ऐ गमे जिंदगी
>> 25 March 2009
जुस्तजू जो की थी कभी
उसको न पाया तो क्या हुआ
आरजू एक ही नही है
ज़माने में जीने के लिए काफी
वो जो कहते हैं जीना मुमकिन नही है
उस तमन्ना के बिना
भूल जाते हैं वो शख्स
कि तमन्नाओं की गठरी अभी खुली नही
वो जो चाहत जो पूरी होने को बाक़ी हैं
अभी की नही
ठोकरे तो ज़माने का दस्तूर है
जीना जो पड़े बिना गिरे
तो क्या जीना
गिरने के बिना
उठने का मज़ा फिर कैसा
पतझड़ जो न आये तो
फिर फूलों का गुलसिताँ कैसा
देख लेता है दुनिया को यहाँ
हर कोई किसी न किसी पल
पर दुनिया नही है जो सिखाती है
हम खुद ही बनाते हैं
जहाँ रिश्तों का
टूट जाते हैं जो रिश्ते तो क्या
बहाना एक और भी है जीने का
उन पलों को समेट कर
जी लेते हैं लोग फिर भी
गम सताने का फिर बहाना कैसा
एक तुम ही नही हो अकेले
जिसने देख ली दुनिया
गम और भी हैं जहाँ में
जो मिले हैं लोगो को
फिर अपना गम बड़ा बताने का
बहाना कैसा
15 comments:
fir apna gam bada batane ka bahaan kaisa
....kya khoob kaha hai
अनिल जी, बहुत ही भावपूर्ण लिखते हैं आप..बड़ा सुखद लगता है आपका लिखा पढना...
परन्तु एक बात कहूँ,कृपया बुरा न मानियेगा...आजतक आपका लिखा जितना भी पढ़ा है,मुझे लगता है कवितायेँ लिखते समय आप थोडा सा समय और यदि उसे दे दें तो उन सुन्दर भावों को और भी सुन्दर और प्रभावी ढंग से अभिव्यक्ति दे सकते हैं आप...
इस कविता में भी भाव इतने हृदयस्पर्शी और मनोहारी हैं कि इन्हें और थोडी सी मेहनत कर अद्वितीय बना सकते हैं...
मुझे आपमें अपार संभावनाएं दिखती हैं और यह मेरा कर्तब्य लगता है कि आपको और प्रभावशाली लिखने को प्रेरित करूँ....
कृपया मेरी बातों को अन्यथा न लें.
रंजना जी मैं आपकी कही हुई बातों को प्रेरणा समझता हूँ ....आप बड़ी हैं उम्र में भी और अनुभव में भी ....चाहे वो जिंदगी की बात हो या साहित्य की ....मैं आगे से सदैव आपकी कही हुई बात का ख्याल रखूँगा ...और पूरी कोशिश करूँगा कि सर्वश्रेष्ठ दे सकूं ...
शुक्रिया आपके इस कीमती सुझाव के लिए
ggod luck, keep it up ,narayan narayan
बहुत ही भावपूर्ण रचना . धन्यवाद.
ठोकरें तो जमाने का दस्तूर है........
सही कहा, गिरे नहीं तो उठने का मज़ा कैसे लेंगे, पतझर न आये तो बहार का मजा कैसे लेंगे. खूबसूरत है रचना, बहुत सुन्दर
बहुत नायाब भाव और रचना, शुभकामनाएं.
रामराम.
सुंदर अभिव्यक्ति!
bhut acha pryas hai
bhut achha pryas hai
क्या बात आज अलग ही मिजाज। पर अच्छा है।
वो जो कहते हैं जीना मुमकिन नही है
उस तमन्ना के बिना
भूल जाते हैं वो शख्स
कि तमन्नाओं की गठरी अभी खुली नही
वो जो चाहत जो पूरी होने को बाक़ी हैं
अभी की नही
बहुत उम्दा।
ठोकरे तो ज़माने का दस्तूर है
जीना जो पड़े बिना गिरे
तो क्या जीना
abhi to aur dekhnaa hai jmanaa adard
sundar
एक अच्छी भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत बढिया लिखा है आपने ... अच्छा लगा पढना।
एक तुम ही नही हो अकेले
जिसने देख ली दुनिया
गम और भी हैं जहाँ में
जो मिले हैं लोगो को
फिर अपना गम बड़ा बताने का
बहाना कैसा
ye panktiyan achi lagin
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