पहली मोहब्बत के चक्कर में जब मार खायी

>> 07 April 2009

एक बार प्रेम पत्र पकडे जाने के बाद भी और १० वीं की परीक्षा में कम अंक आने पर भी हमारे प्यार का भूत नहीं उतरा ...हम यूँ ही उसे प्यार भरी नज़रों से देखते थे ....आखिर हमारे पहले प्यार का सवाल था ....हम बस उसे देखने के लिए कुछ भी करते थे ...हाँ उससे बात करने में हमारी दम निकलती थी ...उसके सामने पड़ते ही हमारा गला सूख जाता था ....और वो मुस्कुरा जाती थी हमे देख कर ...ऊपर से हमारे गला सूखने जैसी हालत पर शायद उसे ज्यादा मुस्कुराना आ जाता हो ...

बात ११ वीं कक्षा की आ गयी ..पढाई शुरू हो चुकी थी ....हमने नए स्कूल में दाखिला ले लिया था ....गणित से प्यार बरकरार था ...वहाँ हमारी मुलाकात एक दोस्त से हुई .....जो पढता कम था और खाता ज्यादा था ...जो ट्यूशन कम जाता था और ट्यूशन छोड़ पिच्चर देखने ज्यादा ....जिसका मन क्लास में रहने में कम और इस बात में ज्यादा कि स्कूल के बाहर छोले भठूरे वाला आया कि नहीं ...२ रुपये वाली कोल्ड ड्रिंक बनाने वाला आया कि नहीं ..... लेकिन कुछ ऐसा था कि वो हमारे नज़दीक वाली सरकारी कॉलोनी में रहता था ...तो साथ साथ स्कूल जाते जाते उससे हमारी दोस्ती हो गयी ....

मेरा आना जाना उसकी कॉलोनी में शुरू हो गया ....तभी कुछ दिनों बाद पता चला कि नम्रता और उसकी सहेलियों ने वहां रहने वाले रिटायर अंकल से ट्यूशन लगा ली है ...एक दिन मेरा ये छोले भठूरे प्रेमी दोस्त उनके साथ बाहर निकलता दिखा ....तभी नम्रता और उसकी सहेलियों की नज़र मुझ पर गयी ....वो मुस्कुरा गयीं ....

फिर नम्रता के चले जाने के बाद पता चला कि ये पट्ठा भी उनके साथ ट्यूशन पढता है ....वो बोला क्यों बे वो तुझे देख कर मुस्कुरा क्यों रही थी ...मैंने कहा कि कुछ नहीं हमारी कॉलोनी की लड़कियां हैं ...शायद इस लिए ...बोला बेटा हमसे ही छुपा रहे हो .....अबे बता ना ....मैंने कहा कुछ नहीं वो शायद मुझे पसंद करती है ....सही है बेटा ...बहुत सही ....हमे तो कोई पसंद नहीं करती ....हमने उसकी पेट की तरफ देखा ....मैंने बोला अबे पहले किसी को पसंद करने का मौका तो दे ....वो बोला क्या मतलब ...और मेरी मजाक में गर्दन जकड ली ....

अगले दिन उसने बताया कि ओये वो तेरे बारे में पुँछ रही थी ...कि क्या अनिल भी हमारे साथ पढेगा क्या ? ...मैंने कहा तूने क्या कहा ....बोला कि मैंने बोला कि वो बोल रहा था कि वो तुम जैसियों को घास भी नहीं डालता ....मैंने कहा ...अबे तेरी तो मैंने कब बोला ऐसा ....खामखाँ बनी बनायीं लव स्टोरी ख़राब कर रहा है ....बोलने लगा मैं तो ऐसा ही हूँ ...मैंने कहा बेटा तुझ जैसा अगर में बन गया तो तेरे लेने के देने पड़ जायेंगे ...तेरी मम्मी को सब कुछ बता दूंगा कि तू क्या क्या करता है ...बोला ओ भाई माफ़ कर दे आगे से ऐसा कुछ नहीं करूँगा ....

जब मैं वापस लौट रहा था तभी मुझे नम्रता और उसकी सहेलियों का झुंड मेरी ओर आता हुआ दिखाई दिया ....आपस में फुसफुसा रही थी ...ना जाने लोग अपने आप को क्या समझते हैं ...ज़रा सी अक्ल नहीं है बात करने की .... मुझ से रहा ना गया ...मैंने बोला क्या हुआ क्यों जली भुनी जा रही हो ....तुम हमारे बारे में फालतू क्यों बोल रहे थे ...मैंने कहा मैंने तो कुछ नहीं बोला ...तभी पीछे से मेरा दोस्त भागता हुआ -चिल्लाता हुआ आया कि वो मैंने मजाक किया था ...इसने कुछ नहीं कहा था ...और तुंरत भाग गया ...पेटू कहीं का ...गूढ़ दिमाग ....तभी एक बुजुर्ग न जाने कहाँ से आया ...अपनी ही धुन में ...इन जैसों को चप्पल लागों चप्पल ...तभी सुधरेंगे कमबख्त कहीं के ...लड़कियां मुझे घेरे खड़ी थी ....अब वो संभाले न संभले ....ना जाने क्या क्या बके जा रहे ..तभी सुमन ने कहा आप जाओ बाबा ये हमारी जान पहचान का है ....अच्छा ऐसी बात है तो ठीक है ....जब वो चला गया ...तब मैंने कहा पड़ गया चैन ...मिल गयी ख़ुशी ....लड्डू बाटों जाकर जाओ ....फिर मैं चला आया वहां से

कुछ दिनों में उस रास्ते पर सड़क छाप मजनू टाइप लड़कों की एक जमात पैदा हो गयी जो उसी सरकारी कालोनी में रहते थे ...और जो राह में खड़े हो खीसे निपोरा करते थे ...आँखों के अजीब अजीब इशारे और बेवकूफी भरी बातें किया करते थे ....और अपना दिल हांथों में लिए फिरते थे ....कि कह रहे हों जैसे कि कुछ नहीं तो इसे क़दमों तले रोंद्ती ही जाओ ना .....

फिर एक दिन वो मेरा दोस्त बोला यार तू भी ट्यूशन लगा ले ना ....अच्छा रहेगा...मैंने कहा मुझे जरूरत नहीं ट्यूशन की ...बोला अबे जरूरत किसे है ....इसी बहाने तू उसको जी भर के देख तो लेगा ....मेरा भेजा भी ख़राब हो गया और उसके आईडिया को मान लिया ....एक आईडिया ना जाने क्या से क्या करा दे ....भाई मैंने सिर्फ 1 महीने की सोच ट्यूशन लगा लिया ...अब मुझे क्या पता था कि उस ट्यूशन में एक लड़का ऐसा है जिसने वहाँ अपना साम्राज्य स्थापित कर रखा है ...मतलब उसने अपनी होशियारी का डंका बजा रखा था और उस ग्रुप की एक हसीना को पटा रखा था ....मुझे इस बात का ज़रा भी इल्म ना था ....

जब मैं उस ट्यूशन में पहुंचा तो जो भी पूँछा जाये तो मैं बता दिया करूँ ...और टेस्ट में मेरे अंक भी सबसे ज्यादा आया करें ..अब ये बात उसे नागवार गुजरी ....उसने जबरन मुझसे लड़ाई मोल लेने की सोची ....और हमने भी कुछ कह दिया ...भाई वो तो बौखला गया ...और ट्यूशन छूटते ही हमसे लड़ने लगा ....उस दिन तो हम झगडा शांत कर चले आये ....अब अगले दिन उसने हमे ट्यूशन शुरू होने से पहले ही 4-6 लौंडों के साथ पकड़ लिया ...कि बहुत हीरो बनता है आज तेरी हीरोगीरी उन्ही लड़कियों के सामने निकालेंगे ....फिर उन लड़कियों के उस रास्ते पर आते ही एक हाथ एक लड़के ने पकड़ लिया ...दूसरा हाथ दूसरे लड़के ने और 2 लौंडे मुझे चांटे मारने लगे ....उन लड़कियों के आते ही ...मैंने लाख कोशिश की बचने की पर बच ना सका ....अब भाई किसी फिल्म का हीरो तो हूँ नहीं जो उछल उछल कर सबको मार पाता ...ऊपर से तब डेढ़ पसली हुआ करता था .....और उन लड़कियों के जाते ही मुझे छोड़ दिया ...मैं धमकी देकर आया कि तुम लोगों को छोडूंगा नहीं ....

अब हमारे पिताजी पुलिस में और उनके लड़के पर कोई इस तरह हाथ उठा कर चला जाए कैसे मुमकिन है ....मैं जैसे ही घर पहुंचा पिताजी को सब माज़रा पता चला कि लड़कों ने मुझे पीटा है .....वो तो भला हो ये नहीं पता चला कि ये इश्कबाजी भी करता है .....वो गुस्से में आग बबूला हो गए ....मेरा छोटा भाई थोडा लडाकू टाइप है ...मेरे पिताजी, मेरा भाई और कालोनी के 5-6 लड़के साथ गए ....उस कालोनी में पहुँच गए ...लेकिन वो लौंडे गायब हो गए ...अपने अपने घर से फरार ....मेरा छोटा भाई हाथ में चैन लेकर गया था ...खैर मेरे पिताजी वहां अच्छी तरह धमका आये ...उसका बड़ा भाई मिला वो दुम दबाये हुए था .....उसके पिताजी बोले कि हम उसे समझायेंगे ..आगे से ऐसा नहीं करेगा ....

ना जाने कैसे थाने के 2-4 पुलिस वालों को ये बात पता चल गयी ....उन्होंने खुद अपनी तरफ से उन लड़कों को पकड़ लिया और मुर्गा बनाया और 4-6 चांटे जड़ दिए .....तभी उनके पिताजी हमारे घर आ पहुंचे कि हम अपने बच्चों की तरफ से माफ़ी मांगते हैं ...आगे से ऐसा नहीं होगा ....उन्हें पुलिस पकड़ लायी है ....मेरे पिताजी ने कहा कि पर मैंने तो किसी से कुछ नहीं कहा ..खैर पिताजी ने जाकर सभी लड़कों को छुड़वाया ....और जाने दिया ..वो सब माफ़ी मांग रहे थे ....

वो बात वही ख़त्म हुई ...पर उन सड़क छाप आशिकों की आशिकी ख़त्म नहीं हुई ...एक का नाम था चुनमुन ....शक्ल से पैदल, अक्ल से पैदल और सड़क छाप गुंडे की जैसी हरकतें करने वाला ... और ख्वाब ऐश्वर्या को पाने के ...वो नम्रता के ग्रुप की सबसे सुन्दर लड़की पर लाइन मारता था ...और एक दिन परेशान करते करते उसने एक लव लैटर उसको थमा दिया .... उस लड़की ने उस वक़्त कुछ नहीं कहा ...

उस लड़की के भाई आगरा कॉलेज के माने हुए गुंडे थे .....उस लड़की ने अपने भाई से शिकायत कर दी ...वो 4-6 बाइक लेकर वहां पहुँच गया ....और उस चुनमुन को रोड पर घसीटता हुआ 1 किलोमीटर तक अपने घर ले गया ...वहां जाकर पटक दिया ......हॉकी और लातों से उसकी खूब मार लगायी .... वहाँ जाकर ये चुनमुन उस लड़की के पैरों पर गिर गया कि मुझे माफ़ कर दो बहन आगे से ऐसा कुछ नहीं करूँगा ....जैसे तैसे उसे छोड़ दिया गया ...चुनमुन ने कसम खायी कि मैं इन लड़कियों के सामने क्या उस रोड पर नज़र भी नहीं आऊंगा

एक रोज़ हम उस कालोनी में गए वो रास्ते में अपने हाथ पर प्लास्टर चढाये हुए और माथे पर पट्टियां लगाए खडा हुआ था ....मैंने कहा हाँ चुनमुन भाई ये क्या हुआ ....ये कैसे हो गया ? ...कोई एक्सीडेंट हो गया क्या ? ...बोला यार मज़े ले रहे हो ....सब कुछ पता होते हुए भी हमारा मजाक उड़ा रहे हो ..... हमने कहा भाई जब तुम मजाक करते रहे तब नहीं सोचा था .....उस फूल सी नाज़ुक लड़की को परेशान करते थे ...तब ख्याल नहीं आया कि कहाँ तुम और कहाँ वो .... बोला यार तुमने कभी बताया नहीं कि उसके भाई गुंडे हैं ...मैंने कहा कि तुम सुनते कहाँ हो .....अब नशा उतर गया तो सबकी सुनोगे ....
फिर दूर से उसी रास्ते पर नम्रता और नम्रता की सहेलियां उधर से आती दिखाई दी तो चुनमुन वहां से कट लिया ....आखिर कैसे मुंह दिखाता :) :)
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20 comments:

दिगम्बर नासवा 7 April 2009 at 16:33  

क्या बात अनिल जी.............चुन मून की पिटाई ..........आशकी में जो न करो कम है..........
अच्छी लगी आपकी पोस्ट...........

ताऊ रामपुरिया 7 April 2009 at 16:57  

ऐसा ही होता है भाई.

रामराम.

mehek 7 April 2009 at 17:02  

paheli mohobbat ki yaadein padhna achha raha,plaster bhi chdhawa liya:) bahut ahha sansmaran raha.

Anil Kumar 7 April 2009 at 17:38  

स्कूल के दिनों में एक हमारा दोस्त था जो नित दिन मोहब्बत के चक्कर में पिटता था। कुछ दिन तो ऐसे भी गुजरते थे जब वह एक ही दिन में ४-५ इश्क कर बैठता, और कई बार मार खाता। हमने पूरे सरोजिनी नगर में ऐसी कोई सड़क नहीं सुनी थी जहाँ वह न पिटा हो! उसको देखकर मैं हमेशा पूछा करता था, "बल्लू आज कहाँ पिटे?"

जब मैं स्कूल से कालेज में आया, बस स्टाप पर एक लड़की मुझे घूरा करती थी। मैं उस समय बहुत शर्मीला हुआ करता था। एक दिन कालेज की छुट्टी थी, फिर भी न जाने क्यूं बस स्टाप पर पहुंच गया। वो भी वहाँ पर थी। मुझे देखकर उसने अपना बैग खोला, उसमें से एक काला चश्मा निकालकर जो आँखों पर चढ़ाया था न, अभी तक याद है। मैं निपट मूरख उसके पीछे-पीछे बस में चढ़ गया। आधे घंटे तक नैन-मटक्का करती रही वो! मैंने सोचा बेटे आज तो अच्छी चल निकली अपुन की।

फिर जब बस खत्म हुयी, तो वह आखिरी स्टाप पर उतर गयी। मैं भी उतर गया, और क्या करता? वो एक २०-मंजिला इमारत में घुस गयी, और मैं चने-मुरमुरे खाकर खुशी मनाने लगा। पहली बार कोई लड़की मेरी तरफ उस तरह से मुस्कुरायी थी। पाँच मिनट बाद वही बस वापस घूमकर आयी, तो सोचा कि अब बहुत हुआ, घर वापस चलते हैं।

बस में अभी बैठा ही था कि वह फिर दिखायी दी - बस के पिछले दरवाजे पर। उसने अपनी हथेली से इशारा करके मुझे बुलाया! मैं खुशी के मारे चलती बस से कूद पड़ा।

नीचे उतरते ही एक पढ़े-लिखे दिखने वाले खुशबूदार सेहतमंद व्यक्ति ने मेरी कलाई पकड़कर मरोड़ दी, और मेरे कान के नीचे दो झापड़ रसीद किये। मेरे सारे सपने एक ही क्षण में रौंद डाले गये। जिस तरह से वह उस इत्रधारी आदमी से चिपककर खड़ी थी, उससे यही लग रहा था कि वह उसका कुछ लगता है। उसने अंग्रेजी में मुझसे पूछा कि मैंने उस मासूम लड़की को क्यों डराया। मुझे बहुत गुस्सा आया, लेकिन किसी तरह काबू करके मैंने उसे बात बतायी। मैंने कहा कि यदि उसको मुझसे इतना ही डर लगता था तो मुझे देख-देखकर पूरे रास्ते मुस्कुराती क्यों रही? मैंने कहा कि ये मासूम लड़की मुझे दो महीनों से रोज बस स्टाप पर घूरती है।

इस बात का उन दोनों में से किसी के पास जवाब न था। पास खड़े लोगों के लिये यह कौतूहल का विषय बन गया था कि हम तीनों में से किसका चरित्र सबसे खोटा है। उनकी लोगों की प्रश्नभरी निगाहों को अनदेखा करके मैं किसी तरह वापस बस में चढ़ा, और घर आकर सो गया।

वह किसी भी लड़की के लिये मेरी पहली और आखिरी पिटायी थी। उसके बाद मैंने लड़कियों की तरफ देखना भी छोड़ दिया था। क्या पता कब कौन फिर से मुझे फालतू में पिटवा दे? आखिर हममें बल्लू जितनी हिम्मत कहाँ थी!

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और भी बहुत से गुबार इस छोटे से दिल में दबाये बैठा हूँ! आपका चिट्ठा देखकर उड़ेलने की इच्छा हो रही है! एक न एक दिन उन सभी को बाहर कर ही दूँगा!

अनिल कान्त 7 April 2009 at 17:46  

फिर भाभी जी कि तरफ तो देखा ही होगा जब उन्हें पसंद करने गए होंगे आप शादी के लिए :)

रंजू भाटिया 7 April 2009 at 19:26  

:) बढ़िया है जी

Gyan Dutt Pandey 7 April 2009 at 20:36  

कुशवाहा कान्त और गुलशन नन्दा का युग याद आ गया!

हरकीरत ' हीर' 7 April 2009 at 21:39  

..हूँ..तो जनाब काफी आशिक मिजाज़ थे.....??

अच्छी लगी आपके प्यार की पहली मार.......बहुत अच्छा लिखते हैं आप.......!!

दर्पण साह 7 April 2009 at 23:36  
This comment has been removed by the author.
दर्पण साह 7 April 2009 at 23:49  

badiya !! itna laba kam hi padhta hoon par jab auron ko padhte or tipyate dekha to behti ganga main haat dho liye. Aur sabak bhi seekh liya :)

Anonymous,  8 April 2009 at 00:52  

Nice blog. Only the willingness to debate and respect each other’s views keeps the spirit of democracy and freedom alive. Keep up the good work. Hey, by the way, do you mind taking a look at this new website www.indianewsupdates.com . It has various interesting sections. You can also participate in the OPINION POLL in this website. There is one OPINION POLL for each section. You can also comment on our news and feature articles.

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Anil Pusadkar 8 April 2009 at 09:37  

ये आपका चुनमुन हमारे दोस्त चुन्नू टाईप लगता है।बहुत बढिया,लगता है हमको भी अपना बंद पिटारा खोलना पडेगा।

अवाम 8 April 2009 at 11:39  

सुन्दर, बहुत बढ़ियां

आलोक सिंह 8 April 2009 at 12:12  

बहुत ही रोचक किस्सा सुनाया आपने , मजा आ गया . चुनमुन की तरफ मेरे भी एक मित्र धुले गए थे .

रेवा स्मृति (Rewa) 8 April 2009 at 22:29  

Badhiya hai! Logon ko itni jaldi kisi se mohbbat kaise ho jati hai...mujhe ye baat aajtak smajh mein nahi aai ;)

गौतम राजऋषि 8 April 2009 at 23:43  

आज चैन से बैठ कर पूरी दास्तान पढ़ गया...रोचक
कुछ अपने किस्से भी याद दिला गये

विधुल्लता 9 April 2009 at 08:42  

इश्क में पिटाई....सरल शब्दों में व्यक्त भावों की शब्द रचना ..अच्छी लगी...

भारतीय नागरिक - Indian Citizen 9 April 2009 at 10:14  

kya baat hai, har koi naya jawaan ladka apni jawani me thoda bahut aisa kaam karta hi hai.

Narender 28 April 2009 at 11:26  

anil ji aapka ye blog padkar apne bhi college ke din yaad aa gaye kya life hoti hai vo bhi bilkul mast koi extra tension nahi, aap aise hi likhte rahiye

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