मेरा होना और ना होना !
>> 14 May 2010
ऐसे समय में जबकि
सत्ता के गलियारों में दबा दी जाती है
हर वो आवाज़
जो सत्ता के विरुद्ध हो
मैं दूर तक फैली हुई खामोशी को देखता हूँ ।
जबकि रोज़ ही
मरते हैं या मार दिये जाते हैं
नंगे, भूखे और बदरंग जानवर से आदमी
मैं विकास की ओर अग्रसर भारत को देखता हूँ ।
उन दिनों से इन दिनों में
जो नहीं है बदला
उस व्यक्ति, वर्ग और विशेष को
कटते और फिर से उपजते हुए देखता हूँ ।
ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ ।
10 comments:
badhiya kataksh...badhai...
ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ ।
वाकई और कोई बचाएगा नहीं, खुद को खुद ही बचाकर रखना होगा.
सुन्दर रचना
बहुत बढ़िया जी!खूब उकेरे आपने अपने मनोभाव!
कुंवर जी,
Bahut,bahut sundar aur sashakt abhiwyakti!
बहुत सटीक!!
बहुत बढ़िया.....ऐसा ही सोचना भी चाहिए....अच्छी अभिव्यक्ति
ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ ।
bas aisa hi sochna aur khud ko bacha ke rakhne ki tamanna hamari bhi hai Anil...Poori umr ek sahi insaan bane rahe wahi sahi....bahut khoob!
bahut khoob...bdhai ho yaar
waise ik baat kahon aap ki kahaniyan aur afsane to bahut padhe...shabdon ka istemal karne mein aap ko mahart hai...lekin aaj phli baar aap ki poetry padhi...deewaana bana diya yaar....badhai ho...
सुन्दर शब्दों में ,,,,,,,,,,,,,,,,, अच्छी अभिव्यक्ति इसे ही कहते है ..बहुत खूब मेरे दोस्त ............इसी तरह लिखते रहे .....धन्यवाद
http://athaah.blogspot.com/
अंतरविरोधों को गंभीरता से महसूस करती बेहतर कविता...
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