छूटे हुए गाँव
>> 06 May 2013
बचपन में जाता हूँ तो सबसे पहले गाँव याद आता है . जिसके स्कूल में मैं पहले दो दर्ज़ा पढ़ा . जहाँ मास्टर जी 20 तक पहाड़े, 100 तक गिनती और किताब में लिखी कवितायें रटाया करते थे। और वो आधा कच्चा और आधा पक्का मकान जिसके बाहर नीम का पेड़ खड़ा रहता था .
माँ कहती है कि मैं बचपन में अपने दादा जी के पास सोया करता था . मुझे अपने दादा जी के साथ का सोना तीसरी या चौथी कक्षा से याद है . जब बाद के दिनों में पिताजी हमें अपने साथ शहर ले गए थे . जहाँ पिताजी नौकरी किया करते थे . हम सभी साल में दो बार छुट्टियों में गाँव जाया करते या जब कभी बीच में किसी की शादी हुआ करती। उधर शहर में शहर का आगरा होना मुझे शायद ठीक ठीक कहूं तो पाँचवी से अच्छे से पता चला।
बात उन्हीं दिनों की है जब हम गर्मियों की छुट्टियों में गाँव गए थे . हम कुछ छोटे और कुछ बड़े बच्चे खेतों की ओर गए थे जिसे गाँव में सभी लोग 'हार' बोलते थे। हम सभी खेल रहे थे तभी हम सभी से उम्र में २-३ साल बड़े कुछ बच्चे हमारी ओर आये और कहने लगे "ऐ चमार चलो यहाँ से, यहाँ हम खेलेंगे" उसके बाद हम और उन बच्चों में कहा सुनी और धक्का मुक्की का दौर चला।
उस रात मन में उथल-पुथल का मौसम चलता रहा और चमार शब्द कानों में गूँजता रहा। किन्तु ये शब्द मेरे लिए नया था जिसे हमारी ओर हेय दृष्टि से फैंका गया था . अभी दो दिन भी नहीं बीते होंगे कि जब हम बच्चे खेलकर थक लेने के बाद किसी खेत में लगे ट्यूब वैल के पास पानी पीने गए जहाँ दो बच्चे पहले से अपने हाथों से पानी पी रहे थे और हमें किसी आदमी ने अपने लोटे से पानी ऊपर से नीचे गिराकर पिलाया .
उस दिन प्यास बुझी नहीं थी बल्कि बढ़ गयी थी। वो प्यास बचपन की रातों में कई-कई बार आकर बढती रही। वो कोई बरस 1992 था। बाद के दो तीन वर्षों में गाँव हमसे छूट गया या कहें कि छोड़ दिया गया।
आज सोचता हूँ कि अपनी सुरक्षा, अपनी बेहतरी और अपने सम्मान के लिए न जाने कितने लोगों ने कितने गाँवों को छोड़ा होगा। और न जाने कितने छोड़ने के कगार पर हो ......
माँ कहती है कि मैं बचपन में अपने दादा जी के पास सोया करता था . मुझे अपने दादा जी के साथ का सोना तीसरी या चौथी कक्षा से याद है . जब बाद के दिनों में पिताजी हमें अपने साथ शहर ले गए थे . जहाँ पिताजी नौकरी किया करते थे . हम सभी साल में दो बार छुट्टियों में गाँव जाया करते या जब कभी बीच में किसी की शादी हुआ करती। उधर शहर में शहर का आगरा होना मुझे शायद ठीक ठीक कहूं तो पाँचवी से अच्छे से पता चला।
बात उन्हीं दिनों की है जब हम गर्मियों की छुट्टियों में गाँव गए थे . हम कुछ छोटे और कुछ बड़े बच्चे खेतों की ओर गए थे जिसे गाँव में सभी लोग 'हार' बोलते थे। हम सभी खेल रहे थे तभी हम सभी से उम्र में २-३ साल बड़े कुछ बच्चे हमारी ओर आये और कहने लगे "ऐ चमार चलो यहाँ से, यहाँ हम खेलेंगे" उसके बाद हम और उन बच्चों में कहा सुनी और धक्का मुक्की का दौर चला।
उस रात मन में उथल-पुथल का मौसम चलता रहा और चमार शब्द कानों में गूँजता रहा। किन्तु ये शब्द मेरे लिए नया था जिसे हमारी ओर हेय दृष्टि से फैंका गया था . अभी दो दिन भी नहीं बीते होंगे कि जब हम बच्चे खेलकर थक लेने के बाद किसी खेत में लगे ट्यूब वैल के पास पानी पीने गए जहाँ दो बच्चे पहले से अपने हाथों से पानी पी रहे थे और हमें किसी आदमी ने अपने लोटे से पानी ऊपर से नीचे गिराकर पिलाया .
उस दिन प्यास बुझी नहीं थी बल्कि बढ़ गयी थी। वो प्यास बचपन की रातों में कई-कई बार आकर बढती रही। वो कोई बरस 1992 था। बाद के दो तीन वर्षों में गाँव हमसे छूट गया या कहें कि छोड़ दिया गया।
आज सोचता हूँ कि अपनी सुरक्षा, अपनी बेहतरी और अपने सम्मान के लिए न जाने कितने लोगों ने कितने गाँवों को छोड़ा होगा। और न जाने कितने छोड़ने के कगार पर हो ......
9 comments:
ये बिलकुल सही कहा आपनें.. ये विडम्बना ही है के आज के विकसित होते युग में भी जाति प्रथा जैसे अंधविश्वास पूरी तरह समाप्त नहीं हुए हैं..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार ७/५ १३ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी आपका वहां स्वागत है ।
असल तस्वीर
सार्थक पहल
आएं सत्य को स्वीकारें और विकृत सत्यों के
शीशों के गुलदस्तों को,ठोकर से तोड दें.
यह काम हमें ही करना होगा.
प्रिय भाई साहेब,
आप तो बस आप है, बाकी तो खाक है।
किस प्रकार इन शाब्दिक मोतियों को वर्णिक क्रम मे पिरो लेते है। सच्चाई और हकीकत को तो आपने एक नया और अद्भुद रूप दिया है। आपको हार्दिक साधुवाद !
anil ji ..aise bahut se kissey hum sab ki jindagi se kahin na kahin jude hai...aur jahan neev gehri ho vo ghar kabhi tut i nahi sakte!
nice dear apka blog dekh ke Hume apna bachpan yaad a gya thanxxxxxxxxxxxx
Ek Sachhe प्यार की कहानी Jo ki Kisi Ladki Se Nahi, Balki Apne Us Jahan Se Hai Jaha Se Hum Bade Hote Hain. Aaj Bhi Hum Un Dino Ko Yaad Karte Hain, Toh Pura Beeta Hua Kal Yaad Aata Hai.
Thank You So Much For Nice Story.
http://www.parikalpnaa.com/2013/11/blog-post_7.html
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