वो कागज़ का एक टुकडा
>> 03 March 2009
वर्ष २००४ और उस पर शादियों का दौर ...... ऐसे में अगर न्योता पानी मिल जाए तो मन प्रफुल्लित होने लगता है .....हम भी प्रफुल्लित होने लगे थे .....अपने दोस्त की बहन की शादी का कार्ड जब हमें मिला तो दिल में एक अजीब सी लहर दौड़ गयी ....कि चलो एक शादी के घर में २-३ दिन काटने को मिलेंगे .....चहल पहल ....हंसी के गुब्बारे और ना जाने क्या क्या ...आप तो समझदार हैं ही ... :)
तो भाई बस चल दिए अपना झोला तान कि भाई देखो हम एक शादी में जा रहे हैं .....ख़ुशी ख़ुशी हम बस में जा बैठ गए .....अब खुदा की मर्ज़ी हमारी बगल वाली सीट खाली थी ....बस कुछ चन्द मिनट ही चल पायी थी कि आने वाले अगले चौराहे से बस में एक लड़की ने प्रवेश किया ....लड़की निहायत ही खूबसूरत थी । उसकी उम्र करीब २०-२१ वर्ष रही होगी ... मैं शायद उस दिन बहुत खुश किस्मत था ...वैसे मेरी किस्मत साथ नही देती :) :)
लड़की मेरी बगल वाली सीट पर आकर बैठ गई ....मैं उन दिनों थोड़ा अकडू हुआ करता था.....अकड़ दिखाने से पहले ये भी नहीं देखता था कि सामने कोई लड़का है या कोई खूबसूरत लड़की ..... हाँ लड़के के केस में एक आध बार रह भी जाऊँ ...ये सोच कि ये कहीं मुझ में दो चार धर ना दे
और ये भी नही जानता था कि लड़की को खुश रखने के लिए उसकी बात मान लेनी चाहिए । लड़की ने कहा कि मुझे खिड़की वाली सीट पर बैठ जाने दीजिये प्लीज़ ...... क्यूँ मैं तो पहले से यहाँ बैठा हूँ ....मैं बेवकूफ कहीं का ये सबसे बड़ी गलती कर बैठा उस समय ...खैर लड़की थोडी सी समझदार थी ...वो खामोश हो गई ....और एक अजीब सी निगाह से मुझे देखने लगी
करीब आधा घंटे बाद उसने पूँछा आप कहाँ जा रहे हैं ....मैंने बताया मथुरा ...और आप ? मैंने पूँछा...मैं भी मथुरा ही जा रही हूँ । फ़िर मैंने कुछ ज्यादा दिलचस्पी नही दिखाई तो लड़की भी चुप हो गई ...उन दिनों हम शायद रहना है तेरे दिल में के आर. माधवन की तरह ....(लड़की ...नौट इंट्रेस्टेड) टाइप हुआ करते थे ......बस नाम पूँछने तक बात पहुँची ....इन बातों में पता चला कि उसका नाम शालिनी था.......खैर पूरे रास्ते फ़िर खामोशी में सफर कटा ....
मैं अपने दोस्त के घर पहुँच गया और शादी कि तैयारी मैं जुट गया ...मेरे दोस्त की बहन भी मुझे अच्छी तरह जानती थी और उनका पूरा परिवार मुझे अच्छे और मिलनसार लोगों में शुमार करते थे । शाम को मेरे दोस्त की बहन मेरे पास आई और बोली भइया चलो में आपको अपनी सहेलियों से मिलाती हूँ .... जब वो मुझे उनके पास ले गई और जब मैं वहाँ गया तो सामने ढेर सारी लड़कियों एक समूह में बैठी हुई थी .....पास जाकर जब उन लोगों से मिलने की बारी आई तो सामने उस लड़की को भी पाकर मैं एक मिनट के लिए तो मैं आश्चर्य में पड़ गया .....कुछ न बोला जाए मुझ से .....
ये हैं हमारे भईया जिनकी मैं तारीफ किया करती थी ...ये बहुत अच्छे हैं वगैरह वगैरह ....और मैं उसी लड़की को देख कर बस वाली घटना याद कर रहा था कि किस तरह मैंने शालिनी को कोने वाली सीट के लिए मना कर दिया था और मेरा व्यवहार अच्छा नही था .....खैर शालिनी ने कुछ नही कहा और चुप से हाथ मिला लिया ...... बाकी सभी लड़कियाँ तरह तरह से अपनी बातें बता रही थी और मैं चुप से सुन रहा था ....उस समय मैं बिलकुल पत्थर सा हो गया था .....फ़िर शालिनी ने कहा आप खड़े क्यूँ हैं बैठिये न और वो खड़ी हो गई और मुझे अपनी कुर्सी दे दी .....मैं चुप चाप बैठ तो गया लेकिन मन ही मन उसी घटना को लेकर आत्म ग्लानि महसूस कर रहा था ।
शालिनी शादी के दौरान मुझे देख रही थी और मैं वहाँ से उठ कर अपने दोस्त के पास चला गया और मन ही मन सोच रहा था कि शालिनी से माफ़ी कैसे माँगू ....मैं खाने के समय खाने की प्लेट में खाना लेकर शालिनी के पास गया और शालिनी को देते हुए बोला कि आप खाना नही खा रही ...लीजिये खाइए ना ........
शालिनी ने प्लेट हाथ में पकड़ ली और थोडी सी मुस्कुरा दी ....जब उसके पास से लड़कियों का झुंड हटा तो मैंने बोला शालिनी आई ऍम सॉरी ...उसी घटना के लिए मुझे माफ़ कर दीजिये ......शालिनी मुस्कुरा दी और बोली ... मैं तो वो कब की भूल चुकी और हर इंसान का जब किसी समय मूड अच्छा नही होता तो वो ऐसा कर देता है ....आप खामखाँ इतने परेशान न होइए ...मैं हौले से मुस्कुरा दिया ....
उसकी ये शालीनता और सभ्य व्यवहार देख कर प्रभावित हो गया ...वो बोली आप भी लीजिये न खाइए और मुझे अपने साथ खाने तक ले गई और प्लेट लाकर फ़िर मैं भी खाने लगा । हमारे मध्य पढाई और भविष्य की बातें हुई और कुछ देर बाद मेरे दोस्त ने मुझे बुला लिया ....
करीब दो घंटे बाद शालिनी चल दी वो मथुरा की ही रहने वाली थी ....मैं उसके पास गया वह अपनी दूसरी सहेलियों के साथ थी ...हमारी बात नही हो सकी ....चलते समय उसने एक कागज़ का टुकडा मेरे हाथ में दिया ...और अपनी सहेलियों के साथ चली गई .... कुछ देर में यूँ ही वहाँ खड़ा रहा ...पता नही मैं कहाँ गुम हो गया था और जब होश मैं आया तो अपने हाथ मैं वो कागज़ का टुकडा देखा ...उसमे लिखा था आप मुझे अच्छे लगे ...जैसा मेरी सहेली ने बताया था बिल्कुल वैसे ही ......मुझे ख़ुशी होगी अगर मैं आपकी दोस्त बन सकूँ ........ और अपने घर का नंबर भी लिख रखा था .......वो कागज़ का टुकडा मैंने अपनी जेब में रख लिया ....उस पल दिल को ख़ुशी मिली और एक सबक भी कि चाहे जो भी हो किसी से गलत व्यवहार नहीं करना चाहिए .....
जब शादी से लौट कर घर पहुँचा ....और मैं सच कहों तो घर पहुंचकर उस कागज़ के टुकड़े को भूल ही गया था .....माँ ने अगली सुबह मेरे कपडे धो दिए .....और उसमे वो कागज़ का टुकडा भी धुल गया .....जब कॉलेज से घर लौटा तो माँ ने बताया कि कोई कागज़ कपडों के साथ धुल गया है .... याद आया अरे ये तो वही कागज़ है ...भाग कर देखा तो उसमें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था ......
फिर जब तब उस कागज़ के टुकड़े को याद करता और शादी में हुई शालिनी से मुलाकात को .....वो कागज़ का टुकडा एक मीठी याद छोड़ गया और जिंदगी की एक सीख भी ....
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9 comments:
प्यार, कागज और उसका एहसास। दिलचस्प।
सुंदर लेखन। हाँ कागज के धुल जाने का अफ़सोस हमें भी हुआ।
कुछ फिल्मी सी लगी यह पोस्ट। पर पढकर हमेशा की तरह आनंद आ गया।
उफ दिलचस्प, बिल्कुल कड़ी-दर कड़ी जोड़े जोड़ती पोस्ट। वैसे ही जैसे बॉलीवुड की फिल्म। रूमानी सा खयाल। आप पता नहीं कैसे मथुरा तक खामोश सफर कर गए। मैं होता तो सारी बातों बस में ही फाइनल कर दी होतीं। खैर अच्छा लगा। बांध कर रखा। कुछ अंदाज पहले से ही लग गए कि आगे क्या होने वाला है।
अनिल जी
बहूत सुंदर तरीके से बाँधा है आपने पूरी कहानी को, आपका अंदाज़ अच्छा है लिखने का...... पढ़ कर मज़ा आया.
भईये हो सकता है उस टुकडे पर रोगं नम्बर लिखा हो..
लाईटर साईड ओफ़ द स्टोरी..
सुन्दर लिखा है..लिखते रहिये
अच्छा लिखा आपने ..
रेल और बस के सफर को अधिक सीरियस नहीं लेना चाहिए। ये मरघट के क्षणिक वैराग्य की तरह है- सफर खतम, बात खतम!!:)
बिल्कुल फिलम की माफिक लगा लेकिन दूसरों के साथ अच्छा व्यवहार करने की सीख अच्छी है।
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