अनजान से रिश्ते और रूमानी एहसास
>> 24 March 2009
अल्फाज़ जो रूमानियत की ओस लिए हुए हैं .....और वो अल्फाज़ जब रूमानियत की बूँद बनकर नन्ही नन्ही इस दिल पर बरसती हैं ...तो ऐसा लगता है मानो नंगे पैर घास पर ओस की बूँदों ने छू लिया हो .....सच उस पल एक अजीब सुकून मिलता है इस रूह को
और वो अल्फाज़ रूह तक उतर जाते हैं ....कभी बिना बोले तो कभी उन अल्फाजों की भीनी खुशबू जहन में बस जाती है ....और देती है अन्जान रिश्तों को एक डोर ....ना जाने उस डोर का एक सिरा इस दिल तक कैसे पहुँच जाता है और फिर खींचता है उस अन्जान रिश्ते की ओर
एहसास के लिए ये रिश्ता उसकी तरह है जब ट्रेन की सीट पर बैठे हम सुकून फरमाने की जिद कर रहे हों पर सुकून हमसे कोसों दूर हो ....तब ऐसे में वो कोई अन्जान सी ४ साल की बच्ची अपनी भोली सी मुस्कान से दिल को राहत पहुँचा जाती है ...सच मानो उससे हमारा कोई रिश्ता ना होते हुए भी हम उससे जुड़ जाते हैं
और जब वो अपनी मासूम सी बातों का पिटारा खोलती है तो किसी जादूगर से कम नहीं होती ....उसकी एक एक बात दिल के तार छेड़ देती है .....दिल करता है हम उस प्यारी सी बच्ची पर सारा प्यार लुटा दें ....और उससे हम एक अन्जान सा रिश्ता जोड़ लेते हैं
वो रिश्ता जिसे बनाने से पहले हम कुछ सोचते नहीं....वो रिश्ता जिसका कोई नाम नहीं होता ....हम उससे कोई उम्मीद नहीं लगाते ...बस हम अपना सारा प्यार उडेल देना चाहते हैं .....और जब वो मासूम सी बच्ची इधर से उधर अपनी प्यारी सी हरकतें करती है ...ढेर सारी बातें बनाती है ....तो दिल उस मयूर की तरह नाचने लगता है ....जो दीन दुनिया से बेखबर उमंग में बेखौफ नाचता है
और उस ट्रेन के सफ़र के दौरान उस अन्जान बच्ची से एक अन्जान रिश्ता बना लेते हैं ...जिसमे ना छल होता , ना कपट, ना कोई आस, ना भय, ना उससे कोई उम्मीद .....हम सिर्फ देना चाहते हैं ...लेना कुछ नहीं
एक प्रेमी-प्रेमिका के रिश्ते से भी अधिक पवित्र जान पड़ता है वो अन्जान रिश्ता उस पल ...ऐसा अन्जान सा रिश्ता जो बिना बोले भी अपनी रूमानियत की बूँदों से रूह को भिगो जाता है ....और उस पल हम रूमानी हो जाते हैं
सच मानो तो अन्जान से रिश्ते ऐसे ही होते हैं ....जिनमें ना कोई बंदिशें होती, ना पा लेने की आरजू, ना कोई प्रस्ताव....बस वो अन्जान रिश्ता उस पल हम कायम कर लेते हैं ....वो ढेर सारी उमंग लिए होता है ...ढेर सारा प्यार का एहसास लिए ....उसमें उसे प्रेमिका समझ झूठ बोलने की जरूरत महसूस नहीं होती ....बस हम खो जाते हैं उस अन्जान से रिश्ते की दुनिया में
जब हम कभी फिसल रहे हों और कोई बुजुर्ग पीछे से आकर संभाल ले ...फिर उसका कहना संभल कर चलो ...एक अन्जान से रिश्ते की मिठास ही तो होती है ....तब वो हमसे अगर दो बातें भी कह देता है तो हम ख़ुशी ख़ुशी सुन लेते हैं ....
जब पास पैसे तो हों पर सिगरेट ना हो ...सिगरेट की तलब हो पर कोई चारा ना हो उसे मिटाने का ....तब एक अन्जान द्वारा ऑफर की हुई वो सिगरेट और उसके वो कश जो उसके साथ बारी बारी से लगाए हों ...एक अन्जान रा रिश्ता जोड़ देते हैं
ऐसे अन्जान से रिश्तों का कोई दायरा नहीं होता ...ना शुरुआत और ना ही अंत ....कोई बंदिश नहीं होती ...उस ओर से कोई फरमाइश नहीं होती ....होती है तो बस उस अन्जान से रिश्ते की मीठी सी भीनी भीनी खुशबू जो उसके चले जाने पर भी हमे उस पल तक महकाती रहती है ...जब तक हम उस अन्जान से रिश्ते से जुड़े रहते हैं
अल्फाज़ ...बोले या बिना बोले ....जिनकी रूमानियत की बूँदें अभी अभी अपना असर छोड़ कर गयी ...दिल में मीठे एहसास का शहद इकठ्ठा कर जाती हैं ...और हम भी यदा कदा उस दिल को किसी पर उडेल देते हैं .....उस पल वो अन्जान से रिश्ते की डोर के दूसरी ओर का शख्स भीग जाता है ....
सच ही तो है ये अन्जान से मीठे रिश्ते कहीं भी , कभी भी जुड़ जाते हैं ...दिख जाते हैं ......और हमें रूमानियत का एहसास करा जाते हैं ...उस पल हम रूमानी हो जाते हैं
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18 comments:
बहुत ही खूबसूरत पोस्ट...दिल में गहरा असर डालती हुई...सच कहा ये अनजान रिश्ते जिंदगी में प्राण वायु की तरह आते हैं और हमें जीने का मतलब समझा जाते हैं....आपने बहुत अच्छे शब्द प्रयोग से इस रचना को इतना प्रभावशाली बना दिया है की भुलाये नहीं भूलती...वाह...
नीरज
क्या बात है अनिल जी इस बार अंजान से रिश्तों का काफ़ी ज़िक्र है...?? चलिए ये अंजान रिश्ते आपको मुबारक हों....!!
रूमानियत बिखेर दी हर तरफ अनिल भाई..
अनिल भाई आपकी कलमऔर अभिव्यक्ति दोनों की धार बेहद सटीक है । जिस तरह से आपने यहां पर रिश्ते की रूमानियत को उकेरा वह अतिसुंदर लग रहा है । पढ़कर सोचना पड़ता है और बहुत शुकून मिलता है । तहे दिल से शुक्रिया ।
बहुत ही खूबसूरत पोस्ट. दिल की बात दिल तक पहुँचती हुई.
यह अलजान रिश्ते ही जिंदगी को खुश्नुमा और यादगार बनाते हैं।
bahut hi samvedanshil post...! badhai sweekar kare
आप सभी लोगों की मैं बधाई स्वीकार करता हूँ
बहुत ही सुन्दर तरीके से आपने अपने मनोभाव लिखे हैं। पढ़कर मन आनन्दित हुआ।
घुघूती बासूती
खूबसूरत अल्फ़ाजों को बडी ही खूबसूरती से उकेरा गया है. बधाई.
रामराम.
बहुत बढ़िया ..अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट
प्यार और वो भी बिना किसी कारण से किया प्यार निश्छल ही होता है, जहां प्यार में स्वार्थ न हो, वो प्यार मोहक होता है, दिल को स्निग्ध कर जाता है और बच्चों का प्यार ऐसा ही होता है
अनिल जी, बहुत बढ़िया... रिश्तों और प्यार को बड़े सुन्दर ढंग से उकेरा है आपने, बधाई स्वीकार हो साथ ही मेरे ब्लॉग पर जाने का धन्यवाद। आशा है आपके विचार मिलते रहेंगे।
Waah Kya baat kahi hai...
Aapne jis khoobsoorti se dil ki baten shabdon me dhali,wo waise hi seedhe dil me utar gayin.
Waah !!
हमें भी रुमानी कर दिया। अपने साथ अनिल भाई।
aapki abhivyakti sarahneey hai.badhaai ho.
सही कहा आपने तभी तो मैं इतने दिन ब्लोग की दुनिया से दूर रहने से सोचती रही कि कहीं कुछ खोh गया है अब मिझे पता चला कि मै ब्लोग की दुनिया से एक अन्जान रिश्ते कि तरह बन्ध गयी हूँ बहुत सुन्दर पोस्त है बधाई
मै मिला हूँ रूबरू ऐसे अहसास से .जयपुर से दिल्ली की यात्रा में .....आज से ७ साल पहले नन्ही परी जैसी थी उसकी शक्ल...आज भी मेरे डिजिटल कैमरे में जमा है अहसास ....
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