चम्पे की सुगंध सी तुम्हारी बातें
>> 11 April 2011
बसंत के दिन बहुत पीछे छूट चुके हैं, उन्हें याद करने जितनी फुर्सत खुदा ने अभी नहीं दे रखी . इन दिनों वो पूँछा करती है कि "उन दिनों में दिल की बात कहने का कभी मन नहीं हुआ ?" और मैं खामोश निगाहों से उसकी गहरी आँखों में देखने लगता हूँ . जो मुझे बीते दिनों की याद दिलाती हैं, जब मैं चोर निगाहों से उसे देखा करता था और वो जताना चाहकर भी कुछ नहीं जताती थी . प्रारम्भ के दिनों की जब वह कोई बात बताती है तो वे दृश्य सामने उभर आते हैं . जब मैं उसके मोहपाश में बंधा उसकी ओर खिंचता ही चला जा रहा था. और वो कोई डोर दिन-ब-दिन मजबूत होती ही चली गयी .
हमारे विश्वासों की दुनिया में खुदा की खुदाई थी, वहाँ तूफ़ान का नामोनिशाँ न था .
अक्सर मेरी आँखें वक़्त की दीवार लाँघकर, उन बीते हुए दिनों में चली जाती हैं, जहाँ उसकी मुस्कुराहट से मासूम कलियाँ झड़ा करती थीं . तब मेरे हिस्से इतनी समझ नहीं थी कि उससे कुछ कह दूं . इन दिनों उससे बार-बार कहने को मन करता है कि-
"तुम्हारी सादगी की पवित्रता मेरे मन में बसे तुम्हारे प्रेम को हर नए दिन बढ़ाती चली जाती है .
वो अक्सर पूँछा करती है कि "हम अब तलक क्यों नहीं मिले थे ?" और मैं मुस्कुराकर कहता हूँ "सच तो ये है कि ऊपर वाले ने हमारे हिस्से की मोहब्बत हमसे बचा कर रखी थी और अब वो सूद समेत हमें दे रहा है ." और जब वह इस बात पर मुस्करा दी तो मैंने कहा "या मेरे मौला मेरी मोहब्बत को मेरी नज़र ना लगे" .
अभी कुछ रोज़ पहले मैंने उससे कहा "तुम्हारी उजली हँसी की खनक, मन के वीरान अँधेरे को रौशन कर देती है". इस बात पर सारा घर सिक्कों की खनखनाहट सा गूँजने लगा . कई रोज़ वह संगीत कानों में बजता ही रहा .
सोचता हूँ अबके दफा उसकी कुछ कतरने कुर्ते की जेब में रख लाऊंगा और उसके बाद के अँधेरे में हाथों से उलट-पलट कर देख लिया करूँगा. जैसे बच्चे संभाले रहते हैं, अपनी जेबों में चन्द सिक्कों को .
सुनो मैं तुमसे आज, अभी, अपने मन की कोमल सतह पर उग आये उन शब्दों को कह देना चाहता हूँ, जो हर नए रोज़ बढ़ते ही चले जा रहे हैं -
"मैं तुमसे बेहद मोहब्बत करता हूँ. चम्पे की सुगंध सी तुम्हारी बातें, मुझे अपनी ओर खींचती ही चली जाती हैं ."
9 comments:
दिल को कही अंदर तक छु गयी ये अहसासपूर्ण रचना....बेहद उम्दा।
हँसी की खनक, यही तो तिलिस्म है जो टूटता नहीं।
Pyaaree,komal,bhavuk rachana! champaa ke phool-si!
खुश्बू सी नाज़ुक स्वगत कथन सी सुन्दर कहानी.
वाह अनिल जी,
आप की रचना का हमेशा से इंतज़ार रहता है ! आप की रचनायों में आप के अन्दर के ज़ज्बातों का एहसास दिल को छु जाता है! और अप्प क्या शब्दों का और वाक्यों का चयन करते है ...जैसे ...हमारे विश्वासों की दुनिया में खुदा की खुदाई थी...उसकी मुस्कुराहट से मासूम कलियाँ झड़ा करती थीं...तुम्हारी उजली हँसी की खनक, मन के वीरान अँधेरे को रौशन कर देती है...सारा घर सिक्कों की खनखनाहट सा गूँजने लगा...चम्पे की सुगंध सी तुम्हारी बातें,..यह सब पढ़ कर लगता है जैसे मै कोई प्यार का कविता पथ पढ़ रहा हूँ...लिखते रहे ..दिल के अन्दर के हर ज़ज्बात को सुन्दर शब्दों का जो आप जमा पहनाते है उसे पढ़ कर हम आप की साथ जुड़े रहेंगे सदा...
बहुत प्यार के साथ ..
आशु
"सोचता हूँ अबके दफा उसकी कुछ कतरने कुर्ते की जेब में रख लाऊंगा और उसके बाद के अँधेरे में हाथों से उलट-पलट कर देख लिया करूँगा. जैसे बच्चे संभाले रहते हैं, अपनी जेबों में चन्द सिक्कों को ."…।
सही है साहब! हम भी खुद में उसका कुछ हिस्सा समेट लाये हैं और सच कहें तो तभी से आबाद है जेहन का वीराना !
फिर-फिर लौटूँगा…… कई बार इसे महसूसने के लिये !
नमन !
"तुम्हारी सादगी की पवित्रता मेरे मन में बसे तुम्हारे प्रेम को हर नए दिन बढ़ाती चली जाती है ......जिंदगी जितनी ही सच्ची है ये बातें.....पारदर्शिता और सादगी और सच ...इन्हें छोड़ प्रेम जाए भी तो कहाँ जाए
Sundar abhivyakti... Sadar,
kabhi humare blog me bhi aye shayad kuch mere ahsas aap samajh jaye. Mujhe protsahan ki jarurat hai , naya jo hun...
avinash001.blogspot.com
अनिल जी,
क्या लिखतें है आप. आप की रचना का सदा इंतज़ार रहता है..इधर बहुत देर से कुछ पड़ने को नहीं मिल रहा. आप की अपने बीते दिनों की अपनी महबूबा से बातें पढ़ कर बहुत अच्छा लगता है..काश आप एक किताब लिख डालें जिस का शीर्षक रहे जा तो ..तुम्हारी बाते या फिर हमारी बातें.. ज़रूर गौर करें
आशु
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