कि ये लोकतंत्र है
>> 02 November 2009
हम अंधे हैं
और बहरे भी
या हम देखना चाहते हैं
चंद कपडों में परोसी गयी
परदे पर नग्न स्त्री
और सुनना चाहते हैं
रेडियो पर पॉप संगीत
और अपनी सलामती की खबरें
हम इंतजार करते हैं
हमें मारने वालों के लिए
इन्साफ का
देखते हैं, सुनते हैं
और फिर भूल जाते हैं
लाल किले पर खड़े होकर
दिया जाने वाला भाषण
हमें बताया जाता है
बार बार
कि ये लोकतंत्र है
33 comments:
लोकतंत्र ! जितनी नागवार बातें हैं,उनको प्रस्तुत करना और खुलेआम डट के खड़े हो जाना
लोकतंत्र है ..........
बहुत बढ़िया पर भाई लोकतंत्र में नेता अंधे और गूंगे होते है अपुन नहीं ?
हम इंतजार करते हैं
हमें मारने वालों के लिए
इन्साफ का
bahut sahi....
jai hind...
लोकतंत्र की सच्चाई कड़वी लेकिन यह अभिव्यक्ति मधुर
हैपी ब्लॉगिंग
आज भी अच्छा लगा आपका लिखा कुछ अलग सा पढकर।
देखते हैं, सुनते हैं
और फिर भूल जाते हैं
लाल किले पर खड़े होकर
दिया जाने वाला भाषण
सच तो अब वो भाषण नही रहे और ना ही उन्हें सीरियस लेने वाले।
बहुत खूब।
yah jantantra sirf naam ke liye rah gayi hai .............yaha janata ke pratinidhi sirf chunkar jaate wakt tak sab yad rakhate hai sata our kursi pane ke bad kuchh yad nahi rakhate hai ...............andhe neta hai hamare desh ke ..........sundar
wowwww SPLENDID!बेहद प्रभावशाली अभिव्यक्ति है.
Bahut...........badhia.........
DEMOCRACY IS THE GOVERNMENT OF FOOLS AND LEADS BY AN IDIOT...
कोई भी तंत्र होगा उसकी हालत खराब कर दी जायेगी । संविधान निर्माताओं ने तो सबसे कम बुराइयों वाला तन्त्र चुना था ।
समस्या चरित्र की है, तंत्र चलाने वालों के । उसमें सुधार कैसे हो ।
न बतायें तो हम भूल ही जायें कि यह लोकतंत्र है.
बहुत गहरी चोट कर रही यह रचना.
सत्य वचन भाई छोटी सी कविता मे बहुत कुछ कह गये आप धन्यवाद
Wow....democracy ....
Anil agar aapki rachna ki baat sirf karoon to yahi kahoongi ki shabdo ke sanyojan se aaj ke loktantra ko bakhoobi utara hai aapne blog ke canvas par.......Lekin jab baat desh ki sirf itna kahna hai...ki akele kuch nahi hota .....agar ladna hai in buraiyon ke khilaaf to ekjut hona hi padega....warna sirf kalam chalegi.....karm jas ke tas
ek satya likh diya aapne...aaj kal hum pata nahi kis disha main chale ja rahe hai....
ji ye loktantra hai apni kuch achhhaiyon aur bahut saari buraiyon ke saath :)
achha likha..
अनिल जी,
राष्ट्र के लिए कुछ करने के कामना तो हर कोई करता हैं किन्तु सोचे हमे इसे मूर्त रूप देने के लिए क्या किया....आज के लोक्तान्रा की सही परिभाषा दी आपने पर आज के युवा को भी ललकारा जाना कहिये - वो जवानी ही क्या जो वक्त की बाजू न मरोड़ सके लोकतंत्र पर रोने के स्थान पर हम आप कुछ करे तो क्या अच्छा होगा...
बताया जाता है बारबार कि ये लोकतंत्र है,सटीक।
"कि ये लोकतंत्र है"... सब जानते हैं फिर भी बार बार याद दिलाना पड़ता है की ये लोकतंत्र "जनता द्वारा, जनता के लिए, जनता का शासन है"... और उससे भी बड़ा प्रश्न ये कि असल में हमारा, यानी जनता का योगदान है कितना और क्या वाकई हम कुछ करना चाहते हैं इसके लिये ?
कम से कम मुट्ठी भर लोग तो निकल ही आयेंगे इसे बचाने के लिए और जो करना चाहते हैं देश के लिए. जिनके पास कुछ कर सकने के लिए, कम से कम वो तो कर ही सकते हैं.
aaj ke kadve sach ko bakhubi bayan kiya hai........shayad kuch asar ho..........aap prayas karte rahein jage huyon ko jagaane ka.
kash loktantr ke prati yuva peedhi jagruk ho sake goodwishes.
हम इंतजार करते हैं
हमें मारने वालों के लिए
इन्साफ का ........
SACH KAHA ..... AUR ISI INTEZAAR MEIN HUM KHUD BHI IK DIN MAR JATE HAIN .... LOKTANTR JO HAI ... ACHHEE RACHNA HAI ...
Aaj ayai to thee ....aapki kahani padhne .....U know !!
Ab yahee hai loktantr ji ...!!sigh !!
sach likha !!
ाज के लोक तन्त्र की यही सच्चाइ है बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है। कहानी हो या कविता आपकी रचना बहुत सुन्दर होती है धन्यवाद और शुभकामनायें
Very nice...and hard-hitting! :)
sahbdo aur bahvo ka sahi sahi mishran hai jo sidhi chot karta hai
Bahot hi paini bhasha ke vajah se aapke shabd sidhe dil me utar jate hai,
यही है आज का लोकतंत्र
jo kuchh bhii ho ....antim jimmedarii hamaarii aapkii hi hai ......achchhii kavitaa !
देखते हैं, सुनते हैं
और फिर भूल जाते हैं
लाल किले पर खड़े होकर
दिया जाने वाला भाषण
हमें बताया जाता है
बार बार
कि ये लोकतंत्र है
समय पर चोट करती सशक्त कविता .....!!
बहुत सटीक अनिल जी , चूँकि लेख लंबा था, इसलिए मैंने फुरसत में पढने का निश्चय किया था ! आज पढा तो सच में, मजेदार लगा, और अपने लोकतंत्र के तो क्या कहने मासाल्लाह !!
जितनी तेज और तल्ख इस कविता की तासीर है अनिल साहब....उतना ही हकीकत के करीब है इसका मैसेज..हमारे वक्त को निरपेक्ष आइना दिखाता हुआ...
हम इंतजार करते हैं
हमें मारने वालों के लिए
इन्साफ का
Boss, BANGGG..
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