चरित्र को बोओ और भाग्य को काटो
>> 06 February 2009
सामान्यतः चरित्र का अर्थ यौन - सम्बन्धों , स्त्री - पुरूष विषयक सम्बन्धों से लगाया जाता है ....लेकिन यह बहुत ही सीमित अर्थ है ....आचरण वस्तुतः पूरे व्यक्तित्व को दर्शाता है .....
चरित्र के अन्तर्गत व्यक्ति के मन, वचन , वाणी से सम्बन्धित समस्त क्रिया कलाप आ जाते हैं .... चेतना विकास भी चरित्र का अंग है ....चेतना विकास के अनुसार इच्छा शक्ति अथवा वासना विचार उत्पन्न होते हैं ....इच्छा , ज्ञान , क्रिया अथवा वासना , विचार इन सबका चक्र अबाध गति से चलता रहता है .....इस प्रक्रिया के नवनीत रूप चरित्र नामक तत्त्व का निर्माण होता है .....
इसी लिए कहा गया है ...कर्म को बोओ और आदत को काटो , आदत को बोओ और चरित्र को काटो , चरित्र को बोओ और भाग्य को काटो ......
दि ग्रीन नामक विद्ववान ने कहा है ..."चरित्र का सुधारना ही मानव का परम लक्ष्य होना चाहिए " .....
प्लूटार्क ने कहा है ..." चरित्र हमारा स्थायी स्वभाव है , हमे अपनी इस स्थायी संपत्ति की रक्षा हर प्रकार , हर कीमत पर करनी चाहिए "....
हम यह भूल जाते हैं कि ....हमारी और हमारे समाज की अस्मिता समझोता करने वाले जयचंदों ,मानसिंहों, मीरजाफरों आदि के कारण नही है ..... बल्कि इसके मूल में हैं ....महाराणा प्रताप , गुरु गोविन्द सिंह , महारानी लक्ष्मीबाई , अशफाक उल्ला खान जैसे व्यक्तियों की चारित्रिक द्णता है ....
उपन्यास सम्राट प्रेमचंद ने भी कहा है ....."चरित्र का जो मूल्य है वो किसी और वस्तु का नही है " ....
जर्मन दार्शनिक गेट के अनुसार ..."चरित्र का निर्माण संसार के संघर्ष के मध्य होता है "....सफलता एवं प्रतिष्ठा चरित्र रुपी वृक्ष की छाया है ...
फ्रेडरिक सांडर्स के शब्दों में ..."चरित्र जीवन में शासन करने वाला तत्त्व है , शासक जितना द्रण निश्चयी एवं अपने निर्णयों को जितनी द्णता से पालन करने वाला होगा , वह उसी अनुपात में स्वनाम धन्य होता चला जायेगा "....
चरित्र मनुष्य के अन्दर रहता है उसकी प्रतिछाया के रूप में बाहर दिखायी देता है ....
(नोट : लेख में कई पाठ्य सामग्री का सहारा लिया गया है )
12 comments:
सचमुच सही बात कही है पुराने समय के महान व्यक्ति जिस प्रकार अपने चरित्र को उज्जवल बनाये रखते थे ....आज वो बहुत कम देखने को मिलता है ....और जो भी बनाये रखता है वो ....उपलब्धि हासिल करता है ....और एक महान रूप में दुनिया के सामने होता है
बिल्कुल सही कहा आपने .....चारित्रिक उत्थान बुत आवश्यक है
baat to bahut pate ki kahi hai aapne ...khaaskar mahan vyaktiyon ki baatein ...
यदि चरित्र की वास्तविक परिभाषा लें तो दूर दूर तक कोई संपूर्ण चरित्रवान नही दीखता, थोडी बहुत उंच नीच लगी रहती है। गांधीजी से काफ़ी प्रभावित थे तो उनके चरित्र पर भी खूब कीचड उछलते देखा वो भी तब जब बेचारे ब्रह्मचारी बनने का प्रयत्न कर रहे थे!!
sundar abhiyakti hai
- vijay
आप प्रभु राम के अवतार जान पड़ते हैं, इतनी कम उम्र में ऐसी महान बातें कैसे कर लेते हैं? या फिर आपकी फोटो बचपन की है! मज़ाक था, सच बहुत ही अच्छा लिखा है, पढ़कर मन हर्षित हो जाता है कि आप से नवयुवक आज भी हैं!
विनय भाई मजाक अच्छा कर लेते हो .....फोटो तो मेरी अभी की है ....
और रही बात चरित्रवान होने की तो माना की हम १००% फिट नही बैठते लेकिन कोशिश तो कर सकते हैं .....
सही लिखा,इस बारे मे हर किसी को सोचना चाहिये।बधाई आपको एक अच्छी पोस्ट की।
बहुत उम्दा विचार......
सचमुच चरित्र से बढकर कोई पूंजी नहीं हो सकती.
बहुत सुंदर और सटीक बातें की है आपने.....सचमुच चरित्र के समान कीमती कुछ भी नहीं।
Character must be kept bright as well as clean.
- Dora Chesterfield
aapne to charitra ki paribhasha hi badal di meri nazaro mein.. dhanyawaad..
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