दायरों से जुदा !! होने के एहसास के करीब
>> 15 October 2009
जब रिश्तों को निभाने वाले बड़े हो जाए और रिश्तों के दायरे छोटे । तब काश ऐसा हो पाता कि माँ जिस तरह छोटे पड़ गए स्वेटर को उधेड़ कर फिर से नए सिरे से बुनती और हम उसे बड़े चाव से पहनते । ठीक उसी तरह अगर रिश्तों को भी सहेज कर रखा जा सकता तो कितना अच्छा होता या सही कहूँ तो उस एहसास को जिन्हें लोग रिश्तों का नाम देते हैं ।
पर तुम्हारा और मेरा रिश्ता क्या था । ये मैं तब भी सोचता था और आज भी सोचता हूँ । क्या हमने अपने रिश्ते का कोई दायरा भी बनाया था । मुझे ठीक से याद नहीं कि इस पर भी हमारी कभी बात हुई हो या शायद हम इन सभी रिश्तों से अलग कहीं जुड़े हुए थे । कहीं किसी कोर पर गहरे से गाँठ बंधी हुई थी । जिसको देख पाना और समझ पाना कभी बहुत आसान जान पड़ता तो कभी मालूम ही न चलता कि भला रिश्तों का भी ऐसा कोई बंधन होता है ।
एहसास को नाम देना मैंने तुमसे ही सीखा । तुम्हारे पास हर एहसास के लिए एक नाम जो हुआ करता था । हर एहसास का नाम कितना जुदा था । जो इस दुनिया के दिए हुए नामो से बिल्कुल नए । मुझे ठीक से याद है कि दर्द, ख़ुशी, दुःख, पीड़ा, हर्ष, इन सभी नामों से कितने अलग थे तुम्हारे दिए हुए नाम । उन एहसासों के नाम ।
इन दायरों के बाहर भी एक दुनिया है । ये तुमने ही मुझे बताया । वो दायरे जो हम खुद बना लेते हैं या हमें बने हुए मिलते हैं । तुम कैसे उन सभी दायरों के बाहर, हमेशा मुझे मुस्कुराती हुई खड़ी मिलती । हाँ तुम जब हाथ थाम कर मुझे उन दायरों से बाहर ले गयीं तो वो दुनिया अलग थी । जिसका एहसास करना तो बहुत आसान हुआ करता लेकिन तुम्हारी आँखों में झांकते हुए उन एहसासों को नाम देना उतना ही मुश्किल । हाँ बहुत मुश्किल ।
पर जब भी तुम साथ चलते हुए यूँ ही मेरा हाथ थाम लेती तो यूँ लगता कि मुझे उस एहसास का नाम मिल गया हो । तुम्हारे साथ उन भूले हुए दायरों और बहुत कहीं पीछे छूट गए रिश्तों के नाम को मैं याद ना तो किया करता और ना ही मुझे याद रहते ।
ऐसे कई अनगिनत तुम्हारे पूँछे गए सवालों को में अपने कुर्ते की जेब में संभाल कर रखता और तुम्हारे इंतज़ार में उन्हें बार-बार, एक-एक करके निकालता । शायद किसी सवाल का जवाब मुझे मिल जाए । हाँ उन सवालों में छुपी हुई, घुली हुई तुम्हारी यादों को में एक एक करके हाथ पर रखता और अपने चेहरे पर मल लेता । देखना चाहता कि तुम्हारी यादों के साथ मेरा चेहरा कैसा दिखता है । सच कहूँ तो मैं ठीक से आज भी अपने चेहरे को उन यादों के साथ महसूस करने की कितनी भी कोशिश करूँ वो चेहरा कहीं दिखाई नहीं पड़ता । शायद वो चेहरा तुम अपने साथ जो ले गई हो । हाँ साथ ही ले गई होगी । नहीं तो मुझे मेरा चेहरा यूँ अजनबी सा ना लगता ।
हाँ अगर कुछ याद रहता है तो वो पल जब तुमने उस रोज़ हमारे आस पास उन सभी एहसासों को बुला लिया था और हम रिश्तों के दायरों से बहुत दूर कहीं एहसासों की बसाई हुई दुनिया में खुद को पाया हुआ महसूस कर रहे थे । हाँ वो पल सबसे जुदा था । मैंने खुद को तो पाया ही, तुम्हें भी पा लिया था ।
रिश्तों के दायरों से दूर और तुम्हारे-मेरे एहसासों के नज़दीक, मैं तुम्हें आज भी खुद के साथ पाता हूँ । हाँ यही तो एक एहसास है जो सबसे जुदा, सबसे सुखद है और जो हमेशा मेरे साथ रहता है ।
17 comments:
rishto ko shejne ka har koee nahi sochta..kuch to bhool jate hai....rishto ko kahi rakh ke...kurte ke jeb me swal rakhne ka khayal bhi achha hai....
रिश्तों के दायरों से दूर और तुम्हारे-मेरे एहसासों के नज़दीक मैं तुम्हें आज भी खुद के साथ पाता हूँ...हाँ यही तो एक एहसास है जो सबसे जुदा...सबसे सुखद है...और जो हमेशा मेरे साथ रहता है. ....
सुखद है ये पंक्तियाँ .......और आपकी यह रचना भी!
दीपावली पर्व की आपको एवं समस्त परिवार को हार्दिक शुभकामनाएं वैभव लक्ष्मी आप सभी पर कृपा बरसाएं। लक्ष्मी माता अपना आर्शिवाद बरसाएं
bahut khoobsoort post....antin stanza bahut achcha laga
deepawali ki shubhmaanaon sahit......
amhfooz ali
तुम्हारी यादों को अपने चेहरे पर मॉल leta हूँ .......... anil जी लाजवाब post हमेशा की तरह khilti huyee ......
आपको और परिवार को दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएँ
बहुत उम्दा पोस्ट. आपको और आपके परिजनों को दीपावली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
रामराम.
बढ़ा दो अपनी लौ
कि पकड़ लूँ उसे मैं अपनी लौ से,
इससे पहले कि फकफका कर
बुझ जाए ये रिश्ता
आओ मिल के फ़िर से मना लें दिवाली !
दीपावली की हार्दिक शुभकामना के साथ
ओम आर्य
आप सहित पूरे परिवार को दीवाली की हार्दिक शुभकामनाएँ.
[post padhne dobara aati hun]
संवेदनायेंजैसे पिघलते हुये शब्दों मे ढल जाती हैं ऐर एक एक शब्द दोल को छू लेता है बहुत सुन्दर रचना है आपको व आपके परिवार को दीपावली की शुभकामनायें
इस दीपावली में प्यार के ऐसे दीए जलाए
जिसमें सारे बैर-पूर्वाग्रह मिट जाए
हिन्दी ब्लाग जगत इतना ऊपर जाए
सारी दुनिया उसके लिए छोटी पड़ जाए
चलो आज प्यार से जीने की कसम खाए
और सारे गिले-शिकवे भूल जाए
सभी को दीप पर्व की मीठी-मीठी बधाई
Deepwali ki dheron shubkamnayen.
आपको और आपके परिवार को दिवाली की हार्दिक शुभकामनायें!
पोस्ट का पहला पैरा ही अंदर तक छू गया।
तुम्हारे ये खतनुमा या डायरीनुमा ब्लौगिंग की अदा मुझे बहुत पसंद है।
मन को छू गये आपके भाव।
( Treasurer-S. T. )
Nice post . I had lost track of your posts for a while .Going to read what I missed now.
कमाल की पोस्ट. लगा किसी डायरी के पन्ने सामने खुल गये...
ऐसे कई अनगिनत तुम्हारे पूंछे गए सवालों को में अपने कुर्ते की जेब में संभाल कर रखता और तुम्हारे इंतज़ार में उन्हें बार-बार एक-एक करके निकालता...शायद किसी सवाल का जवाब मुझे मिल जाए...हाँ लेकिन उन सवालों में छुपी हुई, घुली हुई तुम्हारी यादों को में एक एक करके हाथ पर रखता और अपने चेहरे पर मल लेता...देखना चाहता कि तुम्हारी यादों के साथ मेरा चेहरा कैसा दिखता है...
बहुत खूब ......!!
मन को छू लेने वाली पंक्तियाँ ......!!
Post a Comment