धुंधलाती सी यादें
>> 26 July 2009
कभी कभी लगता है कि हम यादों के महखाने में बैठे हैं और ठीक उसी तरह खुद को भूल चुके हैं जैसे कोई पैग लगा खुद को भुला देता है या भूल जाना चाहता है...हाँ उसी तरह बीती हुई जिंदगी के तमाम पहलू...वो तमाम बातें...वो तमाम प्यार भरी, उलटी-सीधी हरकतें यादें बनकर आ जाती हैं और हम खुद को मदहोश कर लेते हैं उन यादों में...हाँ शायद फर्क यादों का होता है
एक बार यादों की नगरी में प्रवेश कर जाओ...बस फिर क्या...हर एक याद आपसे आपका हाल चाल पूंछ बैठेगी...कहिये जनाब क्या हाल हैं आपके...आपका आना आजकल इधर कम हो गया है...और आप हैं कि बस मुस्कुरा भर रह जाते हैं...हाँ वो हंसी बनावटी नहीं होती...क्या फर्क पड़ता है वो क्लोज-अप इस्माइल हो या कोई और...आपको वहाँ पोज नहीं देना...वहाँ तो बस आप हैं और वो यादें...
ऊपर वाली तस्वीर देख रहे हैं...जनाब जो बैठे हुए हैं वो हमारे प्यारे भाई जान हैं...'छोटे'...हाँ बचपन में उसे इसी नाम से तो बुलाता था...जब बेहद प्यार आता था तो...कमबख्त क्या दिन थे...हाथ से फिसले तो फिसलते ही गए...और हमारी चोटी को छूने की चाहत शुरू हुई तो बदस्तूर जारी है...हाँ आज तक छुई नहीं...
बचपन में हमारे बापू हम दोनों के एक से ही कपडे बनवाते थे...ताकि कोई ये ना कह सके कि मेरा वाला अच्छा है या तेरा वाला...या उस समय की तंग हालत..और बंद मुट्ठी ऐसा करवाती हो...खैर...अच्छा लगता था...लेकिन वक़्त बीतते बीतते दिल में तमन्नाएं घर बना लेती हैं...पापा हम नहीं पहनेंगे ये एक से कपडे...क्या आप एक से ही कपडे बनवाते हैं...
अब फोटो से तो सब जान ही गए हैं कि ताजमहल है...हम लोगों ने ताजमहल कितनी बार देखा कह नहीं सकते...अब तो याद भी नहीं...अरे जी गणित में तो हम शुरू से होशियार थे पर क्या है कि हमारे बापू की पोस्टिंग आगरा में ही थी...बस जब तब ताजमहल जाना हो ही जाता...कभी किसी रिश्तेदार के साथ तो कभी किसी...
उन दिनों तो ताजमहल के नीचे जहां कब्र भी हैं वहाँ भी जाने के लिए सीढियां खुली हुई थीं...ये ऊंची ऊंची दीवारें...और उन दीवारों पर क्या चित्रकारी थी...जी कमाल...और बहुत अच्छा अच्छा लिखा हुआ था...तब हमारे अंकल जी की पोस्टिंग वहीँ थी ताजमहल पर ही...बस ये ना पूंछो क्या मौज आती थी...नीचे कब्र वाले इलाके में जाकर बड़ा मजा आता था...जब मैं पुकारता 'छोटे'...और वो आवाज चारों और गूँज जाती...ऊपर से नीचे तक...दाएं से बायें तक...और वो छोटे की हंसी की गूँज...'भैया'...'भैया'...जब वो जोर जोर से आवाजें लगाता....और वो हंसी की गूँज...हां...हां...हां...ही...ही...वाह क्या दिन थे ...कमबख्त बड़ी जल्दी बीत गए...और बन गए याद
माँ कहती है एक बार जब हम गाँव गए तो गाँव की सभी औरतें अपने घर के बाहर चबूतरे पर निकल आई...और हम दोनों भाइयों को एक से कपडे पहन देख कहने लगी देखो कैसी राम-लक्ष्मण की जोड़ी जा रही है...बस वो दिन आखिरी दिन था...हमारी दादी ने कभी एक से कपडे ना बनवाने की हिदायत बापू को दे दी...कभी सोचता हूँ तो बहुत प्यार आता है उन एक से कपडे पहनने पर...उफ़ कमबख्त ये यादें भी अजीब होती हैं...कभी हँसाती हैं तो कभी रुलाती हैं...और जब ये जिंदगी ले जाती है हमें दूर अपनों से...तब रह रहकर याद आता है वो बचपन...वो शरारतें...वो यादें...वो बातें...माँ का प्यार...भाई का झगड़ना...बहन की फरमाइशें...और ना जाने क्या क्या....यादें...हाँ यादें...
30 comments:
sahi hai yadon ki duniya bhi apne men adbhut hoti hai...yadon ke hi sahare jeevan kat jata hai...
कभी कभी लगता है कि हम यादों के महखाने में बैठे हैं और ठीक उसी तरह खुद को भूल चुके हैं जैसे कोई पैग लगा खुद को भुला देता है
अनिल जी
क्या बात है भावतीत ध्यान में खोकर बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति. बधाई ... बधाई
सही कहा आपने यादों से रिश्ता ही कुछ ऐसा होता है दिल का. कभी रुलाती हैं तो हँसाती भी हैं
बिल्कुल सही यांदे बहुत याद आती है। सुन्दर रचना। इससे जुङी हुई मेरी रचना "बीते लम्हे हमे याद आते है " जरुर पढे आभार।
रिश्तो को; यादो को; अतीत की परछाईयो को समय समय पर उलट पुलट करते रहे -- यादे साथ- साथ चलेंगी.
अच्छा लेखन
बधाई
सही कहा अनिल जी बचपन के वो बेहतरीन पल इतनी जल्दी हाथ से रेत की तरह फिसल जाते हैं और कब याद बन जाते हैं पता ही नहीं चलता... कभी फुर्सत में सोचने बैठो तो लगता है मानो अभी कल ही की तो बात है... जीवन की खट्टी मीठी यादों की अनूठी अभिव्यक्ति... हमें भी अपने बचपन की याद दिला गयी :)
अरे वाह! ऐसी तस्वीर तो मेरे पास भी है... बचपन की.......... ताजमहल को छूते हुए...
बचपन में दोस्तों को बेवकूफ बनाया था वो तस्वीर दिखा कर कि देखो ताजमहल तो मेरे जितना ही ऊंचा है.
बचपन भी क्या खूब होता है.
yaadein yaad aatee hai...
ऊपर वाली तस्वीर देख रहे हैं...जनाब जो बैठे हुए हैं वो हमारे प्यारे भाई जान हैं...'छोटे'...हाँ बचपन में उसे इसी नाम से तो बुलाता था...जब बेहद प्यार आता था तो...कमबख्त क्या दिन थे...हाथ से फिसले तो फिसलते ही गए...और हमारी चोटी को छूने की चाहत शुरू हुई तो बदस्तूर जारी है...हाँ आज तक छुई नहीं...
Sachmuch, Vakt kitnee jaldee pankh lagaa kar ud jaata hai !
वाह क्या दिन थे ...कमबख्त बड़ी जल्दी बीत गए ...और बन गए यादें ...
बहुत सुन्दर , अपनी यादें शेयर करने का शुक्रिया |
सच कहा बचपन की यादें तो ऐसी ही होती हैं............... लाजवाब, दिल में उतरती हुयी पोस्ट ........
सच कहा है ये यादें तो जैसे हरदम अपने पँखों पर ही सवार रहती हैं और अचानक ही हम तक पहुँच कर पहुँचा देती हैं अतीत मे फिर बचपन ही तो जीवन का ऐसा भाग है जो हमे अक्सर लिभाता है सुन्दर सँस्मरण बधाई
सच कहा है ये यादें तो जैसे हरदम अपने पँखों पर ही सवार रहती हैं और अचानक ही हम तक पहुँच कर पहुँचा देती हैं अतीत मे फिर बचपन ही तो जीवन का ऐसा भाग है जो हमे अक्सर लिभाता है सुन्दर सँस्मरण बधाई
bhut achcha likha aapne
बहुत ही ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति
achhi yaade hi to hoti he jo hamaare jeevan ki buniyaad ban jaati he, aour yaado me jab udaasi ghuli hoti he to yahi jeevan me chen nahi lene deti..kintu jo bhi ho yaado ke sang apana hi mazaa hotaa he/ ateet uthkar hamaare samane khada ho jataa he/ wah//
बचपन की तंग हालत में एक से कपड़े? अरे हमें तो ख्याल आ रहा है कि अब इस उम्र में हम अपने पैण्ट और कमीज का एक यूनीफार्म कलर चुन लें तो न बेकार चुनने की झंझट हो और दो सेट कपड़ों में काम भी चल जाये।
बड़ी गम्भीरता से सोच रहा हूं।
यादे तो यादे है ,
वो कितनी हसीन है
कभी बड़ी गमगीन है
कभी अजीब है
पर बड़ी सुकून सा देती है ये यादे
यादे तो यादे है
बचपन की यादें सच में खूब सूरत होती हैं। ये एक जैसे कपङे तो मैने और मेरी बहन ने भी पहने है जिससे मुझे तो अच्छा लगता था लेकिन उसे नहीं।
सही बात है. बचपन जैसे दिन अब नहीं आ सकते. उन्हें तो अब अपने बच्चों में ही खोजना होगा.
mitr bilkul sahi kaha bachpan ke bo deen jab kabhi anayash yaad aajate hai to man karta hai ki kaas jindgi bapas jaa paati aur hum bhi bapas jaa sakte unhi bachpan ke dino me
mera prnaam swikaar kare
saadar
praveen pathik
9971969084
Bahut hi sundar tasveer aur khubsoorat likhavat. Very very nice write up..brought back many memories for me too
I am first time on your blog and really spell bound live writing. In our Bachpan the whole rim of the cloth was purchased and starting from servant to eldest brother we had same uniform same dress and really we felt the same no injustice. As a result i could not tolarate any partiality and protested.
आह बचपन तुझ पे सब निसार
वो कागज की कश्ती वो बारिश का पानी ....., आभार आपका बचपन को याद दिलाने के लिये.
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
ना जाने किस गली में जिंदगी की शाम हो जाए
बेहतरीन
yaade yaad aati hai nice post..........
purani yaaden bhavon se bhari hoti hain .achchi abhivyakti
यादों के घर जब कदम अनायास उठ जाते हैं तो कुछ अनमोल लमहे यूँ ही टपक पड़ते हैं..
yaadon ko kabhi nahi bhulna cahiye.
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