ऐ काश कि अब होश में हम आने ना पायें
>> 17 July 2009
ये बचपन के दोस्त भी क्या ख़ास फुर्सत से बने होते हैं...एक तरफ जहाँ लगता हैं कि वो इतने अच्छे हैं कि खुदा ने उन्हें बड़े दिल से बनाया होगा और उस पर वो हमारा प्यारा बचपन...मासूमियत से भरा...ना कोई बंदिश और ना कोई चिंता...बस ऐश ही ऐश...खुशनसीबी भी क्या चीज़ होती है...ये एक ऊपर वाले की तरफ से एक तौह्फे के तौर पर मिलती है...हाँ मैं भी कम से कम एक मामले में खुद को खुशनसीब मानता हूँ...दोस्तों के मामले में...और उस पर से बचपन के दोस्त जब अंत तक साथ बने रहे तो क्या कहने...
इस भाग दौड़ की जिंदगी से जब कभी फुर्सत के पल चुरा लेता हूँ तो बचपन के दोस्त की तरफ दौड़ लगा ही लेता हूँ...एक लम्बा अरसा हो चला जब मैं और वो नहीं मिल सके...और उस रोज़ आखिरकार खुदा ने कुछ रहमत दिखाई...दिल्ली जाना हुआ और बारिश मैं भीगने के बाद बस एक ही ख्याल आया कि बस अब और नहीं...मेरे कदम खुद ब खुद उसकी ओर दौड़ पड़े...
होश में तो हम पहले से ही नहीं थी...एक दूजे से कई महीने बाद मिलने की ख़ुशी और जब बीयर के घूँट गले से नीचे गए तो होश बाकी कहाँ रहना था...बस छिड़ गयी वही बचपन की धुन...वो बचपन के बस्तों, साइकलों, कक्षाओं में मस्ती की कहानी...एक दूजे को चिढाने की कहानी...वो मौज मस्ती, वो क्रिकेट की जबानी...वो पहले प्यार की भीनी भीनी खुशबू...ना जाने कहाँ से कमबख्त ने जिक्र छेड़ दिया...एक पल तो लगा कि हम उन्हीं दिनों मैं जी रहे हैं
और हमारे बचपन के दिन भी कम मजेदार नहीं थे...आखिर भूलें भी तो कैसे भूलें...याद है यार वो जब एक बार तीरथराम सर ने तेरे बाल कैंची लेकर बुरी तरह काट दिए थे...उसके बाद तुझे सर से बालों का सफाया ही कराना पड़ गया था...इस बात पर तो जी सिगरेट जला ली बन्दे ने...हा हा हा हा...हाँ यार कैसे भूल सकता हूँ...
हम आर्य समाज की संस्था द्वारा चलाये जा रहे स्कूल में पढ़ते थे...उसके नियम, कायदे, कानून...और उस पर से उसके अध्यापक गण...एक से बढ़कर एक...और हम लोगों ने भी सबके नाम एक से बढ़कर एक रखे हुए थे....
एक थे हमारे तीरथराम सर उन का बस एक ही काम था सप्ताह में दो दिन हर कक्षा में एक चक्कर लगाते और अगर किसी के बाल आवश्यकता से अधिक बड़े हैं तो उसके बालों पर उल्टी सीधी कैंची मार जाते...बस फिर क्या है कोई मरता क्या ना करता...बालों का जड़ से ही सफाया करवाना पड़ता था ऐसी हालत में...एक बार हमारे ये दोस्त उनके चंगुल में फंस गए थे...उनकी पैनी नज़र से इनका हीरो बनना छुप ना सका....
दूजे वो जो पी.टी. के सर थे...शायद ही उन्होंने कभी पी.टी. करवाई हो...उनका बस एक ही काम था कि कक्षा में आये चौक उठाई और ब्लेक बोर्ड पर लिख दिया "सभी छात्र अपना अपना अपूर्ण कार्य पूरा करें"...और उनकी चौक शायद ही किसी काम के लिए चली हो...थे पी.टी. के सर...और दुबले पतले इतनी कि पूंछो मत....4-5 साल बाद रिटायर होने वाले थे...आखिरी पीरियड ख़त्म होने पर शांति पाठ होता था...अगर किसी लड़के ने शांति पाठ ख़त्म होने से पहले बस्ता बंद कर लिया तो समझो खैर नहीं...उसके बस्ते की सारी किताब-कांपियां कक्षा के हर कोने में नज़र आती थीं और वो बच्चा अपनी कांपियां ही बीनता रह जाता था...
उधर वो हमारे महेश्वरी सर वो रोज़ याद करने को देते और याद ना करके लाने पर हर अगले दिन पूँछते कि कौन कौन याद करके लाया है...और सबको खडा कर देते....फिर कहते कि जो बच्चा चुप से बैठ के याद करे वो बैठ सकता है...अब लो भला बैंच पर कौन खडा होना चाहेगा...और उनकी ख़ास आदत वो आये दिन कोई कहानी सुनाते थे...वहाँ स्कूल में हर रोज़ पैर छूने का रिवाज था...हर बच्चा माहेश्वरी सर के पैर जरूर छूता....उनकी ज्यादा इज्जत करने के लिए नहीं...बल्कि उनके जूतों की पोलिश ख़राब करने के लिए...और वो अपने पैर इसी कारण छूने ना देते
एक सर ऐसे कि कब हंसते थे और कब सामान्य रहते थे हम अंत तक ना जान सके...और अपनी ही धुन में कब हाथ इधर का उधर कर देते...बच्चे समझते कि इन्होने बाहर जाकर पानी पीने की इजाजत दे दी है...जब बच्चा बाहर से वापस आता तो उसकी मार पड़ती कि बिना पूँछे क्यों गया
और वो हमारे कला विषय के सर उन्हें कितना और क्या आता था इसका तो पता नहीं...पर उन्होंने छटवीं कक्षा से लेकर आठवीं कक्षा तक बस आम, गिलास और सीनरी बनाना सिखाया था...हर दूसरे दिन वही बनवाते थे....अंग्रेजी के सर ऐसे थे कि उनसे जो बच्चा ट्यूशन नहीं पढता था वो उसको दुश्मन समझते थे...और कक्षा के 80% बच्चे उनके दुश्मन हुआ करते थे....
खैर थी कि विज्ञान, गणित और एक अन्य अंग्रेजी वाले सर अच्छे थे...मेरा दोस्त बीयर का घूँट गले से नीचे उतारकर बोलता है...अबे अच्छा उसका क्या हुआ...उसकी शादी हो गयी क्या..वो बोला...उसने फिर से नयी सिगरेट जला ली...वही तेरा पहला प्यार...जिसको तू छत से छुप छुप के देखा करता था...जो तुझे देखकर मुस्कुरा जाया करती थी....शादी हो गयी होगी उसकी तो...है ना....हुई कि नहीं....मैं उसके हाथ से सिगरेट ले लेता हूँ...कश लेता हूँ, धुंआ उड़ाता हूँ...यूँ दबी हुई आग को हवा नहीं देते मेरे दोस्त...क्यों भड़का रहे हो उस दबी हुई चिंगारी को....
अब ये हम लोगों की तीसरी बीयर है...वो खोलते हुए बोलता है...अच्छा सही है...तू तो बड़ा आदमी हो गया...प्रोग्रेस...वाह...अबे उसका बताया नहीं क्या हुआ था...अरे यार वो पहला और आखिरी ख़त था जो पकडा गया था...और उसके बाद वो मोहब्बत वहीँ दफ़न हो गयी थी...उसकी बहन के हाथ प्रेम पत्र पकडे जाने तक का तो तुझे सब पता ही है...वो बोला फिर क्या हुआ...बस फिर कुछ नहीं हुआ...वो उसी तरह देखती और मुस्कुराती...लेकिन हमें वही मंजर याद आ जाता...मेरा पहला प्यार अधूरा रह गया दोस्त...वो हँसता है...हा हा हा...अधूरा प्यार...बाद में पिताजी का ट्रांसफर होने के बाद की कहानी पता नहीं...
वो बोलता है "नो मोर लव स्टोरी प्लीज"....मैं उसकी आँखों की तरफ देखता हूँ...लडखडाती जबान भी दर्द महसूस करा जाती है...शायद कहना चाह रहा हो कि मेरा प्यार तो पूरा था फिर क्यों ऐसा हुआ...आखिरी बीयर के साथ यह एहसास करा रहा है वो....चन्द महीने पहले ही तो उसकी महबूबा की शादी कहीं और हुई थी...ये कमबख्त इश्क भी ना...उन बचपन के गलियारों में फिर से पहुँच कब नीद आ गयी हमें खबर ही नहीं लगी...शायद हम चाहते भी ना थे उस रोज़ होश में रहना
31 comments:
ये लीजिए, आपने चाहा और आपकी इच्छा पूरी हो गयी।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
ishq jab tak na kare ruswa aadmi kaam ka nahi hota...behad hi achhi,dil ko chhoo lene wali post...
waah bachpan ka ye madhosh behsosh nasha bada sukuniyaat wala raha,bahut sunder.
बहुत ही अच्छा लिखा आपने ।
bachpan ki yaaden hi aise hoti hain ki kabhi hosh mein aana hi nahi chahte
bachpan aisa hee hota hai...
apki abhivyakti kabile tareef.badhai!
Aji Bachpan ki bat hi kuchh aur hai..
बचपन की ये स्मृतियाँ हमारी सुख की वो पूँजी है,जो जिन्दगी के ऊबड़ खाबड़ रास्तों में आकर हमें मुस्कुराना सिखा जाती है.
Thanks for the comment on 'Blogue'.......my new blog address is http://georgiacounty.blogspot.com/ :)
anil bhai
aap to har baar ek chhota hua vishya saamne le aate hai...hame bhi bachpan me pahubcha diya na..
शानदार लेखन!!
कोई लौटा दे मेरे बीते हुये दिन्।
क्या बात है सटीक शानदार ...
आप लगातार अच्छा लेख रहे हैँ - लिखते रहेँ - यूँ ही !
-- लावण्या
romantic stories par pakad achchi hain aapki ....... likhte rahiye
majedaar. hamen bhee school ke din yaad aa gaye... likhte rahiye
पिंकी के इस जंग में आप भी शामिल हो और उसके बेहतर भविष्य के लिए दुआ करे
kamabakht ishk..aur ye yaad dilaane waale dost...!!!!
क्या कहूँ अपकी रचना होती ही काबिले तारीफ है बहुत सुन्दर और भाव्मय शुभकामनायें
तेरी तारीफ़ सदा सच्ची ही की है मैनें
झूठे अफ़साने मैं ईजाद नहीं करता हूँ
आज पहली बार पढ़ा। बहुत ही अच्छा लिखते हैं आप...हमेशा लिखते रहिये...मेरी शुभकामनाएं आपके साथ हैं..
संस्मरण या फिर मुलाक़ात का वृत्तांत बहुत तेज कदम हैं मुझे पढ़ते समय बहुत सारे चित्र खींचने पड़ते हैं आपकी पहली बियर का नशा मुझ तक पहुंचे तब तक आप दोस्त बहुत आगे निकल जाते हो फिर अपने इस किस्से में कितने ही किस्से बुन रखे हैं जिनमे कई मास्टरों के चरित्र और खुलते तो मजा आ जाता.
दोबारा पढ़ता हूँ इसको....
खूबसूरत है पर वक़्त थोड़ा और दो यार हमें इशारों में ही आनंद है तो सोचो सब बातें खुल जाती तो क्या हाल होता.
very very nostalgic...dere was a huge smile on my face while reading..
keep writing!!!
हर बार की तरह इस बार भी रवि जी बचपन की कुछ बातें आपकी पोस्ट के साथ याद आ गयीं............ आप गज़ब का रंग भर देते हैं
दिगंबर जी मेरा नाम अनिल कान्त है :)
bahut hee shandar rachna hai, aapki ye rachna hame apne bachapan ke atit me le jati hai, kya kiya jaye bachapan hota hee aisa hai ki hosh me aane ko man hee nahi karta.
रोचक . आपकी शैली बहुत शानदार है.एक ही सांस में पढवा लेने वाली.
Bachpan to chala jata hai bas yaaden rah jati hain hamesha saath rehne ko.
सही कहा आपने,
वो पुराने दिन बड़े अनमोल होते है.
फिर कभी नही आएँगे इस बात का खेद हमेशा रहता है..सुंदर संस्मरण..!!
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