मेरी ब्लाइंड डेट
>> 31 May 2009
इन्टरनेट आया तो अपने साथ बहुत सी अच्छाईयों के साथ कुछ बुराइयाँ भी लाया. अब भली बातें कितनी हैं और बुरी बातें कितनी हैं ...इसकी चर्चा न ही की जाये तो बेहतर है.
हाँ लेकिन इसी इन्टरनेट की दुनिया के कई किस्से हैं...ढेर सारी प्रेम कहानियां तो इसी इन्टरनेट की देन हैं और कई बच्चे भी इस इन्टरनेट की उपज ...अरे नहीं समझे ...अरे सोचो भला कि अगर उनके माता पिता इन्टरनेट का उपयोग न करते और आपस में चैट न करते तो उनकी लव स्टोरी कैसे शुरू होती....और अगर लव स्टोरी शुरू न होती तो फिर शादी कैसे होती ...हाँ ये बात अलग है कि किसी के माँ बाप ने भाग के शादी की होगी तो किसी के माँ बाप ने कोर्ट मैरिज या अरेंज .....खैर ये मसला बहुत पेंचीदा है.....उलझोगे तो उलझते ही रह जाओगे
तो भैया हम भी एक समय चैट करने में बहुत बिजी हो गए थे....तो हाँ उसी समय की बात है कि हमसे एक लड़की चैट पर टकरा गयी ...बातें हुई ....अब भाई चैट है तो अच्छी अच्छी ही ही बातें होंगी न .....कमाल है (इधर उधर कि ना सोची जाये )
तो भाई बात करते हुए बहुत समय बीत चुका था....उन्होंने हमारा दीदार भी कर लिया था ...अरे वो जी उन्होंने हमारा फोटो देख लिया था जी ...अब ये सवाल तो कतई मत पूंछना कि हमने उनका दीदार किया कि नहीं ...नहीं जी बिलकुल नहीं ...अरे वही लड़कियों की आदत...मैं नहीं दिखाउंगी ...वगैरह वगैरह.....हम सीधे मिलेंगे ...अरे भाई जब ऐसी ही बात थी तो फिर हमारा चेहरा क्यों देखा ...हाँ शायद ये देखने के लिए कि लड़का दिखता कैसा है ....अच्छा तो दिखता है न ...और दूसरा सिक्यूरिटी रीजन की वजह से भी ...चलो अब क्या कर सकते थे ...हमने कहा ठीक है ...कोई बात नहीं
तो कुछ दिनों बाद हमारा आगरा जाना हुआ ....और वो महोदया ग्वालियर की थी....जैसे ही उन्हें पता चला कि मैं आगरा आया हुआ हूँ ...उन्होंने अपनी मंशा जाहिर की कि वो हमसे मिलना चाहती हैं....हमने सोचा कि चलो २ घंटे का रास्ता है ...मिलने जाया जा सकता है....तो भाई हमने बोल दिया कि हम कल आपसे मिलने आ रहे हैं ....हमने उन्हें पहले कभी नहीं देखा था....तो जाहिर है कि हम सिर्फ और सिर्फ मोबाइल पर भरोसा करके गए थे ...कि मोबाइल ही हमे सही जगह, सही इंसान से मिला देगा :) :)
हम सही समय पर ग्वालियर रेलवे स्टेशन पर पहुँच गए...अब जैसा कि उन्होंने कहा था कि वो अपनी ऑफिस से सीधे हमसे मिलने रेलवे स्टेशन आ जायेंगी ....और वही से हम कहीं जायेंगे....भैया जी हम तो जो है फोन कर दिए उन्हें ....कि जी हम आ गए हैं ...उन्होंने कहा कि वो आधा घंटे में आ जायेंगी... आधा का एक घंटा हुआ ...चलो कोई बात नहीं ...फिर एक का डेढ़ घंटा हुआ ....चलो कुछ बात हुई ...अब डेढ़ का दो घंटा हुआ ...भाई बहुत बड़ी बात हो गयी ...थक गए इंतजार करते करते....
अब जो है उन्होंने हमसे रोमिंग मैं ढेर सारी फालतू बातें करके ...सारे पैसे उड़ा दिए हमारे ...कि मैं यहाँ पहुँच गयी ..कि मैं बस पहुँचने वाली हूँ ...कि मैं थोडी देर मैं आउंगी ...वगैरह वगैरह.... जैसे तैसे वो रेलवे स्टेशन पर पहुंची .... बोली कि तुम कहाँ हो ....हमने बताया कि रिज़र्वेशन करने वाली खिड़की के पास ...अब भाई बहुत हुआ ....उन्होंने कहा हमे तो दिखाई नहीं दे रहा ...इस वाले गेट पर या उस वाले गेट पर ...हमने एक जगह से दूसरी जगह के करीब 10 चक्कर लगाये ....पर उन्हें हम न दिखे ....वो हमेशा गलत जगह पहुँच जाए....वो ग्वालियर की थी लेकिन उन्हें खुद ठीक से नहीं पता था कि रिज़र्वेशन काउंटर कहाँ है ...खैर मोबिल के सारे पैसे खर्च हो चुके थे ...हमने वहाँ के लोकल पीसीओ से फ़ोन करके जैसे तैसे 8-10 बार में बताया कि हम फलां जगह खड़े हैं ...खुद आ जाओ ....करीब 10 मिनट बाद तीन लडकियां हमें घूर रही थी
थोडी देर घूरते रहने के बाद वो हमारे पास आयी...हम तो डर ही गए...कि भला हमसे क्या गलती हो गयी ...घूर तो वो रही थीं ....पास आकर उन्होंने पूंछा कि क्या आपका नाम अनिल है ....हाँ जी नाम तो हमारा अनिल ही है ....फिर तीनों मुस्कुरा दी ....और हमें मन ही मन गुस्सा आये ....खैर हमने अपने आप को संभाला ...मन ही मन सोच रहे थे कि पूरी की पूरी पलटन साथ लाने की क्या आवश्यकता थी ...हम कौन से तुम्हें खा जाते ....
फिर पास के ही एक रेस्टोरेंट में हमे लेकर वो गयीं ....हमने अपनी जेब की तरफ ध्यान दिया ...सोचकर आये थे एक का और आ गयी तीन ...अब क्या होगा हमारा और हमारी जेब का ...खैर हम चारों लोग उस रेस्टोरेंट में बैठ गए ....फिर हमे ठीक से पता चला कि हमारी वाली कौन सी है ...अरे मतलब जिससे हम चैट किया करते थे ....फिर उसकी दोनों सहेलियों ने हमारा साक्षात्कार लेना प्रारंभ कर दिया ....मन में आ रहा था कि कहाँ फंस गए ....
एक बोली आप तो बड़े सीधे साधे लग रहे हैं ...लो कर लो बात अब तीन तीन हो तो कोई भी आपके सामने भला मानुष इतनी हिम्मत कर सकता है कि मुंह भी खोल सके :) :) ....आप खोलने दो तब न ....हम तो बस हाँ और ना में ही जवाब दे रहे थे ....दूसरी बोली अच्छा आप हमारी सहेली से शादी कब कर रहे हो ....मेरे दिमाग में घंटी बजी ...टन टन टन ...व्हाट ...what a silly question is this ? ...मन किया दो चार खरी खोटी सुना दूं ......फिर जवाब टालने के लिए बोला ....अभी तो मैं बच्चा हूँ ...अभी शादी कहाँ...अभी तो खेलने खाने के दिन हैं हमारे :) :) ...बोली आप बड़े मजकिये हो ....
फिर उसकी एक सहेली अपने प्रेम के किस्से सुनाने लगी ...और दूसरी लड़कों के प्रति अपनी नफरत की गाथा ....और जो मोहतरमा हमसे चैट किया करती थी ....उनकी तो पूंछो ही मत.... आप तो कुछ बोल ही नहीं रहे हो ...वैसे कितनी बातें करते हो ...वगैरह वगैरह....खैर जैसे तैसे उनका बात करने का दिल भरा ....हमे तो बस वहाँ से भागने की पड़ रही थी .....खैर वहाँ के लोकल रेस्टोरेंट वाले ने भी हमे खूब लूटा ....15 रुपये के जूस के गिलास के उन्होंने हमसे 60 रुपये वसूले ....और भी कुछ था जो हमे याद नहीं उसके भी अच्छे खासे दाम लिए उन्होंने ...और कहने को वो बिलकुल घटिया रेस्टोरेंट था .....बिलकुल लोकल ...खैर अब फंसे थे ...तो क्या करते....हमने अपना पर्स निकाला ...और जानबूझकर बोला देखो पैसे तो मैं ही दूंगा ....तो वो बोली क्यों आप क्यों दोगे ....नहीं ये अच्छा नहीं लगता...अब ऐसे बात करो तो उन्हें ऐसा लगा कि शायद ये इज्जत की बात हो रही हो ...तो बोली नहीं पैसे तो हम ही देंगे ...मैंने कहा नहीं नहीं पैसे तो हम ही देंगे...अब वो जबरजस्ती पर उतर आयीं ...नहीं पैसे तो हम ही देंगे ...हमने फिर कोई जबरजस्ती नहीं की ....ठीक है आप इतनी जिद कर ही रही हैं तो .....हम तो यही चाहते थे :) :) :) ....आखिर हमने थोड़े कहा था कि पूरी पलटन लेके आओ ...इस ब्लाइंड डेट पर .....
उनकी सहेलियां पहले ही जाने लगी...कि हमे काम है वगैरह वगैरह ...हमने भी कहा हमे भी चलना है ....बहुत लेट हो गए ...गाड़ी भी आने वाली है .....बस हमे भागने की पड़ रही थी ....वो दोनों बोली अरे आप दोनों बातें करो न....हमने खामखाँ आपका सारा टाइम खा लिया ....हमने मन ही मन सोचा अब जब खा लिया तो अब डकार क्यों ले रही हैं आप
तो इस तरह लौटते लौटते हमारे बारह बज चुके थे ....जैसे तैसे आगरा पहुंचे ...और एक आंटी जी के घर रुके रात को ...फिर सुबह अपने घर फिरोजाबाद को निकल लिए ....और सोचा कि क्या ब्लाइंड डेट ऐसी भी होती है
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