आम आदमी !
>> 28 April 2010
आम आदमी हुक्का गुड़गुड़ाता है, चिलम पीता है और वो ना मिले तो बीड़ी सुलगाता है । हुक्का बचे ही कितने हैं और ना अब वो शौक रहा हुक्का-पानी बंद करने वाला । इसी लिये हुक्के का क्रेज़ ख़त्म हो गया । वैसे अच्छी चीज़ थी हुक्का, बस गुड़गुड़ाते रहो और खाँसते रहो । जब दम में दम आबे तो सरकार के बारे में दो बात कर लो । पर अब सरकार ने हुक्का पीने लायक छोड़ा कहाँ । ना हुक्का रहेगा और ना सरकार के बारे में बात कर सकेगा । अच्छी तरकीब है ।
आम युवा दिन भर ताश-पत्ता खेलने में बिता देता है और शाम को बाप की चिल्ल-पौं सुनता है । "दिन भर देखो तो बस ताश-पत्ता में लगा रहता है । ये ना करे कि दो घड़ी किताब उठाके पढ़ ले ।" आम युवा एक कान से सुनता है और गागर से पानी निकाल गड-गड-गड ऊपर से गले में उतारता हुआ देहरी के बाहर निकल जाता है । जानता है पहले भी कह चुका है कि पुलिस की भर्ती अब वो भर्ती ना रही कि गाँव का कोई छोरा जावे और भर्ती हो जावे । अब तो चार-छह बीघा खेत बेचने को हो दद्दा तो बात करो । रिश्वत के बिना कोनों काम नहीं, समझे दद्दा । इसी लिये आम युवा बाप की बात इस एवज में सुन लेता है कि उनका फ़र्ज़ है कहना और हमारा फ़र्ज़ है सुनना । तो बस सुनते और कहते चले जा रहे हैं ।
आम आदमी भागती ट्रेन में चढ़ते हुए अगले महीने की ई.एम.आई. और तमाम बिलों का हिसाब जोड़ लेने के बाद सोचता है कि हाथ में कुछ आता ही नहीं । है तो बस मोबाइल जिस पर फलाँ कंपनी के फ़ोन आते हैं तो कभी फलाँ कंपनी के । घर अब लाखों से निकलकर करोड़ों में पहुँच गया है । आम आदमी का सपना अब आम भी नहीं रहा । अब वो बेनाम सा हो गया है । आखिर उस सपने का क्या नाम दें ? जिस के पूरे होने की चाहत बीते 20 बरस पहले पूरी हो सकती थी । आम आदमी है कि शेयर मार्केट के उठने पर खुश हो लेता है । चलो इंडिया तरक्की कर रहा है । राशन की दुकान पर जाता है तो 50 रुपए किलो चीनी पाता है । वहाँ से दाँत खट्टे करके वापस लौटते हुए बीवी से भिड़ता है । चैनल बदलता है और सरकार में अर्थशास्त्रियों के होने की बात पर गाली बकता हुआ फ्रिज खोलकर गट-गट-गट करता हुआ तमाम पानी पी जाता है । वो आम आदमी एक बच्चे की अंग्रेजी स्कूल की फीस और तमाम खर्चों से डरकर अब एक के बाद दूसरा बच्चा करने से भी डरता है ।
आम आदमी पूरे पाँच साल टूटी सड़क पर अपना दुपहिया चलाता है । ट्रेन के धक्के खाता है । बस में अपनी जान गँवाता है । पानी के लिये सुबह से ही लम्बी लाइन लगाता है । सरकार में, क्रिकेट में, नौकरशाही में घपले होते देखता है । नेताओं को भरी सभा में एक दूसरे पर जूते फैंकते देखता है और फिर अगले रोज़ टी.वी. के सामने उन्हें गले में हाथ डाले हुए मौज मारते देखता है । उनकी तमाम अंट -शंट बातें सुनता है । महंगाई के नाम पर नेताओं को आपस में वोट डालते देखता है, हँसते-खिलखिलाते देखता है । "महंगाई बढ़ेगी" बोलते हुए उन नेताओं को हँसते-खिलखिलाकर कहते हुए कि "हम जीत गये" देखता है । भकभकाता हुआ आम आदमी गाली बकते हुए कि "नेताओं ने देश को बर्बाद कर दिया", सो जाता है ।
आम आदमी उन्हीं टूटी सड़कों के बराबर में तम्बू के नीचे खड़े होकर फिर से उन्हीं नेताओं की बातें सुनता है । हम विकास करेंगे, खुशहाली लायेंगे, महंगाई कम करेंगे जैसी तमाम बातें सुनता है । ताली बजाता है । लाइन में लग चिलचिलाती धूप में खड़े हो पसीना पोंछते हुए वोट डालता है । फिर इंतज़ार करता है कि "अबकी सरकार किसकी बनेगी ?" जैसे तमाम सवाल एक दूसरे से करता है । आम आदमी बिलकुल साला आम ही रहता है । उस टूटी सड़क और सामने बह रहे गंदे नाले की तरह वो कभी नहीं बदलता । हर बार बस पाँच साल बदलते है । लेकिन ये साला आम आदमी ...............