ट्रेन वाली लड़की (अन्तिम भाग)
>> 17 February 2009
मुझसे अपने प्रेम का इजहार कर तो दिया नम्रता ने लेकिन मैं मन ही मन जानता था की जितना आसान नम्रता सोच रही है उतना आसान कुछ भी नही होता .....चाहे ज़माना कितना भी आगे चला गया हो किंतु जात पात के मामले में समय का पहिया बहुत ज्यादा आगे नही बढ़ा ....अभी भी अंतरजातीय विवाह में तमाम मुश्किलें आती हैं .... माँ बाप अंतरजातीय विवाह को मंजूर देने के मामले में नाक भौह सिकोड़ने लगते हैं ...
नम्रता कुछ दिन के लिये अपने घर गई .... अब फ़ोन पर हमारी बातों का सिलसिला कुछ ज्यादा ही बढ़ गया था .... नम्रता ख़ुद को मुझसे बात करने से रोक नही पाती थी ....उस रात की बात है उसके पैर में मोच आ गई थी ...वो रात को १ बजे के दौरान मुझसे मोबाइल पर बात कर रही थी ....वही सब बातें जो एक प्रेमी और प्रेमिका के मध्य होती हैं ...
वो कहते हैं ना की इश्क की हवा ख़ुद ब ख़ुद वादियों में फ़ैल जाती है ....लोगों को बताने की जरूरत नही पड़ती ....ख़बर उन्हें ख़ुद पता चल जाती है ....रात को नम्रता को बात करते हुए उसके पापा ने सुन लिया था .... उन्होंने रात को उससे कुछ नही कहा ....
उनके दोस्त बी.एस.एन.एल. में ही मुलाजिम थे ...नम्रता का पोस्ट पेड कनेक्शन था .... नम्रता के पिताजी ने सारी कॉल डिटेल निकलवा ली .... अब सब कुछ सामने था उनके हाथ में .... २ - ३ घंटे लगातार एस.टी.डी. कॉल होती है नम्रता के नंबर से ये जान वो हैरानी में पड़ गये ... आख़िर एक लड़की के बाप को हैरान तो होना ही पड़ता है ऐसे समय पर ....
उन्होंने घर पर आकर नम्रता और उसकी माँ को बुलाया ...और नम्रता को खूब फटकारा ..तुम्हे ज़रा भी ख्याल नही है हमारी इज्जत का ....इतनी लम्बी लम्बी बात होती हैं एस.टी.डी. ....अब जो मैं कहूँगा वही करोगी तुम ....मैं ६ महीने के अन्दर तुम्हारी शादी कर दूँगा ....लड़का देखना शुरू करता हूँ ....पर पापा मैं आपसे कुछ कहना चाहती थी .....मुझे कुछ नही सुनना ....अब जैसा मैं कहूँगा वैसा ही करोगी तुम ..
नम्रता ने अपनी माँ को सारी कहानी बतायी ....और बोली कि अगर मेरी ये इच्छा पूरी कर दी जाये तो मैं जिंदगी भर खुश रहूँगी ....नम्रता की माँ बोली ...बेटा हमारे खानदान में कभी ऐसा हुआ है ...कभी किसी ने प्रेम विवाह किया है क्या ? और मान भी लो सोचा भी जाये तो लड़का अपनी जात का नही ...दूसरी बिरादरी के लड़के के साथ तुम्हारे पिताजी तुम्हारी शादी कभी नही करेंगे .....पर माँ मैं सिर्फ़ उसी से शादी करुँगी चाहे जो कुछ हो जाये
वो फिर वापस अपनी नौकरी पर आ गयी ....और सारा माज़रा मुझे बताया ...मैंने कहा कि देखो नम्रता मुझे तो पहले से ही शक था कि तुम्हारे माता पिता शायद ही राजी हों ....माँ बाप बच्चों से प्यार तो करते हैं लेकिन जात धर्म का पल्लू उन्हें बहुत प्यारा होता है ...वो उसे नही छोड़ते ..... बोली पर मैं सिर्फ़ तुम से शादी करुँगी चाहे जो कुछ हो जाये ...मैंने कहा ठीक है जैसा तुम चाहोगी वैसा होगा ...अभी कुछ दिन आराम से रहो ...सोचते हैं क्या करना है
करीब २-३ दिन बाद नम्रता के पिताजी का फ़ोन आया कि उन्होंने उसके लिए लड़का देख लिया है और वो भी उसे देखने आ जाये ....अगर सब कुछ सही रहा तो जल्द से जल्द शादी तय कर दी जायेगी ...नम्रता ने कहा कि वो मरते माँ जायेगी लेकिन अपनी मर्जी से ही शादी करेगी ....ये कह उसने फ़ोन रख दिया
अगले रोज नम्रता के घर से फ़ोन आया कि उसके पिताजी अस्पताल में भरती हैं ..उन्हें हार्ट अटैक आया है ....ये सुन नम्रता घर गयी ....उनकी हालत देख नम्रता को रोना आ रहा था ....उनके पास गयी वो बोले बेटा मैं तेरे पाँव पड़ता हूँ अपनी ही बिरादरी में शादी कर ले .....और रोने लगे ...उनकी हालत देख नम्रता भी रोने लगी .....और बाहर चली आयी ...
अगले रोज़ नम्रता का मेरे पास फ़ोन आया और उसने सारी कहानी बतायी ..मैंने उसे समझाया कि देखो नम्रता मैंने तुम्हे पहले ही कहा था कि इतना आसान नही होता सब कुछ ...जात धर्म के चक्कर में लोग ना जाने क्या क्या कर जाते हैं .....अब तुम ही देख लो अपनी जात के चक्कर में तुम्हारे पिताजी को हार्ट अटैक आ गया ....देखो ज्यादा परेशन होने की जरूरत नही है ...उनका ख्याल रखो ....और उनकी बात मान लो ...अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या तुम खुश रह पाओगी....बोली मैं क्या करूँ कुछ समझ नही आ रहा .....मैंने बोला देखो नम्रता मैं भी तुम्हे पसंद करता हूँ ...लेकिन मुझे पहले से एहसास था कि ऐसा भी कुछ हो सकता है ...तुम ज्यादा परेशान मत हो ....दोस्त तो हम जिंदगी भर रहेंगे ही ....ऐसा तो कुछ होगा नही कि दोस्ती ख़त्म हो जायेगी .....
कुछ दिनों बाद उसकी शादी तय हो गयी ...सुना था कि उसके पिताजी ने बहुत बड़ा और आलीशान आयोजन किया था .....उसकी शादी तय कर दी ....एक बार नम्रता से बात हुई ...बता रही थी उसके पिताजी बहुत खुश हैं ... मैंने कहा चलो कोई तो खुश है .....
फिर धीरे धीरे नम्रता की कॉल आना बंद हो गयी मैंने अपनी तरफ़ से दोस्ती निभाने की कोशिश में कॉल की ....लेकिन उनका रिस्पोंस कुछ ख़ास ना रहा .....फिर धीरे धीरे मेल का जवाब भी बंद ....न कोई कॉल ..ना कोई मेल ... धीरे धीरे सभी कम्युनिकेशन ख़त्म सा हो गया ...जबकि सभी माध्यम मौजूद थे
कभी कभी रिश्तों में इस कदर गहराई आती है कि पता नही चलता और फिर वक्त के बदलते हालातों के बदलते रिश्तों की गर्माहट कहाँ खो जाती है पता नही चलता ....सुना था कि उसकी शादी की डेट करीब ३ महीने बाद की तय हो गयी थी .....
करीब २ महीने बाद उसका फ़ोन नंबर भी बदल गया ....उसका ऑरकुट अकाउंट भी बंद हो गया .....बस मेल आईडी था पर कभी उसके नंबर के बंद हो जाने के बाद मेल भी नही आया उसका .....
आज जब कभी उसके बारे में सोचता हूँ तो दिल में एक ख़याल आता है ....
क्या ट्रेन में मिली लड़की को मुझसे प्यार था ?
22 comments:
एक लड़के के नजर से कहूं तो प्यार नहीं था, बस एक इंफैच्यूएशन था.. एक लड़की के नजरीये से मैं नहीं कह सकता हूं, वह कोई लड़की ही बता सकती है..
हाँ ऐसे हालातों के बारे में तो एक लड़की ही बता सकती है ...सही कहा प्रशांत भाई ...अगर हम लोग ऐसा कहेंगे तो उनको इसमे भी बुराई नज़र आएगी
प्यार तो था लेकिन प्यार को आगे तक ले जाने की ताकत नहीं थी...ना आप में और ना ही लड़की में...ये पिता लोग वक्त बे वक्त दिल के मरीज हो जाते हैं...उन्हें अपनी ही लड़की की खुशी से ज्यादा समाज की चिंता रहती है...समाज जो बुरे वक्त में किसी का साथ नहीं देता सिर्फ़ मजे लेता है...अब जब शादी पक्की हो ही गई तो आगे का रिश्ता बंद करना ही समझदारी थी...जो लड़की ने दिखाई...
नीरज
आपके विचार भी सही हैं ....नीरज भाई .....क्योंकि ताकत तो लड़की भगा कर शादी करने में होती है ...कोर्ट मैरिज़ करने में ...जबकि लड़की का पूरी तरह मन ना हो
क्या कह सकते हैं किसी के दिल में क्या है ..बाकी जो हालात बन गए थे उन में जो उस लड़की ने किया ठीक किया
पी डी से सहमत हूँ....क्या ये सच्ची कहानी है दोस्त ?
माफ़ करना दोस्त पर क्लाइमेक्स थोड़ा फिल्मी लगा.
अम क्या कहे हम तो खुद एफ़ एल ए के मेम्बर हैं।
all person play a good roll at his place .
Really!!!
are wah..kahani kisi aur ki aur itna lamba explanation kisi aur ka.........good yaar anil kant,kya story likhi hai..logon ko apni story lag rahi hai.......waise kafi achchi thi........
hmmm..... achchi kahani thi......ladki ko pyaar tha ya nahi... ye sabhi soch rahe hai....
magar main kuch aur hi soch rahi hun. Maan lijiye, sari situation opposite ho jati..jo ladke pe beeta ..wo ladki pe beet-ti .. tab is question ka kya jawab hota...."kya us ladke ko jo train me mila tha, use mujhse pyar tha????" anil ji aap hi jawab dijiye.....
Vandana ji uska Ehsaas mere zehan mein aaj bhi maujood hai.
फिर तो आपको भी जवाब मिल जाना चाहिए....परिस्थितियाँ बदलने से अहसास उतने आसानी से नहीं बदलते, वो अनकहे तो हमेशा से रहते है, वक़्त के साथ दब-से भी जाते है...
वक़्त की हर शे गुलाम !
anilji aaj aap ki kahani padhi bahut achchhi lagi ,jaisa aap kah rahe hai usaka ahsaas aaj bhi aap ke pas moujood hai isase lagata hai ki kahi kuchh to tha agar aap thodi himmat karte to ye ahasaas aaj kisi aur roop me moujood hota.ek sunder rachana ke liye badhaiyan.
ye kehani bhaout achhi thi. per ager anth mai dono mil jate to pyar ki ek nayi misal hoti
आपने बहुत अच्छा लिखा है..आपने बताया नहीं आप क्या चाहते थे..आप उस लड़की को चाहते थे या नहीं..अपनी फीलिंग तो ज्यादा बताई ही नहीं..पर जो भी हो मजा आ गया पढ़ के..
माफ़ करना अनिल भाई , लेकिन मुझे ये समझ नहीं आता कि लड़की के बाप का दिल इतना कमज़ोर क्यों होता है | मैंने अभी तक ऐसे कम से कम ५-६ केसेस देख लिए जिसमे लड़की के बाप को हार्ट-अटैक या तो हो जाता है , या पहले से हुआ रहता है | इन सब परिस्थितियों में मेरे बेचारे दोस्त (कहानी के नायक ) यही कह पाते हैं कि -
"देखो ज्यादा परेशन होने की जरूरत नही है ...उनका ख्याल रखो ....और उनकी बात मान लो ...अगर उन्हें कुछ हो गया तो क्या तुम खुश रह पाओगी"
jitni achhi shuruaat, ant kuchh khaas nahin raha, ho sakta hai ki mera case exceptional ho lekin main is kahani se khud ko jod nahin payi. Saketji theek hi keh rahe hain, ap behad balanced aur practical the. Aisa laga ki kisi ne aapko relationship mein kheencha aur aap khinch gaye. maana aapko pata tha ki aisa hi hoga magar kuchh to drirhta dikhani chahiye thi. laga, jaise yahan aapko nahin, namrata ko padh rahi hun. lovestories ke baare mein zyada to nahin jaanti lekin jo bhi thoda-bahut pata hai, uske according ye love story nahin hai, bas do samajhdaar logon ke beech ka ek kissa hai.
aapki hamesha se fan rahi hun, apni is dhrisht-ta ke liye maafi chahungi. aap yun to kabhi shikayat ka mauka nahin dete magar is baar story thodi real nahin lagi, aap thode atm-mugdha lage hain isme. magar fir bhi, har baar achhi prastuti dene wale lekhak ko apne prashansak se ek baar reham milne ka haq to hai hi! :)
delhi, profession aur shauk, kafi kuchh common hai hum mein. ek baar idhar ka bhi rukh karein-- www.ritika-fursat-ke-pal.blogspot.com
जब मैंने यह कहानी लिखी थी तो उस वक़्त मनस्थिति कुछ ऐसी थी कि १-२ कहानियाँ इसमें और मिलती चली गयीं जो कि देखी-सुनी हुई थीं....हाँ आज के समय में अगर में यह कहानी लिखता तो अवश्य ही इसका स्तर और अंत कुछ और होता...खैर कहानियाँ तो
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