बेटा अब तो बस यादों में बसती हैं वो पहले की बातें
>> 05 March 2009
मुझे याद है कॉलोनी की वो दीवार जिस पर सफ़ेद चूने से तीन बड़ी बड़ी लाइने बना हम क्रिकेट खेला करते थे ..... और वो कॉलोनी का सरकारी हैडपम्प जिस पर लाइन लगा अपनी बारी का इंतज़ार किया करते थे .....और वो हंसते खिलखिलाते चेहरे ....बच्चों के, बड़ों के ...बचपन के साथियों के
ना जाने क्यों इस बार आगरा पर उतर ऑटो में बैठने ही वाला था कि ....ना जाने क्यों जहाँ बचपन बिताया वो पुलिस कॉलोनी याद आ गयी ...जिसे पिताजी का तबादला हो जाने पर हमने दस साल पहले छोड़ दिया था .....अब दिल किया तो रहा ना गया ....दिल की बात मानी और पुलिस कॉलोनी के लिए ऑटो में बैठ चल दिया ...ये सोच कि अपने कोई पुराने वाले आंटी-अंकल मिल जायेंगे ...उनसे मिल खुश हो लेंगे
जब कॉलोनी पहुंचे तो दूर ही कोने में चूने से बनी वो तीन लाइने वैसी ही बनी दिखाई दीं .... हाँ वक़्त और मौसमी बारिश ने उन्हें धुंधला जरूर कर दिया था ...एक पल को लगा कि बचपन का साथी वहाँ नेकर पहने हुए बल्ला लिए हुए खडा है .....मुझे बुला रहा है ....आ बेटिंग कर ...अब तेरी बारी है ......उन लाइनों को देख दिल खुश हो गया
जैसे ही कॉलोनी में प्रवेश किया ...नई आंटी जी दिखाई दीं ...ये वही आंटी जी थी जो हमारे समय में नई नई शादी कर अंकल जी के साथ आई थीं ..... और हम सब लोग उन्हें नई आंटी कह कर बुलाते थे ...तब से उनका नाम नई आंटी जी पड़ गया था
हमें देखते ही उन्होंने हमें पहचान लिया ...उनके चेहरे पर साफ़ ख़ुशी झलक रही थी ....हमें बिठाया, चाय, पानी, खाना-पीना सब कराया ....पर इतने सब बैठ कर दिल में एक बात कचोट रही थी ...एक सवाल मन में आया ...और हमने आंटी जी से पुँछ ही लिया ....आंटी जी ये कॉलोनी सूनी सूनी , उजड़ी उजड़ी क्यों दिखती है ...क्या बात है ...कहाँ गए सब के सब .....आंटी बोली अरे सब घर में होंगे ....और बेटा अब वो दिन कहाँ रहे जब पुराने लोग रहा करते थे ....धीरे धीरे सभी लोगों का तबादला होता गया और नए लोग आते गए ...पर अब वो प्यार नहीं बसता .....सब खुद तक सीमित हो गए हैं अब ....या कोई किसी ख़ास से ही बात करता है ...या अपनी जात या क्षेत्र वाले से ज्यादा घुलता मिलता है .....अब पहले जैसी बातें नहीं रही
नई आंटी जी के जो बच्चे हमारे सामने पैदा हुए थे अब वो १६-१७ साल के हो गए थे ....कहने लगे भईया अब यहाँ कोई पहले जैसा नहीं है .....ना कोई पतंग उडाता , न कोई बच्चो के साथ हर शाम क्रिकेट खेलता , ना लाइट जाने पर कोई अन्ताक्षरी खेलता ...ना चक्कन पौ ...सब घर में घुसे रहते हैं .....ज्यादातर के मम्मी पापा निकलने नहीं देते ..... कभी कबार खेल लें तो खेल लें थोडा बहुत
आंटी बोली बेटा तुम्हारी वो सब आंटी धीरे धीरे चली गयी .....मैंने कहा वो जो जिनके घर गेंद चली जाती थी और रख लेती थीं ...और अगले दिन बच्चो के सॉरी बोलने पर वापस दे देती थीं ...जिनके खिड़कियों के शेषे हर महीने हम लोगों कि गेंद से टूट जाते थे ....और वो आंटी जो स्वेटर बुनने में उस्ताद थी .....जिनके घर पर सभी आंटी लोग इकट्ठी हो जाया करती थी ..... और एक दूसरे से गप्पे मारने के बहाने ढूना करती थी ..... वो आंटी जिनके कोई बच्चा नहीं था ...वो कॉलोनी के हर बच्चे का ख्याल रखती थी .....सबको कितना प्यार करती थीं ......आंटी बोली ...बेटा सब चली गयी
बेटा अब ना तो कोई किसी बच्चे के जन्म दिन पर पूरी कॉलोनी इकट्ठी करता और न ही कोई स्वेटर के बहाने किसी के घर जाता .....अब ना कोई किसी के बीमार बच्चे को खुद अपने स्कूटर पर बिठा डॉक्टर तक ले जाता .....और ना ही किसी बच्चे को गलत काम करते देख कोई भी अंकल लोग पहले की तरह किसी बच्चे को डांट सकते .....अब तो लड़ाई हो जायेगी अगर किसी ने धोके से भी ऐसा कर दिया तो ....
अरे भैया याद है वो अंकल जिनको जाते देख सब बच्चे कहते थे 'चश्मुद्दीन बजाये बीन घडी में बज गए साढे तीन ' ...वो बिलकुल बुरा नहीं मानते थे ...और बच्चो संग आकर क्रिकेट भी खेलने लगते थे .... वो भी चले गए ...वो आंटी जो ईद पर सबको सिवैया खिलाती थी .... और कभी भी कोई भी बच्चा किसी के यहाँ भी मन करने पर खाना खा आया करता था .....अब बिलकुल वैसा नहीं रहा ..........
आंटी बोली ...सब बदल गया है .....बच्चे टीवी के ढेर सारे चैनल में लगे रहते हैं .....आंटी अंकल लोग अपने अंहकार , मैं बाकी से अलग और बड़ा हूँ में जीते हैं ...यही कहानी हो गयी है बेटा .........
बेटा अब तो बस यादों में बसती हैं पहले की बातें .....
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14 comments:
शायद हर जनरेशन के साथ यही होता है कि अब तो बस यादों में बसती है पहले वाली बात-परिवर्तन संसार का नियम है. आगे बढ़ो, वीर...हमने भी यही अहसासा था और हमारे पुरखों ने भी.
बढ़िया भावपूर्ण अभिव्यक्ति . धन्यवाद.
शायद यह हर जगह की कहानी है।
bahut achhi yaadein rahi.
आपने सही लिखा। समय-समय की बात है।
इसी को तो वक़्त की रफ़्तार कहते हैं..........
अब कहाँ वो गुज़ारा ज़माना, बीती बातें,आप का अंदाज खूब है
यह आज का दर्द है,जो गहराता जा रहा है......
अब न वो याद न उस याद की बातें बाकी
आग यूं दिल में लगी कुछ न रहा कुछ न बचा...
यही है वो भूली दास्तां...
सही है ... कहीं भी अब पुरानी बातें न रहीं ।
मुझे तो डर लगता है कि अब के बच्चों के पास तो ये यादे भी नही रहेंगी। तब वो कैसे बितायेंगे अपने दिन?
बचपन के दिन भी क्या दिन थे....उड़ते फिरते तितली बन...
बचपन के दिन याद दिलाती पोस्ट.
नीरज
टूशन एक्स्सम के कौन खेलेगा भाई....हमें तो पार्को में अब बच्चे ही नहीं दिखते है
यादों की गली!
बेटा अब तो बस यादों में बसती हैं पहले की बातें।
सच कह दिया जी।
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