खिड़कियाँ
>> 16 June 2015
खिड़कियों से आती हवा ना जाने क्यों अब उसे ताज़ी नहीं लगती. वह वही
बासीपन लिए हुई सी होती है. रात बीत जाने के बाद सुबह की दिनचर्या और फिर
वही पुरानी पड़ गयी सी हवा. ऐसे जैसे कि उसने स्वंय को उससे जोड़ के देखा.
क्या किसी एक रोज़ वह भी ऐसे ही बासीपन का शिकार हो जाएगी. रोज़ सुबह उठना,
बैड टी देना, स्वर्णा को उठाना, नाश्ता बनाना, स्वर्णा को स्कूल बस तक
छोड़कर आना, फिर अरुण का अपने ऑफिस चले जाना. फिर नहाना धोना, साफ़ सफाई और
फिर प्रतीक्षा करना कि कब स्वर्णा वापस
लौट आएगी और फिर वो उसके कपडे बदलवाएगी, उसको खाना खिलाएगी और उसको सुलाकर
फिर शाम की प्रतीक्षा में स्वंय को इसी खिड़की के पार कहीं टांग देगी.
बीते सात सालों ऐसा कोई दुःख तो उसे महसूस नहीं होता किन्तु वह क्या है जो उसके इस खालीपन का कारण है. ये जो बीत गए साल हैं उनमें ऐसा क्या है जो बीतते हुए भी नहीं बीता. समय कहने को तो बीतता ही चला गया किन्तु शायद वह अभी वहीँ खड़ी मालूम होती है. जब वह यहाँ इस फ्लैट में शादी के बाद अरुण के साथ आई थी. अपनी नई गृहस्थी, नए जीवन का आरम्भ करने. और फिर दिन बीते, महीने बीते और धीरे धीरे कर सात साल खिडकियों के इस पार से उस पार देखने में बीत ही गए. इस बीच स्वर्णा ने जीवन में दस्तक दी. बहुत कुछ बदला. जीवन और उससे जुडी जिम्मेदारियां. फिर भी वो क्या है जो कहीं भीतर अधूरा सा जान पड़ता है. क्या उसे कुछ और हो जाना चाहिए था जो वो ना हो सकी थी. या यूँ ही कोई अधूरे मन की ख्वाहिशें थीं जो मन के भीतर रेंगती रहती हैं. कभी इस कोने से उस कोने तो कभी उस कोने से इस कोने. मन का धरातल दिन ब दिन बंज़र होता जान पड़ता है.
क्या उसका अपना कोई स्वंय का अपने जीवन में एक रोल है. या वह अपने जीवन की कहानी को केवल जिए जा रही है. क्या केवल जी भर लेना जीना कहलाता है. क्या वह वही रतिका है जो स्कूल और कॉलेज के दिनों में हुआ करती थी. नई उमंगों, सपनों और ऊर्जा से भरी हुई रतिका. पढने लिखने और संगीत की शौक़ीन रतिका. अचानक से उसे याद हो आया कि बीते बरसों में उसने कोई फिल्म नहीं देखी. कोई नई किताब नहीं पढ़ी और नाहीं अपना मनपसंद संगीत सुना. उसके पास समय का आभाव नहीं किन्तु फिर भी वह ये अपने पसंदीदा काम नहीं करती. उसकी जिंदगी इतनी बासी सी क्यों महसूस होती है उसे.
खिडकियों के पार दूर तलक देखने पर उसे बिल्डिंगों के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता. हो सकता है किसी बिल्डिंग के किसी फ्लैट की किसी खिड़की से झांकती कोई उसकी हम उम्र लड़की होती हो किन्तु उसको वह दिखाई ना पड़ती हो. क्या मालूम वह रतिका ना हुई हो या रतिका हो जाने की सीमा रेखा पर खड़ी हो. क्या मालूम कोई एक नई विवाहित लड़की किसी नई बिल्डिंग के नए फ्लैट में नई ऊर्जा और नए सपनों के साथ आई हो जिसे रतिका हो जाना हो. या क्या मालूम उसने इस बासी जिंदगी को ही असल जिंदगी समझ उसे जीना सीख लिया हो. हो ना हो खिडकियों के पार भी ऐसी बहुत सी ज़िंदगियाँ होंगी.
बीते सात सालों ऐसा कोई दुःख तो उसे महसूस नहीं होता किन्तु वह क्या है जो उसके इस खालीपन का कारण है. ये जो बीत गए साल हैं उनमें ऐसा क्या है जो बीतते हुए भी नहीं बीता. समय कहने को तो बीतता ही चला गया किन्तु शायद वह अभी वहीँ खड़ी मालूम होती है. जब वह यहाँ इस फ्लैट में शादी के बाद अरुण के साथ आई थी. अपनी नई गृहस्थी, नए जीवन का आरम्भ करने. और फिर दिन बीते, महीने बीते और धीरे धीरे कर सात साल खिडकियों के इस पार से उस पार देखने में बीत ही गए. इस बीच स्वर्णा ने जीवन में दस्तक दी. बहुत कुछ बदला. जीवन और उससे जुडी जिम्मेदारियां. फिर भी वो क्या है जो कहीं भीतर अधूरा सा जान पड़ता है. क्या उसे कुछ और हो जाना चाहिए था जो वो ना हो सकी थी. या यूँ ही कोई अधूरे मन की ख्वाहिशें थीं जो मन के भीतर रेंगती रहती हैं. कभी इस कोने से उस कोने तो कभी उस कोने से इस कोने. मन का धरातल दिन ब दिन बंज़र होता जान पड़ता है.
क्या उसका अपना कोई स्वंय का अपने जीवन में एक रोल है. या वह अपने जीवन की कहानी को केवल जिए जा रही है. क्या केवल जी भर लेना जीना कहलाता है. क्या वह वही रतिका है जो स्कूल और कॉलेज के दिनों में हुआ करती थी. नई उमंगों, सपनों और ऊर्जा से भरी हुई रतिका. पढने लिखने और संगीत की शौक़ीन रतिका. अचानक से उसे याद हो आया कि बीते बरसों में उसने कोई फिल्म नहीं देखी. कोई नई किताब नहीं पढ़ी और नाहीं अपना मनपसंद संगीत सुना. उसके पास समय का आभाव नहीं किन्तु फिर भी वह ये अपने पसंदीदा काम नहीं करती. उसकी जिंदगी इतनी बासी सी क्यों महसूस होती है उसे.
खिडकियों के पार दूर तलक देखने पर उसे बिल्डिंगों के सिवाय कुछ दिखाई नहीं देता. हो सकता है किसी बिल्डिंग के किसी फ्लैट की किसी खिड़की से झांकती कोई उसकी हम उम्र लड़की होती हो किन्तु उसको वह दिखाई ना पड़ती हो. क्या मालूम वह रतिका ना हुई हो या रतिका हो जाने की सीमा रेखा पर खड़ी हो. क्या मालूम कोई एक नई विवाहित लड़की किसी नई बिल्डिंग के नए फ्लैट में नई ऊर्जा और नए सपनों के साथ आई हो जिसे रतिका हो जाना हो. या क्या मालूम उसने इस बासी जिंदगी को ही असल जिंदगी समझ उसे जीना सीख लिया हो. हो ना हो खिडकियों के पार भी ऐसी बहुत सी ज़िंदगियाँ होंगी.
1 comments:
khidkiyan - aaj ki ekal jindagi ki sachchai............very nice
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