चेहरे कहीं गुम हैं मुखौटों के पीछे
>> 15 July 2009
हमारे पड़ोस में रहने वाले वर्मा जी बड़े ही नेक और शरीफ इंसान हैं.उस रोज़ वो पास के ही आश्रम के पास खड़े थे जिसको वो काफी चंदा देते हैं. वहाँ कुछ मोक्ष, ज्ञान, मोह-माया त्यागने, परम आत्मा और ईश्वर को पाने के बारे में बताया जा रहा था. कुछ बड़े बड़े पोस्टर लगा रखे थे और बाकायदा सफ़ेद वस्त्र धारण वर्मा जी और उनकी कुछ साथी महिलाएं और पुरुष बाकायदा लोगों को सब समझा रहे थे.
वर्मा जी ने मुझे उधर से निकलते देख मुझे पुकारा और समझाना चाहा कि सब मोह माया है, अपना ध्यान ईश्वर में लगाओ. जब मैं उधर खडा होकर एक नज़र देखता हूँ. वो कह रहे हैं कि सब माया है, सब यहीं छोड़ कर जाना है. मेरे दिमाग में टन्न से कुछ बजा...आएं वर्मा जी को क्या हो गया? कैसी बातें कर रहे हैं? अगर ऐसा है तो हमसे किराया लेते हैं और उसकी असल पर्ची भी नहीं देते ताकि उनका टैक्स न लगे और पर्ची मांगो तो घर खाली कर दो की प्यारी सी धमकी दे देते हैं.
फिर वो कह रहे हैं कि इस शरीर की ज्यादा सेवा नहीं करनी चाहिए. मैं सर खुजलाने लगा ये क्या हुआ वर्मा जी को, वर्मा जी तो हमेशा एसी कार में घुमते हैं, उसके बिना कहीं कदम भी नहीं रखते और कल ही तो उन्होंने अपने नीचे रहने वाले किरायेदार की बिजली काट दी थी ताकि उनका एसी चल सके. अमां वर्मा जी काहे मजाक कर रहे हो (ऐसा हमने मन में सोचा)...अरे बाप रे ई कैसा मुखौटा लगा रखा है चेहरे पर वर्मा जी ने. फिर हमारी नज़र कार में एसी चला कर बैठे कुछ सभ्य पुरुष और महिलाओं पर गयी जो इस आश्रम रुपी संस्था को चलाते हैं. हमने सोचा चलो अच्छा है बाहर नहीं निकल रहे वरना खामखाँ पसीना बहेगा...वर्मा जी का क्या है ? कुछ भी कहते रहते हैं. ये भी भला कोई बात हुई.
उधर सफ़ेद वस्त्र धारण किये हुए महिलाएं जो कि उस आश्रम में रहती हैं वहाँ एकत्रित गरीब महिलाओं को समझा रही हैं कि ईश्वर क्या है, परमात्मा क्या है, मोह क्या है, माया क्या है, असीम सुख क्या है, भगवान की भक्ति क्या है? और उधर हम खामखाँ आज तक सोचते रहे कि जैसा कि आश्रम में 24 घंटे लाइट का बंदोबस्त है, उचित साफ़ सफाई, एसी, पंखा, इनवर्टर, दोनों पहर भर पेट अच्छा खाना और कहीं बाहर जाना हो तो वर्मा जी की और अन्य भद्र पुरुषों की गाडियां हैं और हाँ एक स्कूटी भी तो है. जीवन जीने का आनंद ही आनंद है.
कमाल है फिर ये इन गरीबन को काहे ऐसे बोल रहे हैं...कि ई सब कछु नाही है...ई सब में कछु नाही धरो...और ऊ देखो सबके सब बड़े ध्यान से सब समझी रहे हेंगे. हमारा दिमाग इस धर पटक में बहुत घूमा कि ये गरीब लोग भी अजीब हैं...परेशान हैं, दुखी हैं, शरीर को कष्ट है...तभी ईश्वर की बात और मोक्ष की बात पर ध्यान दे रहे हैं. अरे हमारा मन तो किया कि वहीँ खड़े के खड़े कही दें कि ऐ गरीब लोग काहे टाइम खोटी करते हो खुद का. इसी आश्रम में काहे नाही भरती हुई जात. दोनों बखत भर पेट भोजन तो मिलिए. भजन तो तुम सब कर ही लियो दोनों बखत. अरे हम तो कहत हैं चारो बखत.
हम वर्मा जी के चेहरे को देखकर मुस्कुराये और उस सफ़ेद वस्त्र धारण की हुई महिला को जो कल ही कूलर सही करने वाली दुकान पर वर्मा जी के साथ खड़ी थीं और ये कह रही थी कि कूलर आज ही सही हो जाना चाहिए.
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उधर मेरे भाई के ऑफिस में शिखा मैडम का मूड आज बहुत अच्छा है. एक सहकर्मी ने उनकी तारीफ की है और वो खिलखिला के हँस रही हैं...मोबाइल की घंटी बजती है और वो किसी को डांट सी लगा रही हैं , उस पर तेज तेज चीख रही हैं. मेरा मूड ख़राब मत किया करो अच्छा अभी मैं बिजी हूँ बाद में बात करुँगी...बाद में पता चला कि वो महोदय उनके पति हैं....और बाद में ये भी पता लगा कि ये ज्यादातर अपने पति पर इसी तरह झल्लाती हैं और ये अपने उन से ज्यादातर ऐसे ही बातें करती हैं
आएं ई कैसे हुआ...अभी अभी तो ये मैडम खिलखिला रही थीं और अचानक से इनका टोन बदल कैसे गया...जानकार ताज्जुब हुआ कि इन्होने अपने पति से लव मैरिज की थी(हम सर खुजलाने लगे)...पूरा छह महीने का लव था हाँ...अभी हम सोच ही रहे थे और वो मैडम उधर किसी दूसरी लड़की से खिलखिला के बातें करती दिखीं.
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शर्मा जी गरीबों के बड़े हितेसी हैं और यहाँ के हाऊसिंग बोर्ड के मुखिया भी. अभी शर्मा जी कह रहे थे कि गरीब बच्चों के लिए शिक्षा बहुत जरूरी है. सरकार को और हम लोगों को कुछ करना चाहिए. तभी छोटू चाय वाला चाय लेकर आता है और उससे धोखे से चाय टेबल पर फ़ैल जाती है. शर्मा जी उसे गरियाते हुए खीज रहे हैं और जो मन में आ रहा है वो बके जा रहे हैं. बस उन्होंने हाथ उठाते उठाते रोका है. कम्बखत से एक काम भी ठीक से नहीं होता...चाय भी ठीक से नहीं लायी जाती...और मैं सोच रहा हूँ कि इसकी उम्र कितनी होगी 7-8 साल...अभी अभी तो शर्मा जी गरीबों की बातें कर रहे थे.
और मैं असमंजस में कि कौन सा चेहरा है और कौनसा मुखौटा...या एक चेहरा और कई मुखौटे...क्या चेहरा कभी दिख पाता है
20 comments:
har insaan andar aur bahar se kuch alag aur juda hota hai,shayad maukaparast bhi,smay ke anuroop apne mann aur dil ka faida dekh mukhauta badal deta hai.ek behtarin lekh.sahi kaunsa sa chehra sach hai kaise pehchane?
इंसान कितने मुखौटे पहने होता है ये तो उसे भी नहीं पता होता है, पर हमें एक ही मुखौटे के पीछे बने रहने की कोशिश करना चाहिये।
सही है..किसी न कहा भी है हजार मुखोटों की बात एक शेर में. :)
बहुत सुंदर पोस्ट लिखा है .. वास्तव में हमें मन , विचार और कर्म से एक बने रहना चाहिए !!
सही कहा दोस्त.. यहाँ लोगो की कथनी और करनी में फर्क है..
sahee kaha hai....sabhi ke chehre mukhonton se dhake hain
मुखौटो की करनी कथनी में फर्क होता है और इनके पीछे छिपे चेहरों की हकीकत को परखना एकदम संभव नहीं है . बहुत सटीक आलेख .
हर मोड़ हर नुक्कड पे मिल जाते हैं ऐसे मुखौटे वाले तो अनिल....
अनिलजी
अच्छा आलेख .मुखोटा pahna ही इसलिए जाता है कि अपने असली रूप को छिपा सके और आज समाज में ऐसे प्राणियो कि भरमार है |विडम्बना ये है कि मुखोटो वालो को hmari jnta pasand करती है और हम आप
सिर्फ dekhte rhte है मुखोटो के paar |
shubhkamnaye
एक चेहरे पर पता नही कितने मुखोटे लगाते मिलेगे इस दुनिया के लोग। अनिल भाई।
Good post Anilji.When words and deeds differ a lot ,when face masks changes with time....(sigh)
yahi to zindgee hai....chehre ke peechhe chehra.....
हे राम अनिल जी कैसा कैसा लिख रहें हैं....??पति से इसे कौन बात करता है ह्म्म्म...शादीशुदा हो क्या ??की सुनी सुनाई बतों से ही..hahaha
और रही बात मुखोटों की तो ..क्या मिलिए उन चेहरों से ....:)
मैं तो खैर अभी कुंवारा हूँ.....लेकिन वो पति वाली बात आँखों देखि और कानों सुनी है
कदम कदम पर बिखरे हुवे हैं ऐसे कोग जो अनगिनत मुखोटे लगा कर जीते है............... संवेदन शील है आपकी पोस्ट
मुखौटे या फसाड - अपने हों या औरों के - भंजित होने चाहियें!
Aajkal to chehre pe chehra hota hai.
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
कथनी और करनी का फर्क हमारे समाज की एक बड़ी समस्या है.
ye to human tendency hain Anil ji........kitne mil jayengay ....sophisticated polished bande
अब मुखौटे ही असली चेहरे बन गए हैं लोगों के !
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