कुछ टूटे बिखरे हुए से ख्वाब
>> 27 March 2009
एक बाप भूखे पेट सड़कों पर अपनी घिसती हुई चप्पलों से आती हुई चीख को हर पल महसूस कर एक ख्वाब बुनता है कि उसका बेटा कभी जिंदगी में भूखा नही सोयेगा ......
जब चमचमाती कार से उतरते हुए किसी हाई फाई जीवन शैली जीने वाले उस परिवार को देखता है तो उसकी खुली हुई आंखों में एक ख्वाब सज जाता है कि में अपने बच्चे को कम से कम इस लायक बनाऊँगा कि वो अपने ख़्वाबों को पूरा कर सके ...उसके ख्वाब मेरे ख़्वाबों की तरह इस तपती दोपहरी में चिलचिलाती धूप तले पसीना बनकर ना बहें .....
वो ख्वाब तो बुन लेता है लेकिन उसे जिंदगी के बाज़ार का पता नही होता कि इन ख़्वाबों को खरीदने की कीमत क्या है ....ना ही इसमें लगने वाले साजो सामन की कीमत का पता होता उसे .......
जब वो और दूसरे बच्चो को खिलौने से खेलते देख ख़ुद के बच्चे को रोते देखता है ...तब उसकी इतनी हैसियत नही होती कि अपने बच्चे को चुप कराने वाला वो खिलौना ला दे ....तब उसे पहली बार एहसास होता है कि इन ख़्वाबों की कीमत तो बहुत है ......
वो रात दिन एक करके चन्द पैसे कमा कर एक अंग्रेजी स्कूल में पहुँचता है ...दिल में तमन्ना लिए हुए कि उसका बच्चा भी अच्छे स्कूल में पढेगा ....औरों की तरह बनेगा .....लेकिन फीस क्या होती है उसे वहाँ जाकर पता चलता है ......उसकी जेब उस वक्त शर्मा रही होती है .......और उसके साथ उसे ये भी पता चलता है कि स्कूल का हार्ड एंड फास्ट रूल है कि अंग्रेजी बोलने वाले बापों के बेटों को ही अंग्रेजी सिखाई जा सकती है ..... मतलब जिंदगी भर उस संपदा को वही संभल सकते हैं जिनके बापों ने अंग्रेजी खायी हो , अंग्रेजी पहनी ओढी हो ......और जो अच्छी तरह अंग्रेजी में गाते हो ......
तब उस चप्पल घिसते हुए बाप को एहसास होता है कि उसके ख्वाब कुछ ज्यादा ही लंबे हैं .....उस दिन उसका ख्वाब टूटता है ....वो ख्वाब टूटकर वहीँ फर्श पर बिखर जाता है ...बामुश्किल से ये चप्पल घिसता हुआ बाप उन्हें बटोरने की कोशिश करता है ...लेकिन कुछ ख्वाब वहीँ फर्श पर चिपके पड़े रह जाते हैं .....उन अंग्रेजी बच्चो के पैरों तले रोंदे जाने के लिए .....
थक हार कर वो अपने बच्चे को सरकारी स्कूल में भर्ती करा देता है ...तब किताब और कांपियों का वजन क्या होता है ...उसे पता चलता है कि ये तो सबसे बड़ा भारी वजन है ..... तब किताब और कापियों को खरीदने की जद्दोजहद क्या होती है उसे पता चलता है .....कैसे कैसे पेट काट काट कर वो फीस और किताबों का खर्चा जुटाता है ...ये तो उसका पेट जानता है या वो घिसती हुई चप्पलें .....
जब किसी सरकार के नेता का भाषण सुनता है ...कि हम जुल्म के खिलाफ लडेंगे , हम गरीबों की मदद करेंगे , रोजगार देंगे , मुफ्त शिक्षा, मुफ्त दवा, मुफ्त इलाज .....मुफ्त ये मुफ्त वो ...बोलने में क्या है .....मुफ्त मुफ्त मुफ्त ..... हाँ गरीबों को कुछ मिले ना मिले ....उस नेता को भाषण के बाद मुफ्त दारू और मुफ्त लड़की जरूर मिल जाती है .... और इन सबके बीच बाकी नेताओं से मिली मुफ्त की चमचागीरी ...कि आज तो आपके भाषण ने हिला कर रख दिया .....हाँ भाई हिला कर ही तो रख दिया है इस जनता को ....ख़ुद का बच्चा तो विदेश पढता है ...लाखों खर्च के लिए मिल जाते हैं हर महीने ....और वो बाप की तरह वहाँ भरपूर अय्याशी करता है ....फिर बाद में कुछ नही करेगा तो नेता तो बन ही जायेगा और फिर देश को भारतीयता का पाठ पढाएगा .....
जब वो चप्पल घिसता हुआ बाप कुछ बूढा होता है ...उसके ख्वाब जो कुछ बचे थे आँखों में ...उनको टूटते बिखरते देखता है ....इंजीनियरिंग में दाखिला नही हुआ ....सरकारी स्कूल की पढाई ...उन अंग्रेजी स्कूल की अंग्रेजी के आगे दबती नज़र आती है ...जहाँ वो ढेर सारी कोचिंग और पर्सनेलिटी डेवेलोपमेंट की क्लास करते हैं और ना जाने क्या क्या ..... फिर वो एम.बी.ए में दाखिले की खातिर ग्रुप डिस्कशन में खड़ा होता है ...अंग्रेजी लड़कों की अंग्रेजी सुन वो सरकारी स्कूल का लड़का सहम जाता है ....उसकी साधारण सी पेंट और शर्ट किसी का ध्यान अपनी और नही खींचती .....फ़िर फीस के नाम पर बैंकों का लोलीपोप ...उससे पूरा खर्चा तो नही उठाया जा सकता न .....
किसी तरह ट्यूशन पढ़ा ...सरकारी नौकरी के फॉर्म भरता है ....उसका चप्पल घिसता बाप ....ख़्वाबों को टूटते बिखरते देखता है ....अब वो चिलचिलाती धूप सहन नही कर सकता वक्त से पहले बुड्ढा हो चला है .....फिर भी पसीना बहाने पहुँच जाता है .... फिर ना जाने क्या क्या बीमारी हैं उसको .....
फिर एक दिन कमरे में पड़ी खाट पर लेटा हुआ अपने बेटे की तरफ़ ख़्वाबों को पूरा करने की आस से देखता है ....उसके टूटे बिखरे हुए ख्वाब इसी जिंदगी के बाज़ार में रह जाते हैं ...वो किसी और दुनिया में चला जाता है .....उन टूटे बिखरे पड़े ख़्वाबों को समेट कर एक पोटली में बाँध उसका लड़का अपने कंधे पर टांग लेता है ......अब उसे ये ख्वाब पूरे करने होंगे .........शायद आने वाले समय में ये ख्वाब पूरे हो जाएँ ...
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14 comments:
लगता है बहुत करीब से देखतो हो अपने आस-पास की दुनिया को।अपनी प्रोफ़ाईल मे चित्रकारी नही लिखा है आपने,उसे ज़रूर लिखना क्योंकि आम आदमी की ज़िंदगी का इससे अच्छा और सच्चा चित्र खिंचते मैने नही देखा।
अनिल भाई , इस तरह के ख्वाब को पूरा होते कम ही देखा जाता है । पर स्थिति अब कुछ परिवर्तित जरूर हो रही है ।
सच लिखा है ...बाप के साथ साथ माँ को भी चप्पल घिसनी पड़ती है आजकल ...तब भी ख्वाब पूरे नहीं हो पाते ...
अनिल भाई बहुत ही मार्मिक रुप से लिखी है यह पोस्ट। मेरे जैसा तो भावुक हो जाता है यह सब पढकर। मगर फिर भी कहूँगा कि यह सच्चाई लिख दी आपने। ख्वाब कभी टूटा नही करते बस फर्क इतना होता है कि कहीं ओर जाकर पूरे हो जाते है। और हाँ प्लीज इस शब्द चित्र को मुझे मेल कर दें समय मिलने पर।
Bahut khoob dost...
U write a truth in so simple way and tide words in a rope, it never looks to imagenary...
Keep it up....
Anuj
mitr Anil, vakai jaise tumane apane man ke vicharaon ko ek film ki tarah shoot karke prastut kar diya hai. Dost ye aaj bhi ek kadavi sachchai hai jo har madhyamvargiy aadami jhelata hai lekin haalat thoda sudhar jaroor gaye hain.
Jai Ho..
us pita ka dard dil ko chu gaya,marmik lekh badhai
आपके कमेन्ट के लिए शुक्रिया दोस्तों
बहुत मार्मिक पोस्ट है ... उम्र इतनी कम और अनुभव इतने ... बहुत बहुत शुभकामनाएं।
गरीब के पास सपने देखने के सिवा बचा ही क्या है!
ज़िन्दगी की सचाई है इस बात में........
सपने अक्सर टूटते हैं, घायल होते हैं, फिर भी इंसान सपने देखता है
अच्छी पोस्ट
Behad marmik post...jari rakhen !!
really good
मर्मस्पर्शी शब्दचित्र
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