दो साल पहले लिखी हुई रचना (जब मन कुछ बेचैन था)
>> 16 March 2009
भागता रहा हूँ ख़ुद से ही मैं
कभी ना समझा कि क्या चाहिए मुझे
बस भटकता रहा और खोजता रहा खुद को ही मैं
मैंने कभी ना जाना खुद के ही अस्तित्व को
कोशिश करता रहा खुद को अच्छा जताने की
मगर जानता था कि खुद से ही भाग रहा हूँ मैं
मगरूर था खुद पर ही मैं
ना जाने किस बात का गुमान था मुझे
मैं नशे में था हर बात से बेखबर
सोचता था कि मैं अच्छा हूँ
मगर खुद को ही ना जाना मैं
फुर्सत कहाँ थी मुझे कुछ भी सोचने की
बस चलता चला जा रहा था मैं
पहले तो ना था इतना मगरूर और नशे में चूर
पर क्यूँ ऐसा होता गया मैं
सोचने का वक़्त ही ना था कभी यूँ
कि वक्त इस मोड़ पर भी ले आएगा मुझे
बस थोडी सी खुशी को हर ख़ुशी समझ बैठा था मैं
जिंदगी यही है सोच कर जिए जा रहा था मैं
मगर खबर क्या थी ये सब दिखावा है मेरा
जब सोचा मैंने अकेले में अपने लिए
तो जाना कि अस्तित्व ही नही है मेरा कोई
बस जिए जा रहा हूँ झूठ की चादर ओढे हुए
खुद को कुछ और ही दिखा रहा हूँ मैं
खुश नही हूँ फिर भी क्यों ये जाता रहा हूँ मैं .
शायद लोग जानकर हँसी ना उडा दे
ये सोचकर झूठ को भी सच जता रहा हूँ मैं
मगर आज एहसास है मुझको
कितना अकेला और खुद से ही अनजान हूँ मैं
सोचता हूँ कि खुद मैं क्या हूँ ये तो जान लूँ
मगर सामने खुद ही सच बोला आकर
तुम खुद को ही धोखा दे रहे हो
तुम तो ऐसे ना थे
फिर तुम्हे क्या हो गया है
खुद कहीं खो गए हो
इस झूठ का गुमान हो गया है
संभाल लो खुद को इससे पहले कि
अस्तित्व ना रहे तुम्हारा कुछ भी
क्यों जानकर भी खुद से अनजान बैठे हो
अस्तित्व क्या है तुम्हारा ये जान लो
खुद को तुम पहचान लो
तब खुद को ही समझाता हूँ मैं
खुद को सज़ा ना दो यूँ इस तरह
अस्तित्व को पहचान लो
तुम्हे क्या चाहिए ये जान लो
ख़ुद को तुम पहचान लो
ये सब झूठ तो मिट जाएगा एक दिन
तुम्हे वजूद चाहिए खुद का ये जान लो
खुद को तुम पहचान लो
लो चल पड़ा हूँ इसके लिए अब मैं
खुद को खुद की पहचान देनी है मुझे
अपने लिए खुद की ख़ुशी लेनी है मुझे
जिसको पाकर में खुश रहूँ
वो अस्तित्व चाहिए मुझे
17 comments:
अनिल जी वाह! वाह!
बेचैनी भी क्या क्या लिखवा देती है.....
kya baat hai anil bhai
सुन्दर रचना ..कभी हम भी कविता लिखा करते थे.अब तो सांपो से ही फुर्सत नही
सुन्दर कविता, बहुत अच्छी प्रस्तुति
बढ़िया है अनिल भाई-लिखते रहो!!
कविता के बहाने अच्छा स्वविवेचन है।
atnamaavalokan, atmasakshatkaar...abhootpoorva sthiti hoti hai
बढ़िया लगी आपकी यह रचना
बहुत लगी आपकी रचना ...बधाई...
Bhot acchi ...ek safdil insan ki rachna jo apni galtion ko pahchanne ki himmat rakhta hai...bhot khoob ...!! Bhot bhot ..BDHAI...!!
dilchasp....
स्वयं को जान लिया और इन्द्रियों को वश में कर लिया तो फिर तो जितेन्द्रिय हो गए...जग जीत लिया...
बहुत ही खुशी की बात है की अपने अस्तित्व को जानने की उत्कंठा है.....यह मार्ग उन्नति की ओर जाता है.
kya baat hai sir ji
bahut hi sahi likha hai aur bhavon ko abhivyakht karti hai aapki ye rachna
bahut badhai ho
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
आपकी बेचैनी ने बहुत शशक्त कविता की रचना करवा दी आपसे...एक एक शब्द असरदार है...
नीरज
Aksar baishani mein itni achee racnha ki upaj hoti hai. Aap ne kamal ka likha hai Anil ji
Bahoot khoobsoorat
अनिल जी, इस रचना के किस अंश को रेखांकित करूँ,सब अपने आप में एक अर्थ लिए हुए अपनी ऊँचाई के संग है.......बहुत ही उत्कृष्ट रचना है
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