बच्चन सिंह और बहू की विदा

>> 26 October 2009

एक बार की बात है कि गाँव में रहने वाले बच्चन सिंह की नयी नयी शादी हुई. शादी के कुछ दिनों बाद जो है अपनी बहू को लिवाने के लिए उनकी ससुराल से खबर आई. अब जो है बच्चन सिंह जो कि बहुत खाते थे, उनको उनकी अम्मा ने सख्त हिदायत दी कि देख बच्चू तू यहाँ तो बहुत खाता है. यहाँ की कोई बात नहीं लेकिन वहाँ अपनी ससुराल में जाकर खाने पर मत टूट पड़ना. चाहे जितना भी कहें खाने के लिए, लेकिन तू जो है बस दो टाइम ही खाना खाना. एक रात में और फिर सुबह.

बच्चन की अम्मा ने जो कि जानती थीं कि बच्चू खाली पेट तो रह नहीं पायेगा तो जो है उन्होंने रास्ते के लिए पूडी सब्जी बाँध कर रख दी और साथ ही गुड भी ढेर सारा बाँध कर रख दिया, कि अगर भूख लगे तो इसे खा लेना लेकिन वहाँ ससुराल में सभ्यता से पेश आना.

अब भाई बच्चन सिंह चल दिए उठाय पोटली, जो अम्मा ने बातें समझायीं वो उन्होंने बड़े ध्यान से कस कर दिमाग में बैठा लीं. सुबह के निकले बच्चन सिंह पैदल पैदल जो है अपनी ससुराल जा रहे हैं. कुछ घंटे चलने के बाद बच्चन ने सोचा कि चलो अब कुछ सुस्ताय लिया जाए. बच्चन सिंह को कुछ देर सुस्ताने के बाद भूख लगी तो उन्होंने कुछ पूडियां खा लीं और फिर उठाकर पोटली चल दिए. अब इस तरह चलते चलते बच्चन सिंह जो है दो-चार बार बीच में ठहरे होंगे तो उनकी जो है पूडियां रास्ते में ही ख़त्म हो लीं.

शाम तक चलते चलते उनकी ससुराल आ गयी. दूर से ही उनके छोटे साले ने देखकर दौड़ लगायी "जीजा आई गए"..."जीजा आई गए" और उनके हाथ में पकडे हुए थैले को लेने की कोशिश की, लाओ जीजा हम लये चलें. साले ने लाख कोशिशें की मगर बच्चन ने थैला नहीं दिया और खुद ही थैला पकड़ कर चलते रहे.

दरवाजे पर साली मिली वो भी थैला छीनने की कोशिश करने लगी कि लाओ जीजा अन्दर रख दें. अब बच्चन उस थैले को कैसे दे देते. उसमें तो बचा हुआ गुड था. अब यहाँ ससुराल आये हैं तो यहाँ ये थोड़े नहीं पता चलना चाहिए कि दामाद गुड साथ लेकर चला है खाने के लिए.

बच्चन जी की आते ही बड़ी आव भगत होने लगी. अन्दर सास को पता चल गया कि उनका दामाद आया है तो उन्होंने फट से अन्दर से नया चादर और दरी निकलवाई और खाट के ऊपर बिछावाया. साली ने हाथ पकड़ कर उन्हें खाट पर बैठाला और फिर अन्दर दौड़ती हुई गयी बताने के लिए, कि बड़ी बहन को बता दें कि उनके वो आ गए.

थोडी देर में साली शरबत लेकर आ गयी और जीजा को शरबत देते हुए बोली कि जीजा "हमाय काजे का लाये" और थैले को उठाने की कोशिश करने लगी. जीजा जी उछले और बोले देखो हमारी चीज़ को हाथ ना लगाओ कहे देते हैं...तुम्हारी बड़ी मजाक करने की आदत है हाँ.

किसी तरह साली थैले को छोड़कर अन्दर गयी और अन्दर जाते ही सास ने कहा कि जा दौड़कर बगल वाली काकी को बुला ला वो कम तेल में अच्छी पूडियाँ तल देती हैं. साली दौड़ती हुई बाहर चली गयी. अब जो है बच्चन जी को बड़े जोरों से भूख लग रही थी, तो उन्होंने अगल बगल देखा और पाया कि कोई नहीं तो थैले से गुड निकालकर खाने लगे. जल्दी से थोडा बहुत खाकर मुंह पौंछ पांछ कर बैठ गए कि कहीं कोई देख ना ले. इस तरह वो खाने बनते बनते कई बार गुड खा चुके.

थोडी देर बाद साला कहने को आया कि जीजा जी खाना खा लो. बच्चन जी ने मना कर दिया कि भूख नहीं है...थोडी देर बाद साली आई तो उसको भी मना कर दिया कि भूख नहीं है. भाई बड़ी परेशानी वाली बात...उसके बाद सास आई कि बेटा खाना खा लो तो उनसे बोले कि अभी भूख नहीं है. थक हार कर उनकी बहू को उनकी सास ने भेजा कि देख तो खाना काहे नहीं खा रहे. उनकी बहू आयीं और उनसे बोली काहे नखरा कर रहे हो...काहे नहीं खानों खाई लेत. भाई अब बच्चन को जाना पड़ गया.

अब अन्दर जाकर वो खाने के लिए बैठ गए...रसोई में काकी पूडियाँ तल रहीं और खिड़की पर खड़ी खड़ी उनकी बहू देख रही कि खा रहे हैं कि नहीं. इधर बच्चन एक पूडी का एक कौर कर रहे और जल्दी जल्दी खाना खाए जा रहे. उनकी ये हालत देख उनकी बहू को बहुत गुस्सा आया..उन्होंने इशारे से बच्चन को उँगलियों से बताया कि एक पूडी के दो कौर करके खाओ. पर बच्चन तो कुछ और ही समझ बैठे. वो दो पूडियों को एक साथ खाने लगे. उनकी बहू ने माथा ठोंका...और इशारे से समझाया कि जैसे मर रहे थे वैसे ही मरो.

जैसे तैसे रात कटी और सुबह फिर वही हाल बच्चन को फिर भूख लगने लगी. अन्दर वालों को 2 बार मना कर चुके नाश्ते के लिए. यहाँ चुपके चुपके गुड खाए जा रहे. तभी उनका साला आ गया. इनके मुंह में गुड था, इन्होने मुंह बंद कर लिया. इनका एक गाल फूला हुआ देख साला बोला का खाई रहे जीजा जी. ह्म्म्म...ह्म्म्म....करके गर्दन ना में हिलाने लगे. वो अन्दर भाग कर गया और साली को बुला लाया...साली से भी कुछ नहीं बोल पा रहे बच्चन जी...बोले कैसे मुंह में तो गुड ठूंस रखा था और सबके सामने खोल भी नहीं सकते कि चोरी जो पकड़ी जाती.

इस तरह बात का बतंगड़ बन गया, उनकी सास आ गयीं और फिर रोना धोना शुरू कि पहले बखत दामाद आये और यहाँ बीमार पड़ गए. ना जाने क्या हो गया है दामाद को. उनकी बहू रोये सो अलग. बच्चन उनके सामने मुंह भी नहीं चला पा रहे. उनकी सास ने गाँव के डॉक्टर को बुला लिया. डॉक्टर आया उसने उनके मुंह का मुआयना किया. जब वो एक गाल पर उंगली करें तो बच्चन गुड को दूसरे गाल की तरफ कर लें और जब दूसरी तरफ करें तो इस गाल को कर लें. डॉक्टर ने कहा भाई चलता फिरता फोड़ा हो गया है आपके दामाद को.

सास बोली डॉक्टर साहब "हमाई दामाद को ठीक करि देओ"..चाहे जितना दाम लगे..डॉक्टर बोला कि इनका तो ऑपरेशन करना पड़ेगा और डॉक्टर ने वहीँ कहा कि फोड़ा फोड़ना पड़ेगा. उन्होंने बच्चन के मुंह को दोनों हाथों से पकडा और जोर से दबा दिया. बाहर गुड की धार निकली जो सीधे डॉक्टर के मुंह पर गयी. थोडी देर बाद डॉक्टर उछालते हुए बोला. वाह मैंने नयी खोज कर ली. अब मैं अपनी रिसर्च में लिखूंगा कि फोड़ा पक जाने पर मीठा होता है. अब गाँव में जितने भी लोग वहाँ एकत्रित हुए थे थे, सब डॉक्टर की जय जयकार करने लगे. उधर बच्चन की जान में जान आई कि चलो बच गए. वरना अगर पकडे जाते तो न जाने क्या होता. डॉक्टर को सौ रुपये देकर सास ने विदा किया.

बच्चन को उनकी बहू समेत बड़े लाड प्यार से कुछ घंटों में उनकी सास ने विदा किया. इस तरह बच्चन उर्फ़ बच्चू अपनी माँ की हिदायतों सहित अपनी बहू को ससुराल से लिवा लाये.

18 comments:

महेन्द्र मिश्र 26 October 2009 at 21:22  

बहुत बढ़िया मगर शादी नई नई नहीं होती एक ही बार होती है कुछ अपवाद छोड़कर . ...

ghughutibasuti 26 October 2009 at 21:25  

हाहाहा! बहुत बढ़िया!
घुघूती बासूती

Ashish (Ashu) 26 October 2009 at 22:16  

वो कम तेल में अच्छी पूडियाँ तल देती ह bhai is per to maza aagaya

सुशील छौक्कर 26 October 2009 at 23:22  

बहुत ही रोचक किस्सा। पढकर आनंद आ गया।

प्रिया 26 October 2009 at 23:30  

is baar kahani mein hasya ka put ....achchi hai

richa 26 October 2009 at 23:49  

जो है कि इस बार का हास्य अंदाज़ बड़ा बढ़िया था :)

Udan Tashtari 27 October 2009 at 00:20  

बहुत रोचक लेखनी!! वाह..अनिल!!

के सी 27 October 2009 at 09:36  

ब्लॉग पर लोक रंग भी बिखरा है, ऐसी लोक रचनाओं को अपनी साहित्यिक भाषा में लिख कर कईयों ने पद्मश्री ले ली है. चलो एक और की फरमाईश नोट करो.

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 27 October 2009 at 10:56  

chalo...doctor ki ek thesis to complete hui......... bahut hi rochak dhung se likhi hui ek behtareen rachna....

vandana gupta 27 October 2009 at 12:07  

वाह बहुत ही बढिया किस्सा ……………मज़ेदार्।

ओम आर्य 27 October 2009 at 13:03  

ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha
isake siwaay kuchh nahi sujh raha .........waah bhaai bahut hi hasaya aapane

दिगम्बर नासवा 27 October 2009 at 14:23  

वाह अनिल जी ... बहुत ही रोचक किस्सा है ......... हास्य से भरपूर ......

रंजू भाटिया 27 October 2009 at 16:31  

:) मजेदार लगा यह किस्सा ..

डिम्पल मल्होत्रा 27 October 2009 at 20:03  

padh ke muskuraye bina na raha jaye....or kuch na kaha jaye...

नीलिमा सुखीजा अरोड़ा 28 October 2009 at 14:29  

बहुत ही बढिया किस्सा

Pawan Kumar 28 October 2009 at 15:27  

Ha Ha Ha Ha.......
good story of our area.After a ,ong time i heard this story in our local style.

गौतम राजऋषि 28 October 2009 at 20:05  

सिंह साहब की तरह ये कहानी हमने भी अपने गांव में अपनी मैथिली मेम सुन चुके हैं\ तुम्हारा अंदाज़ भी भाया...

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