चिट्ठेरिया !

>> 15 May 2010

उधर गली के आखिरी मोड़ पर नयन सुख चचा की दुकान पर सब लोग नयनों का सुख लेने की खातिर जमघट लगाए रहे । बस कोनों सुख हुआं से गुजरा नहीं कि लगे टकटकी बाँध के घूरने । जैसे कि घर तक पनार कर ही दम लेंगे । उधर नयन सुख चचा पान का पत्ता काटते हुए बोले "अरे ई ससुर राम दास का छोरा दिखाई नहीं पड़ता आजकल । का कोनों सेटिंग वेटिंग कर लिया है का ।"

पास ही खड़ा मनोहर बोला "अरे ऊ का सेटिंग करेगा, ससुर की घिघ्घी तो बंध जात है लड़कियन के सामने "

तो फिर दिखाई काहे नाही देत है ? ऐसो कोई पढ़तु लिखतु तो है नाय । तबियत पानी तो सब बराबर है ससुर की ?

यह सब बातों का सिलसिला चल ही रहा था । तब तक गोपाल दास उर्फ़ राम दास का छोरा उधर से गुजरता हुआ दिखाई दिया । नयन सुख चचा देखते ही आवाज़ लगाते हैं "अरे ओ गोपाल । कहाँ किशन-कन्हैया बने घूम रहे हो ? दिखाई नाही पडत । तुम तो ससुर नये नवेले दूल्हा जैसन हुई गये । कि दुल्हन आयी नाही घर में और बस जब देखो तब घर मा ही घुसे रहत । का बात का है बचवा ? कैसन नेता की माफिक इस गली के मोड़ को भुलाय दिये हो । कोनों प्रॉब्लम है का ? कोनों समस्या हो तो बतावो ?

कुछ नहीं चचा । बस यूँ ही ।

अरे कैसे बस यूँ ही । देखो तो सूरत कैसी पिचक गयी है । शरीर कैसा सूखा जा रहा है । जैसन कभी बरसात ही ना भई हो । जैसन हियाँ सब रेगिस्तान ही हो । ई उम्र मा कौन सा रोग लगाय लिये हो बचवा ? कहीं इश्क-विश्क का रोग तो नाही ?

"नहीं चचा कोनों बात नहीं है ।" उदास स्वर में गोपाल बोला ।

तब तक पड़ोस में खड़ा जुगनू बोला "अरे चचा हम बताय देत हैं ।"

तुम काहे दिन में जगमगाए रहे । उसे ही मुंह खोलन दो ।

अरे चचा ऊ का बोलेगा । हम बतात हैं । असल मा बात ई है क । जा ससुर कों ब्लोगेरिया हुई गवा है ।

ब्लोगेरिया ? अरे ऊ का होता है ? का इंग्लिश में अंट-शंट बकत हो जुगनू । हिंदी में काहे नाही बोलत ।

अरे अगर हिंदी में सुनिबो चाहत हो तो सुनि लेओ चचा । जाये "चिट्ठेरिया" हुई गवा है ।

अरे ई का होत है ? ई कौन सी बीमारी है ?

अरे चचा अब कुछ ना पूँछो । कम्प्यूटर पर कुछ भी लिख कर हुआं ठेल देते हैं और फिर कुछ लोग पढ़कर झूठ मूठ तारीफ़ के पुलिंदा बनात हैं । वाह-वाह लुटात हैं । लिख-लिख कर वाह-वाह भेजत हैं और फिर दिमाग खराब होने में टाइम नहीं लगता ।

अच्छा तभी ई ससुर घर मां घुसा रहता है । तो ई कम्प्यूटर तो ऊ नई लुगाई से भी खतरनाक है । जो हर बखत अपने से चिपकाए रहता है । बहुत बुरी बीमारी है ई तो ।

अरे कुछ मत पूँछो चचा । ई ससुर उसी वाह-वाह और आह-आह के चक्कर में पड़ गया है ।

ये वाह-वाह तो समझ आया लेकिन ये आह-आह कैसे ? ई समझ ना आया ।

अरे चाचा बस ये समझ लो कि जब वाह-वाह नहीं मिलती तो आह-आह होती है । जब दूसरे के ठेले गये को वाह-वाह ज्यादा मिले और खुद को कम मिले तो सीने पर साँप लोटता है और आह-आह निकलती है ।

तो ई बात है । अब समझ आया कि माजरा क्या है । ये छोरा इतना सूखता काहे जा रहा है ।

बस इतना था कि गोपाल दास फूंट-फूंट कर रोने लगा । आँसुओं की बरसात कर दी ।

नयन सुख चचा से रहा ना गया और दुकान से उतर कर उसे गले लगा लिया । उसके गालों पर लुढके हुए आँसुओं को पोंछते हुए बोले "अब इतना काहे रो रहा है । अब आज ना किया वाह-वाह तो कल कर देगा और कल नहीं तो परसों कर देगा ।"

"ये बात नहीं है चचा । बात इतनी सी होती तो बुरा ना लगता । लोगों ने मेरे लिखे को कचरा कहा । मेरा दिल बहुत दुखा । खुद ससुर कुछ भी लिखें तो कुछ नहीं । मैं लिखूँ तो कचरा ।" गोपाल रोते हुए बोला

अरे ऐसे रोते नहीं बेटा । अच्छे-बच्चे ऐसे नहीं रोते । तू तो मेरा अच्छा-बच्चा है । मेरा राज-दुलारा चुप हो जा । देख अब रोया तो मैं कभी बात नहीं करूँगा । अरे उन्होंने तेरी बुराई की तो तू उनकी कर । तुझे और मज़ा आएगा । यूँ हाथ पर हाथ धरे बैठने से काम थोड़े चलेगा । ना यूँ सिसक-सिसक कर रोने से । मैं तो कहता हूँ कि सीधे भिड़ जा । विनम्र बनते हुए तू लाख बुराई कर । यही दस्तूर है बेटा ।

गोपाल धीरे-धीरे सिसकना बंद करते हुए बोला "चचा तुमने बहुत काम के टिप्स दिये । मुझे और बताओ कि मैं औरों से ज्यादा कैसे फेमस हो पाउँगा ? बस मैं नाम कमाना चाहता हूँ । भला या बुरा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।

अब ये की ना आज के टाइम की बात । भले-बुरे का मोल नहीं है बचवा । आजकल बस नाम होना चाहिए । बुरा होगा तो और अच्छा है । लोग डरेंगे तुमसे और कुछ भी ऐसा वैसा करने से पहले राय लेंगे तुम्हारी । इसी लिये मैं तो कहता हूँ बचवा कि बुरा नाम कमाना ज्यादा बेहतर है ।

"वो कैसे ? कैसे कमाऊँ मैं नाम ? मुझे बस फेमस होना है । मुझे तरकीब सुझाइए ।" गोपाल सुबकना बंद करते हुए बोला ।

अरे बहुत आसान है बचवा । तुम घर की औरतों को नहीं देखते । अरे एक की बुराई हियाँ करो और दूसरे की हुआं । अगर इससे भी काम ना चले तो सीधे मैदान में आ जाओ और सामने के सबसे शक्तिशाली दुश्मन से भिड़ जाओ । ये समझो कि जहाँ तुम खड़े हो वो अखाडा है और तुम बस एक लड़ाका ।

इसके साथ साथ तुम्हें डिवाइड एंड रूल की थ्योरी भी अपनानी पड़ेगी । जैसे कि अंग्रेज अपनाते थे । इसको उससे भिड़ा दो और उसको इससे । कुछ भी अंट-शंट बक दो और किनारे पर बैठकर तमाशा देखो ।

देखो इससे तुम्हें दो फायदे अवश्य होंगे । एक तो तुम बिना कुछ किये फेमस हो जाओगे । लोग जानेंगे तुम्हें । नाम होगा तुम्हारा और लोग डरेंगे तुमसे । दूसरा ये कि लोग तुम्हारे लिखे पर ध्यान देंगे कि कहीं ये मेरी बुराई तो करने नहीं जा रहा । तो हो गया ना डबल मुनाफा ।

नयन सुख चचा को गले से लगाकर गोपाल फूला ना समाया । जैसे कि उसे अमृत वाणी मिली हो । उसका खून अब डबल रफ़्तार से दौड़ने लगा था । वो कभी एक पैर को ऊपर उछालता हुआ तो कभी दूसरे को भागा जा रहा था ।

नयन सुख चचा ने आवाज़ लगाई "अबे कहाँ चल दिये ?"

उधर से भागते हुए तेज़ आवाज़ आयी "फेमस होने ।"

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**फोटो गूगल से

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मेरा होना और ना होना !

>> 14 May 2010


ऐसे समय में जबकि
सत्ता के गलियारों में दबा दी जाती है
हर वो आवाज़
जो सत्ता के विरुद्ध हो
मैं दूर तक फैली हुई खामोशी को देखता हूँ ।

जबकि रोज़ ही
मरते हैं या मार दिये जाते हैं
नंगे, भूखे और बदरंग जानवर से आदमी
मैं विकास की ओर अग्रसर भारत को देखता हूँ ।

उन दिनों से इन दिनों में
जो नहीं है बदला
उस व्यक्ति, वर्ग और विशेष को
कटते और फिर से उपजते हुए देखता हूँ ।

ऐसे में जबकि
मेरे होने और ना होने से कोई फर्क नहीं पड़ता
मैं खुद को बचाए रखने की सोचता हूँ

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