एक बेटे की अपने बाप को अनकही बातें
>> 20 March 2009
वो ख्वाब जो मैं रात को बंद आंखों से बुना करता था और सुबह होने पर समेट कर तकिये के नीचे छुपाकर रख देता था ....डरता था कि इन बुने हुए ख्वाबों को किसी की नज़र ना लग जाए ....
पर कहते हैं ना कभी कभी ख़्वाबों को संजो कर रखना उतना ही मुश्किल है जितना बंद मुट्ठी में पिघलती हुई बर्फ ....
अल्फाज़ जो किलकारियों के साथ मीठी धुन छेडा करते थे ...बाथरूम के दरवाजे के उस पार ....एक ही पल में साबुन के झाग के साथ बह गए ...
वो हाथ जिनकी गर्मी में हमेशा महसूस किया करता था ....बेफिक्र हो हसीन ख्वाब बुना करता था ....तुमने यूँ बीच रास्ते में छोड़ा कि उस पल लगा कि मुझे दिशाओं का ज्ञान भी नही और मंजिल को तलाशना है ....
माँ जो रोया करती है बंद अकेले कमरे में ....खामोशी में उसकी सिसकियाँ गूंजा करती हैं मेरे कानों में .....उस रोज़ जब माँ के बंद बक्से में तुम्हारे तह हुए कपडों के दरमियान तुम्हारी तस्वीर अचानक से सामने आ गई .....हमसे छुपाकर माँ तुम्हे आज भी चाहती है ......जिसको तुम गैर के लिए छोड़ कर चले गए ....चन्द पलों को प्यार का नाम देकर .....घर इस भगवान की मूरत का तोड़कर ....अपना नया आशियाना बनाया तुमने .... उस पल पता लगा दिल का टूटना क्या होता है ....जिंदा लाश किसे कहते हैं .....हाँ वो कोई और नहीं वो मेरी माँ है ...
जिसको एक पल में तुमने ग़मों का घोंसला बना दिया ....वो वही घर हुआ करता था जिसकी पहली ईंट तुमने माँ का हाथ पकड़ कर रखी थी .....
हँसती है वो ताकि हम ना रोयें ...कहीं उसका आंसुओं के सैलाब के साथ यूँ झूठ मूठ का हँसना उसे पागल ना बना दे ...उसकी आंखों में तुम्हारा चेहरा अभी भी साफ़ नज़र आता है .....
याद है जिस पल तुमने एक ही झटके में अपना नया आशियाना बना लिया था ...अपने स्वार्थ को प्यार का नाम देकर हमें रुसवा किया था .....कौन नहीं था ऐसा जो सरे राह हम पर ना हँसा हो ........उस पल माँ ने ख़ुद को चाहरदीवारी में कैद कर लिया था ....
जब सरे आम सब तुम्हारे किए पर हमसे राह चलते सवालात किया करते थे ....तुम्हे क्या पता उस पल कितनी बार ख़ुद को मारा है मैंने ....ज़ख्म जो कभी भर नहीं सकते ...उन जख्मों को हमेशा ताज़ा पाया है मैंने
कैसा लगता है जब अगले रोज़ खाने के लिए पास एक पैसा नहीं होता ....वजूद बिखरा पड़ा होता है .....ग़मों का समुन्दर साथ लिए जब कदम लडखडाते हैं ....हर चेहरे को ख़ुद पर हँसते हुए देखना पड़ता है ....खिल्ली उडाता हुआ दिखता है हर शख्स जब ....दिल हर पल तुम्हारे किए पर दुखता है ....
आंखों से आँसू बहना बंद होकर भी निकलना चाहते हैं ....पर आँखें सूख कर सूज चुकी होती हैं .....जब कोई उस पल सगा नहीं रहता ...कोई साथ नहीं देता .....तब बंद कमरे से माँ के टूटे हुए हौसले में उसके टूटे हुए दिल की जो आवाज़ आती है .....तुम्हे क्या पता वो कानों में कैसी लगती है ......
तुम्हे क्या पता टूटा हुआ विश्वास, टूटा हुआ दिल, टूटा हुआ हौसला, बिखरे पड़े ख्वाब ...और लडखडाते हुए क़दमों के साथ अनचाहे में भी बिना कुछ किए ख़ुद पर लगा दाग कैसा होता है ........
हाँ वो भगवान की मूरत सी मेरी माँ है ...और मैं हूँ वो जिसे हर पल ही इस बात को कहने से डर लगता है ....कि अफ़सोस तुम हो मेरे बाप .......यह कहते ही ख़ुद को उसी पल पर पहुँचा देता है जहाँ तुम हमें किसी गैर के लिए छोड़ कर चले गए .....
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28 comments:
अनिल जी
हमेशा की तरह रोचक, लगातार पढता गया. बहुत संवेदन शील लिखा है, कुछ लोग ऐसे होते हैं, जो जीवन को कोई खल समझते हैं. सफल लेखन
अनिल भाई बहुत खूब, , गजब का प्रवाह है लेखन में । बहुत अच्छे
आपकी रचनाओं में कई बार यूँ खो जाती हूँ कि कुछ कहना आसान नहीं होता....
marmsparshii bhaav.
Anil ji
aapne pichli prem kahani ko adhura hi choR diya aisa kyuN?
wo kahaani bhi poori hogi ...par man kuchh aisa tha ki ise likhe bina na rah sakaa....agli baar wo kahaani poori padhne ko mil jaayegi
मार्मिक.......
anil jee bahut achha laga padhkar ...kisi k dard ko jeena bhi ek rahat deta hai, apne dard ko sahne ki himmat milati hai.
दिल को छू गया आपका लेखन ।
bahut marmik,samvedansheel, achaa lekhan hai...padhkar achaa laga.
really very nice.. bhavon ko bahut hi sundar tareeke se vyakt kiya hai aapne..
yaar aap kamaal likhte ho mujhe khushee hotee hai aapko padh kar.
dil ko chu gya aapka lekhan
बहुत मार्मिक-दिल से उठे भाव!! काव्यात्मक गद्य की अनुभूति!!!
bahut marmik,jaise saari sawedana ek lay mein piroyi ho,khubsurat.
गजब की लेखनी, बहुत ही मार्मिक, आखों में नमी ले आये. आपसे मिलना पड़ेगा दोस्त.
दिल को छू गई आपकी सशक़्त लेखनी।
बहुत प्रभावशाली लेखन...
बहुत अच्छा लिखा है आपने दिल को छू गया
बहुत ही अच्छा और प्रभावशाली लिखा है भाई आपने निरंतर लिखते रहो
भाव प्रदर्शन से एक सशक्त लेखनी का परिचय हुआ. साधुवाद.
आप सभी का शुक्रिया ....आपको मेरा लिखा हुआ पसंद आया ...शायद थोडा बहुत उस दर्द को महसूस किया हो आपने
bhaiji aapki lekhni jaadaar hai... yah post achchi lagi
anil ji ...ye bahut achchha aur maarmik likha hai aapne..
Very Good dear
very nice
anil ...ji bahut hi sahjta se apne samajik, parivari kaur bhavnatmak kathinayio ko bataya jo ki ek vayakti ke galat faisle ke bad pariwar ko vahan karni padti hain...... :))))
VERY GOOD DEAR
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