक महसूस करता है....क्या...प्रेरणा के मुंह से बस इतना निकला वो अब नहीं हैं....सिगरेट सुलग कर अभिमन्यु का हाथ जला देती है...उसके हाथ से सिगरेट छूट जाता है....प्रेरणा की आँख से आंसू की बूँद टपक जाती है....मतलब क्या, कैसे....अभिमन्यु पूँछता है....एक रोड एक्सीडेंट और फिर सब ख़त्म....आज बरसों बाद अभिमन्यु की आँख भर आई...एक दर्द फिर से हरा हो गया....क्योंकि वो दुखी थी....कब...कब हुआ....शादी के एक साल बाद...प्रेरणा बोली....और आँसू थे जो रुक ही नहीं रहे थे....और तुम पिछले 4 साल से....बोलते हुए अभिमन्यु उसके रोते हुए चेहरे को देखता रह गया....दोनों के बीच एक लम्बी खामोशी छा गयी... (कहानी आगे जारी है)
आगे की कहानी का लिंक ये हैं :
दूसरा एवं अंतिम भाग
24 comments:
इस वक़्त इतनी अच्छी कहानी पढने को मिलेगी सोचा ना था...आगे का इंतजार रहेगा
aage intazaar rahega,triveni bahut sunder.har baar padhke ehsaas jaag jaate hai apki kalam se.
रोचक कहानी, आभार!
अगली कड़ी का इन्तजार!!
रोचक कहानी की अगली कड़ी की बेसब्री से प्रतीक्षा......................
बधाई.
्रोचक और मार्मिक कहानी आगे का इन्तज़ार रहेगा आभार
kahee गहरे उतरती जा रही है ये कहानी............
kitna achcha likhte hain aap ... hamesh dil khus ho jaata hai
Congratulations! This story is BlogAdda’s Tangy Tuesday Picks – Jul. 21, ‘09!!
You may check it out at http://blog.blogadda.com/2009/07/21/blogaddas-tangy-tuesday-picks-jul-21-09
Clap! Clap! Clap! :)
bahot galat samay par break liya hai anil ji... bilkul galat baat hai ye :-) amazing story... jaldi se next part post kariye and hopefully the last one...
bahut hi touching story hai anil ji.ismein to break nhi lena chahiye tha.ab to agli kadi ka intzaar rahega.
अगली किस्त का बेसब्री से इंतजार है
प्रणाम स्वीकार करें
very touching n full of excitement n emotions....
padhte- padhte scene automatically ankhon ke saamne aate ja rahe they.... waiting for next
I read a hindi story after a long time. Thanks for the experience. You write really well.
Thanks for visiting my blog, too. Hope to see you there again.
Ranee
अनिल जी बस आगे की कहानी बता ही दीजिये ...
क्या हुआ अभिमन्यु और प्रेरणा का.?
जल्दी......
umda kahani, patro se bandh gaye hai, aage kya hoga ki jigyasa jaga kar rok diya .....sukhad ant ki abhilasha mein... pratikshit,
-m.hashmi
अनिल जी,
खूब जोड़ा है ताना-बाना कहानी कहीं से भी अपनी पकड़ ढीली नही होने देती।
अगली कड़ी की प्रतीक्षा में....
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
हम तो बेकरार हो गये अनिल....जल्दी कगाओ दूसरी किश्त...क्या लिखते हो यार!
अनिल कांत जी,
आज आपकी कहानी पढ़ी, एक प्रेम कहानी ऐसी भी... सचमुच हृदयस्पर्शी, मुझे तो गुलजार साहब की फिल्म इजाजत की याद आ गई। कहानी में गति है, शब्दों का चयन सटीक है। कहानी की सबसे बड़ी बात है उसका प्रवाह। जो एकबारगी शुरु करता है, तो खत्म करके ही छोड़ता है। उस पर 'कहानी आगे जारी हैÓ पढ़कर ऐसा लगा मानो सरपट दौड़ते हुए अचानक स्पीडब्रेकर आ गया हो। अब तो जब तक पूरी न पढ़ ली जाए, मन विचलित ही रहेगा। प्लीज जल्द ही पूरी करें, बधाई.. बहुत बहुत बधाई अच्छी कहानी के लिए....
डॉ. महेश परिमल
मार्मिक! धारावाहिक होना खलता है। ब्लॉग पर आप किताब की तरह अन्तिम पन्ना खोल कर नहीं पढ़ सकते न!
बहुत रोचक और प्रवाहमयी कहानी है,अंत तक बांधे रखती है.अब इन्तजार है आगे की किश्त का.
कहानी में (...... )की जगह पूर्णविराम का प्रयोग करते तो अच्छा लगता.कथनों को इन्वर्टेड कोमा में देते तो और सुन्दर लगता.
Anil ji
Rochak bhav abhivyakti bhi kamaal ki
.dil se badhai!!
A live story with anice story and background. Going to next.
very nice story
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