ट्रेन वाली लड़की (भाग-2)
>> 12 February 2009
ट्रेन की मुलाक़ात और एक महीना गुजर जाने के बाद, सच पूँछो तो नम्रता मेरे जहन में नही थी । उस दिन अचानक मोबाइल की घंटी बजी । रविवार का दिन, सुबह 10 बजे भी मैं बिस्तर से नहीं निकला था । झुझुलाहट में मोबाइल देखा । गुमनाम नंबर से कॉल, रिसीव किया ।
-"हैलो" उधर से आवाज़ आयी ।
-मैंने भी कहा हैलो
-"कैसे हैं आप ?" उधर से मेरी खैरियत पूँछते हुए लड़की की आवाज़ आयी ।
-"जी मैं तो ठीक हूँ । पर आप कौन बोल रही हैं ?" मैंने कहा ।
-बोली "गैस कीजिये ।"
मैंने दिमाग पर ज़ोर डाला पर दूर दूर तक कोई भी मेरी मेरी जानने वाली का नाम मेरे जेहन में नही आया । जिसे मैं ना पहचानता ।
-मैंने कहा "नही गैस कर सकता । आप ही बता दीजिये कि इस मीठी आवाज़ की मालकिन कौन है ।"
वो हँस दी और बोली "आपके दोस्तों में से आते हैं और फिर भी आप नही पहचान रहे ।"
मैंने कहा "कि जब दोस्त हैं तो जान पहचान की क्या जरूरत आन पड़ी ।"
-वो बोली "नही आपको गैस करना पड़ेगा ।"
मेरे मन में एक बार तो आया कि एक तो सुबह सुबह नीद में हैं ऊपर से हमारा दिमाग खर्च करवाया जा रहा है । गैस करो-गैस करो का खेल खेल कर । अब अगर लड़का होता तो उस पर झल्ला भी जाते, पर लड़की की मीठी आवाज़ और वो भी ख़ुद उसने कॉल किया है ।
-"अब बता भी दीजिये मैडम आप कि आप हमारी कौन सी दोस्त बोल रही हैं ।"
-बोली "हार गए ना । मुझे पता था कि आप नही बता पायेंगे ।
-मैंने कहा "मैं तो शुरू से ही हारा हुआ था, जीता ही कब था ।
-हँसते हुए बोली "आप भी ना बस । मैं नम्रता बोल रही हूँ । एक बार तो दिमाग से उतरा गया "नम्रता? हम्म्म्म्म..."
-"आपकी प्रशंसक नम्रता ।"
-ओह हैलो नम्रता । कैसी हो ? आज अचानक कैसे याद कर लिया इस गरीब को ।
-मैं आपको भूली ही कब थी
- मैंने कहा "अच्छा जी । ऐसी बात है ।
-बोली "सच बताऊँ तो मन ही मन उधेड़ बुन में लगी रही इतने दिनों । कि बात करूँ या न करूँ । फिर कल के वाक्ये से रहा ना गया ।
-"क्यों ऐसा क्या हो गया कल ?" मैंने पूँछा ।
-पता है, मैंने ना आपकी लिखी हुई कविता बैंक में होने वाली प्रतियोगिता में दी थी । पता है, आपकी कविता को इनाम मिला है । पूरे 5 हज़ार रुपये ।
-मैंने कहा "भाई ये भी खूब है । लिखी हमने जीत आप गयी ।
-बोली "नही मैंने उन्हें बता दिया था कि ये मेरे दोस्त की लिखी हुई है ।"
-मैंने कहा "अच्छा फिर"
-वो बोली "फिर क्या तो भी इनाम उसे ही मिला । अच्छा अब आप इन रुपयों का क्या करेंगे ?" उसने पूँछा
-मैंने कहा "भाई जीती आप हैं । आप जैसा उचित समझे आप करे ।
-बोली नही "ये पैसे आपके हैं । आपको ही मिलने चाहिए । अच्छा आपको जब ये रुपये मिलेंगे तो आप क्या करेंगे ?
-मैंने कहा "वैसे इस तरह कभी सोचा नही ।"
-कुछ गरीब बच्चो के लिए कपड़े खरीद कर दे देंगे
-"और मेरी ट्रीट" उधर से आवाज़ आयी ।
-मैंने कहाँ "वो आप जब चाहे ले लें ।"
-बोली "पता है, मैं अगले हफ्ते दिल्ली आ रही हूँ ।"
-मैंने कहा "क्यों ?"
-वो बोली "क्यों नही चाहते कि मैं आऊं ?"
-नही मेरे ऐसा मतलब नही था ।
-मैं अपनी बुआ जी के पास घूमने आ रही हूँ
-मैंने मजाक में बोला "तब ठीक है ।"
-हँसते हुए बोली "आप भी ना । अच्छा मैं आपके पैसे आकर तभी दूँगी ।
-मैंने कहा "पहले आओ तो सही ।"
उस दिन उसकी कॉल आयी ।
-मैं अपनी बुआ जी के यहाँ आ गयी हूँ ।
-मैंने कहा "अच्छा कब पहुँची आप ।"
-बस कल रात । अच्छा तो कब ले रहे हैं आप अपने रुपये मुझ से ।
-मैंने कहा "आप बार-बार पैसों को बीच में क्यों लाती हैं ? हम लोग तो वैसे भी मिल सकते हैं ।"
-इस बात पर वो हँसने लगी । "अच्छा बाबा सॉरी, बस अब आगे से नही बोलूँगी ।"
-अच्छा आप शाम को फ्री हैं ।
-बोली "हाँ"
-ठीक है आप शाम को 6 बजे तैयार रहना मैं, आपको लेने आ जाउँगा । अपना पता बता दीजिये । उसने पता बताते हुए फ़ोन रखा ।
शाम को बताये हुए पते पर पहुँचा । वो बाहर ही मेरा इंतज़ार कर रही थी । बहुत ही प्यारी लग रही थी वो और उस पर वो भोले भाले बच्चों जैसी हँसी । सचमुच दिल में घर कर गयी । हम पास के ही एक रेस्टोरेंट में गये । ऑटो में बैठ मुझे कुछ सूझ नही रहा था कि उससे क्या बात करुँ । बस सुनने का दिल कर रहा था कि वो बोलती रहे और मैं बस सुनता जाऊँ । उसकी बातें और बीच-बीच में खुश होकर उसका हँसना ।
रेस्टोरेंट में पहुँच में पहले ही बैठ गया । वो खड़ी मुस्कुराने लगी फिर अचानक से मेरा दिमाग चला और मैं मुस्कुराता हुआ उठा । उसे आदर के साथ बैठने का आग्रह किया । वो मुस्कुराती हुई बैठ गयी । "सॉरी वो ज़रा भी ख्याल नही रहा ।" मैं बोला ।
-"आप तो कुछ बोल ही नही रहे । ट्रेन में तो बहुत बोले जा रहे थे ।"
-मैंने मजाक के लहजे में कहा "वो दिखाने के दांत थे ।" वो ज़ोर से हँस दी
-बोली "हँसाना तो कोई आपसे सीखे ।"
-मैंने कहा "जब मन करता है तब बहुत बात करता हूँ । जब खामोश रहने का मन करता है तो खामोश रह लेता हूँ ।
-बोली "तो आप मनमौजी हैं ।"
-मैंने कहा "बस ऐसा ही है ।"
मैन्यू कार्ड उसे पकडाते हुए बोला । मैडम क्या खायेंगी आप मंगाइए । बोली "नही आप ही आर्डर कीजिये ।"
-मैंने कहा "ये सब मुझ से नही होता । आप ही मंगाइए ।"
-बोली "आपको क्या पसंद है ?"
-मैंने कहा "मुझे मैगी पसंद है । पर अगर वो बोलूँगा तो भगा देंगे ।
-बोली "आप भी बस ।"
फिर कुछ चीज़ें आर्डर की गयी और उस दिन की ट्रीट पूरी हुई ।
उस दिन अपने-अपने परिवार के सदस्यों, अपनी-अपनी पसंद, अपनी-अपनी नौकरी से सम्बंधित बातें हुई । चलते समय नम्रता ने मुझे पाँच हज़ार रुपये दिये । मैं आनाकानी कर रहा था लेकिन उसने हाँथ में थमा दिये । वापसी में नम्रता को घर पहुँचाने के बाद चल दिया । उसने हाँथ मिलाया और मुस्कुराकर कहा "आज आपके साथ बहुत अच्छा लगा ।" मुझे उस दिन अच्छा महसूस हो रहा था कि मेरी वजह से कोई दिल से इतना खुश है । मैंने उसको बोला कि "कल तैयार रहना । हम अनाथालय चलकर वहाँ कुछ कपड़े खरीद कर दे आयेंगे ।"
अगले दिन हम दोनों ने बाजार से जाकर कुछ कपड़े खरीदे । अनाथालय में जाकर बच्चो को बाँट दिये । वो वहाँ बहुत खुश थी । इतनी खुश दिल लड़की बहुत अरसे से देखी थी मैंने । वहाँ से वापस लौट कहने लगी "सचमुच आज मुझे बहुत अच्छा लगा" फिर बोली "आज सबकुछ आपके मन का करेंगे और आज की ट्रीट मेरी तरफ़ से । मैं मुस्कुरा दिया ।
-मैंने कहा "ऐसा सम्भव है"
-बोली "क्यों नही "
-मैंने कहा "भीड़ मैं खाने में मुझे बहुत ज्यादा मज़ा नही आता ।
-अच्छा तो फिर घर चलो, क्या खाना है ?"
-मैंने कहा "मैगी खाए हुए एक अरसा बीत गया, सूजी का हलवा खाए हुए अरसा बीत गया । अच्छी बनी हुई चाय पिये हुए अरसा बीत गया ।
-बोली "बस-बस समझ गयी । शादी क्यों नही कर लेते ? रोज़ खाया करना मैगी और उसे भी खिलाया करना ।"
मैं हँस दिया । मैंने मजाक मैं बोला "मम्मी सोचती हैं मैं अभी बच्चा हूँ ।"
-बोली "तो बता दो कि बड़े हो गये हो । लड़की देखना शुरू कर दो मेरे लिये ।"
-मैंने लड़कियों के अंदाज मैं बोला "आ अपनी शादी की बात भी करता है कोई ।"
-ज़ोर से हँस पड़ी "आप भी ना बस । बातें बनाना तो कोई आप से सीखे ।"
नम्रता मुझे अपने बुआ जी के घर ले गयी । बुआ जी विद फॅमिली बाहर जा रही थी । उनका अपना प्लान था । नम्रता ने उन्हें माजरा बताया । उन्होंने कहा "ठीक है तुम दोनों बनाओ खाओ ।" नम्रता बोली "सूजी का हलवा तो मैं अच्छा बना लेती हूँ पर मैगी !"
-मैंने कहा "ये बन्दा किस काम आएगा । तुम हलवा बनाओ । मैं मैगी बनाता हूँ ।"
-बोली "सही है आपकी बीवी तो बहुत खुश रहेगी । आप तो शरीफ पति साबित होंगे ।
-मैंने कहा "अब ये तो होने वाली बीवी ही बता पायेगी कि कैसा पति हूँ मैं ?"
जब सब कुछ बनकर तैयार हो गया और हम खाने बैठे । मैगी खाकर बोली "वाह ! मैंने ऐसी मैगी कभी नही खायी । मजा आ गया ! जादू है ये तो ।"
-शुक्रिया ।
-बोली "आप तो अपना ढाबा खोल लो और मैगी बना-बना कर बेचना शुरू कर दो ।
-मैंने का "ये भी सही है । किसी दिन इसका भी सोचा जायेगा ।"
और फिर बातों का सिलसिला चला । जो थमने का नाम नही ले रहा था । हँसी की गूँज और उसका भोला चेहरा मेरी आंखों में छा गया । अगले दिन उसे भोपाल वापस लौटना था । वो चली गयी । अपने साथ वो हँसी, वो बातें, वो भोलापन लेकर ।
हमारी मुलाकाते होती रही । कभी उसका किसी काम से दिल्ली आना होता तो कभी किसी काम से । मोबाइल पर भी ढेरों बातें करती । सचमुच बहुत खूबसूरत दिन थे वो ।
फिर एक दिन आया, जिस दिन सब कुछ अच्छा और सुखद था । नम्रता और मैं एक रेस्टोरेंट में बैठे थे ।
-नम्रता बोली "अच्छा आपने कभी मुझसे नही पूँछा कि मुझे कभी कोई अच्छा नही लगा । इस तरह का सवाल कभी नही किया आपने ।"
-मैंने कहा "कोई जरूरी तो नही और वैसे भी इन सब बातों से ज्यादा मतलब नही रहता मुझे । तुम तो जानती ही हो सब । जब इतनी कहानियाँ रह चुकी हों जिसकी, उसे कितनी दिलचस्पी रह जायेगी इन सब में ।
-अच्छा ऐसी बात है ।
-"अच्छा अब बताइए भी क्या आपको कभी कोई पसंद आया ।" मैंने कहा
-वो खामोश हो गयी
-मैंने कहा "अब बताइए ना ।"
-वो बोली "हाँ अच्छा लगता है मुझे एक इंसान ।"
मैंने खुशी जाहिर करते हुए बोला "ये तो बहुत खुशी की बात है । कौन है वो खुशनसीब ?
-मुझे आप अच्छे लगते हैं ।
मैंने ये कभी नही सोचा था कि नम्रता ऐसा कुछ बोलेगी ।
-क्या बोला ?
-हाँ आप मुझे अच्छे लगते हैं । मैं आपको पसंद करती हूँ । मैं अपनी जिंदगी, आप जैसे इंसान के साथ ही गुजारना चाहती हूँ ।
-क्या बोल रही हो नम्रता । तुम्हे तो सब पता है मेरे बारे में । मेरे अतीत के बारे में, मेरे स्वभाव के बारे में । इसके बावजूद तुम ये बोल रही हो ।
-नम्रता बोली "हाँ मैं सब जानती हूँ और बहुत सोच समझकर ही ये कहा है ।
हँसते हुए बोली इतने भी किशन कन्हैया नही हो । जितनी बातें बताते हो । मुझे पता है कि आप अपनी पत्नी के साथ बहुत वफादार रहेंगे । मैं खुश रहूंगी आपके साथ ।
-मैंने कहा "देखो नम्रता ये जीवन कविता की तरह नही है । जिसमे सब अच्छा और प्यारा लगता है और मान भी लो कि ये सब ठीक है । तो क्या तुम्हारे परिवार के लोग तुम्हे अंतरजातीय विवाह की मंजूरी देंगे ।
-बोली "मैं अपने माता पिता को जानती हूँ । उन्हें मेरी खुशी में ही खुशी मिलती है ।
-मैंने कहा "ठीक है । अपने परिवार की राय जान लो पहले । तभी कोई कदम उठाना । वैसे मुझे तुम जैसी लड़की मिल जाये, तो मेरे लिये इससे बड़ी खुशी की बात और कोई नही हो सकती । तुम किसी की भी जिंदगी खुशियों से भर सकती हो ।
बोली मैं अपने माता पिता से बात करुँगी इस बारे में ....
आगे पढ़िए अंतिम भाग !
16 comments:
ये सरासर बेईमानी है.. बिलकुल बेईमानी..
अभी की अभी पूरी करो नहीं तो माईक्रोप्रोसेसर और साफ्टवेयर इंजिनियरिंग फिर से पढ़ने को मिलेगी यही मेरी बद्दुवा है.. :)
ये सरासर बेईमानी है.. बिलकुल बेईमानी..
अभी की अभी पूरी करो कहानी नहीं तो माईक्रोप्रोसेसर और साफ्टवेयर इंजिनियरिंग फिर से पढ़ने को मिलेगी यही मेरी बद्दुवा है.. :)
भाई पोस्ट लम्बी हो रही थी ...और अभी तो मामला लंबा है .....इसी लिये अगले भाग में लिखूंगा ...आगे की दास्तान
और भाई ऐसी तगडी वाली बदुदुआ ....दे रहे हो ...हा हा हा हा ... :) :)
प्रशांत भाई गाना सुनकर बताना कैसा लगा ...मेरी ख़ुद की आवाज़ है
गुरू सेम-टू-सेम चल रहे हो।बहुत बढिया।
गनवा तो मस्त गाये हैं भैया.. आवाज भी बहुत बढ़िया है.. कल रात नहीं सुन पाये थे.. घर में सभी सोये हुये थे सो अगर रात में सुनता तो सभी उठकर जुतिया देते.. :)
बहुत पहले मैंने भी अपनी आवाज में दो गीत डाले थे आप भी बतायें कुछ उसके बारे में.. शीर्षक था अंततः मैं इंडियन आयडल में चुन लिया गया :)
थोडी लम्बी थी पर खली नही। यह पोस्ट बुनी हुई तो सलीके से है। बस दोस्त इंतजार नही होता। और आप हो कि इंतजार पर इंतजार कराते हैं।
अब आपने ही कहा न पोस्ट लम्बी थी थोडी सी ...इसी कारण मैंने बाकी की कहानी बाद में लिखने का फ़ैसला किया ...जल्द ही अगली पोस्ट में आगे की कहानी लिखूंगा
Chetan bhagat se bacha kar rakhen. Ho sakta hai ees par wo ek alag novel naa likh den.
अगली कड़ी का इन्तजार है रोचक है यह
रोचक बनी है कथा..जारी रहो. गाते तो आप बढ़िया हैं, अच्छा लगा सुन कर.
रोचक... अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.
●๋• लविज़ा ●๋•
पतंगा बार-बार जलता है
दिये के पास जाकर
फिर भी वो जाता है
क्योंकि प्यार
मर-मिटना भी सिखाता है !
.....मदनोत्सव की इस सुखद बेला पर शुभकामनायें !!
'शब्द सृजन की ओर' पर मेरी कविता "प्रेम" पर गौर फरमाइयेगा !!
कहानी में रोचकता बनी हुई है.
बहुत सुंदर रचना .
बधाई
इस ब्लॉग पर एक नजर डालें "दादी माँ की कहानियाँ "
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