तुम, मैं...और हमारी असल सूरतें
>> 05 October 2009
सुनो आँखें बंद करो...क्यों...अरे बंद करो ना...पहले बताओ फिर...आँखें बंद करने पर मैं तुम्हें कहीं ले चलूँगा...कहाँ...ओह हो...कहता हुआ मैं उसकी आँखों पर अपनी नर्म हथेलियाँ रख देता हूँ...मैं तुम्हें अपनी फेवरेट जगह ले जा रहा हूँ
अपने घर के पीछे का दरवाजा खोलते ही तुम दौड़ रही हो अपने पैरों तले बिछी हरी घास पर...उन पर बिखरी हल्की हल्की ओंस की बूँदें ऐसे चमक रही हैं जैसे मोती...दूर दूर तक फैला हुआ आसमान है...और उस पर अपनी खूबसूरती बिखेरता इन्द्रधनुष ऐसा लग रहा है मानों उसने अभी अभी होली खेली हो...उसे देखते ही तुम दौडी दौडी आकर मेरा हाथ पकड़ लेती हो और कहती हो वो देखो इन्द्रधनुष...कितना प्यारा है ना...तुम खिलखिला कर हंस रही हो...बिलकुल नेक दिल हँसी...जिसमें तुम शामिल हो और मैं...और तुमने उसमें इन्द्रधनुष के रंग कब शामिल कर लिए मुझे पता ही नहीं चला
हरी घास के एकतरफ बनी हुई पगडंडियों पर तुम नंगे पैर दौडे जा रही हो और मैं तुम्हारे पीछे पीछे चल रहा हूँ...कहीं तुम गिर ना जाओ इस बात से भी डर रहा हूँ...पर तुम यूँ लग रही हो जैसे हवा ने तुम्हारा साथ देना शुरू कर दिया है...रास्ते में खड़े वो मुस्कुराते हुए बाबा तमाम रंग बिरंगे गुब्बारे लेकर खड़े हुए हैं...हरे, लाल, पीले, गुलाबी, नीले...हर रंग में रंगे हुए गुब्बारे...तुम उन्हें देखकर ऐसे खुश हो रही हो जैसे एक मासूम बच्ची...उन गुब्बारों में एक रंग मुझे तुम्हारा भी जान पड़ता है...मासूमियत का रंग...या शायद प्यार का रंग...या फिर ख़ुशी का रंग
जानता हूँ तुम्हें वो गुब्बारे चाहिए इसी लिए तुम मेरे पास आकर मेरा हाथ पकड़ कर चल दी हो...तुम्हें गुब्बारे मिल जाने पर तुम कैसे दौडी दौडी जा रही हो उन गुब्बारों के साथ...और एक ही पल में तुमने उन गुब्बारों को छोड़ दिया है...बिलकुल आजाद...किसी पंक्षी की तरह वो उडे जा रहे हैं या शायद तुम्हारी तरह...ना जाने किस देश...और पास आकर तुम जब ये पूंछती हो कि ये उड़ कर कहाँ जाते हैं...मैं बस मुस्कुरा भर रह जाता हूँ...तुम कहती हो बोलो ना...मेरी मुस्कराहट देखकर तुम फिर बाहें फैलाये दौड़ने लगती हो
आगे तुम्हें सेब का बाग़ दिख जाता है और तुम दौड़ती हुई उसमें चली जाती हो...और कहीं छुप जाती हो...मेरे वहाँ पहुँचने पर तुम आवाज़ देती हो...कहाँ हूँ मैं...और फिर तुम्हारी खिलखिलाती हँसी गूँज जाती है...बिलकुल पंक्षियों के चहचहाने की आवाज़ में घुली सी लगती है तुम्हारी हँसी...और तुम पेडों की ओट में छुपी हुई बार बार मुझे आवाज़ देती हो...कभी इस पेड़ के पीछे तो कभी उस पेड़ के पीछे...जानता हूँ तुम्हें लुका छुपी का खेल बहुत पसंद है...शुरू से अब तक...और मेरे थक जाने पर कैसे अचानक से पीछे से आकर तुम मुझे अपनी बाहों में थाम लेती हो...और फिर मेरे सीने से लग जाती हो...मैं तुम्हें बाहों से पकड़ कर हवा में झुलाता हूँ...और फिर तुम सेब तोड़ कर पहले खुद चखती हो और मुझे देती हो कि खाओ बहुत मीठा है...
पास ही बह रही नदी जो ना जाने कहाँ दूर से चली आ रही है...और ना जाने कहाँ जा रही है...शायद कुछ गाती सी...हाँ कुछ गाती सी ही लग रही है...उसका संगीत सबसे मीठा है...पास ही की उस बैंच पर तुम मेरा हाथ पकड़ कर ले जाती हो...और उस पर बैठते ही तुम मेरे सीने पर अपने सर को रख लेती हो...हम बहुत देर तक खामोश यूँ ही नदी के बहने को देखते रहे...उस पानी में उसके अन्दर के छोटे छोटे पत्थर साफ़ दखाई दे रहे हैं...और वो रंग बिरंगी मछलियाँ जिन्हें देख कर तुम्हारे लवों पर मुस्कराहट सज गयी...जिनसे तुम्हारे लवों की मिठास बढ़ गयी सी लगती है
हम यूँ ही घंटो चुप चाप से खामोशी में एक दूसरे से बातें करते रहे...फिर तुम कहती हो कि तुम्हें नदी में नहाना है...मैं तुम्हें मना नहीं कर सकता ये तुम जानती हो...जानता हूँ भीगने पर तुम्हें सर्दी भी लग सकती है...तुम नदी के पानी में चली जाती हो...तुम और तुम्हारे कपडे भीग चुके हैं...हाथ देकर तुम मुझे बुलाने लगती हो...आओ ना...और हम दोनों बहुत देर तक उसमें नहाते रहते हैं...आस पास के पेडों पर से पंक्षी हमारा नहाना देख रहे हैं...और उन पर नज़र जाते ही तुम शरमा जाती हो और मेरे सीने से लग जाती हो...उन पलों में तुम्हारे लवों की मिठास का एहसास मुझे होता है...हमारी साँसे एक दूसरे में घुल सी जाती हैं...
पास के ही पत्थरों से बने टीले पर सूरज गुनगुनी धूप देकर जा रहा है...शायद कहीं से इकट्ठी कर कर लाता हो...हम अपने अपने कपडों को उस गुनगुनी धूप में पत्थरों पर बिछाकर सूखने के लिए छोड़ देते हैं...उतनी प्यारी गुनगुनी धूप में लेटने का हम लुत्फ़ ले रहे हैं...पास ही में रखे हुए रंगों से तुम रंगोली बनाने लग जाती हो और बार बार मुझे मुस्कुरा कर देखती हो...और मेरे कहने पर कि क्या देख रही हो...तुम कहती हो कि तुम्हारी आँखों से ख्वाब चुरा चुरा कर उनमें रंग भर रही हूँ...मैं भी मुस्कुरा जाता हूँ.
हमारे कपडे सूख जाने पर हम वहाँ से चल देते हैं...सूरज डूबने लगता है...दूर नदी में डूबता सा लगता है...तुम मुझसे पूंछने लगती हो...क्या सूरज नदी में रहता है...मैं डूबते सूरज को एक बार फिर देखता हूँ...और तुम्हारे हाथों को अपने हाथों में थाम कर वापस चल देता हूँ...रास्ते में खड़े फिर वही बाबा अबकी बार आइस क्रीम बेच रहे हैं...तुम पगडंडियों पर दौड़ती हुई उनके पास पहुँचती हो...मेरे कहने पर कि तुम्हें सर्दी लग जायेगी...तुम आइस क्रीम लेने के लिए जिद करती हो.
कुछ दूर हम दोनों आइस क्रीम खाते हुए चले जा रहे हैं...वापसी में हमें गुलाबों से भरा बगीचा मिलता है...मैं जब गुलाब को तोड़ने लगता हूँ तो तुम पूंछती हो कि गुलाब को दर्द तो नहीं होगा...मैं ना में सर हिलाता हूँ...साथ चलते चलते मैं तुम्हारे बालों में गुलाब लगा देता हूँ...तुम मुस्कुराते हुए मेरी आँखों में झांकती हो...चलते चलते फिर से तुम खिलखिला जाती हो...ढेर सारी रंग बिरंगी तितलियाँ वहाँ से गुजरती हुई जा रही हैं...तुम्हारे चारों और आ आकर कुछ कह रही हैं...शायद सूरज के डूबने पर अपने घरों को जा रही हैं और तुमसे ख़ास तौर पर अलविदा कहने चली आई हैं...तुम एक तितली को अपनी हथेली पर बैठा कर कुछ बोलती हो...शायद अलविदा ही कहा होगा
खुशियाँ बिखेरती हुई तितलियाँ अपने अपने घरों को चली जाती हैं..तुमने मेरा हाथ फिर से पकड़ लिया है...और हम चहलकदमी करते हुए अपने दरवाजे तक पहुँच गए हैं...फिर तुम अचानक से मेरे गाल को चूम कर दरवाजा खोलकर अन्दर चली जाती हो...मैं भी मुस्कुराता हुआ तुम्हारे साथ आ जाता हूँ.
सुबह उठ कर तुम मेरे सीने पर अपने सर को रख कर बोल रही हो...कहाँ ले गए थे मुझे...और मैं तुम्हारे बालों को चूमकर कहता हूँ...हमारी फेवरेट जगह...तुम मुस्कुरा जाती हो
33 comments:
रोचक अभिव्यक्ति .... .
bachpan ki pari kahanio ki tarah lagi ye kahaani......
kaafee haseen khwaab dekhaa anil ji aapne !!!
काफी सुखद एहसासो वाली रचना.......खुबसूरत !
बहुत ही अच्छी अभिव्यक्ति.....आभार ..
behad khubsurat,khwab ya haqiqat jo bhi maan lo,sunder abhivyakti.
pyaar se sarabor abhivyakti
ये कहां आ गए हम
यूं ही साथ चलते-चलते...........:)
क्या बात है बेहद खूबसूरत रचना। लाजवाब अभिव्यक्ति।
एक सुंदर स्निग्ध और सपनीली यात्रा पर ले चलने के अहसास से भरपूर. या यूँ कहूँ कि जीवन से भरपूर रचना.
वाह आपने तो वह सपना ही लिख दिया जो मैं हमेशा देखता रहता हूँ।
इन्द्रधनुष के रंगों की सी खूबसूरत अभिव्यक्ति...
वैसे ही पहले की तरह शब्दों और जज्बातों का लाज़वाब संगम..
जीवन से भरपूर रचना संजय जी से सहमत.
बधाई.
हमेशा की तरह बेहतरीन एवं उम्दा!!
Aapko padh kar achha laga...mere blog par aa kar hausla afzaayi karne ka shukriya...
sapnon ki indradhanushi duniya mein le gaye aap to.
रोचक बढ़िया लगा आपका लिखा हुआ ..
anil ji
first time i visited ur blog gone through ur all posts.....fantastic. Firozabad se aap hain ham bhi aas paas ke hain dear../..
अच्छी रचना ......
anil yaar tum to baandh dete ho.......... main isko feel kar raha tha padhte waqt.......... jab khatm hui ..to aage ka imagination tayyar karne laga.........
badiya lekh..
इतनी प्यारी बातों को इतने प्यार से कैसे लिख लेते हो जी। गजब।
'kya suraj pani mein rahta hai??'
bada hi masoom sa sawaal hai..bahut pyara !
-kahani में खुद में बहा ले जाने kee क्षमता pathak ko bandhe rakhti hai.
abhaar
it was good to read it :)
anil bhai
kya khane
aajkal har tarf ,bus prem ki aandhi chal rahi hai , aur aapki ye abhivyakti sabse sheersh par hai .. waah .ultimate aur kya kahun ..
dil se badhai..
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
bahut hi sunder or jivant abhiviyakti hai or iss ki ye lines...-.tumhari ankho sey rang churakey un main rang bhar rahi hm...
mujhey apney atit main ley jata hua sa lag raha hai ...bahut sunder....
आप सभी का पढने और अपने विचार प्रस्तुत करने के लिए शुक्रिया !!
कोमल् सुन्दर एहसासों से सजी लाजवाब कल्पना ।बिलकुल इन्द्र्धनुश के रंगों जैसी और किसी नदिया के बहाव की तरह पाठक को अपने साथ बहाये लिये जा रही है जैसे वो इस अभिव्यक्ति का साक्षात द्रष्टा हो अद्भुत, बहुत बहुत बधाई
bahut hi acchi rachna.....shabad kam pad rahe hai tarif ke liye....
लगा मेरे ही किसी सपने को शब्द दे दिये तुमने अनिल....बहुत खूब।
अभी-अभी जिंदगी के तुम्हारे रंग देख कर आ रहा हूं सुशील जी के पन्ने पर। बड़ा ही हसीन रंग दिखा।
god bless you and my sincere thanx for all your good wishes.i am much better now.
कमाल अनिल जी ........... एक बार फिर से आपके andaaz का kaayal हूँ........लाजवाब अभिव्यक्ति ............ baha ले गयी आपकी post .........
aisa laga jaise bachpan mai vapas chali gayi....nice...
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