हमारे अपने-अपने खुदा और विश्वासों की डोर
>> 04 July 2012
शादी को हुए दो महीने हो चुके हैं . आज मोहतरमा ड्यूटी पर हैं और मैं छुट्टी के इस एक दिन के एक सिरे से दूसरे सिरे तक चहलकदमी करता हुआ, कुछ कुछ ऊंघता सा, कुछ सुस्ताता सा, कुछ कुछ लिखने का मन बनाता सा.....
पिछले बरस की गर्मियों के दिन याद हो आये।. जब हमारी अपनी शादी की तमाम कशमकशों के मध्य भी हम अपने मिलने वाले क्षणों में सुख की अनुभूति कर लिया करते थे।.
वे अंतहीन प्रयत्नों के दिन थे।. शादी तब हमें निश्चय ही हमारे जीवन की तमाम मंजिलों में से एक मंजिल नज़र आती थी।. हमारे अपने प्यार को पा लेने की मंजिल। उन तमाम प्रयत्नों में बस यही खोजा जाता कि कहीं कोई सूत्र जाकर हमारी मंजिल तक जाकर मिले।. हर वह संभव कोशिश की जाती कि हमारे अपने हमारे प्यार को समझें और हमारी शादी करा दें।.
उन तमाम दुआओं, इच्छाओं और आर्शीवाद का असर एक बरस हो आने के बाद दिखता महसूस होने लगा।. हमारी अपने खुदाओं से विश्वास की डोर और भी मजबूती से बँधती चली गयी. और फिर उन तमाम दुःख भरी तपती दोपहरों और रोती रातों के बाद शीतलता भरी बारिशों के दिन आये. उस ईश्वर की कृपा हम पर बरसी और बरसती चली गयी।. हमारे अपने हमें एक करने के लिए मान गए।.
फिर एकाएक विवाह की तारीख का तय होना और फिर तमाम रस्मों--रिवाज़ के मध्य दिन कैसे बीतते चले गए, सच में पता ही नहीं चला. और 01 मई 2012 को हमारा विवाह हो गया।.
अब जब कि बीते दिनों को याद करता हूँ तो वे एक--एक करके मेरे लवों पर मुस्कान ला देते हैं।. या मेरे मौला हम पर अपनी कृपा बनाये रखना....
पिछले बरस की गर्मियों के दिन याद हो आये।. जब हमारी अपनी शादी की तमाम कशमकशों के मध्य भी हम अपने मिलने वाले क्षणों में सुख की अनुभूति कर लिया करते थे।.
वे अंतहीन प्रयत्नों के दिन थे।. शादी तब हमें निश्चय ही हमारे जीवन की तमाम मंजिलों में से एक मंजिल नज़र आती थी।. हमारे अपने प्यार को पा लेने की मंजिल। उन तमाम प्रयत्नों में बस यही खोजा जाता कि कहीं कोई सूत्र जाकर हमारी मंजिल तक जाकर मिले।. हर वह संभव कोशिश की जाती कि हमारे अपने हमारे प्यार को समझें और हमारी शादी करा दें।.
उन तमाम दुआओं, इच्छाओं और आर्शीवाद का असर एक बरस हो आने के बाद दिखता महसूस होने लगा।. हमारी अपने खुदाओं से विश्वास की डोर और भी मजबूती से बँधती चली गयी. और फिर उन तमाम दुःख भरी तपती दोपहरों और रोती रातों के बाद शीतलता भरी बारिशों के दिन आये. उस ईश्वर की कृपा हम पर बरसी और बरसती चली गयी।. हमारे अपने हमें एक करने के लिए मान गए।.
फिर एकाएक विवाह की तारीख का तय होना और फिर तमाम रस्मों--रिवाज़ के मध्य दिन कैसे बीतते चले गए, सच में पता ही नहीं चला. और 01 मई 2012 को हमारा विवाह हो गया।.
अब जब कि बीते दिनों को याद करता हूँ तो वे एक--एक करके मेरे लवों पर मुस्कान ला देते हैं।. या मेरे मौला हम पर अपनी कृपा बनाये रखना....
13 comments:
मजदूर दिवस के दिन शादी की है.... अल्ला ताला दोनों को खुश, सुखी और आनंद दे...
:-)
आमीन....:)
ameen!!!
अच्छा.. दो महीने हो भी गये :)
अब आप दोनों की सारी उम्र इन दो महीनों जैसे ही बीते ख़ुशी ख़ुशी.. ढेर सारी दुआएँ :)
Best wishes to Bhavi Ji and her sweet husband.
वाह, आपके स्नेहिल प्रयास सफल हुये, ईश्वर आपको ऐसे ही प्रसन्न बनाये रखे।
Bahut,bahut mubarak ho...aap dono hamesha khush rahen yahee dua hai!
बधाई ... अनिल जी आपने चुपके चुपके शादी कर ली और बताया नहीं ... ये तो गलत बात है ... कैर ... आपको बहुत बहुत बधाई इस पावन बंधन की ...
मिठाई तैयार रक्खें .. अभी फरीदाबाद में ही हैं या कहीं और चले गए ...
Ab main Mathura mein hun Sir ji
पहले एक पोस्ट की तरह पढते रहे.......
फिर लगा ये तो आपके जीवन का एक पन्ना है...सबसे प्यारा....सबसे रंगीन...भीनी सी महक वाला....
शुभकामनाएं सदा के लिए.
अनु
इतने दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया.. अच्छा लगा लेकिन फिर देखा ३ महीने से कोई पोस्ट नहीं... :( लिखते रहा कीजिये... पढने वालों को अच्छा लगता है... अब तो काफी दिन हो गए फिर भी शादी की ढेर सारी बधाईयाँ...
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