प्यारी सी नाकाम कोशिश

>> 29 January 2009

बचपन में जब आसमान में इन्द्रधनुष देखता तो मन करता कि इन साहब के कुछ रंग चुरा लूँ और कोई खूबसूरत पेंटिंग बनाऊँ । नानी कहती अरे बुद्धू उससे भी कोई रंग चुरा सकता है भला । मैं नाहक ही पेंटिंग बनाने की कोशिश करता । मैं नादान उड़ती हुई चिड़िया देखता तो मन करता कि इसकी पेंटिंग बनाऊं । बहुत कोशिश करता पर कभी टाँग छोटी तो कभी बड़ी हो जाती । नानी खूब हँसा करती । तब मैं रूठकर दूसरे कमरे में बैठ जाता । नानी शाम तक खूब मनाती । उसकी अंतहीन कोशिश और शाम को दूध-जलेबी के साथ जब कहानी का स्वाद मिलता तो कब नानी की गोद में सो जाता पता ना चलता ।


पेंटिंग ना कर पाने का दुःख मुझे बचपन में हमेशा रहता । मेरा पसंदीदा विषय होने के बावजूद उसे में अपने हांथों में न उतार सका । नानी हमेशा कहती कि हर किसी को ईश्वर कुछ न कुछ करने के लिए जरूर देता है । सबसे जरूरी है उसकी बनायी इस रचना को समझना, उसे महसूस करना ।

बचपन गुजरा और उसके साथ धीरे-धीरे पेंटर बनने की मेरी ख्वाहिश भी गुजर गयी । बड़ा हुआ तो कुछ नयी ख्वाहिशों ने जन्म लिया । कुछ साथ रही तो कुछ ने दम तोड़ दिया ।

बी.एस सी की पढाई के दौरान मैं अपने घर पर ही गणित की ट्यूशन पढ़ाता था । तमाम बच्चे ग्रुप में मुझसे पढने आते । ज्यादातर 10 वीं, 12 वीं क्लास के बच्चे हुआ करते थे । सर जी नमस्ते, सर जी गुड मोर्निंग की आवाजें हमारी गली में सुनाई देती । आदर-सत्कार होता । बच्चे तो बच्चे, उनके माता पिता भी आदर भाव से देखते ।

उसी दौरान नानी का हमारे घर आना हुआ । जब सुबह-सुबह नानी उठी । उन्हें वही आवाजें सुनाई दी । ढेर सारे बच्चों से उनकी बातें हुई । शाम को मैं बाजार से नानी के लिये एक शौल लाया । रात को जब मैंने शौल उन्हें दी तो कहने लगीं "बड़ा हो गया है, मेरा नन्हा सा पेंटर । तुझे याद है तू बचपन में अच्छी पेंटिंग ना कर पाने से दुखी होता था ।" मैं मुस्कुरा दिया । "कहा था ना मैंने कि ईश्वर सब को कुछ ना कुछ देता है । तुझे गणित जैसे विषय में अच्छा छात्र बनाया । जिसकी बदौलत आज तुझे इन छोटे-छोटे बच्चों से आदर और प्यार मिल रहा है । दुनिया में जो सबसे ज्यादा कीमती होता है वो तुझे बिना मांगे मिल रहा है । नानी की बातें एक बार फिर मुझे बचपन में लेकर चली गयी और उन नन्हे सपनों की याद दिला गयी ।

इतने में माँ रसोई से जलेबी और दूध लेकर आ गयी । उन जलेबी और दूध के साथ नानी को पाकर एक बार फिर से नानी की गोद, बचपन की कहानियाँ और वो एक नाकाम प्यारी सी कोशिश याद आ गयी ।

16 comments:

Unknown 29 January 2009 at 02:57  

आपने कितना प्यारा लिखा है ....सचमुच बचपन के सपने बहुत प्यारे होते हैं ...आपकी नानी सही कहती हैं कि आदर और प्यार से बढ़कर कुछ नही .....आपकी प्यारी सी नाकाम कोशिश मुझे बहुत प्यारी लगी

Sunil Bhaskar 29 January 2009 at 03:02  

सचमुच इन्द्रधनुष के रंगों को देखकर मैं भी कभी कभी सोच में पढ़ जाता था .....नानी कि कहानियों कि याद दिला दी आपने ...दिल को छू गया लेख

अनिल कान्त 29 January 2009 at 03:05  

आप लोगों का शुक्रिया .....वैसे नानी कि कहानियाँ और उनकी बातें तो अब मुझे भी याद आती हैं .....अब वो हमारे बीच नही हैं .....उनकी यादें दिल में हैं

Udan Tashtari 29 January 2009 at 06:45  

बहुत ही सुन्दरता से यादों के सागर में गोता लगाया है और हमें भी बहाये ले गये. क्या क्या न याद दिला दिया. उम्दा लेखन, बधाई.

अनूप शुक्ल 29 January 2009 at 07:27  

सुन्दर चित्र है यह भी!

रवीन्द्र प्रभात 29 January 2009 at 10:39  

अत्यन्त सुंदर आलेख , भावनाओं की धरातल पर संवेदनात्मक उपस्थिति अच्छी लगी , बधाईयाँ !

Poonam Misra 29 January 2009 at 16:40  

नानी की सीख और बचपन के सपने को बड़ी सजीवता से चित्रित किया है आपने . बधाई

रंजू भाटिया 29 January 2009 at 17:13  

बहुत सुंदर प्यारी लगी यह बातें .सही कहा आपकी नानी ने कि हर किसी को ईश्वर कुछ न कुछ करने के लिए जरूर देता है ..

Smart Indian 29 January 2009 at 17:40  

नानी की बातें, गोद और प्यार, सब लाजवाब.

KK Yadav 29 January 2009 at 18:20  

Nice Post...!!
गाँधी जी की पुण्य-तिथि पर मेरी कविता "हे राम" का "शब्द सृजन की ओर" पर अवलोकन करें !आपके दो शब्द मुझे शक्ति देंगे !!!

शारदा अरोरा 29 January 2009 at 20:14  

आपका ब्लॉग बहुत अच्छा लगा , इस लेख से झुरझुरी हो उठी , जो मिला है उसे सहेज लें |
आज एक अनुसरण कर्ता ने अपना नाम मेरे ब्लॉग से हटा लिया , देखो न मुझे रोक रखना भी नहीं आया |
कोई बात नहीं सिर्फ़ यही तो सफलता की पहचान नहीं होती |
न मिटता बचपन यादों से
यही बात कहता है आप का लेख

इष्ट देव सांकृत्यायन 29 January 2009 at 22:06  

सच बचपन भी क्या अजब शै है!

विवेक सिंह 29 January 2009 at 23:17  

अत्यन्त सुंदर आलेख ! ....सचमुच बचपन के सपने बहुत प्यारे होते हैं !

निर्मला कपिला 30 January 2009 at 10:17  

sach naani dadi ke bina bachpan kaisa hota shayad tab ham bachpan ko yaad bhi na karte aaj mai nani hoon lekin apni nani ki yaad aa gayee

Puja Upadhyay 31 January 2009 at 21:19  

बहुत प्यार से संजोया है इस खूबसूरत संस्मरण को, पेंट हमेशा ब्रश से कागज पर नहीं होता, शब्दों से भी होता है..और वो पेंटिंग तो आप कर ही रहे हैं कविता में.

Dr.Bhawna Kunwar 2 February 2009 at 18:15  

Man ko chuu gaya aapka ye sansmaran..bahut hi payara....

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