अनुगमन !
>> 19 February 2010
यह महज इत्तेफाक नहीं
कि
हम शोषित और अव्यवस्थित है ।
व्यवस्थित सोच से उत्पन्न समाज में
श्रंखलित व्यवस्था के पायदान पर खड़े हो
शोर भर मचाना
हमारी फितरत है, बस
और कुछ नही ।
हम सोचते हैं कि
कोई आये, और
हम बन जायें अनुयायी ।
कि शायद
जो दिला सके हमें
पुनः आजादी ।
मगर कौन ?
उन सबको हम
बहुत पहले मार चुके हैं ।
और
हमने सीखा है तो
सिर्फ
अनुगमन !
9 comments:
हम सोचते हैं कि
कोई आये, और
हम बन जायें अनुयायी ।
कि शायद
जो दिला सके हमें
पुनः आजादी
बहुत सार्थक और सुन्दर रचना. सच है पहल कोई नहीं करना चाहता, बातें चाहे जितनी भी कर लें. अनुयायी होने की आदत सी हो गई है.
anilji,
samaz, vyavstha aour dour se upaj rahaa he aajkal ek aakrosh, aour ykeen maaniye..yahi he vo beej jisase badegaa poudha aour vraksh...samay chahtaa he itihaas bhi..ek kranti avshymbhavi he.
अनुयायी बनना तो ठीक है पर अगर आगु अँधा मिल जाये तो खुद भी डूबे पीछे चलने वाले भी...खूबसूरत कविता..
हम सोचते हैं कि
कोई आये, और
हम बन जायें अनुयायी ।
कि शायद
जो दिला सके हमें
पुनः आजादी ।
मगर कौन ?
उन सबको हम
बहुत पहले मार चुके हैं ।
और
हमने सीखा है तो
सिर्फ
अनुगमन !
adbhut!
शोर भर मचाना
हमारी फितरत है, बस
और कुछ नही ।
sach hi hai....
हमने सीखा है तो
सिर्फ
अनुगमन ! vry true....
sach to yahee hai
bahut sunder bhav liye hai aapkee kavita.........
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
इसे 20.02.10 की चिट्ठा चर्चा (सुबह ०६ बजे) में शामिल किया गया है।
http://chitthacharcha.blogspot.com/
Bahut hi vichaarniya hai aapaki yah rachana..!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
शोर भर मचाना
हमारी फितरत है, बस
ham anuyayi bhi banana chahte hai to kiske ? Paisa, takat, pad....kabhi kisi saraswati premi ya gareeb ka auyayai dekha hai aapne ? ya fir dharmik baba ke auyayiyon ki bheed hai. Nice post
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