क्या वाकई लोगों के दिलों-दिमाग से जात-पात की भावना ख़त्म हुई है ?
>> 18 February 2009
सुना है कि भारत में लोगों में बहुत जागरूकता आ गई है .... लोग जात पात से ऊपर उठकर बहुत सोचते हैं .... सबको समान समझने की अब उनके अन्दर भावना जाग चुकी है .....क्या वाकई ऐसा हुआ है ? कितना हुआ है ?
लेकिन जब तब मैं तो व्यक्तिगत तौर पर बहुत कुछ सुनता और देखता हूँ ....तब मन में एक ही ख्याल आता है कि क्या वाकई बहुत ज्यादा बदलाव आया है ? .....
हमारे हिन्दी साहित्य के महान उपन्यासकार और लेखक या फिर सही तौर पर कहें तो "कलम के सिपाही" ने कुछ इस तरह से अपने उपन्यास "कर्मभूमि" में लिखा है .....
"लाला समरकान्त ने चूहे की तरह झपटकर कहा --
अंग्रेजों के यहाँ रंडियाँ नही, घर की बहू - बेटियाँ नाचती हैं , जैसे हमारे यहाँ चमारों में होता है "
अर्थात आप ख़ुद सोच सकते हैं कि उस समय हिन्दुस्तान में जात पात का स्तर क्या रहा होगा और क्या लोगों की मनोदशा रही होगी
हमारे देश का एक राज्य मिजोरम जिसके २००१ के आंकडे बताते हैं
जनसँख्या : ८,८८,५७३
पुरूष : ४,५९,१०९
स्त्री : ४,२९,४६४
अनुसूचित जाति : २७२
अनुसूचित जनजाति : ८,३९,३१०
इसका मतलब हुआ कि मिजोरम में केवल ४८९९१ लोग सामान्य और अल्पसंख्यक श्रेणी के हैं ....अब सबको पता है कि मिजोरम का कितना विकास अन्य राज्यों की भांति हुआ है और यह राज्य समाचारों में और मीडिया की नज़र में कितना रहता है .....इसी तरह का कुछ बुरा सा और सौतेला हाल अन्य राज्यों जैसे मेघालय, असम, झारखण्ड, सिक्किम ,दादरा नागर हवेली ....वगैरह - वगैरह का है
मेरी एक दोस्त से एक दिन मेरी फ़ोन पर बात हो रही थी ....वो अपनी मम्मी के साथ घर पर की हुई बात को मुझसे हलके मूड में बता रही थी .... "मम्मी मेरी शादी कर दो ना , बेटा शादी तो कर दें लड़का भी तो मिले ....."अरे कोई नही किसी चमार -चूट्टे से ही कर दो ...बस शादी कर दो "
मैंने अपनी उस दोस्त को बोला जानती हो कि चमार -चूट्टे कौन होते हैं ...बोली कि नही ...मैंने कहा तो फिर ये बात कहाँ से सीखी ...बोली कि समाज और घर में रहकर ही सब सीखते हैं ...मैंने उसे काफी देर तक समझाया तब वो बोली कि आगे से वो ऐसा कुछ नही बोलेगी
मैंने उसी दोस्त को बोला कि मान लो तुम्हारा बॉय फ्रेंड गौरव है अगर वो अनुसूचित जाति का होता तब क्या करती ....वो बोली ऐसे कैसे होता ....अगर वो ऐसी किसी जाति का होता तो वो ऐसा कोई प्यार का सम्बन्ध ही ना बनाती....... मतलब आप समझ सकते हैं कि प्यार भी जात पात को देखकर किया जाता है
मेरा एक दोस्त है उसने शादी के लिए जीवनसाथी पर रजिस्ट्रेशन करा रखा है .....उसने एक सुंदर और सुशील कन्या को देखकर उसके पास शादी का प्रस्ताव भेजा ....कन्या ने साफ़ साफ़ अपने प्रोफाइल में लिख रखा था कि जाति बंधन नही अर्थात कोई भी जाति का चलेगा ....जब इन्होने उनसे फ़ोन के माध्यम से संपर्क किया तो वो मना करने लगी ....इन्होने कारण पूँछा तो उन्होंने कहा कि हमारी जाति का मेल नही होता ...तब लड़के ने कहा कि पर आपने तो लिख रखा है कि आप जाति बंधन नही मानती ...तभी उनके पिताजी ने फ़ोन ले लिया वो बोले जाति बंधन का मतलब ये नही कि हम अनुसूचित जाति में शादी कर ले .... अब आप ख़ुद ही देखिये कैसे कैसे लोग हैं जाति बंधन का क्या मतलब समझाते हैं
मेरे एक अन्य दोस्त का प्रेम सम्बन्ध अग्रवाल सर नेम वाली लड़की के साथ चल रहा है ...दोनों एक दूसरे से बहुत प्यार करते हैं ....लेकिन लड़की के घर वाले लड़के के अनुसूचित जाति के होने की वजह से त्राहि माम त्राहि माम कर रहे हैं और लड़की पर अपनी पूरी ज़ोर आजमाइश कर रहे हैं कि वो उस लड़के के साथ अपना सम्बन्ध ख़त्म कर ले ....
जब मैंने अपनी एक दोस्त को ये बात बताई तो वो बोली कि आग और घी को एक साथ रखोगे तो आग तो लगेगी ही ना .....मसलन मुझे समझ नही आया कि आग कौन है और घी कौन है ......
मैंने अक्सर देखा है कि जब भी कभी मैं चैट करता हूँ तो सामने वाली फीमेल पर्सन मुझसे मेरा सर नेम पूंछती है ...कोई कोई तो सीधे मेरी जाति ही पूंछने लगती है ...और जब मैं कहता हूँ कि बड़ा जात पात मानती हो तो कहती है कि नही मैं इन सब में बिलीव नही करती .....और जब मैं पूंछता हूँ कि इन सबको पुँछ के क्या होगा ...प्यार तो किसी से भी कर सकती हो और शादी भी किसी भी जात में कर सकती हो ....तो कहती है कि नही मैं घर वालों की मर्ज़ी से ही शादी करुँगी ...अर्थात अपनी ही कास्ट में .....
मेरे एक दोस्त के बड़े भाई बताते हैं कि जब वो छोटे थे तब अपने गाँव में गए ...उनके दादाजी उन्हें अपने साथ ले गए ....पास के ही एक ठाकुर साहब के घर ...ठाकुर साहब खाट पर बैठे थे और उनके दादाजी धरती पर ...पर वो खड़ा रहा ....वो ठाकुर साहब बोले क्यूँ बैठ क्यूँ नही रहा और मजाक के लहजे में बोले कुर्सी पर बैठेगा ? कुर्सी मंगाऊँ.....
सुना है कि उस गाँव में १०-२० घर अनुसूचित जाति के थे ...धीरे धीरे सब पलायन कर शहरों की ओर आ गए क्योंकि कुछ अनुसूचित जाति के घर के सदस्यों की सरकारी नौकरी लग जाने के कारण वो अच्छा खाना पहनने लगे थे ...और ये बात बाकी जात के लोगों को हज़म नही हुई तो उन्होंने उनके बच्चो का अपहरण करवा लिया ...और मोटी रकम ऐंठी ......इन समस्याओं से निजात पाने के लिए वो शहर की ओर रुख कर गये
सब कहते हैं कि जात पात की भावना , बलात्कार , शोषण ये सब ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा होता है ...वहां तो मीडिया भी नही पहुँचती ...ज्यादातर वारदातें दबा दी जाती हैं ...पुलिस थानों तक भी नही पहुँच पाते ऐसे लोग और अगर पहुँच भी जाएँ तो ऊंची जात के लोग शक्ति और पैसे के दम पर उस केस को दबा देते हैं ....
क्या आपको पता है कि भारत की ग्रामीण जनसँख्या क्या होगी ...72.2%, male: 381,668,992, female: 360,948,755 (2001 Census)
क्या वाकई हर स्तर पर लोगों के दिलो दिमाग से जात - पात की भावना ख़त्म हुई है ...क्या लोग वाकई जात पात से ऊपर उठकर देख रहे हैं .....
10 comments:
नेता लोग ख़तम होने देंगे तब न!
१९४७ से पहले कितनी नेतागीरी हुआ करती थी .... क्या लोगों का दिल और दिमाग नेताओं से चलता है ....क्या बच्चो की परवरिश नेताओं के पास जाकर होती है .....जिन लोगों ने कभी अपने मत का उपयोग भी नही किया और जो कहते हैं "आई हेट पॉलिटिक्स " उन्हें कौन सा नेता आकर ये सब बताता है कि भाई जात पात ख़त्म मत करो .....हम नेता लोग चाहते हैं कि जात पात ख़त्म ना हो .....वैसे कहते हैं कि भारत के लोग बहुत जागरूक हैं
आपने बिलकुल ठीक लिखा है। जिसे विश्वास न हो, अंग्रेजी अखबारों में मेट्रीमोनियलस् वाले पन्ने देख सकता है।
-संजय ग्रोवर
कौन फैला रहा है ये अफवाह ????
दोस्त हमने भौतिक रुप में तरक्की की है ना कि मानसिक रुप में। बीते रविवार को ही इन्हीं चीजों पर खूब मुठभेड हुई थी।
सही है .... बिल्कुल नहीं।
समाज के ठेकेदार अपने बनाए जाल कैसे काट सकते हैं।सटीक लिखा आपने।
ऐसे कई उदहारण अभी भी हमारे समाज में मौजूद है........उदहारण के तौर एक दिन हमारे के मित्र ने किसी बात पर कहा "यह क्या चोरी -चमारी कर रहा है?"....... मैंने पूछा क्या चोरी करने का चमार जाती से कोई लेना देना है? क्या सारे चमार चोर होते है? या क्या सारे चोर चमार जाती के होते है? क्या सवर्ण जाति का कोई चोरी नही करता? या फ़िर क्या इस मुहावरे का अर्थ यह है की चोरी करना 'चमार' के काम जितना घृणित काम है? अगर इतना ही घृणित काम है, तो आप उस घृणित व्यक्ति के द्वारा बनाये गए जूते क्यों पहनते हो? उसके बनाये चमड़े के कमरबंद बंद क्यों सजते हो? क्यों चमड़े के बटुए से पैसे निकलकर सुंदरी को प्रभावित करने का प्रयास करते हो??......मित्र इतने सारे सवालो का जवाब आज तक ढूंढ रहे है.
It will take ages to remove this from our minds
.
it is still there
but reducing slowly-slowly
.
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