उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया !
>> 19 February 2010
वो बैठी थी चुप, ख़ामोशी में खोयी सी । कमरे की खिड़की पर लगा अख़बार बार-बार हवा के तेज़ झोंके से फडफडाता और शांत हो जाता । बाहर चाँदनी मद्धम-मद्धम झर रही थी । खिड़की की दरारों से शीत लहर अन्दर प्रवेश कर जाती थी । तब ख़ामोशी को तोड़ते हुए मेज पर पढ़ा हुआ ख़त हिल उठा । वो ख़त जिसको पढने के बाद उसने मेज पर किताब के सिरहाने दबा कर रख दिया था । वो उसे खींचकर वापस कमरे में ले आया ।
शब्द जो जल्दबाजी में लिखे गये थे । अभी भी स्याही के रूप में कागज पर मौजूद थे । मौजूदगी अपने और फैसले के होने की । फैसला जिसे जल्दबाजी में लेने की जल्दबाजी होती है ।
वो फिर से खिड़की के उस पार खो गयी । फिर चलते चलते अचानक से उसके कदम ठिठक गये । दूर-दूर तक एकांत था । सूना एकांत और उन क़दमों से चलती वो । सहसा उसके रुके क़दमों के पास से एक आवाज़ होकर गुजरी -
-"फिर सुधांशु, उसका क्या ?" कहीं से आवाज़ आयी ।
-"सुधांशु !" वह हडबडा कर इधर-उधर देखती है । यह कौन बोल रहा है ? यह किसकी आवाज़ है ?
फिर से आवाज़ आती है -
- हाँ सुधांशु ! वही सुधांशु, जिसे तुम दिलो-जान से मोहब्बत करती हो । उसका क्या ?
अबकी बार वह पीछे मुड कर देखती है लेकिन वहाँ कोई मौजूद नहीं । हैरानी से फिर दाँये-बाँये देखती है । फिर सोचती है कि जिस बात को सिर्फ मेरा दिल जानता है उसे कोई और कैसे जान सकता है ?
फिर से आवाज़ आती है -
-तुमने जवाब नहीं दिया । सुधांशु का क्या होगा ?
-"वो एक ख्वाब है ।" उसने कहा ।
-तो क्या तुम उसे भुला दोगी ?
-ख्वाब कभी याद रहे हैं भला ? फिर जो एकतरफा ख्वाब हो, उसके क्या मायने ?
मेज पर रखा ख़त फडफडाता हुआ उसे वापस कमरे में बुलाता है । उसके पढ़े हुए शब्द कमरे में गूँजने लगते हैं ।
"हमने तुम्हारे लिये लड़का देख लिया है । इस रविवार को घर आ जाओ !"
जल्दबाजी में लिखे शब्द एक बाप की जल्दबाजी बयाँ कर रहे थे ।
वह ख़त उठाती है और आँख की कोर से टपक गये उस आँसू को ख़त से पौंछ देती है ।
उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया था ।
हमेशा के लिए !
28 comments:
उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया था ।
हमेशा के लिए ..
बहुत शानदार अभिव्यक्ति..दिल को छूती हुई.
बहुत संवेदनशील ....अच्छी कथा...
संवेदनशील कथा...
उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया था ।
हमेशा के लिए ..
ये लाईनें बहुत सुन्दर लगी
बहुत अच्छा लिखा है....
फैसला जिसे जल्दबाजी में लेने की जल्दबाजी होती है।
ये लाइन अच्छी लगी...। आगे भी याद रहेगी और इस्तेमाल होती रहेगी।
खूब...बहुत खूब.।
thapkiyan deke...beautiful line...aise kitne hi khwab har ladki sula deti hai...thapkiyan deke...!!
ख्वाब थपकियाँ दे कर ही सुलाने पडते हैं बहुत मार्मिक रचना है दिल को छू गयी। शुभकामनायें
"बढ़िया लगी कहानी, पर अंत चिरपरिचित था, शब्द चयन शानदार..."
प्रणव सक्सैना amitraghat.blogspot.com
वाह भई बहुत बढ़िया, अच्छी रचना और भाव, गहराई का बोध कराती हुई..
उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया था ।
हमेशा के लिए !
Nanhi si kahani...aur gahra marm...aap kahani kala mein praveen hote ja rahe hai
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति है , शुभकामनाएँ !!
sunder abhivykti.....par udaas kar gayee.......
khwaab acche ho to bharsak koshish honee chahiye poora karane kee.
kahanee acchee thee .
उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया था ....behtareen pankti...aur haan ab badlav ki bayaar bhi chal padi hai khwab ko sakar karne ki.
वाह बहुत सुंदर.
बहुत शानदार अभिव्यक्ति...शुभकामनाए!
सुबह सुबह प्यार की ठंडी फुहार।
Fir se kartavya ki pagdandi par chalte huye koi rasta bhul gaya...
kai baar aisa karna padta hai..........bahut hi sundar.
kya likhte hain...... khwaabon ko sunkun dete ehsaas
बहुत खूबसूरती से कहानी को अंजाम दिया है
मार्मिक और अत्यंत भावपूर्ण
तभी तो मैं कभी कभी कह उठता हूं कि ,
कलम उनकी कातिल है,
हम रोज़ मरते हैं ,
आदत हो गई है मरने की ,
उन्हें रोज़ पढते हैं ॥
अजय कुमार झा
Bahut sundar katha...
shandaar rachna....
बुरा न मानो मित्र, ख्वाब होते ही थपकी दे का सुलाने के लिये। वह ख्वाब बहुत खराब होते हैं जो कालान्तर में तब्दील हों नाइटमेयर में।
बहुत सुन्दर रचना।
उस रात फिर एक ख्वाब थपकियाँ देकर सुला दिया गया था ।
हमेशा के लिए ..
और उसके बाद सुधांशु पास एक जागती आँखों का ख्वाब बन के रह गया ...
बहुत ही लाजवाब लिखा है ... हमेशा की तरह ...
bahoot he badiya
कम शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति.
..बधाई.
badhiya ...........
mind blowing yaar..tu sochta bahot sahi hai bhai..aur likhta usse bhi kahi zyada sahi
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