रेलवे स्टेशन की एक रात और वो लड़की
>> 28 March 2009
कुछ रातें और कुछ बातें अपनी ही छाप छोड़कर चली जाती हैं ......खासकर ऐसी रात जिसके बारे में ना आपने सोचा हो और ना ही सोच सकते हों .....कभी कभी कुछ बातें दबे पाँव आती हैं और अपनी मिठास छोड़कर भाप की तरह उड़ जाती हैं बादलों की सैर को ....शायद उन्हें कहीं और बरसना हो रूमानी एहसास बनकर .....
ऐसी ही एक रात गुजरते हुए जा रही थी और अचानक मुझ से टकरा गई .....शायद उसे मेरे साथ वक्त गुजारना था ....
जब ऑटो में बैठा मैं बार बार अपनी घड़ी की तरफ़ देख रहा था ...और इस जल्दबाजी में था कि कहीं आज की ये ट्रेन ना छूट जाए ....बस चन्द मिनटों का फासला था ....मुझमें और उस रेलवे स्टेशन की खिड़की में जहाँ से ये पता चल सके कि सुल्तानपुर को जाने वाली ट्रेन कहीं छूट तो नही गई ....
अपना बैग उठा मैंने ऑटो वाले के पैसे दिए और यह जान दिल को राहत पहुँचायी कि ट्रेन अभी आयी नही है ..... बैग को कंधे पर लाधे हुए जल्दी से सीढियों पर चढ़ता गया ...पर क्या है कि माँ का प्यार बैग में कूट कूट कर भरा था ...तो बैग मेरे कंधे पर पूरी ज़ोर आजमाइश कर रहा था .....सीढियों से उतर मैं अपने वाले प्लेटफोर्म पर पहुँचा ....टूंडला रेलवे स्टेशन कहने को तो जंक्शन है लेकिन ऐसी भी कोई ख़ास भीड़ नही होती रात के वक्त ....
मैं एक खाली पड़ी बैंच पर बैठ गया ...अपने बगल में बैग रख ट्रेन के आने का इंतजार कर रहा था ...तभी एक लड़की और शायद उसके पिता सीढ़ी से उतरते हुए दिखाई दिए ....लड़की के पिता की नज़र मुझ पर गई ...उन्होंने मुझे उसी नज़र से देखा जैसे अपनी लड़की के साथ चलने वाले पिताजी अक्सर देखा करते हैं ....मेरी खाली पड़ी हुई बैंच पर ना बैठते हुए उन्होंने पड़ोस की ही बैंच पर बैठने का फ़ैसला किया जिस पर पहले से ही एक वृद्ध दम्पति बैठे हुए थे ........
तभी रेलवे स्टेशन पर मीठी सी आवाज़ सुनाई दी " लखनऊ के रास्ते बनारस को जाने वाली .....१० मिनट देरी से आएगी ".... इसी के साथ पिताजी के साथ आयी उस लड़की की निगाहें मेरी निगाहों से टकराई .....बस एक नज़र देख उसने अपनी निगाहें दूसरी ओर कर ली .....
देखो ये रहा टिकट और ये रही पानी की बोतल ...अपने बैग में रख लो ....लड़की के पिताजी ने लड़की से कहा ... लड़की टिकट अपने हाथ में ले कहती है ....पापा आप जाओ १० मिनट में तो ट्रेन आ ही रही है .... आप वैसे ही लेट हो रहे हो .....हाँ ठीक है कहते हुए उन्होंने ५ मिनट गुजार दिए और फ़िर कहा ठीक है .....वहाँ पहुँच कर फ़ोन करना ....ठीक है पापा ....फिर वो चले गए ....
पर मीठी आवाज़ के वादे किए हुए १० मिनट कामयाब न रहे ....ट्रेन २० मिनट लेट हो चुकी थी ....फिर से एक मीठी आवाज़ सुनाई दी .....अबकी बार वादा किया कि ट्रेन १ घंटे बाद आएगी .....उफ़ ये स्टेशन के वादे टूटते क्यों हैं ? इस टूटे वादे के कारण उस लड़की के चेहरे पर असंतोष के भाव साफ़ दिखाई दे रहे थे ...
उसने पानी की बोतल बैग से निकाल ली और पानी के दो घूँट से अपने नर्म गुलाबी होठों को भिगो लिया .....उस पल उसका चेहरा ठीक से देखा मैंने .....उसके चहरे की एक ख़ास बात थी ......सबसे ख़ास ...उसकी आँखें ...बड़ी बड़ी और बेहद खूबसूरत .....जो उसे खूबसूरत कहने पर मुझे मजबूर कर रही थी .....उसकी जितनी खूबसूरत आँखें अभी तक मेरी आँखों के सामने नही आयीं ....
मेरी एकटक नज़र के कारण उसने मेरी ओर देखा ....मेरा ध्यान टूटा ...मैंने अपनी नज़रें उसकी उन आँखों से हटा ली .....सामने सिक्कों की खनखनाहट सुनाई दे रही थी .....देखा तो एक बूढी औरत अपने कटोरे में सिक्कों को बजाती हुई वहां से सरकती हुई जा रही थी .....उससे चला नही जाता था ......वो किसी से कुछ माँग नही रही थी ...
मेरा हाथ पेंट की जेब से उस कटोरे में जाता है ....एक आवाज़ होती है सिक्के के गिरने की ...फिर में ख़ुद को अपने बैग का पड़ोसी बना लेता हूँ ....
तभी एक आवाज़ सुनाई देती है ....पर अब वो मीठी नही थी .....जल्दबाजी में बोली गयी आवाज़ किसी पुरूष की थी ...सूबेदार जहाँ कहीं भी हों फलां सिंह के पास हाज़िर हों ..... पर ये कान तो कुछ और ही सुनने का इंतजार कर रहे थे ....शायद ये कि हमारी ट्रेन कब आएगी ......
तभी लड़की से वृद्ध दम्पति ने सवाल किया ...टाइम क्या हुआ है बिटिया .....जी ११:५० ...कितने ...जी ग्यारह बजकर पचास मिनट .....तभी आने वाली ट्रेन के लिए एक मीठी आवाज़ सुनाई दी .....फलां गाड़ी प्लेटफोर्म नंबर २ पर आ रही है .....वृद्ध दम्पति अपना समान उठाने लगते हैं .....शायद उन्हें अब इंतज़ार नही करना पड़ेगा .....उनकी ट्रेन आ रही थी ...पर सामान कुछ ज्यादा था ....
जिस पर बूढे बाबा पर तो ठीक से हिला भी नही जाता था .....ट्रेन स्टेशन पर शोर मचाती हुई आ खड़ी हुई ......बूढी अम्मा दो बैग पकड़ बोगी की तरफ़ बढ़ने लगी ....और दो बैग और बाबा अभी बैंच पर ही थे ....अम्मा बड़ी मुश्किल से बैग उठा पा रही थी ..... मैंने आँखों ही आँखों में लड़की से अपने बैग की तरफ़ इशारा करते हुए आग्रह किया कि मेरा बैग देखती रहे .....मैंने जल्दी से दोनों बैग उठा बोगी में पहुंचाए और बाबा का हाथ पकड़ बोगी की तरफ़ ले जाने लगा ....अम्मा उधर से उतर रही थी ....मैंने दोनों को उस पर चढा दिया .....खुश रहो बेटा ...जीते रहो बेटा ...बिना दांत की अम्मा के मुँह से ऐसा कुछ निकल रहा था .....शोर मचाती हुई ट्रेन चली गयी ....
वापस लौट मैं अपने बैग का पड़ोसी बन गया ....मेरी निगाह लड़की की तरफ़ गयी .....उसकी आँखें मुझे मजबूर कर रही थी उसे देखने के लिए .....अगले आधे घंटे तक कोई मीठी आवाज़ सुनाई नही दी .....फिर कभी लड़की की वो खूबसूरत आँखें मुझे देखें तो कभी मेरी आँखें उन खूबसूरत आँखों को .....
फिर उसने एक मैगजीन निकाल ली जिनके पन्नो को पलटने लगी ....वक्त कैसे गुज़ारा जाता है शायद यह पढने की कोशिश कर रही थी .....मैं अपने बैग में रखे हुए मुंशी प्रेमचंद के गोदान को निकाल लेता हूँ .....जिसे मैंने पिछली बार तब छोड़ा था जब मिस्टर मेहता मिस मालती के साथ शिकार को गए थे ....और उनको अपने कंधे पर बिठा पानी को पार कर रहे थे .....
मैं पूरी तरह गोदान में डूब गया था ...तभी एक चीख सुनाई दी ...लड़की मेरे कंधे पर हाथ रखकर मुझसे सटी जा रही थी .....कोई पागल ना जाने कहाँ से आ गया था ...अजीब वेश भूषा , गंदे कपड़े, उलझे बढे हुए बाल , मानसिक रूप से विकृत लग रहा हो .....बहुत डरावना लग रहा था ....शायद एक पल के लिए मैं भी डर गया था .....
क्या है ...चलो जाओ यहाँ से ....उस पागल से मैंने कहा ....पर वो ना हिला ...बैग में पड़े हुए केले मैंने उसे पकडाये ....जाओ यहाँ से ....फिर पता नही उसे क्या सूझी वो आगे बढ़ गया ...और एक ही पल में गायब हो गया .....
वो लड़की कुछ घबरा गयी थी ....मैंने उसकी पानी की बोतल उसके हाथ में पकडायी .....घबराने की बात नही वो चला गया ....
फिर मैं अपनी बैंच पर बैठ गोदान खोल बैठा .....एक मीठी आवाज़ सुनाई दी ...पर वो पहले जैसी नही थी ....एक अलग आवाज़ ....क्या मैं आपके पास बैठ जाऊँ .....वो लड़की बोली ...मैं मुस्कुरा दिया ....मैंने कहा हाँ आ जाओ .....परेशान होने की बात नही है ...मैं हूँ ...अब वो नही आएगा .....अब मेरे बैग के दो पड़ोसी हो गए ...एक मैं और एक वो लड़की ....
तभी फिर से वही मीठी आवाज़ सुनाई दी ...ख़बर मिली कि ट्रेन अभी २ घंटे और लेट है .....मतलब अभी वो २ घंटे और लेगी यहाँ पहुँचने में ......मैं फिर से अगले वादे का इंतजार करने लगा .....इस बार लड़की की खूबसूरत आँखों ने मेरी ओर देखा .....इस बार वो आँखें अलग थी ...इनमें अब विश्वास था मेरे लिए ......
फिर उसने कहा ................
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18 comments:
क्या लिखते हो यार ....इतने आइडियास कैसे आ जाते हैं तुम्हारे दिमाग में .....एक स्टेशन की रात को इस तरह पेश किया है की ...मुझे लगा की कोई फिल्म देख रहा हूँ
जिस रेः से आपने बयां किया है .....कई बार लगा कि मैं स्टेशन पर मौजूद हूँ ......बेहतरीन ....खासकर वो आँखें
अनिलजी बस इतना ही कहूंगा
एक छोटी सी लव स्टोरी
एक सामान्य से प्रसंग को बहुत रोचक बना दिया आपने।
घुघूती बासूती
पहले भी यही टिप्पणी दे चुका हूँ, आज फिर से दोहराऊंगा - "आपकी लेखनी में दम है। कल्पना कम, वास्तविकता अधिक लगती है"!
अनिल,
आजकल जब ब्लागजगत पर लिखना और पढना निरन्तर कम होता जाता है, तुम्हारा ब्लाग यहां खींचकर ले आता है और फ़िर तुम्हारी पुरानी प्रविष्टियों को फ़िर से पढने का मन करने लगता है। इस निरन्तरता को बनाये रखना और भले ही हर बार टिप्पणी न भी दें पाये लेकिन साथ बना रहेगा।
नीरज रोहिल्ला
बस इतना हुआ उस सफ़र में ..के हमसफ़र बहुत हसीन निकले ...ए अजनबी मेरा पसंदीदा गीत है फिल्म दिल से में.....
Wah....बढ़िया प्रस्तुति के लिये साधुवाद
by god anil bhai
kya baat hai wo ladki thi kaun hamari aaj ki bhabhi ya koi aur....
nice post bro
dr soral
वाह कमाल का लेखन.
रामराम.
छोटी सी प्रेम कहानी......
बहुत ही अच्छी है .
हमेशा की तरह आपकी कलम का जादू चल गया
कहानी अभी बाकी है मेरे दोस्त
i like your stories....they all are wonderfull
badiya bahut badiya, chalchihtra sa chal pada aankhon ke saamne
Mai pehle is kahaaneeka poorwardh padh gayee thee...
Behad sajeev chitarn....train kee aawaaz tak sunayee dene lagee thee..
Maine ab 13 alag blogs bana liye hain, aur unhen, "kahanee", kavit", sansmaran," lalitlekh""baagwaanee", The light by the lonely path"...adi, adi karke vibhagon me baant diya hai...sirf"lizzat" hai jisme abhi koyi post nahi.
Anil ji ye satya katha hai ya fiction?
यह सत्य कथा है
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