और इस तरह उनकी प्रेम कहानी शुरू हुई
>> 17 March 2009
नवम्बर की रात के करीब दस बज रहे थे ....ठंडी हवा बह रही थी ...आज रागिनी छुपते छुपाते सिद्धांत से मिलने आई थी ....लेकिन एक डर को साथ लेकर कि कही किसी परिचित की निगाह उस पर ना पड़ जाए ... आज रागिनी किसी तरह टहलने के बहाने से घर से निकली थी .... सिद्धांत पार्क की एक बैंच पर बैठ कर रागिनी का इंतज़ार कर रहा था...
बैंच के पास आकर
सॉरी सिद्धांत बड़ी मुश्किल से आई हूँ । रागिनी ने कहा
चलो आयी तो सही । मुस्कुराते हुए सिद्धांत ने कहा
वैसे अपनी माँ से कैसे बचकर आ गयीं । फ़िर सिद्धांत ने कहा
बस ये सब मत पूंछो जनाब । रागिनी बोली
अच्छा जी ये बताइये कि आज कैसे याद किया ? रागिनी ने कहा
वाह जी वाह ! पिछले दस दिनों से इंस्टिट्यूट बंद होने के कारण तुमसे मिलना नही हो पा रहा और आप पुँछ रही हैं कि याद कैसे किया ? सिद्धांत ने बैंच से उठते हुए कहा
हम्म तो ये बात है । लेकिन इंस्टिट्यूट तो अगले एक सप्ताह तक बंद है । रागिनी बोली
रागिनी और सिद्धांत एक साथ एम सी ए कर रहे हैं
ये मुलाक़ात शुरू होती है एक बस से । हुआ यूँ कि सिद्धांत चंडीगढ़ से अपने दोस्त की शादी से लौट रहा था और रागिनी अपनी नानी के यहाँ से जो चंडीगढ़ में रहती हैं । चंडीगढ़ से दिल्ली जाने वाली बस में रागिनी पहले से बैठी थी । सिद्धांत बस में प्रवेश करता है और रागिनी के पास वाली सीट पर आकर बैठ जाता है ।
आप पीछे की सीट पर भी तो बैठ सकते हैं । रागिनी ने कहा
क्यों आप मुझे पीछे ही बिठाना चाहती हैं । सिद्धांत बोला
जी ऐसा तो मैंने कुछ नही कहा । रागिनी बोली
देखिये बैठने को तो में कहीं भी बैठ सकता हूँ लेकिन पीछे बैठने का मुझे कोई ख़ास कारण नज़र नही आता । जिससे कि मैं पीछे ही बैठूं । सिद्धांत ने कहा
कुछ देर तक दोनों खामोश होकर बैठ जाते हैं । अभी बस कुछ सात आठ किलोमीटर चली होगी । अन्य यात्रियों की टिकट बनाता हुआ कंडक्टर पास आता है ।
टिकट कहाँ की बनानी है ? कंडक्टर रागिनी से पूँछता है
दिल्ली की रागिनी जवाब देती है ।
टिकट काटकर रागिनी को देते हुए । हाँ जी मिस्टर आपकी कहाँ की बनेगी ? सिद्धांत से पूँछता है
जी दिल्ली की बना दीजिये कहते हुए जैसे ही सिद्धांत ने पर्स निकालने के लिए जेब में हाँथ डाला तो पता चला जेब में तो पर्स है ही नही । होता कैसे सिद्धांत को भूलने की बहुत बुरी बीमारी जो थी । जनाब आज सुबह नहाते वक़्त पर्स हाथ में लेकर दोस्तों से बातें करते रहे और चलते समय पर्स मेज पर ही रखा भूल आए ।
कंडक्टर : क्या हुआ ?
रहने दीजिये में पर्स घर पर ही भूल आया । सिद्धांत बोला
रागिनी थोडी सी मुस्कुरायी ।
मुझे आगे के किसी चौराहे पर उतार दीजिये । सिद्धांत ने कहा
पर बस शहर से काफ़ी दूर निकल आई है । कंडक्टर बोला
कोई नही अब निकल आयी तो निकल ही आयी । मैं वापस पैदल चला जाऊंगा । सिद्धांत बोला
आप बैठे रहिये मैं किराया दिए देती हूँ । रागिनी बोली
जी शुक्रिया , रहने दीजिये । सिद्धांत ने कहा
अरे अगर मैं आपकी जगह होती तब आप क्या करते ? रागिनी बोली
क्या पता ? इस समय मैं उस बात को कैसे बता सकता हूँ । सिद्धांत मुस्कुराते हुए बोला
रागिनी : क्या मतलब ?
सिद्धांत : कुछ नही
रागिनी सिद्धांत का किराया दे देती है ।
आप कब क्या बोलते हैं कुछ समझ नही आता । रागिनी ने कहा
मैं ऐसा ही हूँ । सिद्धांत बोला
कैसा भुलक्कड़ ? रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा
आप ये भी कह सकती हैं । सिद्धांत बोला
मतलब आप भुलक्कड़ के साथ कुछ और भी हैं । रागिनी ने मुस्कुराते हुए कहा
हर इंसान मैं बहुत कुछ होता है । सही-ग़लत , अच्छा-बुरा , ईमानदारी-बेईमानी , पाने की चाहत, खोने का दुःख , अच्छी आदतें और बुरी आदतें । सिद्धांत बोला
आपकी बातें उफ़ । रागिनी बोली
मैडम सच तो यही सब है और इन सबके साथ और भी बहुत कुछ । सिद्धांत ने कहा
अच्छा और वो बहुत कुछ क्या है ? रागिनी बोली
मैडम वक्त के साथ-साथ और धीरे-धीरे बहुत कुछ जानेंगी आप । सिद्धांत ने कहा
हो सकता है कि आप सब कुछ ना जान पाये । हो सकता है किसी और की नज़र मैं जो सही हो वो आपको सही
ना लगे । हो सकता है कि आपकी आज की सोच आपको कल बेमानी लगे । सिद्धांत ने कहा
सिद्धांत : वैसे शुक्रिया
रागिनी : किस बात के लिए
किसी बात के लिए नही बल्कि टिकट के लिए शुक्रिया । सिद्धांत ने कहा
ओह ! अच्छा कहती हुई रागिनी मुस्कुरा दी ।
आप क्या करते हैं ? रागिनी ने पूँछा
कुछ नही करता । सिद्धांत बोला
रागिनी : मतलब
सिद्धांत : मतलब यही कि फिलहाल कुछ नही करता
तो पहले क्या करते थे ? रागिनी ने पूँछा
मैंने कहा न कि कुछ नही करता । सिद्धांत बोला
कुछ बात छुपा रहे हैं आप ? रागिनी बोली
नही ऐसी कोई बात नही है । सिद्धांत ने कहा
वैसे कुछ बातें सिर्फ़ जान पहचान वालों को ही बताई जाती हैं । रागिनी बोली
नही , जान पहचान होना और न होना कुछ ख़ास मायने नही रखते किसी को कुछ भी बताने के लिए । सिद्धांत बोला
पहले इंजीनियरिंग करता था । फिर सिद्धांत बोला
ये था कुछ समझ नही आया । रागिनी बोली
मतलब यही कि मैंने वो पूरी नही की । सिद्धांत बोला
क्यों पूरी नही की ? रागिनी ने पूँछा
बस यूँ ही । सिद्धांत बोला
जैसे ही बस दिल्ली पहुँचने को हुई सिद्धांत ने रागिनी से पूँछा
आपके घर का पता क्या है ?
क्यों ? रागिनी थोड़ा झिझकते हुए बोली
अरे आप तो घबरा रही हैं । आपके किराए के पैसे भी तो वापस करने हैं । सिद्धांत ने कहा
रागिनी : ओह !
सिद्धांत : आप क्या समझ रही थी ?
रागिनी : कुछ नही
बस के रुकने पर दोनों बस से उतरते हैं ।
आपको किधर जाना है ? रागिनी ने सिद्धांत से पूँछा
जब सिद्धांत अपना पता बताता है तो रागिनी बोलती है कि अरे वहीँ पास मैं ही तो मेरा घर भी है ।
अच्छा चलो किराये के पैसे देने दूर नही जाना पड़ेगा । सिद्धांत बोला
आप भी न बस । रागिनी बोली
सिद्धांत अपना छोटा सा बैग उठा कर चल देता है ।
कहाँ चल दिये ? पैदल जाने का इरादा है क्या ? रागिनी बोली
सिद्धांत : हाँ
ऑटो के पैसे भी वापस कर देना । रागिनी मुस्कुराते हुए बोली
फिर उसके बाद दोनों ऑटो मैं बैठकर घर की तरफ़ चल देते हैं । रागिनी का घर सिद्धांत के घर से पहले पड़ता था । रागिनी अपने घर के पास आने पर उतर जाती है और दोनों का किराया देकर जाने लगती है ।
आपका घर कहाँ है मैडम ये तो बता दीजिये । सिद्धांत ने कहा
रागिनी इशारा करके बताती है कि बस वो सामने वाला मेरा घर है । उसके बाद रागिनी को अलविदा कहकर सिद्धांत ऑटो में बैठकर अपने घर की तरफ़ चला जाता है ।
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12 comments:
अच्छी कहानी है अनिल जी...........
आपका स्टाइल बहूत खूब है
क्यों भाई कहानी ही है न ? :-D
ek mere jaise hi mere dost ki kahani :)
ये कहानी नहीं बिलकुल हकीकत लगती है! बहुत सुंदर वृत्तांत लिखा है! साधुवाद!
वाह भाई प्रेम कहानी की शुरुआत तो काफी अच्छी है.लेकिन इसके बाद का अफसाना भी तो बताओ..वैसे मुझे कहानी कम हकीकत ज्यादा लगती है.
बधाई..
अद्भुत रचना है, भावनाओं का प्रवाह गजब का है।
बहुत बढ़िया जारी रखिए..
अनुज खरे
badhiya kahani lagi mitr abhaar.
"आपके जैसे "..लगता तो है आप झूठ कह रहें हैं ..देखिये हमारा साथ समीर जी भी दे रहें हैं :-)
अरे लवली दीदी ...मेरी कहानी नहीं है ...मेरी कहानी पढ़नी है तो उसको पढ़ लीजिये "क्या ट्रेन में मिली लड़की को मुझ से प्यार था "
सचमुच ... कहानी नहीं हकीकत लग रही है यह ।
achchi kahani hai...
kahani nahii kahani ka ek chota sa hissa kahoo
kuch bhi ho aapne khoobsurat chitran kiya hai,
kahani or haqiqat mein vaise bhi jyada frq nahi hota hai..adhiktar kahani kisi haqiqat ka hi doosra roop hoti hai.
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