मेरा होना और ना होना !

>> 14 May 2010


ऐसे समय में जबकि
सत्ता के गलियारों में दबा दी जाती है
हर वो आवाज़
जो सत्ता के विरुद्ध हो
मैं दूर तक फैली हुई खामोशी को देखता हूँ ।

जबकि रोज़ ही
मरते हैं या मार दिये जाते हैं
नंगे, भूखे और बदरंग जानवर से आदमी
मैं विकास की ओर अग्रसर भारत को देखता हूँ ।

उन दिनों से इन दिनों में
जो नहीं है बदला
उस व्यक्ति, वर्ग और विशेष को
कटते और फिर से उपजते हुए देखता हूँ ।

ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ

10 comments:

दिलीप 14 May 2010 at 17:42  

badhiya kataksh...badhai...

M VERMA 14 May 2010 at 17:52  

ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ ।
वाकई और कोई बचाएगा नहीं, खुद को खुद ही बचाकर रखना होगा.
सुन्दर रचना

kunwarji's 14 May 2010 at 18:30  

बहुत बढ़िया जी!खूब उकेरे आपने अपने मनोभाव!

कुंवर जी,

kshama 14 May 2010 at 18:33  

Bahut,bahut sundar aur sashakt abhiwyakti!

Udan Tashtari 14 May 2010 at 20:20  

बहुत सटीक!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) 14 May 2010 at 21:03  

बहुत बढ़िया.....ऐसा ही सोचना भी चाहिए....अच्छी अभिव्यक्ति

प्रिया 14 May 2010 at 23:24  

ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ ।

bas aisa hi sochna aur khud ko bacha ke rakhne ki tamanna hamari bhi hai Anil...Poori umr ek sahi insaan bane rahe wahi sahi....bahut khoob!

Razi Shahab 15 May 2010 at 11:40  

bahut khoob...bdhai ho yaar
waise ik baat kahon aap ki kahaniyan aur afsane to bahut padhe...shabdon ka istemal karne mein aap ko mahart hai...lekin aaj phli baar aap ki poetry padhi...deewaana bana diya yaar....badhai ho...

Ra 15 May 2010 at 14:51  

सुन्दर शब्दों में ,,,,,,,,,,,,,,,,, अच्छी अभिव्यक्ति इसे ही कहते है ..बहुत खूब मेरे दोस्त ............इसी तरह लिखते रहे .....धन्यवाद
http://athaah.blogspot.com/

Anonymous,  15 May 2010 at 22:58  

अंतरविरोधों को गंभीरता से महसूस करती बेहतर कविता...

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