मैं अपनी बात हिन्दी में कहूँगा जिसकी गरज पड़ेगी वो सुनेगा
>> 02 February 2009
मैं अपनी बात अपनी मातृ भाषा हिन्दी में कहूँगा जिसकी गरज पड़ेगी वो सुनेगा ....सुल्तानपुर (उत्तर प्रदेश) रेलवे स्टेशन पर हिन्दी से सम्बंधित कई बोर्ड लगे हुए थे .....जो कि हमारे स्वतंत्रता सैनानियों की कही हुई पंक्तियाँ थी ....
रेलवे आरक्षण खिड़की के सामने पंक्ति में खड़ा हुआ मैं यही पंक्तियाँ पढ़ रहा था ....जो कि हमारे महान स्वतंत्रता के दीवानों ने कही थी .... इन्ही पंक्तियों में खोया हुआ मेरा ध्यान अचानक से टूटा ......
यार हिन्दी में फॉर्म भर कर क्यों लेकर आते हो ..... ठीक से समझ भी नही आता ... ..आरक्षण करने वाले क्लर्क ने खिड़की पर पहुंचे पच्चास वर्षीय ताऊ से कहा ..... अरे बाबू जी ज़रा देख लेओ ...बड़ी देर से लाइन में खडों हूँ ....
जाओ पहले फॉर्म ठीक से इंग्लिश में भर के लेकर आओ ....किसी से भर वा लो ....
ध्यान टूटा ... फिर मैंने सोचा कहीं मुझे अफ़सोस तो नही हो रहा कि मैं हिन्दी में कविता लिखता हूँ .... अरे नही नही .....मन ने दिमाग को समझाया .....धैर्य रख वैसे भी ये आरक्षण करने वाला तेरी कविता सुनने के लिये नही बैठा ....
मेरी एक दोस्त बताती है कि उसकी अंग्रेजी अच्छी होने के पीछे एक वजह है ...कि वो जिस स्कूल में पढ़ती थी उसमे हार्ड एंड फास्ट रुल था कि अगर कोई बच्चा स्कूल के समय में हिन्दी बोलता हुआ पाया गया तो उसके गले में पूरे दिन "I am a fool " का बोर्ड लटका दिया जाता था .....और किसी में इतनी हिम्मत नही थी कि वो सज़ा झेल पाये .....मसलन अंग्रेजी की तो बल्ले बल्ले ......
दूर खड़ी अंग्रेजी .....सहमी सी हिन्दी की खिल्ली उड़ा रही होती होगी शायद उस दौरान ....कहती होगी देखा ....मुझ से पंगा मत लियो ...वरना जो रही सही कसर है वो भी निकाल दूँगी .....
इन स्कूल में पढ़े बच्चे गज़ब की अंग्रेजी बोलते हैं ...हाँ हिन्दी के अक्षर टेड़े मे॰ढे बनते हैं बस ..... तो क्या हुआ अगर मात्राएँ ग़लत चढ़ जाए या लगे ही ना ..... उन्हें हिन्दी सबसे खतरनाक सब्जेक्ट लगता है ....
मसलन हिन्दी उन्हें याद आती होगी उस रोचक किस्से के साथ कि फलां दिन उस लड़के या लड़की के गले में वो बोर्ड टंगा था ....हमे कितना मजा आया था ....
फिर ऐसे ही बच्चे ....किशोर ...युवा कहते हैं ...."You write in hindi ...thats very nice ....keep it up buddy " ......
फिर से मुझे सुल्तानपुर रेलवे स्टेशन पर टंगा वो बोर्ड याद आता है ....मैं अपनी बात अपनी मातृ भाषा हिन्दी में कहूँगा जिसकी गरज पड़ेगी वो सुनेगा...
18 comments:
हिन्दी को लेकर लिखी यह पोस्ट बहुत अच्छी लगी।
खाने का बैगन कुछ और तथा बताने का कुछ और होता है....रेलवे विभाग ने ये बोर्ड दूसरे लोगों के लिए टांगा है....अपने कर्मचारियों के लिए नहीं।
ae raahi tujhe aage badhna hai.....
Bahut badiya likha hai.
बहुत सुंदर ओर अपने आकाओ की भाषा ( अग्रेजी) बोलने वालो के गले मै भी एक तखती (बोर्ड) होनी चाहिये?? मै जन्म जात गुलाम हुं, ओर मेरे बच्चे भी गुलाम ही रहेगे
जिसको अपने अधिकारों के बारे में पता न हो ुसको कोई भी लतिया सकता है। इसमें आश्चर्य की क्या बात है?
मैं तो रेलवे आरक्षण का फार्म हमेशा हिन्दी में ही भरता हूँ , कभी किसी ने कुछ नहीं कहा या कहने का साहस नहीं हुआ!
mai bhi anunad ji se puri rarah sahmat hu.. kiski mazal jo humse hindi me form bhanre ke bare mai panga le...mai bhi apna har karya hindi mai hi karta hu... jai hind... jai hindi
आप सभी के विचार पढ़कर सचमुच बहुत अच्छा लग रहा है ....
हिंदी की जो दशा है,उस पर एक शानदार लेखनी,
बहुत ही बढिया
आपके हिंदी प्रेम को मेरा सलाम. मैं अंग्रेजी बोलने के खिलाफ नहीं लेकिन हिंदी से घृणा करने वालों के बारे में मेरा ख्याल है कि वो अपनी माँ को भी शायद घृणा कि नज़रों से देखते होंगे. मैं अपनी मातृभाषा हिंदी पर गर्व करता हूँ
हिन्दी को उचित कद्र देने के लिए हिन्दी पखवाडा काफ़ी नही। चीन से लेकर जापान रशिया सभी अपनी मातृभाषा का उपयोग करके ही तरक्की करते आए हें। हमें क्यों इतनी कुंठा है अपनी मातृभाषा को लेकर!
क्योंकि ज्यादातर को लगता है कि शायद वह अब इतने माडर्न हो गए हैं कि अगर वो हिन्दी बोलेंगे तो उनकी क़द्र नही होगी .....अगर अंग्रेजी बोलेंगे तो उनकी शान में चार चाँद लगेंगे
बहुत बढ़िया लिखा अनिल जी, पहले हम अग्रेजों के गुलाम थे आज अग्रेजी के गुलाम है. अगर हम किसी से हिन्दी में बात करते है और उसमे कुछ अग्रेजी के शब्द नही होते तो हम गवार समझे जाते है , न चाहते हुए भी अग्रेजी शब्दों का प्रयोग करना पड़ता है . लेकिन आप ने खुल के बोल दिया कि मैं अपनी बात अपनी मातृ भाषा हिन्दी में कहूँगा जिसकी गरज पड़ेगी वो सुनेगा...
बहुत ही सही कहा आपने..
हिन्दी दूर बंदिनी सी खादी है और अंगरेजी चाबुक लहरा रहा है........
यही है अपना देश और यही है माता की भाषा(मातृभाषा की) दुर्दशा.......बस चुपचाप देखते जाइये इसे हलाल होते हुए.
हिन्दी का यथार्थ आपने लिखा है...कई स्कूलों में फाईन भी लगता है हिन्दी बोलने पर...हिन्दी अच्छी होने पर लोग आश्चर्य से देखते हैं, शायद सोचते हों की सरकारी स्कूल में पढ़े हो, गरीब घर से हो. हमारे ही देश में हिन्दी अपेक्षित है.
अनिल भाई,
हमारे देश की राष्ट्रभाषा के साथ जो अन्याय किया जा रहा है, वो काफी दुर्भाग्यपूर्ण है.
में भी अपनी बात मातृ भाषा हिन्दी में कहूँगा, जिसकी गरज पड़ेगी वो सुनेगा...
Hindi ke prati logon ka sautela ravaiya dekh kar vaastav me bahut pida hoti hai.
बढ़िया लेख बधाई
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