रेलवे स्टेशन की एक रात और वो लड़की (भाग-2)

>> 30 March 2009

इस भाग को पढने से पहले रेलवे स्टेशन की एक रात और वो लड़की (भाग-१) पढ़ ले ....तभी ये रात और ये बात दिल तक जायेगी
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फिर उसने कहा थैंक्स .....मैं बोला किस बात के लिए .....वो बोली उस पागल से पीछा छुडाने के लिए .....मैंने मुस्कुराते हुए कहा अच्छा सच में वो तुम्हारे पीछे पड़ा था ......वो हँस पड़ी ....मैं भी यही चाहता था कि वो हँसे .... कम से कम वो डर तो ख़त्म होगा जो अभी उसने महसूस किया था .......
हँसते हुए बोली आप कहाँ जा रहे हैं .....मैंने कहा सुल्तानपुर ...और आप ....बोली लखनऊ ....

फिर उसके और मेरे बीच कुछ पलों की खामोशी रही ......फिर मुझे गोदान की मिस मालती आकर्षित ना कर सकीं .....अब मुझे उस लड़की की आँखें आकर्षित कर रही थीं .....मैं कुछ बोलने के लिए अपना गला साफ़ कर ही रहा था की तब तक उसने सवाल किया .....आप क्या करते हैं ? ....जी फिलहाल तो एम.सी.ए. कर रहा हूँ ....कहाँ से सुल्तानपुर से ...उसने कहा ............मैंने कहा हाँ जी ......फिर वो मुस्कुरा गयी......मैंने कहा आप मुस्कुरायी क्यों ? .....बोली आपका हाँ जी कहना बहुत अच्छा लगा ...........मैंने कहा चलो कुछ तो अच्छा लगा .....वो फिर मुस्कुरा दी ......

और आप क्या करती हैं ? मैंने पूँछा.....एम.बी.ए. कर रही हूँ ....आपकी ही तरह हाल फिलहाल ...अब मुस्कुराने की बारी मेरी थी .....वो बोली अच्छा तो ट्रेन तो २ घंटे और लगायेगी ...पता नहीं आज इसको क्या हो गया .....मैं तो बहुत बोर हो गयी .....टाइम कैसे कटेगा .....मैंने कहा बहुत आसान है वक़्त को बिताना .......बोली हाँ आपके पास तो गोदान है पढ़के टाइम गुजार दोगे ...पर मेरा क्या ......मैंने कहा बहुत आसान है कि दोनों का वक़्त बीत जायेगा और पता भी नहीं चलेगा ....उत्साहित होकर बोली वो कैसे ......मैंने कहा कि एक खेल खेलते हैं .....बोली कौन सा खेल ......मैंने कहा सवाल - जवाब ...वो हँस पड़ी ...ये भी कोई गेम है ....मैंने कहा बहुत सही गेम है .....और ये और भी रोचक हो जाता है जब हम दोनों अनजान हैं .....कुछ नहीं जानते एक दूसरे के बारे में .......और हाँ इसका नियम है कि पूँछे हुए सवाल का जवाब देना ही होगा और जो भी दिल करे उसका जवाब देने का वो दे ....जिसे हम डर की वजह से दूसरों को नहीं दे सकते .......और ये नियम हम खुद निभाएंगे .....इसमें कोई चीटिंग नहीं ... ...वो उत्साहित होकर बोली वाह मज़ा आएगा ...... हाँ बिल्कुल ...... और शुरुआत करते हैं ....१० सवालों से .....पहले एक पूंछेगा और दूसरा जवाब देगा ....और उसी तरह फिर दूसरे की बारी आएगी .....वो बोली ठीक है

लेकिन पहले मैं पूछूँगी....मैंने मुस्कुराते हुए कहा ....हाँ जी आप ही पूँछिये .....

आज आप यहाँ बैठे हुए जब कि ट्रेन इतनी लेट है तो क्या सोच रहे हैं ?मैंने गला साफ़ करने की आदत दोहरायी .....तभी वो मुस्कुरा दी .....बोली सच बोलना है ......मैं मुस्कुरा दिया ......सच तो यही है कि ऐसे में जब कि तुम मेरे पास बैठी हो तो सोचता हूँ कि एक रात जो गुजरे जा रही थी अपनी ही धुन में ...मेरे पास आकर मुट्ठी भर हसीन ख्वाब हाथ में थमा कर मुस्कुराती हुई चली गयी ....वो हँसी...वाऊ शायराना अंदाज़ .....मैं मुस्कुराते हुए बोला .....सच कह रहा हूँ , दिल की बात बताई है मैंने .....बोली अच्छा ऐसा कैसे .....मैंने कहा क्या ये इसी सवाल का हिस्सा है क्या ? ...वो मुस्कुरा दी ...हाँ यही समझ लो ......मैंने कहा तुम्हारी आँखें बहुत खूबसूरत हैं .....बिल्कुल एक हसीन ख्वाब की तरह ...और अब देखो तुम मेरे पास बैठी हो ...ये इस रात ने ही तो दिए हैं मुझे .....वो मुस्कुरा गयी ...बोली आपकी बातें तो बस ....फिर मुस्कुरा दी .....ठीक है अब मेरी बारी है ...मैंने कहा

तुम्हारा सबसे प्यारा ख्वाब क्या है ? जिसे तुम पूरा करना चाहती हो ?ह्म्म्म बहुत मुश्किल सवाल पूंछ लिया आपने ....वो बोली .....लेट मी थिंक ..... मैं एक छोटा सा स्कूल खोलना चाहती हूँ और इतना पैसा कमाना चाहती हूँ कि उसमे गरीब बच्चों को मुफ्त पढ़ा सकूँ .....

वो बोली अच्छा अब आप बताओ ...... आपकी नज़र में प्यार क्या है ? प्यार का एहसास क्या है ?......
प्यार का मतलब माँ है ....न कोई वादा, न कोई शिकवा न शिकायत, ना आग्रह, न अनुरोध, ना बदले में कुछ माँगती .....एहसास के लिए ....बालों में उसका हाथ फिराना, हमेशा प्यार जताना , सिरहाने बैठ तपते बुखार में सर पर रखी पट्टिया बदलते हुए बिना सोये रात गुजार देना ..... चोट हमे लगना और दर्द उसे होना .....ये प्यार का एहसास है ..... वो मुस्कुरा दी ....बोली अल्टीमेट, सुपर्ब ......आपकी क्या तारीफ़ करुँ.....

अच्छा एक कोई भी प्रकृति का नियम जो तुम १ साल के लिए बदलना चाहो ?ह्म्म्म .....पता नहीं आप क्या क्या पूँछते हैं .....मेरे लिए मुश्किल हो जाती है ..... वो मुस्कुरा कर बोली .... मैंने कहा कि अब सवाल तो सवाल हैं .....जवाब तो देना पड़ेगा ......ह्म्म्म ....अगर बदल सके तो ये कि सभी मर्दों को पूरे एक साल के लिए स्त्री बना दिया जाए और १ साल बीतने के बाद वो एक साल उन्हें हमेशा याद रहे .....शायद तब वो स्त्री को अच्छी तरह समझ पाएं .....मैं मुस्कुरा दिया और ताली बजा दी ....इस बार मेरी बारी थी ये कहने की कि अल्टीमेट, सुपर्ब

उसने पूँछा अच्छा आपकी कोई इच्छा इस तरह की जो पूरी करना चाहते हों ....
मैं जानना चाहता हूँ कि भगवान का कंसेप्ट कब कैसे और कहाँ से आया, वो है या नहीं ...और अगर है तो मैं जानना चाहूँगा कि वो इतने कमज़ोर क्यूँ है जो इस तरह की दुनिया ही बना पाए .....मैं चाहूँगा कि अगर वो हैं तो उन्हें और ज्यादा शक्ति मिले और सब कुछ देखने, सुनने, समझने और महसूस करने की भी शक्ति दे ......या फिर में गरीबी, जात-पात, धर्म, मजहब, और इंसान को बेवकूफ बनाये रखने के सारे साजो सामन उनके घर छोड़कर आना चाहूँगा

मतलब आप भगवान को नहीं मानते ...वो बोली
मैंने कहा अगर लोगों को बेवकूफ बनाए रख कर इस दुनिया को ऐसे बनाये रखने का नाम भगवान है तो मैं भगवान को नहीं मानता ....

मैंने कहा अच्छा आप बताइए ....आप ऐसी कोई फिल्मी हस्ती के नाम बताइए जिनसे आप मिलना चाहती हों ?
वो बोली .... शाहरुख़ खान और स्मिता पाटिल .....मैंने कहा शाहरुख़ खान तो समझ आता है लेकिन स्मिता पाटिल क्यों ......वो बोली उनकी आँखें बहुत कुछ कहती थी और उनकी अदाकारी बहुत गज़ब की थी ....
फिर वो बोली कि अगर आप किसी से मिलना चाहे तो किस से मिलना चाहेंगे .....मैंने कहा गुरु दत्त और देव आनंद या मधुबाला और संजीव कुमार या फिर गुलज़ार या फिर अमोल पालेकर .....बहुत से हैं

वो क्यों ...उसने पूँछा.....क्योंकि मैं गुरु दत्त के उस दर्द से रूबरू होना चाहता हूँ, देव आनंद जिसने गाइड जैसी अनगिनत अच्छी फिल्में दी उसकी स्टाइल का राज़ पूछना चाहता हूँ, मधुबाला की मुस्कराहट को मुट्ठी में कैद करके लाना चाहता हूँ .....संजीव कुमार की जिंदादिली ...गुलज़ार की रूमानियत और अमोल पालेकर से आम आदमी की परिभाषा पढ़कर आना चाहता हूँ ......वो बोली 'ओह माय गौड' ...आप तो बहुत पहुंची हुई चीज़ जान पड़ते हैं ....मैं जोर से हँस दिया .....हा हा हा .....नहीं नहीं ऐसी गलत फ़हमी मत पालो ....

फिर उसने पूँछा अच्छा आपने कभी किसी से प्यार किया है मतलब आपकी कोई गर्ल फ्रेंड है ? गर्ल फ्रेंड तो जरूर होगी ....
मैं मुस्कुरा दिया ....मैंने कहा एक तरफ आप पक्के यकीन के साथ कह रही हैं कि गर्ल फ्रेंड तो जरूर होगी और पूंछ भी रही हैं .....मैंने कहा मेरी कोई गर्ल फ्रेंड नहीं है .....बोली झूठ, बिल्कुल झूठ .....सच बताइए ....मैं बोला लो भला मैं झूठ क्यों बोलूँगा .....अब आप ही बताइए मुझ जैसे आवारा लड़के की कोई गर्ल फ्रेंड क्यों बनना पसंद करेगी ..... आवारा ...किसने कह दिया आवारा .....मैंने कहा भाई ...इंसान की पहचान क्या होती है .....बोली क्या ....मैंने कहा सोच ...उसका नजरिया ...यही इंसान को पहचान देती हैं ...इंसान की सोच ही उसे नौकरी, पेशा , दोस्त ...सब देती है .....और मेरी सोच तो आवारा है .....तो मैं आवारा ही हुआ ना ...वो हँसने लगी .....ओह हो ....आप भी ना ...मैंने कहा सच में ....यही तो होता है .....

और जहाँ तक प्यार का सवाल है ...मैंने एक माँ के प्यार से पवित्र और कोई प्यार नहीं देखा और न ही महसूस किया ....और हाँ एक लड़की और एक लड़के के प्यार के सही मायने मुझे पता भी नहीं .....जिस दिन सही सही पता चल जायेंगे और ऐसी कोई मिल जायेगी तो प्यार भी हो जायेगा उस तरह का .....वो बोली अच्छा .....चलो इंतजार रहेगा ....

मैंने कहा और यही सवाल आपसे मैं करुँ तो .....वो बोली नहीं कोई नहीं है ....प्यार करने का मन तो करता है लेकिन ऐसा कभी कोई मिला नहीं ....हैं तो तमाम जो मुझे चाहने वालों में अपना नाम शुमार करते हैं, पीछे पड़े हैं ...लेकिन में जानती हूँ ...वो सब एक भूखे इंसान की तरह हैं ......जो मुझे खा भर लेना चाहते हैं ...मैं मुस्कुरा दिया .....मैंने कहा बहुत समझदार हो ...लड़कों की फितरत समझती हो .....बोली जिंदगी सब सिखा देती है ...मैंने कहा हाँ बात तो तुमने सही कही .....

तभी एक मीठी आवाज़ सुनाई दी .....लखनऊ के रास्ते चलकर बनारस को जाने वाली .....कुछ ही समय में प्लेटफोर्म नंबर २ पर आ रही है ....बातों में समय का पता ही नहीं चला ... वो बोली

मैं मुस्कुरा दिया ....हाँ तुम्हारी बातों में वक़्त का पता ही नहीं चला ....वो फिर मुस्कुरा दी .....थैंक्स ....आपने मेरा साथ दिया , वक़्त बिताया .....मैं मुस्कुरा दिया ......वो बोली अच्छा आपका मोबाइल नंबर क्या है ...मैंने कहा मेरे पास मोबाइल नहीं है .....ओह ....फिर मुस्कुरा गयी ...

बोली अच्छा एक सवाल .....मैंने कहा हाँ पूँछिये .... मेरे बारे में अगर कुछ कहना हो तो क्या कहोगे .....मैंने गहरी सांस ली ....सच कहूं क्या ....वो बोली ..हाँ बिलकुल सच ...मैंने कहा तुम्हारी खूबसूरत आँखें मुझे मजबूर करती हैं ये कहने के लिए ...

कि ....
बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों को दिल में बसाने को
जी चाहता है
बहुत कुछ कहती हैं ये आँखें तुम्हारी
संग बैठ तेरे इन आँखों से
दिल का हाल सुनाने को
जी चाहता है
बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों ....................


तभी शोर मचाती हुई हमारी ट्रेन प्लेटफोर्म पर आ पहुँची ...उफ़ एक तो लेट ऊपर से इतना ऊदम मचा रही है ..... अच्छा मेरे घर का नंबर है वो आप रख लो ....शायद फिर कभी बात हो सके .....वो बोली ....मैंने कहा हाँ ठीक है ....उसने अपना नबर लिख कर दिया .....अच्छा आपकी सीट किसमे है ...मैंने कहा एस-6 में ....वो बोली ओह मेरी एस-8 में है ......चलो कोई नहीं ......मैं हमेशा याद रखूंगी आज की बातों को ...इस मुलाक़ात को ......मैंने कहा और इस रात को ....वो मुस्कुरा गयी ....हाँ इस रात को भी .....फिर वो अपने डिब्बे में चली गयी और में अपने डिब्बे में .......लेकिन आखिरी पंक्ति बिना सुने

कि ...
बहुत खूबसूरत हैं ये आँखें तुम्हारी
इन आँखों को अपना बनाने को
जी चाहता है


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रेलवे स्टेशन की एक रात और वो लड़की

>> 28 March 2009

कुछ रातें और कुछ बातें अपनी ही छाप छोड़कर चली जाती हैं ......खासकर ऐसी रात जिसके बारे में ना आपने सोचा हो और ना ही सोच सकते हों .....कभी कभी कुछ बातें दबे पाँव आती हैं और अपनी मिठास छोड़कर भाप की तरह उड़ जाती हैं बादलों की सैर को ....शायद उन्हें कहीं और बरसना हो रूमानी एहसास बनकर .....
ऐसी ही एक रात गुजरते हुए जा रही थी और अचानक मुझ से टकरा गई .....शायद उसे मेरे साथ वक्त गुजारना था ....

जब ऑटो में बैठा मैं बार बार अपनी घड़ी की तरफ़ देख रहा था ...और इस जल्दबाजी में था कि कहीं आज की ये ट्रेन ना छूट जाए ....बस चन्द मिनटों का फासला था ....मुझमें और उस रेलवे स्टेशन की खिड़की में जहाँ से ये पता चल सके कि सुल्तानपुर को जाने वाली ट्रेन कहीं छूट तो नही गई ....

अपना बैग उठा मैंने ऑटो वाले के पैसे दिए और यह जान दिल को राहत पहुँचायी कि ट्रेन अभी आयी नही है ..... बैग को कंधे पर लाधे हुए जल्दी से सीढियों पर चढ़ता गया ...पर क्या है कि माँ का प्यार बैग में कूट कूट कर भरा था ...तो बैग मेरे कंधे पर पूरी ज़ोर आजमाइश कर रहा था .....सीढियों से उतर मैं अपने वाले प्लेटफोर्म पर पहुँचा ....टूंडला रेलवे स्टेशन कहने को तो जंक्शन है लेकिन ऐसी भी कोई ख़ास भीड़ नही होती रात के वक्त ....

मैं एक खाली पड़ी बैंच पर बैठ गया ...अपने बगल में बैग रख ट्रेन के आने का इंतजार कर रहा था ...तभी एक लड़की और शायद उसके पिता सीढ़ी से उतरते हुए दिखाई दिए ....लड़की के पिता की नज़र मुझ पर गई ...उन्होंने मुझे उसी नज़र से देखा जैसे अपनी लड़की के साथ चलने वाले पिताजी अक्सर देखा करते हैं ....मेरी खाली पड़ी हुई बैंच पर ना बैठते हुए उन्होंने पड़ोस की ही बैंच पर बैठने का फ़ैसला किया जिस पर पहले से ही एक वृद्ध दम्पति बैठे हुए थे ........

तभी रेलवे स्टेशन पर मीठी सी आवाज़ सुनाई दी " लखनऊ के रास्ते बनारस को जाने वाली .....१० मिनट देरी से आएगी ".... इसी के साथ पिताजी के साथ आयी उस लड़की की निगाहें मेरी निगाहों से टकराई .....बस एक नज़र देख उसने अपनी निगाहें दूसरी ओर कर ली .....

देखो ये रहा टिकट और ये रही पानी की बोतल ...अपने बैग में रख लो ....लड़की के पिताजी ने लड़की से कहा ... लड़की टिकट अपने हाथ में ले कहती है ....पापा आप जाओ १० मिनट में तो ट्रेन आ ही रही है .... आप वैसे ही लेट हो रहे हो .....हाँ ठीक है कहते हुए उन्होंने ५ मिनट गुजार दिए और फ़िर कहा ठीक है .....वहाँ पहुँच कर फ़ोन करना ....ठीक है पापा ....फिर वो चले गए ....

पर मीठी आवाज़ के वादे किए हुए १० मिनट कामयाब न रहे ....ट्रेन २० मिनट लेट हो चुकी थी ....फिर से एक मीठी आवाज़ सुनाई दी .....अबकी बार वादा किया कि ट्रेन १ घंटे बाद आएगी .....उफ़ ये स्टेशन के वादे टूटते क्यों हैं ? इस टूटे वादे के कारण उस लड़की के चेहरे पर असंतोष के भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे ...

उसने पानी की बोतल बैग से निकाल ली और पानी के दो घूँट से अपने नर्म गुलाबी होठों को भिगो लिया .....उस पल उसका चेहरा ठीक से देखा मैंने .....उसके चहरे की एक ख़ास बात थी ......सबसे ख़ास ...उसकी आँखें ...बड़ी बड़ी और बेहद खूबसूरत .....जो उसे खूबसूरत कहने पर मुझे मजबूर कर रही थी .....उसकी जितनी खूबसूरत आँखें अभी तक मेरी आँखों के सामने नही आयीं ....

मेरी एकटक नज़र के कारण उसने मेरी ओर देखा ....मेरा ध्यान टूटा ...मैंने अपनी नज़रें उसकी उन आँखों से हटा ली .....सामने सिक्कों की खनखनाहट सुनाई दे रही थी .....देखा तो एक बूढी औरत अपने कटोरे में सिक्कों को बजाती हुई वहां से सरकती हुई जा रही थी .....उससे चला नही जाता था ......वो किसी से कुछ माँग नही रही थी ...
मेरा हाथ पेंट की जेब से उस कटोरे में जाता है ....एक आवाज़ होती है सिक्के के गिरने की ...फिर में ख़ुद को अपने बैग का पड़ोसी बना लेता हूँ ....

तभी एक आवाज़ सुनाई देती है ....पर अब वो मीठी नही थी .....जल्दबाजी में बोली गयी आवाज़ किसी पुरूष की थी ...सूबेदार जहाँ कहीं भी हों फलां सिंह के पास हाज़िर हों ..... पर ये कान तो कुछ और ही सुनने का इंतजार कर रहे थे ....शायद ये कि हमारी ट्रेन कब आएगी ......

तभी लड़की से वृद्ध दम्पति ने सवाल किया ...टाइम क्या हुआ है बिटिया .....जी ११:५० ...कितने ...जी ग्यारह बजकर पचास मिनट .....तभी आने वाली ट्रेन के लिए एक मीठी आवाज़ सुनाई दी .....फलां गाड़ी प्लेटफोर्म नंबर २ पर आ रही है .....वृद्ध दम्पति अपना समान उठाने लगते हैं .....शायद उन्हें अब इंतज़ार नही करना पड़ेगा .....उनकी ट्रेन आ रही थी ...पर सामान कुछ ज्यादा था ....

जिस पर बूढे बाबा पर तो ठीक से हिला भी नही जाता था .....ट्रेन स्टेशन पर शोर मचाती हुई आ खड़ी हुई ......बूढी अम्मा दो बैग पकड़ बोगी की तरफ़ बढ़ने लगी ....और दो बैग और बाबा अभी बैंच पर ही थे ....अम्मा बड़ी मुश्किल से बैग उठा पा रही थी ..... मैंने आँखों ही आँखों में लड़की से अपने बैग की तरफ़ इशारा करते हुए आग्रह किया कि मेरा बैग देखती रहे .....मैंने जल्दी से दोनों बैग उठा बोगी में पहुंचाए और बाबा का हाथ पकड़ बोगी की तरफ़ ले जाने लगा ....अम्मा उधर से उतर रही थी ....मैंने दोनों को उस पर चढा दिया .....खुश रहो बेटा ...जीते रहो बेटा ...बिना दांत की अम्मा के मुँह से ऐसा कुछ निकल रहा था .....शोर मचाती हुई ट्रेन चली गयी ....

वापस लौट मैं अपने बैग का पड़ोसी बन गया ....मेरी निगाह लड़की की तरफ़ गयी .....उसकी आँखें मुझे मजबूर कर रही थी उसे देखने के लिए .....अगले आधे घंटे तक कोई मीठी आवाज़ सुनाई नही दी .....फिर कभी लड़की की वो खूबसूरत आँखें मुझे देखें तो कभी मेरी आँखें उन खूबसूरत आँखों को .....
फिर उसने एक मैगजीन निकाल ली जिनके पन्नो को पलटने लगी ....वक्त कैसे गुज़ारा जाता है शायद यह पढने की कोशिश कर रही थी .....मैं अपने बैग में रखे हुए मुंशी प्रेमचंद के गोदान को निकाल लेता हूँ .....जिसे मैंने पिछली बार तब छोड़ा था जब मिस्टर मेहता मिस मालती के साथ शिकार को गए थे ....और उनको अपने कंधे पर बिठा पानी को पार कर रहे थे .....

मैं पूरी तरह गोदान में डूब गया था ...तभी एक चीख सुनाई दी ...लड़की मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझसे सटी जा रही थी .....कोई पागल ना जाने कहाँ से आ गया था ...अजीब वेश भूषा , गंदे कपड़े, उलझे बढे हुए बाल , मानसिक रूप से विकृत लग रहा हो .....बहुत डरावना लग रहा था ....शायद एक पल के लिए मैं भी डर गया था .....

क्या है ...चलो जाओ यहाँ से ....उस पागल से मैंने कहा ....पर वो ना हिला ...बैग में पड़े हुए केले मैंने उसे पकडाये ....जाओ यहाँ से ....फिर पता नही उसे क्या सूझी वो आगे बढ़ गया ...और एक ही पल में गायब हो गया .....
वो लड़की कुछ घबरा गयी थी ....मैंने उसकी पानी की बोतल उसके हाथ में पकडायी .....घबराने की बात नही वो चला गया ....

फिर मैं अपनी बैंच पर बैठ गोदान खोल बैठा .....एक मीठी आवाज़ सुनाई दी ...पर वो पहले जैसी नही थी ....एक अलग आवाज़ ....क्या मैं आपके पास बैठ जाऊँ .....वो लड़की बोली ...मैं मुस्कुरा दिया ....मैंने कहा हाँ आ जाओ .....परेशान होने की बात नही है ...मैं हूँ ...अब वो नही आएगा .....अब मेरे बैग के दो पड़ोसी हो गए ...एक मैं और एक वो लड़की ....

तभी फिर से वही मीठी आवाज़ सुनाई दी ...ख़बर मिली कि ट्रेन अभी २ घंटे और लेट है .....मतलब अभी वो २ घंटे और लेगी यहाँ पहुँचने में ......मैं फिर से अगले वादे का इंतजार करने लगा .....इस बार लड़की की खूबसूरत आँखों ने मेरी ओर देखा .....इस बार वो आँखें अलग थी ...इनमें अब विश्वास था मेरे लिए ......
फिर उसने कहा ................
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कुछ टूटे बिखरे हुए से ख्वाब

>> 27 March 2009

एक बाप भूखे पेट सड़कों पर अपनी घिसती हुई चप्पलों से आती हुई चीख को हर पल महसूस कर एक ख्वाब बुनता है कि उसका बेटा कभी जिंदगी में भूखा नही सोयेगा ......

जब चमचमाती कार से उतरते हुए किसी हाई फाई जीवन शैली जीने वाले उस परिवार को देखता है तो उसकी खुली हुई आंखों में एक ख्वाब सज जाता है कि में अपने बच्चे को कम से कम इस लायक बनाऊँगा कि वो अपने ख़्वाबों को पूरा कर सके ...उसके ख्वाब मेरे ख़्वाबों की तरह इस तपती दोपहरी में चिलचिलाती धूप तले पसीना बनकर ना बहें .....

वो ख्वाब तो बुन लेता है लेकिन उसे जिंदगी के बाज़ार का पता नही होता कि इन ख़्वाबों को खरीदने की कीमत क्या है ....ना ही इसमें लगने वाले साजो सामन की कीमत का पता होता उसे .......

जब वो और दूसरे बच्चो को खिलौने से खेलते देख ख़ुद के बच्चे को रोते देखता है ...तब उसकी इतनी हैसियत नही होती कि अपने बच्चे को चुप कराने वाला वो खिलौना ला दे ....तब उसे पहली बार एहसास होता है कि इन ख़्वाबों की कीमत तो बहुत है ......

वो रात दिन एक करके चन्द पैसे कमा कर एक अंग्रेजी स्कूल में पहुँचता है ...दिल में तमन्ना लिए हुए कि उसका बच्चा भी अच्छे स्कूल में पढेगा ....औरों की तरह बनेगा .....लेकिन फीस क्या होती है उसे वहाँ जाकर पता चलता है ......उसकी जेब उस वक्त शर्मा रही होती है .......और उसके साथ उसे ये भी पता चलता है कि स्कूल का हार्ड एंड फास्ट रूल है कि अंग्रेजी बोलने वाले बापों के बेटों को ही अंग्रेजी सिखाई जा सकती है ..... मतलब जिंदगी भर उस संपदा को वही संभल सकते हैं जिनके बापों ने अंग्रेजी खायी हो , अंग्रेजी पहनी ओढी हो ......और जो अच्छी तरह अंग्रेजी में गाते हो ......

तब उस चप्पल घिसते हुए बाप को एहसास होता है कि उसके ख्वाब कुछ ज्यादा ही लंबे हैं .....उस दिन उसका ख्वाब टूटता है ....वो ख्वाब टूटकर वहीँ फर्श पर बिखर जाता है ...बामुश्किल से ये चप्पल घिसता हुआ बाप उन्हें बटोरने की कोशिश करता है ...लेकिन कुछ ख्वाब वहीँ फर्श पर चिपके पड़े रह जाते हैं .....उन अंग्रेजी बच्चो के पैरों तले रोंदे जाने के लिए .....

थक हार कर वो अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भर्ती करा देता है ...तब किताब और कांपियों का वजन क्या होता है ...उसे पता चलता है कि ये तो सबसे बड़ा भारी वजन है ..... तब किताब और कापियों को खरीदने की जद्दोजहद क्या होती है उसे पता चलता है .....कैसे कैसे पेट काट काट कर वो फीस और किताबों का खर्चा जुटाता है ...ये तो उसका पेट जानता है या वो घिसती हुई चप्पलें .....

जब किसी सरकार के नेता का भाषण सुनता है ...कि हम जुल्म के खिलाफ लडेंगे , हम गरीबों की मदद करेंगे , रोजगार देंगे , मुफ्त शिक्षा, मुफ्त दवा, मुफ्त इलाज .....मुफ्त ये मुफ्त वो ...बोलने में क्या है .....मुफ्त मुफ्त मुफ्त ..... हाँ गरीबों को कुछ मिले ना मिले ....उस नेता को भाषण के बाद मुफ्त दारू और मुफ्त लड़की जरूर मिल जाती है .... और इन सबके बीच बाकी नेताओं से मिली मुफ्त की चमचागीरी ...कि आज तो आपके भाषण ने हिला कर रख दिया .....हाँ भाई हिला कर ही तो रख दिया है इस जनता को ....ख़ुद का बच्चा तो विदेश पढता है ...लाखों खर्च के लिए मिल जाते हैं हर महीने ....और वो बाप की तरह वहाँ भरपूर अय्याशी करता है ....फिर बाद में कुछ नही करेगा तो नेता तो बन ही जायेगा और फिर देश को भारतीयता का पाठ पढाएगा .....

जब वो चप्पल घिसता हुआ बाप कुछ बूढा होता है ...उसके ख्वाब जो कुछ बचे थे आँखों में ...उनको टूटते बिखरते देखता है ....इंजीनियरिंग में दाखिला नही हुआ ....सरकारी स्कूल की पढाई ...उन अंग्रेजी स्कूल की अंग्रेजी के आगे दबती नज़र आती है ...जहाँ वो ढेर सारी कोचिंग और पर्सनेलिटी डेवेलोपमेंट की क्लास करते हैं और ना जाने क्या क्या ..... फिर वो एम.बी.ए में दाखिले की खातिर ग्रुप डिस्कशन में खड़ा होता है ...अंग्रेजी लड़कों की अंग्रेजी सुन वो सरकारी स्कूल का लड़का सहम जाता है ....उसकी साधारण सी पेंट और शर्ट किसी का ध्यान अपनी और नही खींचती .....फ़िर फीस के नाम पर बैंकों का लोलीपोप ...उससे पूरा खर्चा तो नही उठाया जा सकता न .....

किसी तरह ट्यूशन पढ़ा ...सरकारी नौकरी के फॉर्म भरता है ....उसका चप्पल घिसता बाप ....ख़्वाबों को टूटते बिखरते देखता है ....अब वो चिलचिलाती धूप सहन नही कर सकता वक्त से पहले बुड्ढा हो चला है .....फिर भी पसीना बहाने पहुँच जाता है .... फिर ना जाने क्या क्या बीमारी हैं उसको .....

फिर एक दिन कमरे में पड़ी खाट पर लेटा हुआ अपने बेटे की तरफ़ ख़्वाबों को पूरा करने की आस से देखता है ....उसके टूटे बिखरे हुए ख्वाब इसी जिंदगी के बाज़ार में रह जाते हैं ...वो किसी और दुनिया में चला जाता है .....उन टूटे बिखरे पड़े ख़्वाबों को समेट कर एक पोटली में बाँध उसका लड़का अपने कंधे पर टांग लेता है ......अब उसे ये ख्वाब पूरे करने होंगे .........शायद आने वाले समय में ये ख्वाब पूरे हो जाएँ ...
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इश्क तेरे रूप अनेक

>> 25 March 2009

प्यार भी बड़ी अजीब चीज़ होती है ....हो तो आफत और ना हो तो आफत ....भाई प्यार ना हुआ कोई आफत की पुडिया हो गई ....कितने ही हैं जिन्हें इस बात का मलाल रहता है कि कमबख्त उन्हें किसी ने प्यार क्यों ना किया ....

जहाँ हमें हॉस्टल के कमरे में बैठ अगले दिन कंप्यूटर पर प्रोग्राम बनाकर देने की चिंता होती थी वहीँ उसी पल हमारे जोड़ीदार को ये मलाल रहता कि इस बार जब वो घर गए तो मोहल्ले में रहने वाली उनकी एकतरफा प्रेमिका ने उन्हें इस बार मुस्कुरा कर नही देखा ........मतलब ये कि अगर वो मुस्कुरा जाती तो ये उसी पल खड़े के खड़े आगरे का ताजमहल ला देते उसे ....कमबख्त को जब चाहे तब प्यार हो जाता था ....और इस बात का मलाल कि उसकी कोई महबूबा क्यों नही है ...कई हसीनाओं ने उसका दिल तोडा ऐसा उसका कहना था ....

वहीँ दूसरी तरफ़ सबसे बड़ी जमात ऐसी है जहाँ ये बीमारी कोने कोने में फैली होती है ....किताबों में उसका दिया ख़त छुपाये रखना ...बंद डायरी में वो सूखा हुआ फूल जो उनकी महबूबा ने उन्हें कई रोज़ पहले की मुलाक़ात पर दिया था ...जिस पर उन्होंने पूरे 750 रुपये उडाये थे ...ऐसा उनका कहना था ....रोज़ उसका दिया हुआ इत्र लगाते हैं और सीना चौडा कर उँगलियों पर चार महबूबाओं के नाम गिनाते हैं ....और ख़ुद ही कहते हैं यार ये इश्क बहुत बुरी बीमारी है ...ना जाने कब ख़त्म होगी ....

मैं बोलता कि पोलियो की तरह इसके भी टीके इजात करने पड़ेंगे ....जो बच्चे के पैदा होते ही उसे लगा दिए जायें ...शायद अब तो पोलियो उल्मूलन की तरह इसका भी अभियान चलाना पड़ेगा .....तब उनका कहना कि अमां यार तुमको तो हमेशा मज़ाक की सूझती है ....

एक हमारी क्लास में ऐसे चाहने वाले थे कि डर के शाहरुख खान के भी पसीने छूट जायें ...वो इनके आगे पानी भरे आकर ...."ही इज सो डेंजरस " ऐसा लडकियां बोलती थी क्योंकि उन्होंने कईयों की बोलती बंद कर दी थी ...

अब हुआ यूँ कि ये ठहरे सच्चे दिलवाले ...जिंदगी में कभी प्यार नहीं किया और फिर डर और दस्तक जैसी फिल्में देख देख कर जवान हुए थे ...जहाँ आशिक अपनी महबूबा को पाने की खातिर कुछ भी करता है ....

खैर एम.सी.ए. शुरू होते ही क्लास की एक लड़की ने गलती से इनसे बात कर ली ...बस हो गए लट्टू ....अबे दोस्त बनकर नहीं रहा जाता क्या ....दोस्ती भी कोई चीज़ होती है ...पर नहीं जी ये तो सच्चे आशिक ही बनेंगे .....लड़की पर मोबाइल था तो अपने बाप से लड़ मर कर मोबाइल खरीदवा लाये .....फिर लड़की से नंबर ले बात शुरू की

इससे पहले कि लड़की कुछ समझ पाती ...ये उसके इश्क में पड़ गए ....अब लड़की का तो हो गया ना जीना हराम ...जहां लड़की जाए वहाँ ये पहुँच जायें ....पूरा का पूरा टाइम टेबल याद था इन्हें ....किस दिन मार्केट जाती है , किस टाइम जाती है , कितने दिन जाती है ...क्या खाती है , क्या खरीदती है ...वगैरह वगैरह ....सारा हाल चाल इन्हें पता था ...हर जगह पीछा करते हुए पहुँच जाते थे ....छुट्टी होने पर रेलवे स्टेशन पर पहुँच उसका सामान बोगी में चढाते ...और उससे हाथ मिला खुश होते .....

पर दिल टूटा, जब पता चला...कि लड़की का तो पहले से कहीं इश्क है , कोई बॉय फ्रेंड है ....धत तेरे की ...ये जानकारी सबसे पहले हमने ही उन्हें दी थी ...आखिर हमें विश्वसनीय सूत्रों से पता चली थी .....उस दिन उन्होंने पूरे 500 रुपये की कॉल कर डाली ....और हमारी छाती से लिपट खूब रोये ....

जब तक कॉलेज ख़त्म ना हुआ तब तक उसे चाहते ही रहे ...चाहते तो बाद में भी पर क्या करें लड़की ने अपने उस बॉय फ्रेंड के साथ लव मैरिज कर ली ....अब शादी शुदा लड़की से प्यार नहीं कर सकते ना ये ...इस लिए उनका ख्याल छोड़ दिए ....उस रात हमारे कमरे पर आ पूरी दो बोतल बीयर की गटक गए ....दिल की आखिरी आस भी टूट गयी थी ना ...

उस पल हमें इस रोग से बचने के टीके के बारे में फिर से एक बार ख़याल आया ...

उस रोज़ जब हॉस्टल का जोडीदार फिर से मिला ...बहुत खुश था ...हमने ख़ुशी का राज़ जानना चाहा ...उनके चेहरे से ख़ुशी फूटी पड़ रही थी .....कहने लगे ओ यार मुझे प्यार हो गया ...मैंने कहा फिर से ....बोला हाँ यार उसे देखा और देखते ही प्यार हो गया ...हमने कहा लव एट फर्स्ट साईट वाला मामला जान पड़ता है ...बोला नहीं ओये ....बाबूजी के जानकार की लड़की है ...शादी के लिए देखने गया था ....ओ यार मुझे तो देखते ही प्यार हो गया ....मैंने बोला तो कुछ पूँछा उससे ....बोला नहीं ....वो पूँछती जा रही थी ...और मैं हाँ हाँ बोलता जा रहा था ....क्या पूँछा उसने ....बोला मैंने सुना ही नहीं ..... ....गूढ़ दिमाग कहीं का ..... मैंने बोला फिर क्या हुआ ...बोला फिर क्या बात पक्की हो गयी ....मैं बोला सही है फिर तो तेरी लव मैरिज हुई .....और वो ठहाके मार कर हँसा ...और गले लग गया .......
दिल में ख्याल आया इश्क तेरे रूप अनेक ......
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ऐ गमे जिंदगी

जुस्तजू जो की थी कभी
उसको न पाया तो क्या हुआ

आरजू एक ही नही है
ज़माने में जीने के लिए काफी

वो जो कहते हैं जीना मुमकिन नही है
उस तमन्ना के बिना
भूल जाते हैं वो शख्स
कि तमन्नाओं की गठरी अभी खुली नही
वो जो चाहत जो पूरी होने को बाक़ी हैं
अभी की नही

ठोकरे तो ज़माने का दस्तूर है
जीना जो पड़े बिना गिरे
तो क्या जीना

गिरने के बिना
उठने का मज़ा फिर कैसा
पतझड़ जो न आये तो
फिर फूलों का गुलसिताँ कैसा

देख लेता है दुनिया को यहाँ
हर कोई किसी न किसी पल
पर दुनिया नही है जो सिखाती है

हम खुद ही बनाते हैं
जहाँ रिश्तों का
टूट जाते हैं जो रिश्ते तो क्या
बहाना एक और भी है जीने का

उन पलों को समेट कर
जी लेते हैं लोग फिर भी
गम सताने का फिर बहाना कैसा

एक तुम ही नही हो अकेले
जिसने देख ली दुनिया
गम और भी हैं जहाँ में
जो मिले हैं लोगो को
फिर अपना गम बड़ा बताने का
बहाना कैसा

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अनजान से रिश्ते और रूमानी एहसास

>> 24 March 2009



अल्फाज़ जो रूमानियत की ओस लिए हुए हैं .....और वो अल्फाज़ जब रूमानियत की बूँद बनकर नन्ही नन्ही इस दिल पर बरसती हैं ...तो ऐसा लगता है मानो नंगे पैर घास पर ओस की बूँदों ने छू लिया हो .....सच उस पल एक अजीब सुकून मिलता है इस रूह को

और वो अल्फाज़ रूह तक उतर जाते हैं ....कभी बिना बोले तो कभी उन अल्फाजों की भीनी खुशबू जहन में बस जाती है ....और देती है अन्जान रिश्तों को एक डोर ....ना जाने उस डोर का एक सिरा इस दिल तक कैसे पहुँच जाता है और फिर खींचता है उस अन्जान रिश्ते की ओर

एहसास के लिए ये रिश्ता उसकी तरह है जब ट्रेन की सीट पर बैठे हम सुकून फरमाने की जिद कर रहे हों पर सुकून हमसे कोसों दूर हो ....तब ऐसे में वो कोई अन्जान सी ४ साल की बच्ची अपनी भोली सी मुस्कान से दिल को राहत पहुँचा जाती है ...सच मानो उससे हमारा कोई रिश्ता ना होते हुए भी हम उससे जुड़ जाते हैं

और जब वो अपनी मासूम सी बातों का पिटारा खोलती है तो किसी जादूगर से कम नहीं होती ....उसकी एक एक बात दिल के तार छेड़ देती है .....दिल करता है हम उस प्यारी सी बच्ची पर सारा प्यार लुटा दें ....और उससे हम एक अन्जान सा रिश्ता जोड़ लेते हैं

वो रिश्ता जिसे बनाने से पहले हम कुछ सोचते नहीं....वो रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं होता ....हम उससे कोई उम्मीद नहीं लगाते ...बस हम अपना सारा प्यार उडेल देना चाहते हैं .....और जब वो मासूम सी बच्ची इधर से उधर अपनी प्यारी सी हरकतें करती है ...ढेर सारी बातें बनाती है ....तो दिल उस मयूर की तरह नाचने लगता है ....जो दीन दुनिया से बेखबर उमंग में बेखौफ नाचता है

और उस ट्रेन के सफ़र के दौरान उस अन्जान बच्ची से एक अन्जान रिश्ता बना लेते हैं ...जिसमे ना छल होता , ना कपट, ना कोई आस, ना भय, ना उससे कोई उम्मीद .....हम सिर्फ देना चाहते हैं ...लेना कुछ नहीं

एक प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते से भी अधिक पवित्र जान पड़ता है वो अन्जान रिश्ता उस पल ...ऐसा अन्जान सा रिश्ता जो बिना बोले भी अपनी रूमानियत की बूँदों से रूह को भिगो जाता है ....और उस पल हम रूमानी हो जाते हैं

सच मानो तो अन्जान से रिश्ते ऐसे ही होते हैं ....जिनमें ना कोई बंदिशें होती, ना पा लेने की आरजू, ना कोई प्रस्ताव....बस वो अन्जान रिश्ता उस पल हम कायम कर लेते हैं ....वो ढेर सारी उमंग लिए होता है ...ढेर सारा प्यार का एहसास लिए ....उसमें उसे प्रेमिका समझ झूठ बोलने की जरूरत महसूस नहीं होती ....बस हम खो जाते हैं उस अन्जान से रिश्ते की दुनिया में

जब हम कभी फिसल रहे हों और कोई बुजुर्ग पीछे से आकर संभाल ले ...फिर उसका कहना संभल कर चलो ...एक अन्जान से रिश्ते की मिठास ही तो होती है ....तब वो हमसे अगर दो बातें भी कह देता है तो हम ख़ुशी ख़ुशी सुन लेते हैं ....

जब पास पैसे तो हों पर सिगरेट ना हो ...सिगरेट की तलब हो पर कोई चारा ना हो उसे मिटाने का ....तब एक अन्जान द्वारा ऑफर की हुई वो सिगरेट और उसके वो कश जो उसके साथ बारी बारी से लगाए हों ...एक अन्जान रा रिश्ता जोड़ देते हैं

ऐसे अन्जान से रिश्तों का कोई दायरा नहीं होता ...ना शुरुआत और ना ही अंत ....कोई बंदिश नहीं होती ...उस ओर से कोई फरमाइश नहीं होती ....होती है तो बस उस अन्जान से रिश्ते की मीठी सी भीनी भीनी खुशबू जो उसके चले जाने पर भी हमे उस पल तक महकाती रहती है ...जब तक हम उस अन्जान से रिश्ते से जुड़े रहते हैं

अल्फाज़ ...बोले या बिना बोले ....जिनकी रूमानियत की बूँदें अभी अभी अपना असर छोड़ कर गयी ...दिल में मीठे एहसास का शहद इकठ्ठा कर जाती हैं ...और हम भी यदा कदा उस दिल को किसी पर उडेल देते हैं .....उस पल वो अन्जान से रिश्ते की डोर के दूसरी ओर का शख्स भीग जाता है ....

सच ही तो है ये अन्जान से मीठे रिश्ते कहीं भी , कभी भी जुड़ जाते हैं ...दिख जाते हैं ......और हमें रूमानियत का एहसास करा जाते हैं ...उस पल हम रूमानी हो जाते हैं
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और इस तरह उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई (अन्तिम भाग)

>> 21 March 2009

इस अंतिम भाग को पढने से पहले कृपया इस कहानी का पहला और दूसरा भाग पढ़ लें ....पहला भाग और ....दूसरा भाग

धीरे-धीरे समय बीतता गया और समय के साथ क्लास के साथियों में स्नेह भी बढ़ता गया । इन सब से ज्यादा जो बढ़ा वो था रागिनी का सिद्धांत के लिए प्यार । सिद्धांत तो कभी प्रोजेक्ट रिपोर्ट या कोई फाइल बनाता ही नही था । जबकि जमा करना का समय आ चुका था ।

एक दिन जब सिद्धांत कंप्यूटर लैब में आया तो अपने कंप्यूटर के पास एक सुंदर सी फाइल रखी हुयी देखता है । उसने जब उसे खोल कर देखा तो दंग रह गया । उस फाइल के पहले पेज पर उसका नाम लिखा हुआ था । उसने पूरी फाइल खोल कर देखी । सुसज्जित लिखावट के साथ प्रोजेक्ट रिपोर्ट तैयार थी । उसने पास ही बैठी प्रिया से पूँछा की ये फाइल किसकी है । उसने फाइल खोल कर देखी और कहा की नाम तो तुम्हारा ही लिखा है । तुम्हारी ही है फ़िर तो । प्रिया ने कहा लेकिन मैंने तो आज तक कोई फाइल नही बनायीं । सिद्धांत बोला

लिखावट तो बड़ी साफ़ है । प्रिया बोली
पता नही किसने बना दी ? सिद्धांत बोला
सांता क्लाज आए होंगे और रात को बनाकर रख गए होंगे । पास ही खड़े विवेक ने मुस्कुराते हुए कहा एक मिनट लिखावट तो रागिनी की लग रही है । प्रिया बोली
अच्छा उसकी लिखावट है । सिद्धांत बोला
प्रिया : शायद
दूर बैठी रागिनी से सिद्धांत जाकर पूँछता है । ये फाइल तुमने बनायीं है क्या ?
नही मैंने तो नही बनायीं । रागिनी ने कहा

अब जिसने भी बनायीं है । किसी न किसी ने तो मेहनत की ही है । तुम रख लो । प्रिया ने कहा रागिनी ने पिछले पन्द्रह दिन से काफ़ी मेहनत की थी इस फाइल को बनाने के लिए । वो जानती थी की सिद्धांत तो बनाने से रहा । क्लास के बाद जाते हुए सिद्धांत वो फाइल अपने पास रख लेता है । इस तरह से कभी फाइल तो कभी नोट्स और कभी कुछ और जो रागिनी से बन पड़ता वो गुपचुप कोशिशें करती रही ।

कहते हैं न कि सही दिशा में की गई कोशिशें एक दिन रंग जरूर लाती हैं । इस तरह की गई कोशिशों के साथ वक्त बीतता गया । अब बी सी ए की अन्तिम साल थी । जिसमे सिद्धांत काफ़ी जद्दो जहद के बाद पहुँचा था । प्रोग्रामिंग में दक्षता होने के बावजूद वो उसी विषय में दो बार कोशिश करने के बाद उतीर्ण हुआ । सभी शिक्षक इसी बात से हैरान थे की आख़िर वजह क्या है ? सिद्धांत तो काफ़ी कुशल छात्र है फिर भी उतीर्ण नही हो पाता ।

सालाना प्रतियोगिता आयोजित की गयी । इस प्रतियोगिता में प्रोग्रामिंग के माध्यम से प्रोजेक्ट बनाना था और सबसे अच्छे प्रोजेक्ट को पुरुस्कार देने की घोषणा की गयी । यही वो अवसर था जब सबकी जुबान पर ताले लग गए । प्रतियोगिता में सिद्धांत के प्रोजेक्ट को सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया । उप विजेता के रूप में रागिनी को पुरूस्कार मिला । सभी शिक्षक सिद्धांत के लिए बहुत खुश थे । रागिनी तो सिद्धांत के लिए बहुत ही ज्यादा खुश थी । रागिनी शुरू से ही जानती थी की सिद्धांत एक कुशाग्र बुद्धि का लड़का है ।

अब रागिनी की गुपचुप की गयी कोशिशों के रंग लाने का वक्त आ चुका था । कुछ दिनों बाद सिद्धांत की तबियत कुछ ज्यादा ही ख़राब हो गयी । उसे अस्पताल में भरती कराया गया । क्लास के सभी साथी सिद्धांत को अस्पताल देखने गए । लेकिन रागिनी के लिए कोई भी ऐसा दिन शेष न रहा जब वो सिद्धांत को देखने अस्पताल ना गयी हो । करीब एक महीने तक वो लगातार अस्पताल जाती रही । सिद्धांत के लिए रागिनी की चाहत से सभी वाकिफ हो चुके थे । लेकिन सिद्धांत फिर भी खामोश था ।

सिद्धांत फिर से इंस्टिट्यूट आने लगा । एक दिन जब सिद्धांत कंप्यूटर लैब में अपने कंप्यूटर पर काम कर रहा था तभी पास ही के कंप्यूटर के पास राखी एक किताब पर सिद्धांत की नज़र गयी । किताब प्रोग्रामिंग की थी तो सिद्धांत किताब को खोल कर देखने लगा । किताब रागिनी की थी । अभी कुछ पन्ने ही इधर उधर किये होंगे तभी सिद्धांत की नज़र एक पर्ची पर पड़ती है ।

ये कोई ऐसी वैसी पर्ची नही थी ये वही पर्ची थी जो आगरा भ्रमण के लिए पैसे जमा कराने के बाद सिद्धांत के ना से रागिनी को मिली थी । उस पर्ची को देखने के बाद सिद्धांत को समझने में ज़रा भी देर नही लगती की उसका किराया उस वक्त रागिनी ने ही जमा किया था ।

उसके साथ ही उसमे एक फोटो भी मिला जिसमे रागिनी और सिद्धांत पास-पास बैठे हुए थे । उस समय सिद्धांत ने वो दोनों उसी किताब में रख दिए और अपना काम करने लगा । अगले दिन इंस्टिट्यूट की छत पर सभी ठण्ड होने के कारण धुप सेंक रहे थे । सब आपस में बातें कर रहे थे । बातें ख़त्म होने पर कुछ देर बाद सब धीरे-धीरे जाने लगे । तभी सिद्धांत ने रागिनी से कहा की ज़रा रुकना मुझे तुमसे कुछ बात करनी है ।


हाँ सिद्धांत क्या बात है ? रागिनी ने कहा
क्या तुम मुझ से प्यार करती हो ? सिद्धांत ने रागिनी से पूँछा
नही , नही तो । घबराते हुए रागिनी ने कहा
तो फिर ये सब क्यों करती हो ? सिद्धांत बोला
रागिनी : क्या ?

यही सब कभी तुम मेरे किराये के पैसे जमा कर देती हो और बताती नही । कभी तुम फाइल बनाकर ले आती हो और कभी कुछ । लगातार महीने तक मुझे अस्पताल देखने आती हो । क्यों ? सिद्धांत गुस्से के लहजे में बोला
अगर कुछ नही है तो ये सब काम करना छोड़ दो । ये सब मुझे बिल्कुल पसंद नही । सिद्धांत बोला
उसके बाद सिद्धांत वहाँ से चला गया । सिद्धांत ने यह सब कह तो दिया लेकिन सिद्धांत सब कुछ जानता तो था ही

आज सिद्धांत का जन्म दिन था और वो अपने दोस्त से मिलने घर से बाहर गया हुआ था । रागिनी ने बधाई देने के लिए सिद्धांत को फ़ोन किया और जब सिद्धांत से बात नही हुयी तो वो सिद्धांत के घर उससे मिलने के लिए चली गयी । सिद्धांत के वहां न मिलने पर उसके घर पर ही जन्म दिन का तोहफा रख आयी । जब सिद्धांत घर पर लौट कर आया तो उसे सब पता चला ।

अगले दिन जब सिद्धांत इंस्टिट्यूट गया तो उस दिन रागिनी छत पर अकेली थी । रागिनी थोडी गुमसुम , थोडी परेशान सी खड़ी थी । सिद्धांत रागिनी के पास पहुँचता है ।

ये सब क्या है ? तुमने मेरे घर फ़ोन किया था और वहां तोहफा छोड़ कर आयी थी । सिद्धांत ने कहा
रागिनी घबरा गयी
तुमसे मैंने मन किया था न कि ये सब मुझे पसंद नही । सिद्धांत बोला
साफ़ और सीधी बात तुम कर नही सकती हो तो इस सब कोई जरूरत नही । सिद्धांत ने कहा
ऐसा क्या हुआ ? रागिनी बोली
क्यों तुम मुझ से प्यार करती हो क्या जो ये सब कर रही हो । सिद्धांत बोला
मुझे चाहती हो क्या ? सिद्धांत ने अपना सवाल फिर दोहराया
रागिनी : हाँ
अच्छा तो उस दिन वो सब क्या था ? उस दिन तो कुछ और ही कह रही थी । सिद्धांत ने कहा
मैं घबरा गयी थी और तुम इतने गुस्से में जो थे । रागिनी बोली

देखो रागिनी तुम्हे मेरे सारे हालत पता हैं ...सिद्धांत बोला
आज मैं कुछ भी नहीं हूँ और ना ही हाल फिलहाल मुझे कोई अच्छे आसार नज़र आते ...आज के समय पर तुम मेरे लिए एकदम उचित लड़की हो ....तुमसे बेहतर आज के समय में मैं सोच भी नहीं सकता

तुम बहुत अच्छा विकल्प हो मेरे लिए ...और ऐसा मैं कोई तुमसे प्यार नहीं करता ...सिद्धांत ने कहा
रागिनी बस खामोश सब सुन रही थी
और अगर इन सब बातों को दरकिनार कर भी दिया जाए तो क्या तुम में इतनी हिम्मत है की तुम अपने घर वालों के विरोध के बावजूद भविष्य में मेरे साथ अंतरजातीय विवाह कर सको ...सिद्धांत ने कहा

बोलो है इतनी हिम्मत ...सिद्धांत बोला
कुछ सोचते हुए, मुझे कुछ वक़्त चाहिए सोचने के लिए ...रागिनी ने कहा ....
कितना वक़्त सिद्धांत बोला
एक हफ्ता रागिनी बोली
ठीक है चलो देखते हैं ...सिद्धांत ने कहा
और फिर दोनों क्लास करने के लिए चल दिए

करीब ३-४ दिन बाद रागिनी सिद्धांत के पास आई ...सिद्धांत इंस्टिट्यूट के बाहर सिगरेट पी रहा था ....
मैंने काफी सोचा और सोचने के बाद ही तुमसे बोल रही हूँ ...और चाहे कैसी भी दशा हो ...मैं तुमसे शादी करुँगी ....रागिनी ने कहा

एक बात और कहूं ...सिद्धांत बोला
रागिनी : वो क्या
मुझसे कभी सिगरेट छोड़ने के लिए मत कहना क्योंकि वो मैं नहीं कर पाऊंगा ...सिद्धांत बोला
हाँ वो तो मैं देख ही रही हूँ ...रागिनी मुस्कुराते हुए बोली

इस तरह का प्यार का एग्रीमेंट शायद ही पहले किसी प्यार करने वाले ने किया हो प्यार करने से पहले ...

खैर कुछ भी हो दो इंसानों सिद्धांत और रागिनी की प्रेम कहानी शुरू हो गयी

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एक बेटे की अपने बाप को अनकही बातें

>> 20 March 2009

वो ख्वाब जो मैं रात को बंद आंखों से बुना करता था और सुबह होने पर समेट कर तकिये के नीचे छुपाकर रख देता था ....डरता था कि इन बुने हुए ख्वाबों को किसी की नज़र ना लग जाए ....
पर कहते हैं ना कभी कभी ख़्वाबों को संजो कर रखना उतना ही मुश्किल है जितना बंद मुट्ठी में पिघलती हुई बर्फ ....

अल्फाज़ जो किलकारियों के साथ मीठी धुन छेडा करते थे ...बाथरूम के दरवाजे के उस पार ....एक ही पल में साबुन के झाग के साथ बह गए ...

वो हाथ जिनकी गर्मी में हमेशा महसूस किया करता था ....बेफिक्र हो हसीन ख्वाब बुना करता था ....तुमने यूँ बीच रास्ते में छोड़ा कि उस पल लगा कि मुझे दिशाओं का ज्ञान भी नही और मंजिल को तलाशना है ....

माँ जो रोया करती है बंद अकेले कमरे में ....खामोशी में उसकी सिसकियाँ गूंजा करती हैं मेरे कानों में .....उस रोज़ जब माँ के बंद बक्से में तुम्हारे तह हुए कपडों के दरमियान तुम्हारी तस्वीर अचानक से सामने आ गई .....हमसे छुपाकर माँ तुम्हे आज भी चाहती है ......जिसको तुम गैर के लिए छोड़ कर चले गए ....चन्द पलों को प्यार का नाम देकर .....घर इस भगवान की मूरत का तोड़कर ....अपना नया आशियाना बनाया तुमने .... उस पल पता लगा दिल का टूटना क्या होता है ....जिंदा लाश किसे कहते हैं .....हाँ वो कोई और नहीं वो मेरी माँ है ...
जिसको एक पल में तुमने ग़मों का घोंसला बना दिया ....वो वही घर हुआ करता था जिसकी पहली ईंट तुमने माँ का हाथ पकड़ कर रखी थी .....

हँसती है वो ताकि हम ना रोयें ...कहीं उसका आंसुओं के सैलाब के साथ यूँ झूठ मूठ का हँसना उसे पागल ना बना दे ...उसकी आंखों में तुम्हारा चेहरा अभी भी साफ़ नज़र आता है .....

याद है जिस पल तुमने एक ही झटके में अपना नया आशियाना बना लिया था ...अपने स्वार्थ को प्यार का नाम देकर हमें रुसवा किया था .....कौन नहीं था ऐसा जो सरे राह हम पर ना हँसा हो ........उस पल माँ ने ख़ुद को चाहरदीवारी में कैद कर लिया था ....
जब सरे आम सब तुम्हारे किए पर हमसे राह चलते सवालात किया करते थे ....तुम्हे क्या पता उस पल कितनी बार ख़ुद को मारा है मैंने ....ज़ख्म जो कभी भर नहीं सकते ...उन जख्मों को हमेशा ताज़ा पाया है मैंने

कैसा लगता है जब अगले रोज़ खाने के लिए पास एक पैसा नहीं होता ....वजूद बिखरा पड़ा होता है .....ग़मों का समुन्दर साथ लिए जब कदम लडखडाते हैं ....हर चेहरे को ख़ुद पर हँसते हुए देखना पड़ता है ....खिल्ली उडाता हुआ दिखता है हर शख्स जब ....दिल हर पल तुम्हारे किए पर दुखता है ....

आंखों से आँसू बहना बंद होकर भी निकलना चाहते हैं ....पर आँखें सूख कर सूज चुकी होती हैं .....जब कोई उस पल सगा नहीं रहता ...कोई साथ नहीं देता .....तब बंद कमरे से माँ के टूटे हुए हौसले में उसके टूटे हुए दिल की जो आवाज़ आती है .....तुम्हे क्या पता वो कानों में कैसी लगती है ......

तुम्हे क्या पता टूटा हुआ विश्वास, टूटा हुआ दिल, टूटा हुआ हौसला, बिखरे पड़े ख्वाब ...और लडखडाते हुए क़दमों के साथ अनचाहे में भी बिना कुछ किए ख़ुद पर लगा दाग कैसा होता है ........

हाँ वो भगवान की मूरत सी मेरी माँ है ...और मैं हूँ वो जिसे हर पल ही इस बात को कहने से डर लगता है ....कि अफ़सोस तुम हो मेरे बाप .......यह कहते ही ख़ुद को उसी पल पर पहुँचा देता है जहाँ तुम हमें किसी गैर के लिए छोड़ कर चले गए .....


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और इस तरह उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई (भाग-2)

>> 19 March 2009

बस की मुलाक़ात के बाद सिद्धांत और रागिनी की मुलाक़ात एक बार फिर होती है ....आखिर जब प्यार होना होता है तो दो इंसान बार बार टकरा ही जाते हैं (शुरू की प्रेम कहानी पढने के लिए भाग -१ पढ़े)

दो दिन बाद सिद्धांत एक इंस्टिट्यूट पर पूँछताछ कर रहा था । तभी पीछे से एक जानी पहचानी आवाज़ सुनाई देती है । सिद्धांत पीछे मुड़कर देखता है । पीछे खड़ी रागिनी अपनी सहेली के साथ बातें कर रही थी ।

रागिनी सिद्धांत को देखकर कहती है ।
अरे आप यहाँ कैसे ?
कुछ ख़ास नही बस कोर्सेस की जानकारी लेने आया था । सिद्धांत ने कहा
तो ले ली जानकारी । रागिनी बोली
सिद्धांत : हाँ
यहाँ के बाद मैं आपके घर ही जाने वाला था । अच्छा हुआ आप यहीं मिल गई । ये लीजिये अपने किराये के पैसे । रागिनी को अलविदा कहने के बाद सिद्धांत वहां से घर की तरफ़ चल देता है ।

करीब पन्द्रह दिन बाद उसी इंस्टिट्यूट मैं सिद्धांत क्लास करने जाता है । वहां उसी क्लास मैं रागिनी भी बैठी दिखाई देती है । क्लास के बाद कंप्यूटर लैब थी । सिद्धांत लैब में जाकर कंप्यूटर पर काम करने लगता है ।
रागिनी लैब में आती है और सिद्धांत के ही पास के कंप्यूटर पर काम करने लगती है ।

हाय रागिनी कैसी हो ? सिद्धांत ने पूँछा
बिल्कुल ठीक । तो आपने प्रवेश ले ही लिया । रागिनी ने कहा
हाँ जी ले ही लिया । सिद्धांत बोला
लगता है आप कुछ पहले से आ रही हैं । सिद्धांत ने कहा
नही अभी पिछले सप्ताह ही प्रवेश लिया है । रागिनी बोली
वैसे तो ज्यादा नही जानती लेकिन फिर भी अगर आपको कोई परेशानी आए तो पूँछने में संकोच मत करना । रागिनी ने कहा
जी शुक्रिया । सिद्धांत बोला

कुछ ही दिनों में सिद्धांत के साथ सब घुल मिल जाते हैं । आख़िर ऐसा होता क्यों न सिद्धांत की बातें किसी मिश्री से कम न थी । रागिनी भी इन से अछूती न थी बल्कि रागिनी को सिद्धांत की बातें, उसकी निश्छलता सिद्धांत की तरफ़ खींचती ही चली जा रही थी । इस बात से क्लास का कोई भी साथी अनजान ना था । सिवाय ख़ुद रागिनी के ।

सिद्धांत की अन सब बातों और स्वभाव के साथ-साथ और भी बहुत कुछ था जो मशहूर था । और वो ये कि किसी भी क्लास में बोला हुआ एक शब्द न लिखना, समय पर कोई काम पूरा न करना , ना ही कोई प्रोजेक्ट रिपोर्ट या फाइल तैयार करना । इन सब के बावजूद जो एक अहम बात जो मायने रखती थी वो थी उसकी प्रोग्रामिंग दक्षता । क्लास में कोई उतना कुशल था तो वो थी रागिनी । रागिनी ही थी जो पढ़ाई में हर मामले में कुशल थी ।

रागिनी का स्वभाव हमेशा आगे रहने का और जीतने का था । उसको पीछे छोड़ना किसी के लिए आसान न था । सिद्धांत का स्वभाव था दोस्तानासब से बातें करना और सबकी बातें सुनना ये दो काम उसे बखूबी आते थे । शायद ये उसके स्वभाव में मिले हुए थे ।

अब अच्छी बातें किसी पसंद नही होती । अच्छी बातें करने वाले और अच्छा समय गुजारने वालों के सभी कायल होते हैं । अच्छा समय गुजारने वाले सिद्धांत की तरफ़ खिची जा रही रागिनी अकेली लड़की ना थी ।

वैसे किसी पुरूष को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए स्त्री का सुंदर और आकर्षक होना एकमात्र आसान वजह हो सकती है । परन्तु एक नवयुवक का सबसे बड़ा शस्त्र होती हैं उसकी बातें । अगर वो एक अक्छा वक्ता और समय गुजारने वाला व्यक्ति है तो समझ लो आधी ज़ंग तो उसने जीत ली । सिद्धात के साथ भी यही हुआ ।

सिद्धांत पच्चीस वर्षीय, पाँच फुट नौ इंच लंबा और स्वस्थ शरीर का स्वामी था । दिखने में ऐसा कि उसे नापसंद करने का कारण नज़र नही आता था । दूसरी ओर रागिनी बीस वर्षीय, पाँच फुट तीन इंच लम्बी साधारण नैन नक्श वाली एक कुशाग्र बुद्धि की लड़की थी । दूसरे शब्दों में कहें तो ऐसी लड़की जिसकी तरफ़ भले ही कोई आकर्षित न हो किंतु उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व में कुछ ख़ास था । रागिनी एक प्रभावशाली व्यक्तित्व की स्वामिनी थी ।

सच ही कहते हैं कि जब कोई किसी को चाहता है तो उसे अपना बनाने के लिए और उसे पाने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करता है । रागिनी के साथ यह बात कुछ ज्यादा ही जुड़ी हुई थी । शायद स्त्री के स्वभाव में ये बात ज्यादा होती हो ।

एक बात जिससे हम भली भाँती परिचित हैं और वो यह कि कोई लड़की किसी को कितना भी चाहे साधारणतः वो ख़ुद अपनी तरफ़ से इस बात को स्वीकार नही करती । न ही ख़ुद अपनी ओर से पहल करती बल्कि वो हर दम यही कोशिश करती रहती है कि मेरी इस चाहत का किसी को ज़रा सा शक भी न हो सिवाय उसके जिसे वो चाहती है । ये सब रागिनी के साथ भी जुडा हुआ था ।

दूसरी तरफ़ सिद्धांत के साथ ऐसा बहुत कुछ जुडा हुआ था जो उसे क्लास के अन्य साथियों से अलग करता था ।
इस उम्र में जब सिद्धांत अपने जीवन को सुधारने के लिए संघर्षशील था । वहीँ उसकी उम्र के अन्य मित्रगण अपना मुकाम पा चुके थे । कोई इंजिनियर, कोई डॉक्टर और कोई सरकारी दामाद बना हुआ था ।

ऐसे में किसी को चाहने का सिद्धांत के मन में ख्याल तक नही आ सकता था । वहीँ रागिनी अभी बीस वां बसंत देख रही थी । उसके लिए सिद्धान्त को चाहने लगना एक साधारण बात थी ।
ऐसा नही था कि सिद्धान्त को रागिनी के प्यार की ख़बर न थी । आख़िर रागिनी के प्यार की ख़बर तो सिद्धांत को पता होनी थी ।

इंसान की चाहत कभी उसकी आंखों में तो कभी उसकी कोशिश में नज़र आ ही जाती है । रागिनी के साथ भी यही सब जुडा हुआ था । उसकी कई बार की कोशिश से सब को पता चल गया कि रागिनी के दिल में क्या है ।
क्लास के साथ के दोस्त institute की तरफ़ से घूमने के लिए आगरा जा रहे थे । institute ने इसके लिए प्रति व्यक्ति ढाई सौ रुपये किराये के तौर पर लेने के लिए नोटिस लगा दिया । जो भी छात्र या छात्रा जाने का इक्छुक है वो एक सप्ताह के अन्दर रुपये जमा करा दे ।

क्लास में सभी बैठे हुए थे तभी क्लास के साथी विवेक ने कहा कि वाह हम सब आगरा घूमने जा रहे हैं कितना आनंद आएगा । जब हम सब बस में एक साथ बैठकर जायेंगे और ताजमहल, लाल किला , फतेहपुर सीकरी देखेंगे । जब सिद्धांत हमारे साथ होगा तो वक्त का पता ही नही चलेगा ।

सिद्धांत तुम चल रहे हो न हमारे साथ । विवेक ने कहा
नही दोस्त मेरे लिए जाना मुमकिन नही होगा । सिद्धांत बोला
यार ये तो कोई बात नही हुयी । साथ ही बैठी क्लास की साथी प्रिया ने कहा
देखो दोस्तों मेरी ऐसी हालत में मेरे लिए एक पैसा फालतू घर वालों से माँगना बिल्कुल मुमकिन नही होगा । सिद्धांत बोला
रागिनी पास ही कि सब सुन रही थी। रागिनी तो चाहती थी जाये वो ताजमहल सिद्धांत के साथ ही जाये और देखे ।

ओह यार तूने तो हमारे अरमानो का गला घोंट दिया । विवेक ने कहा
कोई नही तुम सब तो साथ जा ही रहे हो । सिद्धांत ने कहा
यार तू मुझ से पैसे ले लेना और जमा कर देना । विवेक बोला
नही शुक्रिया दोस्त लेकिन में तुमसे पैसे नही ले सकता । क्योंकि में पैसे वापस नही कर सकता । सिद्धांत ने कहा

क़र्ज़ चाहे छोटा हो या बड़ा , दोस्त से लिया गया हो या किसी और से वो इंसान को झुका देता है । ये बात सिद्धांत अच्छी तरह जनता था । इंस्टिट्यूट का दिया हुआ समय ख़त्म हो चुका था । आज सुबह जब नोटिस बोर्ड पर विवेक जाने वालों की लिस्ट देख रहा था तभी उसका ध्यान सिद्धांत के नाम पर जाता है । पहले तो वो बहुत खुश हुआ लेकिन बाद में उसे थोड़ा अजीब भी लगा मना ये तो मना कर रहा था फ़िर इसने रुपये कैसे जमा करवाए ।विवेक सीधा कंप्यूटर लैब में गया ।

यार तुम तो कह रहे थे की तुम नही जाओगे और तुमने तो रुपये भी जमा करा दिये । विवेक सिद्धांत से बोला
सिद्धांत कंप्यूटर पर काम कर रहा था और उसके पास प्रिया और रागिनी बैठी हुई थी ।
रुपये कौन से रुपये ? मैंने कोई रुपये जमा नही करवाए । सिद्धांत बोला
कैसी बातें कर रहा है । तुमने रुपये जमा नही कराये तो क्या संता क्लोस आकर जमा कर गए क्या ? विवेक बोला
अब वो सब मुझे नही पता । सिद्धांत बोला

सभी हैरान कि अगर सिद्धांत ने पैसे जमा नही कराये तो किसने कराये ? लेकिन इस बात से रागिनी बिल्कुल भी हैरान नही थी । क्योंकि सिद्धांत के पैसे रागिनी ने ही जमा कराये थे । रागिनी जानती थी कि इस तरह तो सिद्धांत साथ चलेगा नही और न ही किसी से पैसे लेगा । इसी लिए सिद्धांत को साथ ले जाने के लिए रागिनी ने पैसे जमा करा दिये थे ।

अब जब मैंने पैसे जमा नही कराये तो में क्यूँ जाऊँ ? सिद्धांत बोला
अब ये क्या बात हुई ? विवेक ने कहा
अब जब पैसे जमा हो ही गए हैं तो जाने में क्या हर्ज़ है ? प्रिया बोली
हाँ और नही तो क्या । रागिनी बोली
अब तो चलना ही पड़ेगा । विवेक ने कहा
सिद्धांत : मगर
अगर मगर कुछ नही और सभी जिद करने लगे ।अच्छा चलो देखते हैं । सिद्धांत बोला

क्लास के बाद सिद्धांत इंस्टिट्यूट के बाहर खड़ा हुआ सिगरेट पी रहा था । रागिनी और प्रिया दोनों वहां से निकल रही थी । सिद्धांत को सिगरेट पीते देख ।


सिद्धांत तुम सिगरेट पीते हो ? रागिनी और प्रिया एक साथ बोली
क्यों पीते हुए देखने के बाद भी यकीन नही हो रहा क्या ? सिद्धांत बोला
ये तो ग़लत बात है । प्रिया ने कहा ....हाँ ये सही नही है । रागिनी बोली
अब ग़लत है या सही जो भी है । सच तो यही है कि मैं सिगरेट पीता हूँ । मैं आजकल का थोड़े पी रहा हूँ । मुझे तो चार-पाँच साल हो गए पीते हुए । सिद्धांत ने कहा
छोड़ दो ये आदत सही नही है और तुम तो अच्छे लड़के हो । प्रिया बोली
कमाल है तुमसे ये किसने कहा कि सिगरेट सिर्फ़ बुरे लोग पीते हैं । सिद्धांत मुस्कुराते हुए बोला
लेकिन छोड़ने की कोशिश तो कर ही सकते हो । रागिनी बोली
हम्म देखते हैं । सिद्धांत बोला

अगले दिन सभी आगरा गए । बस मैं सभी खुश थे और सब से ज्यादा खुश थी रागिनी । होती भी क्यूँ न आख़िर सिद्धांत जो साथ मैं चल रहा था । रागिनी की आँखों मैं सिद्धांत के लिए चाहत सबको साफ़ नज़र आने लगी थी । मगर सब कुछ जानते हुए भी सिद्धांत खामोश था ।

दिलचस्प इंसान मैं कोई भी दिलचस्पी ले सकता है । उस सफर मैं प्रिया कुछ ख़ास ही दिलचस्पी ले रही थी सिद्धांत मैं । जब किसी की चाहत और किसी के प्यार मैं कोई और भी दिलचस्पी लेने लगे तो किसी के लिए भी वह इर्ष्या का विषय बन सकता है । लेकिन इन सबके बावजूद रागिनी कुछ नही कहती थी । बस उसकी कोशिशे लगातार जारी थी ।

सभी लोग ताजमहल पहुंचे और रागिनी तो बहुत खुश थी । खुश हो भी क्यों ना अपने प्यार के साथ वो ताजमहल देख रही थी । सिद्धांत जो उसके साथ था । सभी लोगो ने ताजमहल , लाल किला और फतेहपुर सीकरी घूमे । सभी लोगों के फोटो भी लिए गए । सभी जगह घूमने के बाद बस आगरा से वापस आ गई और सभी ने बहुत आनंद लिया ।

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और इस तरह उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई

>> 17 March 2009

नवम्बर की रात के करीब दस बज रहे थे ....ठंडी हवा बह रही थी ...आज रागिनी छुपते छुपाते सिद्धांत से मिलने आई थी ....लेकिन एक डर को साथ लेकर कि कही किसी परिचित की निगाह उस पर ना पड़ जाए ... आज रागिनी किसी तरह टहलने के बहाने से घर से निकली थी .... सिद्धांत पार्क की एक बैंच पर बैठ कर रागिनी का इंतज़ार कर रहा था...

बैंच के पास आकर
सॉरी सिद्धांत बड़ी मुश्किल से आई हूँ । रागिनी ने कहा
चलो आयी तो सही । मुस्कुराते हुए सिद्धांत ने कहा
वैसे अपनी माँ से कैसे बचकर आ गयीं । फ़िर सिद्धांत ने कहा
बस ये सब मत पूंछो जनाब । रागिनी बोली
अच्छा जी ये बताइये कि आज कैसे याद किया ? रागिनी ने कहा

वाह जी वाह ! पिछले दस दिनों से इंस्टिट्यूट बंद होने के कारण तुमसे मिलना नही हो पा रहा और आप पुँछ रही हैं कि याद कैसे किया ? सिद्धांत ने बैंच से उठते हुए कहा
हम्म तो ये बात है । लेकिन इंस्टिट्यूट तो अगले एक सप्ताह तक बंद है । रागिनी बोली
रागिनी और सिद्धांत एक साथ एम सी ए कर रहे हैं

ये मुलाक़ात शुरू होती है एक बस से । हुआ यूँ कि सिद्धांत चंडीगढ़ से अपने दोस्त की शादी से लौट रहा था और रागिनी अपनी नानी के यहाँ से जो चंडीगढ़ में रहती हैं । चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाली बस में रागिनी पहले से बैठी थी । सिद्धांत बस में प्रवेश करता है और रागिनी के पास वाली सीट पर आकर बैठ जाता है ।

आप पीछे की सीट पर भी तो बैठ सकते हैं । रागिनी ने कहा
क्यों आप मुझे पीछे ही बिठाना चाहती हैं । सिद्धांत बोला
जी ऐसा तो मैंने कुछ नही कहा । रागिनी बोली
देखिये बैठने को तो में कहीं भी बैठ सकता हूँ लेकिन पीछे बैठने का मुझे कोई ख़ास कारण नज़र नही आता । जिससे कि मैं पीछे ही बैठूं । सिद्धांत ने कहा

कुछ देर तक दोनों खामोश होकर बैठ जाते हैं । अभी बस कुछ सात आठ किलोमीटर चली होगी । अन्य यात्रियों की टिकट बनाता हुआ कंडक्टर पास आता है ।
टिकट कहाँ की बनानी है ? कंडक्टर रागिनी से पूँछता है
दिल्ली की रागिनी जवाब देती है ।
टिकट काटकर रागिनी को देते हुए । हाँ जी मिस्टर आपकी कहाँ की बनेगी ? सिद्धांत से पूँछता है

जी दिल्ली की बना दीजिये कहते हुए जैसे ही सिद्धांत ने पर्स निकालने के लिए जेब में हाँथ डाला तो पता चला जेब में तो पर्स है ही नही । होता कैसे सिद्धांत को भूलने की बहुत बुरी बीमारी जो थी । जनाब आज सुबह नहाते वक़्त पर्स हाथ में लेकर दोस्तों से बातें करते रहे और चलते समय पर्स मेज पर ही रखा भूल आए ।

कंडक्टर : क्या हुआ ?
रहने दीजिये में पर्स घर पर ही भूल आया । सिद्धांत बोला
रागिनी थोडी सी मुस्कुरायी ।
मुझे आगे के किसी चौराहे पर उतार दीजिये । सिद्धांत ने कहा
पर बस शहर से काफ़ी दूर निकल आई है । कंडक्टर बोला
कोई नही अब निकल आयी तो निकल ही आयी । मैं वापस पैदल चला जाऊंगा । सिद्धांत बोला

आप बैठे रहिये मैं किराया दिए देती हूँ । रागिनी बोली
जी शुक्रिया , रहने दीजिये । सिद्धांत ने कहा
अरे अगर मैं आपकी जगह होती तब आप क्या करते ? रागिनी बोली
क्या पता ? इस समय मैं उस बात को कैसे बता सकता हूँ । सिद्धांत मुस्कुराते हुए बोला

रागिनी : क्या मतलब ?
सिद्धांत : कुछ नही
रागिनी सिद्धांत का किराया दे देती है ।
आप कब क्या बोलते हैं कुछ समझ नही आता । रागिनी ने कहा
मैं ऐसा ही हूँ । सिद्धांत बोला
कैसा भुलक्कड़ ? रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा
आप ये भी कह सकती हैं । सिद्धांत बोला
मतलब आप भुलक्कड़ के साथ कुछ और भी हैं । रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा

हर इंसान मैं बहुत कुछ होता है । सही-ग़लत , अच्छा-बुरा , ईमानदारी-बेईमानी , पाने की चाहत, खोने का दुःख , अच्छी आदतें और बुरी आदतें । सिद्धांत बोला

आपकी बातें उफ़ । रागिनी बोली
मैडम सच तो यही सब है और इन सबके साथ और भी बहुत कुछ । सिद्धांत ने कहा
अच्छा और वो बहुत कुछ क्या है ? रागिनी बोली
मैडम वक्त के साथ-साथ और धीरे-धीरे बहुत कुछ जानेंगी आप । सिद्धांत ने कहा

हो सकता है कि आप सब कुछ ना जान पाये । हो सकता है किसी और की नज़र मैं जो सही हो वो आपको सही
ना लगे । हो सकता है कि आपकी आज की सोच आपको कल बेमानी लगे । सिद्धांत ने कहा
सिद्धांत : वैसे शुक्रिया
रागिनी : किस बात के लिए
किसी बात के लिए नही बल्कि टिकट के लिए शुक्रिया । सिद्धांत ने कहा
ओह ! अच्छा कहती हुई रागिनी मुस्कुरा दी ।

आप क्या करते हैं ? रागिनी ने पूँछा
कुछ नही करता । सिद्धांत बोला
रागिनी : मतलब
सिद्धांत : मतलब यही कि फिलहाल कुछ नही करता
तो पहले क्या करते थे ? रागिनी ने पूँछा
मैंने कहा न कि कुछ नही करता । सिद्धांत बोला

कुछ बात छुपा रहे हैं आप ? रागिनी बोली
नही ऐसी कोई बात नही है । सिद्धांत ने कहा
वैसे कुछ बातें सिर्फ़ जान पहचान वालों को ही बताई जाती हैं । रागिनी बोली
नही , जान पहचान होना और न होना कुछ ख़ास मायने नही रखते किसी को कुछ भी बताने के लिए । सिद्धांत बोला
पहले इंजीनियरिंग करता था । फिर सिद्धांत बोला
ये था कुछ समझ नही आया । रागिनी बोली
मतलब यही कि मैंने वो पूरी नही की । सिद्धांत बोला
क्यों पूरी नही की ? रागिनी ने पूँछा
बस यूँ ही । सिद्धांत बोला

जैसे ही बस दिल्ली पहुँचने को हुई सिद्धांत ने रागिनी से पूँछा
आपके घर का पता क्या है ?
क्यों ? रागिनी थोड़ा झिझकते हुए बोली
अरे आप तो घबरा रही हैं । आपके किराए के पैसे भी तो वापस करने हैं । सिद्धांत ने कहा
रागिनी : ओह !
सिद्धांत : आप क्या समझ रही थी ?
रागिनी : कुछ नही

बस के रुकने पर दोनों बस से उतरते हैं ।
आपको किधर जाना है ? रागिनी ने सिद्धांत से पूँछा
जब सिद्धांत अपना पता बताता है तो रागिनी बोलती है कि अरे वहीँ पास मैं ही तो मेरा घर भी है ।
अच्छा चलो किराये के पैसे देने दूर नही जाना पड़ेगा । सिद्धांत बोला
आप भी न बस । रागिनी बोली

सिद्धांत अपना छोटा सा बैग उठा कर चल देता है ।
कहाँ चल दिये ? पैदल जाने का इरादा है क्या ? रागिनी बोली
सिद्धांत : हाँ
ऑटो के पैसे भी वापस कर देना । रागिनी मुस्कुराते हुए बोली

फिर उसके बाद दोनों ऑटो मैं बैठकर घर की तरफ़ चल देते हैं । रागिनी का घर सिद्धांत के घर से पहले पड़ता था । रागिनी अपने घर के पास आने पर उतर जाती है और दोनों का किराया देकर जाने लगती है ।

आपका घर कहाँ है मैडम ये तो बता दीजिये । सिद्धांत ने कहा
रागिनी इशारा करके बताती है कि बस वो सामने वाला मेरा घर है । उसके बाद रागिनी को अलविदा कहकर सिद्धांत ऑटो में बैठकर अपने घर की तरफ़ चला जाता है ।
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दो साल पहले लिखी हुई रचना (जब मन कुछ बेचैन था)

>> 16 March 2009

भागता रहा हूँ ख़ुद से ही मैं
कभी ना समझा कि क्या चाहिए मुझे
बस भटकता रहा और खोजता रहा खुद को ही मैं

मैंने कभी ना जाना खुद के ही अस्तित्व को
कोशिश करता रहा खुद को अच्छा जताने की
मगर जानता था कि खुद से ही भाग रहा हूँ मैं

मगरूर था खुद पर ही मैं
ना जाने किस बात का गुमान था मुझे
मैं नशे में था हर बात से बेखबर

सोचता था कि मैं अच्छा हूँ
मगर खुद को ही ना जाना मैं
फुर्सत कहाँ थी मुझे कुछ भी सोचने की
बस चलता चला जा रहा था मैं

पहले तो ना था इतना मगरूर और नशे में चूर
पर क्यूँ ऐसा होता गया मैं
सोचने का वक़्त ही ना था कभी यूँ
कि वक्त इस मोड़ पर भी ले आएगा मुझे

बस थोडी सी खुशी को हर ख़ुशी समझ बैठा था मैं
जिंदगी यही है सोच कर जिए जा रहा था मैं
मगर खबर क्या थी ये सब दिखावा है मेरा

जब सोचा मैंने अकेले में अपने लिए
तो जाना कि अस्तित्व ही नही है मेरा कोई
बस जिए जा रहा हूँ झूठ की चादर ओढे हुए

खुद को कुछ और ही दिखा रहा हूँ मैं
खुश नही हूँ फिर भी क्यों ये जाता रहा हूँ मैं .
शायद लोग जानकर हँसी ना उडा दे
ये सोचकर झूठ को भी सच जता रहा हूँ मैं

मगर आज एहसास है मुझको
कितना अकेला और खुद से ही अनजान हूँ मैं
सोचता हूँ कि खुद मैं क्या हूँ ये तो जान लूँ

मगर सामने खुद ही सच बोला आकर
तुम खुद को ही धोखा दे रहे हो
तुम तो ऐसे ना थे
फिर तुम्हे क्या हो गया है
खुद कहीं खो गए हो
इस झूठ का गुमान हो गया है

संभाल लो खुद को इससे पहले कि
अस्तित्व ना रहे तुम्हारा कुछ भी
क्यों जानकर भी खुद से अनजान बैठे हो

अस्तित्व क्या है तुम्हारा ये जान लो
खुद को तुम पहचान लो
तब खुद को ही समझाता हूँ मैं
खुद को सज़ा ना दो यूँ इस तरह
अस्तित्व को पहचान लो
तुम्हे क्या चाहिए ये जान लो
ख़ुद को तुम पहचान लो

ये सब झूठ तो मिट जाएगा एक दिन
तुम्हे वजूद चाहिए खुद का ये जान लो
खुद को तुम पहचान लो

लो चल पड़ा हूँ इसके लिए अब मैं
खुद को खुद की पहचान देनी है मुझे
अपने लिए खुद की ख़ुशी लेनी है मुझे
जिसको पाकर में खुश रहूँ
वो अस्तित्व चाहिए मुझे

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एनोदर डे ऑफ़ माय लाइफ

>> 14 March 2009

हर किसी की जिंदगी में एक वक्त ऐसा आता है .....जब एक पल को अचानक से ऐसा महसूस होता है.... कि आज तो हो जाता दी एंड .....सारी सुध बुध खो जाती है उस पल तो ....न जाने उस पल पर कोई कंट्रोल नही होता .....उस पल ऐसा लगता है मानो दिल कह रहा हो "Another day of my life"

हाँ शायद मुझे भी उस पल कुछ ऐसा ही लगा था ...... जब मैं अपने अन्य दो दोस्तों के साथ आगरा से मुंबई के लिए ट्रेन में बैठ रवाना हुआ था ........ और मस्ती करते हुए जब हम मुंबई पहुंचे थे ....तो हमारा स्वेटर पहने हुए वहां की सड़कों पर होटल के लिए टहलना अजीब लगा था एक पल को .....झटपट हम लोगों ने अपने स्वेटर उतार अपने बैगों में रख लिए थे ...... मुझे अच्छी तरह याद है कि हम लोगों का परीक्षा केन्द्र अलग अलग था .....मेरा परीक्षा केन्द्र "मलाड " में पड़ा था ..... चूंकि हम लोगों ने रात काटने के लिए होटल CST रेलवे स्टेशन के पास लिया था ....सुबह होटल से निकलते वक्त यही तय हुआ था कि वापस CST रेलवे स्टेशन पर मिलना है ......

मैं अपने परीक्षा केन्द्र से परीक्षा देकर वापस स्टेशन को चल दिया ......... अब चूंकि मलाड से CST रेलवे स्टेशन तक पहुँचने के लिए दो बार ट्रेन बदलनी पड़ती थी ............मैंने लेते देते में टिकट खरीदी और जब प्लेटफोर्म पर पहुँचने के लिए सीडियों से उतार रहा था ............तो गाड़ी जाने को हुई ....मैं भागता हुआ अपने बैग को सँभालते हुए ...जो कि मेरे गले में लटका हुआ था .....और उसका वजन इतना कि बमुश्किल मुझसे लादा जा रहा था .....भागकर छूटती हुई ट्रेन में भीड़ के बीचों बीच एक पैर सीढ़ी पर रखा ........लेकिन एक पैर हवा में ही रह गया .....कई जतन किए कि इस बेचारे दूसरे पैर को भी अन्दर कर लूँ .........उस पर मेरे बैग ने मुझसे दुश्मनी की ठान ली थी .....मेरे उस बाहर निकले हुए एक पैर में और बैग में ना जाने क्या सलाह मशवराह हुआ ...कि वो मेरे शरीर का बेलेंस, डिस्बेलेंस करने पर उतारू हो गए ......

मैंने लाख जतन किए पर मैं ख़ुद को संभाल ना सका ....गाड़ी पूरी रफ़्तार पकड़ चुकी थी ..........मेरा हाथ छूट गया और मैं बैग समेत नीचे गिरा ....ठीक उस जगह जहाँ प्लेटफोर्म ख़त्म होता है ........मेरा सिर पटरी के पास था बस एक हाथ दूर ...मेरे शरीर का बाकी का हिस्सा बैग समेत पटरी से बहुत दूर था .........मेरे सिर के ऊपर से ट्रेन आवाज़ करती हुई निकल रही थी ......... मेरा दिमाग बिल्कुल सुन्न था .....मुझे कुछ सूझ नही रहा था ........अच्छा हुआ कि दिमाग काम नही किया ...कहीं अगर धोखे से भी उस पल उठने की जुर्रत करता तो मेरा काम उसी पल तमाम हो जाता .................खैर मुझे कोई चोट नही आई ........मैंने ट्रेन के चले जाने पर ख़ुद को महसूस किया ....मेरा दिल जोरों से धड़क रहा था ........और मेरा बैग दूर पड़ा था ........मैं उठा ....देखता हूँ कि स्टेशन पर खड़े सभी लोग मुझे ही देख रहे हैं .........सभी मुझे घूर रहे थे .........कोई कह रहा था कि गाँव से आया है क्या ...अभी मर जाता तो .........कोई कहता अबे इतनी जल्दी क्या थी .....दूसरी ट्रेन पकड़ लेता ........कोई कुछ कहता तो कोई कुछ ......

मैं बैग संभाले हुए चुपचाप प्लेटफोर्म पर बढे जा रहा था .........और सबकी निगाहें मुझे घूर रही थी ......एक ने पूँछा कि कहाँ जा रहे थे .....मैंने स्टेशन कर नाम बताया ......वो बोला पागल है क्या ...ये ट्रेन नही जाती ... बगल वाले प्लेटफोर्म से जायेगी वो ट्रेन तो ...... उस पल यूँ लगा मुझ पर घडों पानी गिर पड़ा हो .......अब क्या कहता जल्दबाजी में जान से खेल चुका था .......... उस पल लगा कि जान बची तो लाखों पाये ...लौट के बुद्धू घर को आए ....

हाँ ये वही पल था जब मुझे महसूस हुआ कि मेरा दिल कुछ कह रहा है ज़ोर ज़ोर से धड़क धड़क कर ....."Another Day of my Life"
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ई ससुर झूठ के भी पर होते हैं

>> 07 March 2009

बचपन से ही हम समझते कि हम बहुत होशियार हैं बिलकुल बीरबल की माफिक ... और बीरबल के उलट खुद को फसा देख जब तब झूठ बोल देते ...पर हद तो तब होती जब वो झूठ ना जाने क्यों उड़ कर सारे जहां में पंख पसार लेता ....और उस झूठ के पर कोई ना कोई देख ही लेता ...या वो झूठ खुद सिंगर बन कर गाता हुआ सबके सामने आ जाता ..... सचमुच तब यही दिल में आता ....कि ई ससुर के नाती "झूठ के भी पर होते हैं "

मुलायजा फरमाइए

जब भी बचपन में पेट दर्द का बहाना कर स्कूल ना जाने की इच्छा होती ...तो हम पेट समेत ही धर लिए जाते ....
अब हम तो पेट दर्द का बहाना कर दिए ...और पड़ोस के चिंकू ने जाकर क्लास में बता भी दिया कि मैडम आज वो नहीं आएगा ...उसके पेट में दर्द है ...और जब बाद में शाम को एक जानने वाले के यहाँ खीर पूडी की दावत उडाने पहुंचे ...तो पता चला कि हम बैठे चिल्ला रहे हैं कि एक पूडी और दो ....और पूडी देने वाले हमारी मैडम निकलती हैं ...."ई ससुरो झूठ हमाऊ ही चों पकडो जातु है "....तब एक ही ख्याल आत कि झूठ के भी पर होते हैं

थोड़े बड़े हुए १० वीं में आये नहीं कि प्यार का बुखार चढ़ गया ....ना जाने क्या मन में आया ...प्रेम पत्र लिख डाले ...१० कंचे का लालच देकर हमने प्रेम पत्र पहुँचने का जिम्मा जिसे दिया ... ऊ ससुर डाकिया गलत हांथों में चिट्ठी पहुंचा आया .... अब हमरी तो कर दी न दुर्दशा ....अब हमरी तो आ गयी ना शामत ......उसकी बड़ी बहन के आने पर जब झूठ बोला तो वहाँ भी पकड़ लिया गया ....ऊ ससुर कंचे खेलता हुआ ..हारकर वहीँ आ पहुंचा ...सबकी सब राजे वफ़ा धरी की धरी रह गयी ...अक्ल आई कि चाहे कुछ हो जाए ई ससुर प्रेम पत्र नहीं लिखेंगे ...

फिर पहली महबूबा ...पहला प्रेम....और पहली प्यार की पहली कॉल ...पर ई का ससुर बहुत नाइंसाफी ....उसके यहाँ तो कॉलर-आईडी लगी है रे ...हमारा नंबर धर लिया गया ....ऊ तो हम ही जानत हैं कि ऊ मुसीबत से कैसे पीछा छुडाये ....

और जब किसी शादी में पहुँच अपने से बड़ी लड़की को इम्प्रेस करन वास्ते खुद को ग्रेजुएट बताये तो पड़ोस के अंकल आकर पुँछ देते हैं ....कि बेटा तुम्हारे बोर्ड के इम्तिहान कब से हैं ....डेट आयी कि नहीं ..... अब हो गयी ना किरकिरी ....अगली तो बच्चा समझ बात भी न करे .....

और बड़े हुए ....पहला कॉलेज बंक ...पहला चोरी छुपे दोस्तों के साथ देखा मैटिनी शो ....और अगली सुबह हमारी सिनेमा की टिकट ...हमारी कपडों की धुलाई के साथ पकड़ ली जाती है .....अब हो गया ना सब चौपट .....आने दो पिताजी को :) :) ....कपडों के साथ हमरी भी दुलाई के पूरे चांस .....

तब समझ आया कि ई ससुर हमरे झूठ के बहुत पर निकल आते हैं ....और कोई ना कोई ...कहीं न कहीं ....वो झूठ के पर सारे के सारे गिन लेता है .....और सबके सामने बताने आ जाता है .....
जब जब होशियारी दिखाई धर लिए गए ...तब समझ आया कि बीरबल क्या चीज़ थे ....

" ई ससुर झूठ के भी पर होते हैं " ...................

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आप, मैं और बैगपाइपर क्लब सोडा

>> 06 March 2009

यारों का यार किसे कहते हैं ये कोई मुझसे ना पूँछे .....क्योंकि मैं यही कहूँगा कि मुझे क्या पता ...... पर एक बात तो जो मैं कह सकता हूँ वो ये कि मेरा दोस्त मेरी जान है ......दोस्त किसे कहते हैं कोई पूँछेगा तो मैं यही कहूँगा कि .........

वो मुझे साइकिल पर बिठाकर ट्यूशन तक ले जाता था ...जब मुझे साइकिल चलाना नहीं आता था .... वो मेरे एक दिन स्कूल न जाने पर मेरे घर आकर मुझे देखने आता था .....कि कहीं मेरी तबियत ख़राब तो नहीं ..... वो मुझे तब से प्यार करता है जब मैं क्लास की भीड़ का एक हिस्सा हुआ करता था और वो मोनिटर ..... और वो तब मुझ पर फक्र करता था जब मैं क्लास का सबसे होशियार बच्चा हुआ करता था ....मैं क्लास टॉप किया करता था .... तब भी वो मुझे उसी तरह प्यार करता था ...मेरे साथ रहता था

वो ही था जो जब उसके घर खीर, पूडी, कचोडी बनती थी तो मुझे ख़ास तौर पर बुलाकर घर ले जाया करता था और फिर साइकिल से वापस घर छोड़ने आता था .....एक वही था जो मेरे दिल की हर बात जानता था ....एक वही था जो मुझसे आये दिन लड़ता रहता था ..... एक वही था जो मुझे सबसे प्यारा था ......एक वही था जो मेरी बचपन के एकतरफा प्यार के लिए मेरे साथ अपनी आँखें नाम किया करता था

मुझे याद है जब मैं आगरा से पिताजी के तबादले के बाद १२ वीं करके जा रहा था ....तब उसकी आँख भर आई थी ......उसने कहा था कि यार मेरी डायरी भर दे ..... सच बताऊँ मुझे उस पल समझ नहीं आ रहा था कि क्या लिखूँ.... उन दिनों मुझे पता भी नहीं था कि जो मैं लिख रहा हूँ उनका सही मायनों में अर्थ क्या है .....मैंने उसकी डायरी में शायद कुछ इस तरह लिखा था कि ...."तू दोस्त नहीं तू मेरी जान है, तेरे बिना मेरी ज़िन्दगी सूनी है, तू मेरी जिंदगी में सबसे ज्यादा मायने रखता है, दोस्त क्या होता है ये मैंने तुझ से जाना "

कभी फिर सोचा भी नहीं था कि जो लिखा हुआ है वो फिर कभी सामने आएगा .....फिर बीच बीच में जब कभी आगरा जाना होता मैं उससे मिलता ...वही प्यार , वही स्नेह .....हम फ़ोन पर भी बात करते ....उसने आगरा से स्नातक किया और मैंने फिरोजाबाद से ..... फिर उसने एम.बी.ए. में दाखिला ले लिया और मैंने एम.सी.ए. में

जिंदगी कब करवट लेती है कोई सोच भी नहीं सकता ....मैंने कमला नेहरु इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी, सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश ) से एम.सी.ए. कर रहा था ......अचानक से हामारे परिवार के हालात बिगड़ गए .... मुझे तब ये समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या होगा ...एम.सी.ए. का अंतिम वर्ष और मेरे पास फीस के लिए पैसे नहीं थे ....तब वो ही दोस्त था जिसने खुद मुझे बुलाकर मेरी मदद की थी ..... जब मेरी एम.सी.ए. का अंतिम सेमेस्टर था जिसमे ट्रेनिंग करनी होती है ...तब मेरे पास दिल्ली में रहने का ठिकाना नहीं था और ना ही पास इतने पैसे कि कुछ किया जा सके ...ये वो ही दोस्त था जो खुद उन दिनों एम.बी.ए. करके नौकरी की शुरुआत कर रहा था .........उसने मुझे खुद फ़ोन करके बुलाया था कि तू मेरे साथ रहेगा यहाँ दिल्ली में .....

उसने तब मुझे रहने के लिए छत दी , खाने के लिए पैसे दिए ......ये वही दोस्त था जो मुझसे पूँछता रहता कि कोई परेशानी तो नहीं ...और मैं उससे पैसे मांगने में कहीं शर्म ना करुँ इससे पहले वो खुद मुझे अपने आप बुलाकर पैसे दिया करता .....

हाँ ये वही दोस्त है जिसने मेरा हाथ तब थमा था जब हम बच्चे थे ....हाँ ये वही दोस्त है जिसने मेरा हाथ तब कसकर थाम लिया जब में गिर रहा था ....जब मैं तन्हा , अकेला था ....हाँ ये वही दोस्त है जिससे मैंने जाना कि दोस्त क्या होता है ...दोस्ती क्या होती है ......सचमुच दोस्त वो डायरी के लिखे हुए पन्ने इन सबके आगे कुछ भी नहीं ...कुछ भी नहीं .....तू उन सबसे कहीं आगे है ....

आज भी मैं इंसानी तौर पर, दोस्त के तौर पर तुझसे ही त्याग, प्रेम, व्यक्तित्व की परिभाषा सीखता हूँ .....तू इन सबसे कहीं बेहतर है ...हाँ दोस्त तू ही है वो जिसके बिना मैं कुछ भी नहीं ...कुछ भी
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बेटा अब तो बस यादों में बसती हैं वो पहले की बातें

>> 05 March 2009

मुझे याद है कॉलोनी की वो दीवार जिस पर सफ़ेद चूने से तीन बड़ी बड़ी लाइने बना हम क्रिकेट खेला करते थे ..... और वो कॉलोनी का सरकारी हैडपम्प जिस पर लाइन लगा अपनी बारी का इंतज़ार किया करते थे .....और वो हंसते खिलखिलाते चेहरे ....बच्चों के, बड़ों के ...बचपन के साथियों के

ना जाने क्यों इस बार आगरा पर उतर ऑटो में बैठने ही वाला था कि ....ना जाने क्यों जहाँ बचपन बिताया वो पुलिस कॉलोनी याद आ गयी ...जिसे पिताजी का तबादला हो जाने पर हमने दस साल पहले छोड़ दिया था .....अब दिल किया तो रहा ना गया ....दिल की बात मानी और पुलिस कॉलोनी के लिए ऑटो में बैठ चल दिया ...ये सोच कि अपने कोई पुराने वाले आंटी-अंकल मिल जायेंगे ...उनसे मिल खुश हो लेंगे

जब कॉलोनी पहुंचे तो दूर ही कोने में चूने से बनी वो तीन लाइने वैसी ही बनी दिखाई दीं .... हाँ वक़्त और मौसमी बारिश ने उन्हें धुंधला जरूर कर दिया था ...एक पल को लगा कि बचपन का साथी वहाँ नेकर पहने हुए बल्ला लिए हुए खडा है .....मुझे बुला रहा है ....आ बेटिंग कर ...अब तेरी बारी है ......उन लाइनों को देख दिल खुश हो गया

जैसे ही कॉलोनी में प्रवेश किया ...नई आंटी जी दिखाई दीं ...ये वही आंटी जी थी जो हमारे समय में नई नई शादी कर अंकल जी के साथ आई थीं ..... और हम सब लोग उन्हें नई आंटी कह कर बुलाते थे ...तब से उनका नाम नई आंटी जी पड़ गया था

हमें देखते ही उन्होंने हमें पहचान लिया ...उनके चेहरे पर साफ़ ख़ुशी झलक रही थी ....हमें बिठाया, चाय, पानी, खाना-पीना सब कराया ....पर इतने सब बैठ कर दिल में एक बात कचोट रही थी ...एक सवाल मन में आया ...और हमने आंटी जी से पुँछ ही लिया ....आंटी जी ये कॉलोनी सूनी सूनी , उजड़ी उजड़ी क्यों दिखती है ...क्या बात है ...कहाँ गए सब के सब .....आंटी बोली अरे सब घर में होंगे ....और बेटा अब वो दिन कहाँ रहे जब पुराने लोग रहा करते थे ....धीरे धीरे सभी लोगों का तबादला होता गया और नए लोग आते गए ...पर अब वो प्यार नहीं बसता .....सब खुद तक सीमित हो गए हैं अब ....या कोई किसी ख़ास से ही बात करता है ...या अपनी जात या क्षेत्र वाले से ज्यादा घुलता मिलता है .....अब पहले जैसी बातें नहीं रही

नई आंटी जी के जो बच्चे हमारे सामने पैदा हुए थे अब वो १६-१७ साल के हो गए थे ....कहने लगे भईया अब यहाँ कोई पहले जैसा नहीं है .....ना कोई पतंग उडाता , न कोई बच्चो के साथ हर शाम क्रिकेट खेलता , ना लाइट जाने पर कोई अन्ताक्षरी खेलता ...ना चक्कन पौ ...सब घर में घुसे रहते हैं .....ज्यादातर के मम्मी पापा निकलने नहीं देते ..... कभी कबार खेल लें तो खेल लें थोडा बहुत

आंटी बोली बेटा तुम्हारी वो सब आंटी धीरे धीरे चली गयी .....मैंने कहा वो जो जिनके घर गेंद चली जाती थी और रख लेती थीं ...और अगले दिन बच्चो के सॉरी बोलने पर वापस दे देती थीं ...जिनके खिड़कियों के शेषे हर महीने हम लोगों कि गेंद से टूट जाते थे ....और वो आंटी जो स्वेटर बुनने में उस्ताद थी .....जिनके घर पर सभी आंटी लोग इकट्ठी हो जाया करती थी ..... और एक दूसरे से गप्पे मारने के बहाने ढूना करती थी ..... वो आंटी जिनके कोई बच्चा नहीं था ...वो कॉलोनी के हर बच्चे का ख्याल रखती थी .....सबको कितना प्यार करती थीं ......आंटी बोली ...बेटा सब चली गयी

बेटा अब ना तो कोई किसी बच्चे के जन्म दिन पर पूरी कॉलोनी इकट्ठी करता और न ही कोई स्वेटर के बहाने किसी के घर जाता .....अब ना कोई किसी के बीमार बच्चे को खुद अपने स्कूटर पर बिठा डॉक्टर तक ले जाता .....और ना ही किसी बच्चे को गलत काम करते देख कोई भी अंकल लोग पहले की तरह किसी बच्चे को डांट सकते .....अब तो लड़ाई हो जायेगी अगर किसी ने धोके से भी ऐसा कर दिया तो ....

अरे भैया याद है वो अंकल जिनको जाते देख सब बच्चे कहते थे 'चश्मुद्दीन बजाये बीन घडी में बज गए साढे तीन ' ...वो बिलकुल बुरा नहीं मानते थे ...और बच्चो संग आकर क्रिकेट भी खेलने लगते थे .... वो भी चले गए ...वो आंटी जो ईद पर सबको सिवैया खिलाती थी .... और कभी भी कोई भी बच्चा किसी के यहाँ भी मन करने पर खाना खा आया करता था .....अब बिलकुल वैसा नहीं रहा ..........
आंटी बोली ...सब बदल गया है .....बच्चे टीवी के ढेर सारे चैनल में लगे रहते हैं .....आंटी अंकल लोग अपने अंहकार , मैं बाकी से अलग और बड़ा हूँ में जीते हैं ...यही कहानी हो गयी है बेटा .........
बेटा अब तो बस यादों में बसती हैं पहले की बातें .....
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वो कागज़ का एक टुकडा

>> 03 March 2009

वर्ष २००४ और उस पर शादियों का दौर ...... ऐसे में अगर न्योता पानी मिल जाए तो मन प्रफुल्लित होने लगता है .....हम भी प्रफुल्लित होने लगे थे .....अपने दोस्त की बहन की शादी का कार्ड जब हमें मिला तो दिल में एक अजीब सी लहर दौड़ गयी ....कि चलो एक शादी के घर में २-३ दिन काटने को मिलेंगे .....चहल पहल ....हंसी के गुब्बारे और ना जाने क्या क्या ...आप तो समझदार हैं ही ... :)

तो भाई बस चल दिए अपना झोला तान कि भाई देखो हम एक शादी में जा रहे हैं .....ख़ुशी ख़ुशी हम बस में जा बैठ गए .....अब खुदा की मर्ज़ी हमारी बगल वाली सीट खाली थी ....बस कुछ चन्द मिनट ही चल पायी थी कि आने वाले अगले चौराहे से बस में एक लड़की ने प्रवेश किया ....लड़की निहायत ही खूबसूरत थी । उसकी उम्र करीब २०-२१ वर्ष रही होगी ... मैं शायद उस दिन बहुत खुश किस्मत था ...वैसे मेरी किस्मत साथ नही देती :) :)

लड़की मेरी बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई ....मैं उन दिनों थोड़ा अकडू हुआ करता था.....अकड़ दिखाने से पहले ये भी नहीं देखता था कि सामने कोई लड़का है या कोई खूबसूरत लड़की ..... हाँ लड़के के केस में एक आध बार रह भी जाऊँ ...ये सोच कि ये कहीं मुझ में दो चार धर ना दे

और ये भी नही जानता था कि लड़की को खुश रखने के लिए उसकी बात मान लेनी चाहिए । लड़की ने कहा कि मुझे खिड़की वाली सीट पर बैठ जाने दीजिये प्लीज़ ...... क्यूँ मैं तो पहले से यहाँ बैठा हूँ ....मैं बेवकूफ कहीं का ये सबसे बड़ी गलती कर बैठा उस समय ...खैर लड़की थोडी सी समझदार थी ...वो खामोश हो गई ....और एक अजीब सी निगाह से मुझे देखने लगी

करीब आधा घंटे बाद उसने पूँछा आप कहाँ जा रहे हैं ....मैंने बताया मथुरा ...और आप ? मैंने पूँछा...मैं भी मथुरा ही जा रही हूँ । फ़िर मैंने कुछ ज्यादा दिलचस्पी नही दिखाई तो लड़की भी चुप हो गई ...उन दिनों हम शायद रहना है तेरे दिल में के आर. माधवन की तरह ....(लड़की ...नौट इंट्रेस्टेड) टाइप हुआ करते थे ......बस नाम पूँछने तक बात पहुँची ....इन बातों में पता चला कि उसका नाम शालिनी था.......खैर पूरे रास्ते फ़िर खामोशी में सफर कटा ....

मैं अपने दोस्त के घर पहुँच गया और शादी कि तैयारी मैं जुट गया ...मेरे दोस्त की बहन भी मुझे अच्छी तरह जानती थी और उनका पूरा परिवार मुझे अच्छे और मिलनसार लोगों में शुमार करते थे । शाम को मेरे दोस्त की बहन मेरे पास आई और बोली भइया चलो में आपको अपनी सहेलियों से मिलाती हूँ .... जब वो मुझे उनके पास ले गई और जब मैं वहाँ गया तो सामने ढेर सारी लड़कियों एक समूह में बैठी हुई थी .....पास जाकर जब उन लोगों से मिलने की बारी आई तो सामने उस लड़की को भी पाकर मैं एक मिनट के लिए तो मैं आश्चर्य में पड़ गया .....कुछ न बोला जाए मुझ से .....

ये हैं हमारे भईया जिनकी मैं तारीफ किया करती थी ...ये बहुत अच्छे हैं वगैरह वगैरह ....और मैं उसी लड़की को देख कर बस वाली घटना याद कर रहा था कि किस तरह मैंने शालिनी को कोने वाली सीट के लिए मना कर दिया था और मेरा व्यवहार अच्छा नही था .....खैर शालिनी ने कुछ नही कहा और चुप से हाथ मिला लिया ...... बाकी सभी लड़कियाँ तरह तरह से अपनी बातें बता रही थी और मैं चुप से सुन रहा था ....उस समय मैं बिलकुल पत्थर सा हो गया था .....फ़िर शालिनी ने कहा आप खड़े क्यूँ हैं बैठिये न और वो खड़ी हो गई और मुझे अपनी कुर्सी दे दी .....मैं चुप चाप बैठ तो गया लेकिन मन ही मन उसी घटना को लेकर आत्म ग्लानि महसूस कर रहा था ।

शालिनी शादी के दौरान मुझे देख रही थी और मैं वहाँ से उठ कर अपने दोस्त के पास चला गया और मन ही मन सोच रहा था कि शालिनी से माफ़ी कैसे माँगू ....मैं खाने के समय खाने की प्लेट में खाना लेकर शालिनी के पास गया और शालिनी को देते हुए बोला कि आप खाना नही खा रही ...लीजिये खाइए ना ........

शालिनी ने प्लेट हाथ में पकड़ ली और थोडी सी मुस्कुरा दी ....जब उसके पास से लड़कियों का झुंड हटा तो मैंने बोला शालिनी आई ऍम सॉरी ...उसी घटना के लिए मुझे माफ़ कर दीजिये ......शालिनी मुस्कुरा दी और बोली ... मैं तो वो कब की भूल चुकी और हर इंसान का जब किसी समय मूड अच्छा नही होता तो वो ऐसा कर देता है ....आप खामखाँ इतने परेशान न होइए ...मैं हौले से मुस्कुरा दिया ....

उसकी ये शालीनता और सभ्य व्यवहार देख कर प्रभावित हो गया ...वो बोली आप भी लीजिये न खाइए और मुझे अपने साथ खाने तक ले गई और प्लेट लाकर फ़िर मैं भी खाने लगा । हमारे मध्य पढाई और भविष्य की बातें हुई और कुछ देर बाद मेरे दोस्त ने मुझे बुला लिया ....

करीब दो घंटे बाद शालिनी चल दी वो मथुरा की ही रहने वाली थी ....मैं उसके पास गया वह अपनी दूसरी सहेलियों के साथ थी ...हमारी बात नही हो सकी ....चलते समय उसने एक कागज़ का टुकडा मेरे हाथ में दिया ...और अपनी सहेलियों के साथ चली गई .... कुछ देर में यूँ ही वहाँ खड़ा रहा ...पता नही मैं कहाँ गुम हो गया था और जब होश मैं आया तो अपने हाथ मैं वो कागज़ का टुकडा देखा ...उसमे लिखा था आप मुझे अच्छे लगे ...जैसा मेरी सहेली ने बताया था बिल्कुल वैसे ही ......मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं आपकी दोस्त बन सकूँ ........ और अपने घर का नंबर भी लिख रखा था .......वो कागज़ का टुकडा मैंने अपनी जेब में रख लिया ....उस पल दिल को ख़ुशी मिली और एक सबक भी कि चाहे जो भी हो किसी से गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए .....

जब शादी से लौट कर घर पहुँचा ....और मैं सच कहों तो घर पहुंचकर उस कागज़ के टुकड़े को भूल ही गया था .....माँ ने अगली सुबह मेरे कपडे धो दिए .....और उसमे वो कागज़ का टुकडा भी धुल गया .....जब कॉलेज से घर लौटा तो माँ ने बताया कि कोई कागज़ कपडों के साथ धुल गया है .... याद आया अरे ये तो वही कागज़ है ...भाग कर देखा तो उसमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ......

फिर जब तब उस कागज़ के टुकड़े को याद करता और शादी में हुई शालिनी से मुलाकात को .....वो कागज़ का टुकडा एक मीठी याद छोड़ गया और जिंदगी की एक सीख भी ....

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एक भूल जिसका मैं प्रायश्चित तक ना कर सका

>> 02 March 2009

ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर खड़ी वो लड़की मुझे आज भी जब तब मेरे सपनो में आ जाती है जिसका मैंने दिल तोड़ा.... वो उसकी मुझसे मिलने की उत्सुकता और सब कुछ जान लेने की चाहत आज भी रह रह मेरे जहन में आ जाती है .... और वो रेलवे स्टेशन की बैंच जिस पर वो मेरे पास आकर बैठी थी ..... मुझे याद है कि वो मुझसे मिलने के लिए ऑफिस से छुट्टी लेकर आई थी ... और मैं " कुछ काम है " का बहाना बना वहाँ से जल्दी लौटना चाहता था .... टिकट जो मैंने उसके आने से पहले ही ले ली थी ....उसे दिखाते हुए बोला था कि जल्दी जाना है ....और इस बात पर उसका कहना कि इतनी जल्दी क्या है ? अभी तो चन्द पल भी नही बीते ....और तुम जाने की बात कर रहे हो .....

मुझे पता था कि वो मुझे चाहती है फिर भी मैं उससे उसकी शादी की बात कर रहा था ..."रिश्ते आ रहे हैं तो कोई लड़का पसंद आने पर शादी कर लो ".......उस पल कितना आसान लगा था ये सब कहना ...पर आज महसूस होता है कि ये बात उसे कितनी कचोटी होगी .....

ट्रेन अपने समय से देरी से थी ....वो एक घंटा और पाकर कितनी खुश थी और मैं मन ही मन ट्रेन को कोस रहा था ....वो मेरे नज़दीक बैठना चाहती थी और मैं दूरी बनाकर बैठा था ..... ना जाने क्या खोज रहा था मैं उन दिनों ....किस खोज में था ...अच्छी भली लड़की थी वो ...अच्छी दिखती थी ...नौकरी करती थी ....चाहती थी मुझे ....और मैं ठीक उसका उल्टा बेरोजगार और उसे न चाहने वाला .....

याद है मुझे कि जब ट्रेन आयी थी और मैं बिना कुछ कहे उठकर चल दिया था .....उसे छुआ तक नही था मैंने ....हाँथ मिलाकर ये ही कह देता कि तुमसे मिलकर अच्छा लगा तो भी खुश हो लेती वो .....पर झूठ भी न बोला गया उस पल मुझसे .....प्लेटफोर्म पर खड़ी उस लड़की का चेहरा ...थोडी सी उदास , मुझे निहारती हुई उसकी आँखें ...याद आ जाती हैं जब तब .....

जब उसने पूँछा कि अब कब आओगे तब मुँह से यही निकला था कि देखो कब आना होता है ....और उसका कहना कि आ जाना किराया मैं दे दूंगी ....पता है मुझे तुम्हारे पास अभी नौकरी नही ...आज दिल में अजीब सी बेचैनी पैदा कर जाता है

कितना निष्ठुर हो गया था उस पल ...ट्रेन प्लेटफोर्म से चले जाने तक मुझे एकटक देखती रही ....बेबस सी आँखें जिनमें कुछ सवाल और मेरे लौट आने का इंतज़ार ....मैं बस इतना कह सका "बाय" और उस पल हल्का सा मुस्कुराया था ...पता नही किस पर ...

और मेरे पहुँचने पर उसका फ़ोन आया ....उसके पूँछने पर कि क्या बात है ? कुछ परेशान से लगे ...मुझसे मिलकर अच्छा नही लगा तुम्हे .....ना जाने क्यों उस पल राजा हरिश्चंद्र बन बैठा .... कह दिया कि मैं तुम्हे नही चाहता ...तुमसे मिलकर एक पल भी मुझे नही लगा कि मैं तुमसे प्यार करता हूँ .....

तीर की तरह मैंने अपने इन शब्दों से उसका दिल छलनी छलनी कर दिया .....वो पल है और आज का पल ...उसने कभी मुझे फ़ोन नही किया ....चन्द दिन बीत जाने पर मुझे एहसास हुआ कि मैंने गलती की है ....मुझे ऐसा व्यवहार नही करना चाहिए था ....उसे फ़ोन किया ...अपने बर्ताव की माफ़ी माँगी ....पर शायद ये बहुत कम था ...उसका दिल जो तोड़ा था मैंने ....वो मुझसे बात ही नही करना चाहती थी ...मुझे याद है कि जब जब मैंने उससे माफ़ी माँगने के उद्देश्य से फ़ोन किया उसने मुझसे बात नही करनी चाही ........

वक्त बीत गया ..... मैं न जाने किस खोज में था ...खोज में ही रह गया ....जब जब मुझे वो बर्ताव याद आता मैं माफ़ी मांगने के लिए फ़ोन करता ....और वो हमेशा कहती ...क्यों फ़ोन करते हो ? मैं भूल चुकी हूँ सब और तुम्हे भी ....मेरे ऊपर रहम करो और ...प्लीज़ मुझे फ़ोन मत किया करो .... मैं हर बार उससे माफ़ी मांगता ....लेकिन वो अपने दिल से मुझे कभी मांफ ना कर सकी ...

आज इतना वक्त बीत जाने पर एहसास होता है ...दिल तोड़ने के लिए कोई मांफी नही होती .....कितना बच्चा था मैं ...प्यार को खोज रहा था और एक लड़की के प्यार को न समझ सका ......

एक ऐसी भूल कर बैठा जिसका प्रायश्चित भी ना कर सका ......

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