एक फोटो हमारा भी 'कि ये इंडिया है'
>> 23 September 2010
देखो जी खेतों से बीन-बीन कर इन लौंडों-लप्पाडों को एकत्रित करना और उन्हें शिक्षा देना, नेक काम भले हो लेकिन आप क्या समझते हैं बहुत आसान है ? हाँ अब आप तो कहेंगे कि कैसे तो सरकार हमारी, अपना पेट चीर कर पैसा देती है, उस पर से नवाबी ठाट तो देखो । खाना मुहैया कराओ, नहीं तो कोनों धंधा पकड़ लेंगे, अजी हम कहते हैं निरी मूर्खता है, कोरी भावुकता, बहस के लिये कुछ तो हो । और हमसे कहते हैं कि दाना-पानी चुराया है, अजी हमको क्या ? हम कोई रईशजादे हैं ? अरे हमको अपना पेट नहीं भरना क्या ? अरे उनका क्या है ? मुँह खोला और थूक दी योजना । अरे हम तो कहते हैं, कोई योजना कैसे कामयाब होगी ? कभी सोचा है ? किसको सोचना है ? काहे सोचना है ?
अरे भले मानुष जिनको पीछे खाट पर छोड़ कर आते हैं, उनका पेट कौन भरेगा ? फिर कहते हैं बाल मजदूरी अभिशाप है । हो शाप-अभिशाप । क्या हमको नहीं पता ? अजी क्या तुमको नहीं पता ? सबको पता है । और जो नहीं पता तो आओ सामने । आँकड़े बाज़ी से क्या होता है ? नौ-नौ कोस पैदल चलकर, पाँव में छाले पड़कर, ये गिनो कि कितने भले आदमी रहते हैं इस जंगल में । क्या होगा गिनकर ? अरे जब उनको दुनिया देख नहीं रही, भाल नहीं रही । खामखाँ भावनाओं का जाल क्यों ? और फिर किसी को दिखाना है तो झोपड़ी में सोकर, रुखा खाकर, ठंडा पानी पीकर, योग्यता दिखानी क्या ? वहाँ तन उघारे रह, दो रुपिया किलो चावल खा, माढ पी, खुश रहकर दिखाओ ।
और हम से कहना कि चोरी करते हो, बच्चों का पेट मारते हो । गोढ़ दुखाकर, सर उघारे, चुन-चुन कर इकठ्ठा कर उनका पेट भर देने के बाद जो बचे तो ना खावें तो कहाँ ले जावें । सडा दें ये कहकर कि भले सड़ जाए मुफ्त खोरों के लिये नहीं है । इण्डिया तरक्की पर है । यह सब शोभा नहीं देता । अरे करो तो बड़ा काम करो । नाम हो देश का । दुनिया जाने कि खेल कैसा रचा जाता है ? तब न कहेंगे ....एक फोटो हमारा भी 'कि ये इंडिया है'
9 comments:
बहुत ही बढ़िया लगा लेख पढ़कर ........
इसे पढ़े, जरुर पसंद आएगा :-
(क्या अब भी जिन्न - भुत प्रेतों में विश्वास करते है ?)
http://thodamuskurakardekho.blogspot.com/2010/09/blog-post_23.html
बहुत अच्छा व्यंग है अनिल जी .... बहुत चटखारे ले कर लिखा है ......
सुन्दर चिन्तनपूर्ण आलेख।
Aise karare vyang pe kya comment diya jaye? Pravahi bhasha aur baat patekee!
Nice post Anilji...back to your blog after a while.
हाँ अफ़सोस के साथ मानना पड़ेगा की एक तस्वीर ये भी है आज के इंडिया की... कड़वी सच्चाई... कुछ कुछ वैसी ही जैसी आमिर खान दिखाते हैं अपनी फिल्मों में और विज्ञापनों में...
है तो इंडिया तरक्की पर ही
अनिल भाई, आपकी बात मन को छू गयी, बधाई।
है तो इंडिया तरक्की पर है ? ये आज ही पता चला। अच्छा व्यंग है। धन्यवाद।
Post a Comment