मेरी नन्ही सी गुमनाम मोहब्बत (बचपन के दिनों से)
>> 07 February 2009
उसके गालों पर डिम्पल थे । कितनी क्यूट लगती थी, जब वो हँसती । गुस्सा तो जैसे नाक पर रखा रहता उसके, जब भी मोनिटर-मोनिटर खेलती । हाँ, वो हमारी क्लास की मोनिटर जो थी । और मेरा नन्हा-मुन्ना सा दिल धड़क-धड़क के इतनी आवाजें करता कि बुरा हाल हो जाता ।
जबसे विद फेमिली, वो फ़िल्म देख ली थी, अरे जिसमे वो दोनों कहते थे "दोस्ती की है तो निभानी तो पड़ेगी" । और मैं मासूम बहक गया, दोस्ती के चक्कर में । मेरा मासूम दिल, जब भी उसको सामने पाता, बस चारो खाने चित्त हो जाता । जबकि मैं सिर्फ़ पाँचवी क्लास में था । हाँ यारों मेरा दिल क्लीन बोल्ड हो गया....मुझे प्यार हो गया ।
जहाँ पहले मैं, उसके सामने, मैडम से याद ना करके लाने पर मार खाता, वहीँ बाद के दिनों में, अपनी रैपुटेशन सुधारने के लिये पाठ कंठस्थ करके लाता ।
"माँ एक रसगुल्ला और दो न, लंच के लिए"
"अरे तू कब से इतना खाने लगा"
अब उन्हें कौन बताये ? कि ये रसगुल्ला, वो निगार खान के लिये ले जा रहा है । और स्कूल पहुँचकर बामुश्किल, हिम्मत करके, कोई बहाना बनाकर, उसे खिलायेगा ।
मेरे प्यार को बस मैं और मेरा दिल जानता था । तब पता भी नही था कि अपने दिल की बात को जाहिर कैसे करें ? यारों उसके चक्कर में मैं होशियार बच्चों की श्रेणी में आ गया ।
बुजुर्ग कह गए हैं कि "कभी-कभी, अपनी किसी भूल का परिणाम, आपको कैसे भुगतना पड़े, आप नहीं जानते" । मैं भी भूल कर बैठा । अपने साथ बैठने वाले दोस्त को, मैंने अपना राजदार बनाते हुए, अपने दिल की बात कह डाली । और वो कम्बखत, निरा गूण दिमाग निकला । उस बेसुरे से रहा नही गया और उसने मेरी मोहब्बत, जो जवान भी न हो पायी थी, का राग, हमारी ही क्लास में पढने वाली, अपनी बहन को अलाप दिया ।
कुछ दिन तो चैन से कटी । हालाँकि, उसकी बहन के माध्यम से, निगार तक बात पहुँच गई होगी । इतना तो पक्का है । केवल इतना रहा, तब तक तो ठीक था । उस कम्बखत से रहा न गया और मेरे इश्क का बैरी, उसे क़त्ल करने के इरादे से, एक बचपन की नादानी कर बैठा ।
उन साहब ने क्या काम किया ?
हमारी महबूबा की फेयर कोपी पर, जो उसकी बहन के पास थी । उसपे लिख मारा, कि "मैं तुमसे प्यार करता हूँ । आई लव यू निगार, मुझसे शादी करोगी ?"
और उसके नीचे हमारा नाम स्वर्ण अक्षरों में गोद दिया । और यह खबर हमें सीना फुलाकर दी ।
अब हमारी तो कर दी न दुर्दशा । मरता क्या ना करता । चलो कोई बात नहीं । किस्मत से, वो अंतिम पीरियड था । उस दिन तो खैर रही । अब घर पहुँचे....
"क्या हुआ ? काहे चेहरा लटका हुआ है ?" माँ पूँछती है ।
"कुछ नहीं...."
अब उनको क्या बताएं, कि अगली रोज़ हमारी मार पड़ने वाली है ।
मालूम था कि मैडम के हाथों, अगली रोज़ बहुत मार पड़ेगी । पेट दर्द का बहाना बना दिया । खुदा न खास्ता, एन वक्त पर, गाँव से हमारे चचा जान आ गए । वो हमें तीन दिन के लिये, अपने साथ रिश्तेदारों के यहाँ ले गये ।
हम सोच रहे थे, कि चलो अब तक मामला शांत हो चुका होगा । मन में तसल्ली का लड्डू खाते हुए स्कूल गए । पर हमे क्या मालूम था, कि हमारे प्यार की ख़बर, पूरी बगिया में फ़ैल गई है । बच्चा-बच्चा वाकिफ हो चला है । उस ससुरे दोस्त ने बात का बतंगड़ बना दिया था । और सारा इल्जाम हमारे मत्थे मढ़ दिया ।
निगार ने हमारी शिकायत क्लास टीचर से कर दी । जिनसे में सबसे ज्यादा खौफ खाता था । फिर क्या था ? पहले ही पीरियड में, टीचर्स रूम से बुलावा लेकर, निगार और उसकी सहेली आ गयीं "तुम्हे मैडम बुला रही हैं" ।
काटो तो खून नही, जैसी स्थति हो गयी थी हमारी ।
मैडम बोली "ये सब क्या है ? दूध के दाँत ठीक से टूटे नही और प्यार करने चले हो । नेकर पहनना आता है ठीक से ? और ये सब खुरापते कहाँ से सीखी तुमने ?"
मैं चुपचाप एक कोने में खड़ा हूँ । 10-20 डस्टर हाथों पर पड़ते हैं, 5-6 चांटे गाल पर पड़ते हैं । कभी इस गाल पर तो कभी उस गाल पर । कान पकड़ कर उट्ठक-बैठक करवाई गयी ।
"बोलो करोगे अब ये सब"
"नही मैडम" मुँह से आवाज़ निकली ।
"सॉरी बोलो इसको"
"सॉरी निगार"
"बोलो निगार, तुम मेरी बहन हो"
मन में सोचा "ये सब क्या है ? ये तो मैं कतई नही बोलूँगा ।"
बोलो...बोलो...
पर मैं खामोश...
"साँप क्यों सूंघ गया, बोलो निगार मेरी बहन है ।"
"मैं फिर भी खामोश ।"
"अरे नही बोलोगे ।"
"चलो मुर्गा बन जाओ ।"
मैं मुर्गा बन जाता हूँ ।
"तुम ऐसे नही मानोगे, जब ऐसे ही मुर्गा बने रहोगे, तब बोलोगे"
दस मिनट गुजरे, फिर पंद्रह-बीस मिनट हुए । टप-टप, आँखों से आँसू निकलने लगे ।
"मैडम लग रही है"
"हाँ, हाँ, तो और लगेगी । बोलो अभी ।"
मैं फिर भी मौन ।
मेरी महबूबा को दया आ गयी । बोली "मैडम रहने दो, जाने दो, छोड़ दो अब । ये नही बोलेगा ।"
मैडम उठा कर, दो-चार और धरती हैं गाल पर । "आइन्दा फिर से ऐसा किया, तो समझ लेना मुझसे बुरा कोई ना होगा ।" मन में सोचा "आपसे बुरा है भी नहीं कोई ।"
मार खायी । सज़ा काटी । किन्तु दिल में सुकून था, कि बहन नही बोला । दिल ही दिल में खुश हो रहा था । बाद में सोचता हूँ । चलो बच गये, महबूबा की नज़र में इज्जत तो रहेगी । भले ही उसके सामने मार खा ली ।
फिर क्या, कुछ दिन गुजरे । मामला शांत हो गया ।
एक दिन लंच टाइम में निगार मेरे पास आकर, अपना लंच बॉक्स आगे करके बोली "ये गुलाब जामुन खाओ । आज मेरी बहन का जन्मदिन है । वही हँसता, खिलखिलाता चेहरा और गालों के डिम्पल देख, मन प्रसन्न हो गया । मैंने गुलाब जामुन खा लिया ।
फिर ज्यादातर समय वो मेरे पास आती और मुझे कुछ न कुछ खाने को देती । जब कभी मेरा काम पूरा न होता तो अपनी होम वर्क की कॉपी भी शेयर करती । मैं मन ही मन में प्रसन्न होता । कभी वो मुझे कुछ खिलाती तो कभी मैं...
वो एक दिन बोली "तुम मुझसे दोस्ती करना चाहते थे ना । अब तो हम दोस्त हैं न ।"
मैंने कहा "धत, दोस्ती ऐसे थोड़े होती है ।"
"तो कैसे होती है ?"
"गर्ल फ्रेंड तो गाल पर किस करती है ।"
"अच्छा तो लो" और उसने मेरे गाल पर किस कर लिया ।
यारों अपनी तो लाइफ सेट हो गयी । अब वो मेरी गर्ल फ्रेंड बन गयी....
कुछ दिन दोस्ती के अच्छे बीते । साथ झूलना...साथ बैठना...साथ खाना । अब मुझ पर मोनिटरगीरी भी नही दिखाती थी । सब कुछ अच्छा चला । पाँचवी के बाद, मेरे प्यार को किसी की नज़र लग गयी । उसके पिताजी का ट्रांसफर हो गया । वो कहाँ चली गयी ? किस शहर ? पता ही नही चला ।
मेरी मोहब्बत, मेरी दोस्ती का दी एंड हो गया....
पापा ने मुझे दूसरे स्कूल में डाल दिया । जहाँ निरे लड़के ही लड़के भरे पड़े थे । और मैं उनके साथ, उनकी शरारतों में रम गया । हाँ कभी कभी, अपनी गर्ल फ्रेंड की याद आ जाती....जैसे कि आज आ गयी :) :)
25 comments:
अच्छी पोस्ट लिखी है।
बहुत पहुंचे हुए निकले आप, पांचवी में इश्क!! चलो इस बहाने आप पढ़ाई लिखाई में अव्वल हो गए!
अनिल भाई,
आपकी मोहब्बत की कहानी काफी मजेदार है, वैसे इतनी कम उम्र से आप बिगड़े हुए है हमें तो आज पता चला..
हा हा हा ...... :) :) :)
अब क्या कहें .... सच्चाई जो लिख दिये
आपकी कहानी बहुत मजेदार रही .....आपने जिस तरह व्यंग्यात्मक तरीके से अपनी बचपन की प्रेमकहानी बताई वो बहुत काबिले तारीफ़ है .....मान गए आपको
bachpan ki maasoom mohabbat,
hummari baat baat par sharmaane ki aadat,
aaj aapne yaad kara di,
par parhte parhte kahin kho gayi dil ki raahat.
अच्छा जी ऐसी बात है क्या .....आप शर्माती भी थी ... :) :)
शुक्रिया तारीफ़ के लिये
arey hum bahut sharmaate the,
aashiki farmaate the,
itne chhote the ki theek se parh bhi nahi sakte the,
fir bhi sirf mohabbat ke geet gungunaate the.
"Maine Pyar Kiya" sirf aapne hi dekhi thi kya??
अच्छा जी तो आपने भी देख ली थी .....
वाह गुरू बचपन से ही शुरू।मुझे तो तुम्हारी तस्वीर की मस्त मुस्कान देख कर ही डाऊट हो गया था कि ये पटठा खुराफ़ाती है।बहुत बढिया लिखा अनिल ऐसा लिखने के लिये बहुत हिम्मत होना।मज़ा आ गया।भगवान ने चाहा तो जिसे तुमने चांटे खाने के बाद भी बहन नही कहा वो तुम्हे फ़िर से मिले।
bahut rochak hai aapki kahani lkhne ke andaaj bhi bahut umda hai bdhai
baht rochak hai aapki kahani aur likhne kaa andaaj
apki kahani bahut rochak hai likhne kaa andaj bhi umda hai badhai
अच्छा लिखा है....
वाह गुरु.. मान गए तुम्हे.. :)
अनिल कान्त जी
क्या बात लिख दी, अपनी मोहब्बत की दास्ताँ .............अकेले ही हैं अभी तक या .....भाभी साथ रहतीं हैं
पर बहुत खूब लिखा है .............
मैं भी फरीदाबाद का रहने वाला हूँ........आप वहाँ कहाँ रहते हैं बताएं अगर मुमकिन हुवा तो आपसे मुलाक़ात करेंगे.
मुझे आप dnaswa@gmail.com पर संपर्क कर सकते हैं.......
दिगंबर जी अभी तक कुंवारा हूँ .....वो कहते हैं न जिसे सिंगल .....
आपकी तारीफ़ का शुक्रिया ...
मैं सेक्टर - 21D में रहता हूँ
aapke sandesh aate rahte hain.
shukriya bahut-bahut.
aapne us naajuk daur ke isk ki baat kar di,ki kya kahna!
aapki khani acchi lagi...!
प्यारा अनुभव है...भाई आप तो बचपन से ही पहुंचे हुए हैं. btw आपने जो टीशर्ट पहन रखी है, बड़ी अच्छी है.
पूजा जी आपको जो कुछ भी अच्छा लगा यहाँ आकर ..... मुझे खुशी हुई ...क्योंकि मैं चाहता हूँ कि लोग आए तो उन्हें कुछ ना कुछ अच्छा लगना चाहिए
wah!
Man gaye sir ji aap to chhupe rustam nikale...........Umeed karate hai ki aap ki dost jarur milegi
All The Best...
Anil ji,Aaapki "nanhi si gumnaam mohobbat" ke baare me padh kr man yeh hi keh raha hai ki aapko aapki mohabbat jaldi hi mile......Shrikant
bahut badiya yaar chalo ishq ka maja to aapnai bachpan sai he sikh liya ab koi tension nahe, aapka pyar aapko jald milai yahe duaa h hamari
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