प्यारी सी नाकाम कोशिश

>> 29 January 2009

बचपन में जब आसमान में इन्द्रधनुष देखता तो मन करता कि इन साहब के कुछ रंग चुरा लूँ और कोई खूबसूरत पेंटिंग बनाऊँ । नानी कहती अरे बुद्धू उससे भी कोई रंग चुरा सकता है भला । मैं नाहक ही पेंटिंग बनाने की कोशिश करता । मैं नादान उड़ती हुई चिड़िया देखता तो मन करता कि इसकी पेंटिंग बनाऊं । बहुत कोशिश करता पर कभी टाँग छोटी तो कभी बड़ी हो जाती । नानी खूब हँसा करती । तब मैं रूठकर दूसरे कमरे में बैठ जाता । नानी शाम तक खूब मनाती । उसकी अंतहीन कोशिश और शाम को दूध-जलेबी के साथ जब कहानी का स्वाद मिलता तो कब नानी की गोद में सो जाता पता ना चलता ।


पेंटिंग ना कर पाने का दुःख मुझे बचपन में हमेशा रहता । मेरा पसंदीदा विषय होने के बावजूद उसे में अपने हांथों में न उतार सका । नानी हमेशा कहती कि हर किसी को ईश्वर कुछ न कुछ करने के लिए जरूर देता है । सबसे जरूरी है उसकी बनायी इस रचना को समझना, उसे महसूस करना ।

बचपन गुजरा और उसके साथ धीरे-धीरे पेंटर बनने की मेरी ख्वाहिश भी गुजर गयी । बड़ा हुआ तो कुछ नयी ख्वाहिशों ने जन्म लिया । कुछ साथ रही तो कुछ ने दम तोड़ दिया ।

बी.एस सी की पढाई के दौरान मैं अपने घर पर ही गणित की ट्यूशन पढ़ाता था । तमाम बच्चे ग्रुप में मुझसे पढने आते । ज्यादातर 10 वीं, 12 वीं क्लास के बच्चे हुआ करते थे । सर जी नमस्ते, सर जी गुड मोर्निंग की आवाजें हमारी गली में सुनाई देती । आदर-सत्कार होता । बच्चे तो बच्चे, उनके माता पिता भी आदर भाव से देखते ।

उसी दौरान नानी का हमारे घर आना हुआ । जब सुबह-सुबह नानी उठी । उन्हें वही आवाजें सुनाई दी । ढेर सारे बच्चों से उनकी बातें हुई । शाम को मैं बाजार से नानी के लिये एक शौल लाया । रात को जब मैंने शौल उन्हें दी तो कहने लगीं "बड़ा हो गया है, मेरा नन्हा सा पेंटर । तुझे याद है तू बचपन में अच्छी पेंटिंग ना कर पाने से दुखी होता था ।" मैं मुस्कुरा दिया । "कहा था ना मैंने कि ईश्वर सब को कुछ ना कुछ देता है । तुझे गणित जैसे विषय में अच्छा छात्र बनाया । जिसकी बदौलत आज तुझे इन छोटे-छोटे बच्चों से आदर और प्यार मिल रहा है । दुनिया में जो सबसे ज्यादा कीमती होता है वो तुझे बिना मांगे मिल रहा है । नानी की बातें एक बार फिर मुझे बचपन में लेकर चली गयी और उन नन्हे सपनों की याद दिला गयी ।

इतने में माँ रसोई से जलेबी और दूध लेकर आ गयी । उन जलेबी और दूध के साथ नानी को पाकर एक बार फिर से नानी की गोद, बचपन की कहानियाँ और वो एक नाकाम प्यारी सी कोशिश याद आ गयी ।

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ऐ राही तुझे आगे बढ़ना है ....

>> 26 January 2009

ऐ राही तुझे आगे बढ़ना है
लाख आएँगी मुश्किलें
तेरे इस सफर में

और अकेलेपन के लम्हे
डरायेंगे तुझे इस सफर में

ऐ राही तुझे नही डरना है
सिर्फ़ आगे बढ़ना है

आगे बढ़कर भी अगर
ना मिले मंजिलों के रास्ते

मत समझ लेना भूल कर
ये आखिरी हैं रास्ते
ऐ राही तुझे आगे बढ़ना है ......

हमसफ़र बनकर आ भी जाए
अगर कोई इस सफर में

मत समझ लेना भूल कर
वो साथ निभाएगा तेरा हरा सफर में
ऐ राही तुझे आगे बढ़ना है .....

मंजिलें तो बनी हैं पाने के लिए
उन्हें तो एक दिन मिलना ही है
पर ऐ राही तुझे आगे बढ़ना है

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लड़की रुतबे और पैसे में बराबर ना होने पर पुराने प्यार को क्यों छोड़ती है ?

>> 25 January 2009

" यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है ...बस पात्रों के नाम बदल दिये गये हैं "

हाँ मैं तुम्हे चाहती हूँ .....हर वक्त तुम ही ख्यालों में रहते हो ...आई लव यू सिद्धांत .....
पल्लवी तुम जानती हो कि मेरे हालात क्या हैं ....मैं तुम से चार साल बड़ा हूँ ....वक्त और हालात के साथ मैं आज तुम्हारे साथ पढ़ रहा हूँ ..... मेरी नौकरी कब लगेगी नही पता ....चलो ये मान भी लो कि सब ठीक है .... लेकिन तुम जानती हो तुम्हारे मेरे बीच जाति बंधन का बहुत बड़ा फासला है .....क्या तुम अपने परिवार और समाज के ख़िलाफ़ जा पाओगी ......क्या तुम मुझसे शादी कर सकोगी .....अगर शादी कर सकोगी तब तो हमारे प्यार के कुछ मायने हैं .....नही तो इस प्यार को कबूल करने और इसे आगे बढ़ाने से कुछ हासिल नही .

हाँ मैं सिर्फ़ तुमसे ही शादी करूँगी.....चाहे जो कुछ हो जाये .....सिद्धांत को पल्लवी का वादा और हर बात याद थी .....प्यार बढ़ा ...वक्त गुजरा .....हालत अच्छे बुरे आये ...कहते हैं कि वक्त बहुत जल्दी बदल जाता है .....शायद प्यार भरा वक्त बदलते देर नही लगती

दोनों ने मिलकर अपना सॉफ्टवेर का कारोबार शुरू किया .....अब कारोबार तो कारोबार है .....मेहनत, समय और संघर्ष तो लगता ही है ....लेकिन इस दरमियान पल्लवी की बड़ी सॉफ्टवेर कंपनी में नौकरी लग गयी ....एक पल में ही साथ जीने मरने और साथ में संघर्ष करके कारोबार चलाने की बात करने वाली पल्लवी को... जिंदगी आसानी से गुजारने का मौका मिल गया ..... जब आसान जरिया मिल जाये तो संघर्ष हर कोई कहाँ करना चाहता है ......पल्लवी सिद्धांत का साथ छोड़ नौकरी पर चली गयी

पता नही ये स्वभाव भी वक्त की तरह क्यों होता है .....ये भी बदलने लगता है ...अब बड़ी बातें ...महँगे कपड़े ....सप्ताह के अंत में फ़िल्म देखना ....बाहर खाना ...ये सब पल्लवी के स्वभाव में शामिल हो चुका था ....नये दोस्त ....दोस्तों के साथ बाहर घूमने जाना ...इस दरमियान पल्लवी सिद्धांत पर किस बात को लेकर गुस्सा हो जाये, फ़ोन काट दे .....बात न करे ....अपनी बात ही कहना .....ये सब आम बात हो गयी थी ......क्या ये नया ज़माना ...और नया चाल चलन था ....शायद

जब भी सिद्धांत शादी की बात करता... पल्लवी फ़ोन पर खामोश हो जाती ...या जवाब न देती ....और हर अगले दिन उस बात पर चर्चा न करना चाहती .... रूठने मनाने का सिलसिला यूँ ही चलता रहा ...आखिरकार 1 साल गुजर जाने के बाद सिद्धांत ने पल्लवी से फिर से शादी के लिए कहा .....बात करते करते बात बढ़ी ...... जब सिद्धांत ने पूँछा कि शादी कब करोगी ....शादी ..शादी ...हमेशा शादी .....खिलाओगे क्या मुझे शादी करके .....तूफ़ान से भी तेज़ आवाज कानों में पहुँची ....चारों ओर सन्नाटा पसर गया ....शायद अब सिद्धांत कुछ कहना नही चाहता था .....लेकिन क्योंकि पल्लवी हमेशा लड़का और लड़की के बराबर होने की बात करती थी ...इसी लिए चुप नही रहा ....

क्यों तुम्हे कमा के खिलाने की जरूरत क्या है ...तुम कमा तो रही हो ...तुम भूखी तो नही मरोगी ......या फिर सिर्फ़ में ही तुम्हे कमा के खिला सकता हूँ ...तुम भी तो कुछ दिन मुझे खिला सकती हो ....मैं तो एक पैसा नही देने वाली .....और फिर जिंदगी यूँ ही नही कटती .पल्लवी ने कहा ......क्यों क्या चाहिए जिंदगी काटने के लिये ... क्यों तुम्हे शर्म आएगी कि तुम्हारा पति कारोबार को बढ़ाने के लिये संघर्ष कर रहा है ...तुम्हारे रुतबे का नही है ......सिद्धांत बोला...पल्लवी खामोश थी वो कुछ बोलना नही चाहती थी ...पर सच तो यही था कि .....कोई भी लड़की अपने से कम रुतबे वाले लड़के से शादी नही करना चाहती ....फिर भले ही वो उसका प्यार क्यों न हो .....

हाँ नही करना चाहती में शादी .....ठीक है ....इसके साथ ही न जाने क्यों एक लम्बी बहस ....एक लंबा प्यार ....बड़े वादे .....सब ख़त्म से मालूम लगे सिद्धांत को .....

मुझे नही पता पर क्या ...क्यों कोई लड़की रुतबा .....सफलता .....इन सब के लिये अपना प्यार छोड़ती है ...इसमे कितनी सच्चाई है और ऐसा क्यों होता है ...जबकि स्त्री तो बराबरी की बात करती है .....क्या प्यार में ..संघर्ष में ....इंतज़ार में बराबरी नही कर सकती ......खासकर जो स्त्री पढ़ी लिखी ...नौकरी करने वाली है और जिनके प्रेम सम्बन्ध पिछले कई सालों से चल रहे हैं वो .....इस बात का सही जवाब क्या है समझ नही आता

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हॉस्टल का पहला दिन -- अरे वो तो सरदार का रूम है !

>> 14 January 2009

घर से माँ ने अपने पूरे लाड प्यार के साथ विदा कर दिया कि हमारा बेटा दूर जा रहा है MCA करने । अब दूर कहीं हमारे घर से उत्तर प्रदेश का सुल्तानपुर जिला था । जहाँ कमला नेहरू इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी इंजीनियरिंग कॉलेज (Kamla Nehru Institute of Technology, Sultanpur) था । भाग्यवश हमें प्रवेश परीक्षा के माध्यम से वहाँ की सीट मिली थी । खुश थे कि चलो सरकारी और माना हुआ इंजीनियरिंग कॉलेज मिला है ।

हम रेलगाडी से वहाँ पहुँच गए । अब जब कॉलेज सरकारी है तो हॉस्टल भी तो सरकारी होगा ना । बताया गया कि हॉस्टल में कमरों की कमी है और छात्र ज्यादा । अतः तीन छात्रों के कमरे में पाँच छात्रों को रखा गया । मैंने भी हॉस्टल के वार्डेन साहब से जाकर अपने कमरे का बंदोबस्त करा लिया ।

कमरा तीसरी मंजिल पर और पास में एक सूटकेस, एक बैग, बिस्तर के साथ बिस्तर बंद और हाँ घी का डिब्बा, जो घर से चलते वक्त माँ ने मुझे जबरन पकडाया था । इतनी दूर जा रहा है वहाँ पढेगा तो घी बहुत जरूरी है । सेहत सही रहती है । जैसे कि ज़माने भर की पढाई मुझे ही करनी हो वहाँ जाकर ।

जैसे-तैसे मैं तीसरी मंजिल पर एक-एक सामान लेकर पहुँचा । रास्ते में दूसरे लड़के मिले जो एक हफ्ते से वहाँ डेरा डाले हुए थे ।
-"कौन सा रूम मिला है ?" लड़कों के झुण्ड में से एक लड़के ने पूँछा
-S-14
-क्या S-14? अरे वो तो सरदार का रूम है ।
पहले तो मैंने सोचा कि क्या वो इन सब का सरदार है ? फिर तुंरत समझ आ गया कि वो धर्म का सरदार होगा । ना जाने क्यों थोड़ा डर भी लगने लगा कि ये ऐसा क्यों बोल रहे हैं "कि वो तो सरदार का रूम है ।"

खैर चार-छः कदम चलने के बाद मेरा रूम नंबर S-14 आ गया । रूम में घुसते ही वो "हमारा रूम" में तब्दील हो गया । मैं देखता हूँ कि दो लड़के फर्श पर अपना बिस्तर बिछाए उस पर लेटे हैं ।
-"हाय" मैंने कहा
-"हैलो" उन दोनों ने कहा
इसके साथ ही अपने हाथ आगे बढाए, मिलाने के लिए । मैंने हाथ मिलाया ।
-"ये कोने पर पानी क्यों बह रहा है ।" मैंने पूँछा
-"बरसात का टाइम है और ऊपर से पानी रिसता है, शायद कहीं छेद होगा ।" वो बोले
-"शिकायत नही की सही कराने के लिए ।" मैंने कहा
-"अरे सरकारी हॉस्टल है । दिन तो लगेंगे ही सही होने में । मैं कल आया था तो इसमे बल्ब भी नही था । कल ही लाकर लगाया था ।" सरदार बोला

-"अच्छा"
उसके साथ ही मैंने अपना सामान रखा और बिना उन्हें पूँछे उनके बिस्तर पर उनके बीच में लेट गया । जिसके लिए बाद में छः महीने बाद चर्चा होने पर । मेरी उस हरकत को लेकर सभी खूब हँसे थे । खैर लेटने के बाद बात हुई कि कौन कहाँ का है ?

मेरी एक तरफ़ इंदरजीत सिंह अर्थात "सरदार" और दूसरी तरफ़ बासुदेव जिसे हम बाद में "बाबुराव" कहा करते थे ।
- क्यों ?
- अब ये मत पूँछना । ये थोड़ा सा पर्सनल हो जाता है । अगर में बता भी दूँ तो "बाबुराव" ओह माफ़ कीजियेगा बासुदेव मुझे नही छोडेगा ।

उन्ही से पता चला कि हमारे रूम का एक साथी किसी दूसरे रूम में जा बैठा है । क्योंकि हमारे रूम की हालत ख़राब है । हमारा पांचवाँ साथी अभी आया नही था ।

जहाँ शुरू में वो कमरा ऐसा लगता था कि इसमे तो तीन इंसान भी नही रह सकते तो पाँच कैसे रहेंगे । वही कमरा तीन महीने बाद ही ऐसा लगने लगा कि इसमे पाँच लड़के और रह सकते हैं । पूरा समय कब गुजर गया पता ही नही चला । कॉलेज की मस्ती, दोस्तों के साथ गपशप, देर रात की चर्चा, साथ पढ़ना, खेलना और देर रात एक ही कमरे में २०-२० लड़कों का फ़िल्म देखना । सब जैसे कल की ही बात लगती है ।

वहाँ से जिंदगी भर के लिए ढेर सारे दोस्त मिले और अपने दोस्त सरदार के साथ मैंने पूरे ढाई साल एक ही कमरे में गुजारे । पहले दिन सोचा भी न था कि ऐसा भी होगा ।

अक्सर ही वो शब्द याद आ जाते हैं "अरे वो तो सरदार का रूम है । "

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हत्यारे चिता में शामिल थे

>> 08 January 2009

इस लेख को पढने से पहले कृपया पिछला लेख हॉस्टल - मर्डर और एक सवाल पढ़े तभी ये कहानी समझ आएगी ।

एक माँ रोती बिलखती हुयी अपने बेटे के मृत शरीर पर लिपट लिपट कर रो रही थी । वो माँ जिसने 22 साल तक उसे पाला पोसा और अपने कलेजे के टुकड़े को प्यार किया । आज वो उसके सामने एक कभी न खुलने वाली नीद में सोया हुआ था ।

पुलिस अपना इन्वेस्टीगेशन कर रही थी । चूँकि मामला अब बहुत बड़ा हो चुका था और न दबा ने लायक बचा था । मृत लड़के के अन्य रिश्तेदार भी आ चुके थे । वो लड़के को अपने साथ ले गए । माँ बाप का इकलौता लड़का था । वो भी हमेशा के लिए छोड़ कर चला गया था ।

हॉस्टल में सब लड़के कयास लगा रहे थे कि शायद खानदानी रंजिश या जमीन-जायदाद की वजह से किसी ने मरवा दिया हो । उधर गाड़ी में मृत लड़के के रिश्तेदारों के साथ उसके हॉस्टल के दोस्त भी साथ गए । उन 5-6 दिनों में हॉस्टल में कोई चैन से नही सो सका । मीटिंग पर मीटिंग हो रही थी । हॉस्टल के सभी लड़के एक जगह एकत्रित होकर समस्या को हल करने और कातिल को पकड़वाने के सिलसिले में विचार विमर्श करते ।

हमारे डीन, डायरेक्टर, हॉस्टल वार्डेन, सभी पुलिस के साथ अपनी पूरी कोशिश में लगे थे । सभी पर पूरा दबाब था । इन्वेस्टीगेशन चालू थी और फिर पूँछताछ का सिलसिला शुरू हुआ । मृत लड़के के पड़ोसी कमरों में रहने वाले सभी लड़को से पूँछताछ की गयी । 2 दिन बाद पता चला कि मृत लड़के के आजू बाजू में रहने वाले 3 लड़के पकड़ लिए गए हैं और उन्होंने ख़ुद सच्चाई कबूल की है कि आख़िर हुआ क्या था ?

ये वही 3 लड़के थे जो मृत के साथ उसके घर तक भी गए और उसकी चिता जलने के समय तक वहाँ मौजूद भी रहे । कोई और वहाँ साथ न जा सके इसके उन्होंने पूरे प्रयास किये थे । अंततः वो पकड़े गए, जब पुलिस ने कडाई से पूंछताछ की । सच कुछ इस तरह सामने आया ।


मृत लड़का अपने दोस्त के कमरे में कंप्यूटर पर कुछ काम कर रहा था । आज उसका कोई लेक्चर नही था । उसका दोस्त अलग ब्रांच का था तो वह अपना लेक्चर अटेंड करने गया था । पड़ोस के ही कमरों में रहने वाले लड़को के सुल्तानपुर शहर के किसी असमाजिक तत्व (लड़के ) से ताल्लुक थे । वो सुल्तानपुरिया लड़का आज उनके कमरे में मिलने आया था । अपनी हेकडी दिखाने के लिए कि वो कितना बड़ा गुंडा है । वह अपने साथ पिस्तौल लाया था । वैसे पुलिस में उसके ख़िलाफ़ 2-4 एफ.आई.आर.(FIR) दर्ज थी और पुलिस को उसकी तलाश रहती थी ।

वो अपनी भरी हुई पिस्तौल कमरे में छोड़ कर टॉयलेट करने चला गया । इतने में उस कमरे में रहने वाले लड़कों को मजाक की सूझी । उन लड़को को नही पता था कि ये मजाक किसी की जान ले लेगा । उन्हें बिल्कुल नही पता था कि पिस्तौल भरी हुई है ।

वो बच्चो की तरह खेल खेलने लगे और अपने पड़ोसी लड़के के कमरे में चले आए । देख बेटा मेरे पास पिस्टल है । मृत लड़का(जो उस समय जिंदा था) कंप्यूटर पर काम करता हुआ ही बोला "अच्छा" । उसने उन लड़को की तरफ़ देखा भी नही ।

पड़ोसी लड़के ने पिस्टल उस लड़के की पीठ पर रखते हुए कहा कि गोली मार दूंगा धिच्कायें-धिच्कायें(मुंह से आवाज़ निकालते हुए) । उसने भी हँसते हुए कहा हाँ चल मार दे और हँसते हुए बोला मुझे काम करने दे ।

लड़के ने पीठ पर पिस्टल रखकर मुंह से धिच्कायें की आवाज़ निकालते हुए पिस्टल का घोड़ा दबा दिया । एक ही पल में असली गोली की आवाज़ आ गयी । लड़का एक ही पल में वही ढेर हो गया । घोड़ा दबाने वाले और उसके अन्य साथियों के होश फ़ाक्ता हो गए । इतने में टॉयलेट से वो गुंडा तत्व भी भागता हुआ आ गया और अपनी पिस्टल लेकर वहां से रफूचक्कर हो गया । लड़को ने बात को छुपाते हुए और झूठी कहानी बनाते हुए कहा कि बाहर का लड़का मार गया । लड़के को जल्दी से मोटर साइकिल पर बिठाने की कोशिश करने लगे कि अस्पताल जल्दी पहुँच सके और उसकी जान बचा सके लेकिन इन सब के दौरान बहुत देर हो चुकी थी । लड़के को मजाक मजाक में जान से हाथ धोना पड़ा ।


ये वही लड़के थे जो मोटर साइकिल पर बिठाने से लेकर मृत लड़के की चिता तक में शामिल थे और फिर पुलिस इन्वेस्टीगेशन में भी शामिल होना पड़ा । चूँकि मामला गेर इरादतन हत्या का बनता था । जेल तो फिलहाल जाना ही था पर अगर सब कुछ सच सच पहले ही डीन या डायरेक्टर को बता देते तो मामला यहाँ तक न पहुँचता ।

गोली चलाने वाले को कुछ 1-2 साल की सज़ा होनी थी शायद और अन्य साथियों को हॉस्टल से निकाल दिया गया । बस वो कॉलेज आ सकते थे । इस घटना ने कई लोगों की जिंदगी बदल दी ...

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हॉस्टल - मर्डर और एक सवाल

>> 07 January 2009

मैगी नूडल सू-सू$$$ आवाज़ करता हुआ मेरे मुँह के अन्दर गया। तभी कुछ लड़कों का झुंड हॉस्टल की तरफ़ भगा जा रहा था । कुछ था जो घटित हुआ था । तभी आज इस तरह से चारों ओर लड़कों का शोर सुनाई दे रहा था । अंततः मुझ से रहा न गया और मैं ढाबा छोड़ हॉस्टल की तरफ़ भागा ।

कुछ समझ नही आ रहा था, कि आख़िर हुआ क्या है ? लग रहा था कि बस सब दौडे जा रहे हैं । शायद कुछ को पता था "कि हुआ क्या है ?" कुछ लड़के एक लड़के को मोटर साइकिल पर बिठाने की कोशिश कर रहे थे । लड़का खून से लथपथ था । साथ के लड़के बता रहे थे कि गोली लगी है । लड़के उसे मोटर साइकिल पर बिठा न सके, कार का इंतजाम होने लगा ।

किसी ने नब्ज़ टटोली, शायद अब देर हो चुकी थी । किसी तरह आनन-फानन में उसे कार में लिटाया गया । मुश्किल से 5 मिनट का रास्ता होगा सरकारी अस्पताल का । अस्पताल ले जाने का कोई फायदा ना हुआ । लड़को से ही सुना कि कोई बाहर का लड़का आकर गोली मार गया है । कौन ? किसी को कुछ नही पता ।

अस्पताल में जो हुआ उसकी ख़बर हॉस्टल में पहुँच गयी । सुल्तानपुर(उत्तर प्रदेश) के लिए आज का दिन बहुत कठिन बीतने वाला था । क्रोध की ज्वाला भड़क चुकी थी । आख़िर कोई बाहरी गुंडा आकर इंजीनियरिंग छात्र को गोली मार कर चला गया । लड़कों का आक्रोशित होना लाजमी था ।

पूरे कॉलेज के लड़के आनन फानन में अस्पताल की ओर दौड़ पड़े । पूरा रोड जाम हो गया । कोई पैदल दौड़ रहा है, कोई मोटर साइकिल पर जा रहा है तो कोई बस, ट्रक्टर, ऑटो । जिसको जो मिला वो उसमे सवार हो गया ।

अस्पताल के बाहर 1000-1500 लड़को का जाम लग गया । पूरा मुख्य मार्ग लड़कों से भरा पड़ा था । बसों को रोक लिया गया । हॉस्टल के लड़को के गुस्से को रोकने की किसमे हिम्मत थी । पुलिस की कई जीपे और गाडियाँ आ गयी इंजीनियरिंग के छात्र थे तो इतनी जल्दी पुलिस लाठी भी नही चला सकती थी ।

दो-तीन बसों को रोक कर सवारियां उतार दी गयी । वो तो बस टूटने ही वाली थी । लेकिन हमारे एच.ओ.डी.(H.O.D.) और डायरेक्टर(Director)साहब आ गए । बस को तोड़ने और जलाने से किसी तरह रोका गया । कातिल को जल्दी से पकड़ने की मांग होने लगी । डी.एम.(D.M.) साहब भी मौके पर आ गए । पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी और डी.एम.(D.M.)साहब ने कातिल को जल्द से जल्द पकड़ने का आश्वासन दिया ।

मुख्य मंत्री मुलायम सिंह जी को भी तुंरत घटना और हालातों से अवगत कराने के लिए फैक्स कर दिया गया । सभी छात्रों को हॉस्टल वापस लौटने के लिए कहा गया । डायरेक्टर(Director)और पुलिस अधिकारियों के बहुत समझाने पर शाम को सभी लौटने लगे ।

लेकिन इंजीनियरिंग अन्तिम वर्ष के छात्र की तो जान जा चुकी थी । कौन, किसने और कैसे ? किसी को ठीक से पता न था । बस सब कयास लगा रहे थे । लेकिन इन सब के दौरान एक माँ ने अपना बेटा खोया था । दिन में ही इस घटना की सूचना उसके माता-पिता को दे दी गयी थी । "आपका लड़का बीमार है आप यहाँ आ जाइये ।" कहकर उन्हें बुला लिया गया था ।

हम लोग उस लड़के के ऊपर वाली मंजिल पर ही हॉस्टल में रहते थे । माता-पिता हॉस्टल पहुँच चुके थे । हम ज्यादातर लोग जिस मंजिल पर घटना हुई, उसी पर दुखी और परेशान खड़े थे । तभी माँ और पिता उधर आ गए ।

"कहाँ है हमारा बेटा ? कैसा है ? ठीक तो है ना ?" एक माँ की डब-डबाती आँखें हमारी ओर देखती हुई बोली । अचानक इस सवाल से सन्नाटा पसर गया । लगा कि जिंदगी का सबसे मुश्किल सवाल पूँछ लिया गया हो । एक माँ के पूँछे हुए इस सवाल का जवाब किसी बेटे के पास ना था । किसी में आज इतनी हिम्मत नही थी जो कि इस सवाल का जवाब सही सही दे सके ।

एक माँ को उसके बेटे के न रहने की ख़बर कोई कैसे दे सकता है । वो मेरे लिए जिंदगी का सबसे कठिन सवाल था "मेरा बेटा कैसा है ? ठीक तो है न ?" । तभी फर्श पर सन्नाटे को चीरती हुई क़दमों की आहट पड़ी । डायरेक्टर (Director) साहब उधर आ पहुँचे और उनको वहाँ से अपने साथ ले गए ।

नहीं तो उस रोज़ एक माँ के पूँछे हुए सवाल का जवाब कौन दे पाता ? जब भी कभी वो क्षण याद आता है तो आँखें नम हो जाती हैं ।

शेष मर्डर मिस्ट्री का खुलासा अगले अंक में करूँगा :- हत्यारे चिता में शामिल थे

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