हम कृष्ण भी हैं - हम राम भी
>> 19 November 2009
हम समझदार हैं
और होशियार भी
हम बनकर चाचा, ताऊ
फूफा और मौसा
लूटते हैं, खसोटते हैं
अपने ही घरों की स्त्रियों को
और
फिर देते हैं, उन्हें
अपने घर की
इज्जत की दुहाई
हम रचाते हैं रास लीला
भोगते हैं सुन्दरता
और फिर
दूर खदेड़ देते हैं
अपने ही घरों की स्त्रियों को
हम कृष्ण भी हैं
हम राम भी
हम देते हैं भाषण
स्त्री शक्ति पर
और फिर भोगते हैं
उसके शरीर को
बंद किसी होटल के कमरे में
हम बेईमान भी हैं
हम शैतान भी
हम लगाकर घात
बैठते हैं
अँधेरे किसी कोने में
लूटने को
किसी स्त्री की अस्मत
और
रखते हैं बंद कुण्डी में
अपने घरों की इज्जत
हम शैतान हैं
और
बनते भगवान भी
17 comments:
हम लगाकर घात बैठते हैं
अँधेरे किसी कोने में
लूटने को
किसी स्त्री की अस्मत
और
रखते हैं बंद कुण्डी में
अपने घरों की इज्जत
हम शैतान भी हैं
और
बनते भगवान भी
bahut sunder kavita....
man ko chhoo gayi..
बहुत खूब अनिल भाई, सच्चाई बयाँ करती लाजवाब रचना।
aaj ke samaj ke thekedaron ke moonh par ek karara tamacha hai..........stri suraksha ka beeda uthane wale hi jyadatar aise jaghanya krityon mein lipt paye jate hain..........jage huon ko aise hi jagaya jata hai.
गुलज़ार साहब याद आ गए..
जिसका भी चेहरा छीला.. कुछ और निकला
मासूम सा कबूतर.. नचा तो मोर निकला..
हम देते हैं भाषण
स्त्री शक्ति पर
और फिर
भोगते हैं उसके शरीर को
बंद किसी होटल के कमरे में ...
KDUVA SACH... MARD KA KAALA DOGLA CHEHRA SAAMNE LA DIYA AAPNE ANIL JI ... KAMAAL KA LIKHA HAI ...
इक आदमी में होते हैं दस बीस आदमी ...
सच्ची अभिव्यक्ति ।
शुभ वचन, सुंदर वचन।
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11वाँ राष्ट्रीय विज्ञान कथा सम्मेलन।
गूगल की बेवफाई की कोई तो वजह होगी?
हम लगाकर घात बैठते हैं
अँधेरे किसी कोने में
लूटने को
किसी स्त्री की अस्मत
और
रखते हैं बंद कुण्डी में
अपने घरों की इज्जत
हम शैतान भी हैं
और
बनते भगवान भी
बिलकिल सटीक अभिव्यक्ति है बधाई इस सुन्दर रचना के लिये
सच्चाई बयान कर दी आज के समाज के बारे में..
राम भी हम और रावण भी हम..
बहुत सुन्दर..
आभार
प्रतीक माहेश्वरी
सत्य 'एथेंस के सत्यार्थी की तरह'........
अनिल जी ! एक एक पंक्ति मैं सच्चाई है
हम कृष्ण भी हैं
हम राम भी
हम देते हैं भाषण
स्त्री शक्ति पर
और फिर
भोगते हैं उसके शरीर को
बंद किसी होटल के कमरे में
कुछ समय पूर्व श्री आसाराम जी बापू पर एक खबर में कुछ इसी तरह देखा था.....और लोग उनके नाम का पाठ किया करते हैं अपने मंदिर में उनकी तस्वीर लगा कर.
सौ फ़ीसदी सच्चाई लिख दी है आपने..खरी-खरी
हमारी शरीफ़ मुस्कानों के पर्दे मे छिपी हमारी लार टपकाती आँखों के बारे मे...
वाह !!!
bahut hi accha laga ye poem padh kar....ek aurat ke haalat ko bahut khubi se likha hai...
behtareen
वाह क्या बात है अनिल भाई। गजब का लिखा है। समाज की एक सच्चाई दिखा दी।
Ek kadwaa sach jise aap ki kavita ne lagbhag sara hi ujaagar kar diya.
-yahi dohara ruup dhare hain bahut se log is duniya mein-kya kaheeye?
हम शैतान भी हैं
और
बनते भगवान भी
bahut achchha likha ...sateek!
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