आपके ब्लॉग के दिन खराब होने के 10 लक्षण

>> 03 December 2009

1. यह टिप्पणी प्राप्त होना कि "बहुत खूबसूरत रचना/ भावपूर्ण रचना/ Nice Post"

जब आपको इस तरह की टिप्पणी प्राप्त हो तो इसका तात्पर्य यह है कि पढ़ने वाले के पास आपकी पोस्ट के बारे में कहने को कु्छ नही है या बहुत से ब्लॉंगर सिर्फ़ बिना पढ़े अपनी अधिक से अधिक टिप्पणी दर्ज कराना चाहते हैं. इसका मतलब यह भी निकलता है कि आप ने इतना रोचक नही लिखा कि पाठक दिलचस्पी ले.

2. आगंतुकों के साधारण आँकड़े

आप बहुत से ब्लॉग पढ़ते हैं और अपनी टिप्पणी भी वहाँ छोड़ते हैं लेकिन फिर भी आपके ब्लॉग पर लोग नही आते. आप उनके ब्लॉग पर की गयी टिप्पणी से उनसे बेहतर संवाद स्थापित करें, उनसे प्रश्न करें तो बेहतर स्थिति बनेगी.


3. कम सब्स्क्राइबर(ग्राहक)

0, 2, 5 सबस्क्राइबर ही हैं और बढ़ नही रहे. मतलब आप बहुत काम की सामग्री या दिलचस्प सामग्री पेश नही कर रहे जिसके आने का इंतज़ार पाठक को रहता हो.


4. अपने व्यस्त होने की बार बार ख़बरे देना

# दोस्तों मैं आजकल शहर से बाहर चल रहा हूँ इसीलिए ब्लॉगिंग नही कर रहा.

# दोस्तों पुनः माफी चाहूँगा आजकल मेरा कंप्यूटर खराब चल रहा है जिस कारण में कु्छ पोस्ट नही कर रहा.

# मैं वादा करता हूँ कि बहुत जल्द में कु्छ लिखूंगा, पक्का वादा.


5. एक लंबी श्रंखला आपके विज्ञापन से भरी होना

कई बार आपने ढेर सारी जगह विज्ञापन से ही भर रखी होती है और पाठक को पढ़ने में परेशानी का अनुभव होता है.


6. आपका ब्लॉग खुलते ही Popups का खुल जाना

या तो आपका ब्लॉग खोलते ही popups का खुल जाना या टिप्पणी के लिए क्लिक करते ही नयी खिड़की खुल जाना.

7. Autoplaying Audio

किसी ऑडियो का आपकी पोस्ट में या ब्लॉग में लगा होना जो अपने आप शुरू तो हो जाता है लेकिन उसे बंद करने का कोई समाधान नही होता.

8. Errors

आपका ब्लॉग खोलते ही इस तरह की समस्या आना और उनका लंबे समय तक बने रहना
* 404 Not Found
* Headers already sent
* Error establishing a database connection
* This account has been suspended
* Blog has been removed

9. Visitors का ब्लॉग पर आना लेकिन उसका टिप्पणी न करना. कई बार ऐसा होता है कि पाठक पढ़कर चला जाता है और टिप्पणी नही देता. इसके पीछे वजह हो सकती हैं कि आपने ऐसे विषय पर पोस्ट लिखी हो जिसके बारे में वह कुछ कहना न चाहता हो या पहले वह टिप्पणी करता आया हो लेकिन उसे उनमें पूँछे गये सवालों के जवाब ना मिले हों, आपका पाठक के साथ बेहतर संवाद ना हो

10. लगातार ऐसी ही पोस्टों का लिखना जिनमें पाठक को दिलचस्पी ना रही हो.

अतः इन सभी कमियों को दूर करके आप अपने पाठक बढ़ा सकते हैं और अपने ब्लॉग में जान डाल सकते हैं.

# वैसे आप लोगों ने मेरी पिछली पोस्ट "लेखक की मृत्यु" नही पढ़ी

55 comments:

Dipti 3 December 2009 at 15:47  

हो सकता है कि इस बारे में कई लोग सोचते हो। लेकिन, ब्लॉगिंग करने का मक़सद केवल रीडरशीप बढ़ाना तो नहीं। आप बस लिखते जाइए जो समझेगा वो पढ़ेगा और सराहेगा भी।

अनिल कान्त 3 December 2009 at 15:54  

हाँ दीप्ति जी आपने ये बात बहुत काम की कही कि ब्लॉगिंग का मतलब पाठक बढ़ाना नहीं लेकिन हाँ कूछ समस्याओं को दूर कर आप पाठक की परेशानी कम कर सकते हैं.

Mohammed Umar Kairanvi 3 December 2009 at 15:57  

माशाअल्‍लाह हमने इन सभी कमियों को दूर करके अपने पाठक बढ़ाए हैं और अपने ब्लॉग में जान डाली है वह भी बिना ब्लागवाणी की रजिस्‍ट्रेशन के

मुहम्‍मद उमर कैरानवी
Page Rank-3 Blogger

अनिल कान्त 3 December 2009 at 16:00  

कैरानवी जी दिलचस्प बात बताई आपने !

डिम्पल मल्होत्रा 3 December 2009 at 16:03  

rochak post par sabse bahiya baat ye lagi............# वैसे आप लोगों ने मेरी पिछली पोस्ट "लेखक की मृत्यु" नही पढ़ी...

vandana gupta 3 December 2009 at 16:16  

anil ji
aajkal aap kafi hatkar likh rahe hain.........kargar baatein kahi hain.........aur aapki pichli post main padh chuki hun.

दिगम्बर नासवा 3 December 2009 at 16:24  

BAHUT DILCHASP ANIL JI .... AB PAIMAANA BADALNA PADHEGA LIKHNE KA ...

shikha varshney 3 December 2009 at 16:29  

achcha esa hota hai?...sochna hoga.

रंजन (Ranjan) 3 December 2009 at 16:43  

Anil Ji.. मजाक कर रहा था.. point 1 आजमा रहा था.. आपने बहुत सुक्ष्म बिंदुओं को छुआ है.. धन्यवाद..

Gyan Dutt Pandey 3 December 2009 at 16:55  

बच गये - अभी इस दस प्वाइण्टर लिटमस टेस्ट में फेल नहीं हुये!

Mohammed Umar Kairanvi 3 December 2009 at 16:56  

भाई अनिल जी इसमें आपको क्‍या दिलचस्‍प लगा, दिलचस्‍प बात यह है कि इस अन्‍याय के विरूद्ध केवल प्रवीण जाखड, सब एडिटर राजस्‍थान पत्रीका ने दरखास्‍त की उसके अलावा हिन्‍दू न मुसलमान किसी ने हमारा साथ न दिया,या आज आपने इसे दिलचस्‍प बता के थोडा मरहम रख दिया, अगर मज़ाक नहीं कर रहे हो तो, धन्‍यवाद

अनिल कान्त 3 December 2009 at 17:04  

दिलचस्प इसलिए कहा कि मेरा भी एक ब्लॉग पिछले 9 महीने से ब्लागवाणी ने नही जोड़ा जोकि सामान्य ज्ञान से संबंधित है. अब उसे ना जोड़ने के पीछे भी कोई कारण नज़र नहीं आया और आपको जानकार खुशी होगी कि वह ब्लॉग मेरा सबसे ज़्यादा चलने वाला ब्लॉग है.

Anonymous,  3 December 2009 at 17:04  

post mae wo sabkuch haen jo log kar raheey haen aur kament naa dena ho nahin sakaa aaj so diyaa

अनिल कान्त 3 December 2009 at 17:05  

और इसमें हिंदू और मुसलमान वाली तो कोई बात ही नहीं है.

अनिल कान्त 3 December 2009 at 17:08  

पांडे अंकल जी आपको तो अच्छे अच्छे फेल नही कर सकते :)

वन्दना महतो ! (Bandana Mahto) 3 December 2009 at 17:46  

हम्म.... इस पोस्ट को पढ़कर तो पाठक गण जरूर से आपको अच्छी टिप्पणियां देंगे.. जैसे कि मैं भी. वैसे सच कहूँ! तो मैं भी यही किया करती हूँ...ब्लॉग पढ़ तो लेती हूँ.... पर टिप्पणी करने में कंजूसी कहिये या आलस....पर इसका ये मतलब नहीं होता कि मुझे content पसंद नहीं आया या रोचक नहीं लगा...जैसे कि मैंने आपकी सभी कहानियाँ पढ़ी है.... पर टिप्पणी के मामले में आंकडें कम ही दिखेगे....वैसे आपकी बात बहुत सही लगी और आगे से मैं ध्यान रखूंगी...

Sulabh Jaiswal "सुलभ" 3 December 2009 at 18:07  

ऊपर बतायी गई टिप्स सामयिक और जरुरी है. ख़ास कर फुल टाइम ब्लोगरों के लिए ध्यान देने योग्य बाते हैं.

अपनी बात यही है की पार्ट टाइम शगल में गिनती के १०-२० पाठक मिल गए हैं. इतना स्नेह बहुत है लेखकीय ऊर्जा को बचाए रखने के लिए. बाकी गूगल एवं अन्य सर्च इंजिन की मेहबानी बनी रहती है.

रही बात टिप्पणी की, जो मांगते हैं उन्हें सस्ते में निबटा देते हैं या जल्दी जल्दी आधे अधूरे पढ़ते हैं और कमेन्ट करना भूल जाते हैं.
और जहाँ भी जब भी अवसर मिलता है जानदार, सारगर्भित तथ्य और निश्चल हास-परिहास वहां टिप्पणी नहीं करते उनके साथ संवाद सहज ही स्थापित हो जाता है. रीडरशिप तो तकनिकी बात है. इसके चक्कर में कुछ ब्लोगर अपनी मौलिकता खो बैठते हैं. जब की ज्यादातर पाठक विविधता तलाशते हैं.

कभी कभी तो मुझे लगता है जो एग्ग्रीगेटर ब्लॉग पोस्टो को पाठक से मिलवाने का एक उत्तम कार्य प्रतिदिन, प्रतिक्षण निष्पादन करती है, उन्ही के कुछ टूल्स दिग्भ्रमित भी करते है. जैसे ब्लोगवाणी पसंद चटका टूल, चिट्ठाजगत सक्रियता क्रमांक टूल, फ़ोलोवर्स की फेहरिश्त(including thumb view picture), हिट्स और कमेंट्स काउंटर इत्यादि. इन सबने मिलकर ब्लोगर की विविधता और मौलिक प्रस्तुति पर नियमन सा लगा दिया है. फलस्वरूप नए उत्साही लेखक/ब्लोगर पूर्वाग्रह से ग्रस्त हो रहे हैं. कहीं कहीं पुराने सक्रिय ब्लोगरों पर गुटबाजी का आरोप लगाते हैं. कुछ ब्लोगर अपनी सहज मौलिक सोच को सीधे सीधे प्रस्तुत करने से स्वयं को रोकते हैं. जबकि ब्लोगिंग लेखन के लिए सबसे आज़ाद जगह है.

आप क्या कहते हैं?

-Sulabh Jaiswal

लोकेश Lokesh 3 December 2009 at 18:09  

अच्छी बातें जाहिर की हैं आपने।

हमारे मामले में तो पॉंईट नम्बर 9 ही फिट बैठता दिख रहा है :-)

पाठक होते हुये भी, विषय ही ऐसा है कि लोग चलताऊ टिप्पणियाँ देने से पहले सोचते हैं :-D

अनिल कान्त 3 December 2009 at 18:11  

जानकार अच्च्छा लगा कि आपने मेरी सभी कहानियाँ पढ़ी हैं क्योंकि लिखने वाला इसी लिए लिखता है कि वो पढ़ा जाए

अनिल कान्त 3 December 2009 at 18:19  

आपने बहुत सी बातें सही कहीं जहाँ अच्छे लिखे हुए को कम लोग पढ़ पाते हैं और जो सिर्फ़ हल्का फुल्कालिखा होता है उस पर पसंद, या अन्य विधियों के कारण अधिक पाठक पहुँच जाते हैं इन सब में अच्छा लेख, कहानी, कविता कहीं खोकर रह जाता है.
इससे नये और उत्साही ब्लॉगर का दुखी होना लाज़मी है लेकिन यह भी पाया गया है कि अच्छे पाठक अच्छे लिखे हुए को देर सवेर ढूँढ ढूँढ कर पढ़ ही लेते हैं, हाँ लेकिन उस में वक़्त लगता है.

संगीता पुरी 3 December 2009 at 18:20  

क्‍या कहूं .. पूरा आलेख पढा .. बहुत अच्‍छा तो कह नहीं सकती .. गंभीरता से तो लिखा है .. पर पाठको के लिए टिप्‍पणी में लंबा समय देना मुश्किल होता है .. जबतक कहने के लिए खास बात न हो !!

अनिल कान्त 3 December 2009 at 18:23  

@ संगीता पुरी जी
मैं आपकी बात से सहमत हूँ

Himanshu Pandey 3 December 2009 at 18:24  

लिख रहें हैं , पढ़ रहे हैं - टिप्पणी पाने का कोई नुस्खा कभी नहीं आजमाया ।

हाँ , एक जरूरी बात है कि जो अभिव्यक्त हुआ, वह दूसरे का संस्पर्श ढंग से पा ले, उसमें संप्रेषणीयता हो और वह अर्थान्विति उसमें हो जिसका पाठक भूखा है ।
प्रविष्टि बेहतर है । आभार ।

अनिल कान्त 3 December 2009 at 18:29  

आपने ज़रूरी बात बहुत सटीक कही हिमांशु जी

L.Goswami 3 December 2009 at 18:40  

सत्य वचन अनिल.. "बहुत बढ़िया" :-)

अनिल कान्त 3 December 2009 at 18:43  

@ लवली कुमारी जी
आपकी उपस्थति देखकर मेरे चेहरे पर भी ये :) वाली मुस्कुराहट आ गयी

BrijmohanShrivastava 3 December 2009 at 19:43  

नई जानकारियां मिली तथा जो अनुभव हुए थे वे पुख्ता हुये

Pt. D.K. Sharma "Vatsa" 3 December 2009 at 20:13  

हम तो इतना मानते हैं कि यदि आपके लेखन में मौलिकता है और विषय का प्रस्तुतिकरण अच्छा है तो उसके सामने अन्य सब बातें गौण हैं ।

अपूर्व 3 December 2009 at 20:18  

भई पिछली पोस्ट हमने भी पढ़ ली थी मगर कुछ लिख नही पाये थे..यू सी ढलती उम्र के तकाजे..मगर आपके हुक्म के मुताबिक अभी-अभी दोबारा पढ़ कर टिपिया कर आ रहे हैं..और आपने १० लक्षण बड़े सही-सही छांटॆ है..(बेचारे पाठकों को यह कहने लायक भी नही छोड़ा- बढ़िया अभिव्यक्ति ;-))
मगर आपको नही लगता क्या की ५० बहुत खूबसूरत रचना टाइप टिप्पणियों की अपेक्षा १० सार्थक और पढ़ कर लिखी गयी टिप्पणियाँ ज्यादा संतुष्टि दे सकती हैं..ब्लॉगर को..सो मुझे लगता है कि भले ही दुकान पे रोज १०० ग्राहक न आयें मगर जो १० आयें वो खरीददारी कर के और संतुष्ट हो कर लौटें..तो ज्यादा मुनाफ़ा होगा ब्लॉगर को ;-)
वैसे हमें तो ११वाँ तरीका ज्यादा पसंद आया...
;-)

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif 3 December 2009 at 20:45  

अनील जी...हमनें ना आपकी पिछ्ली पोस्ट पढी थी और ना ये पोस्ट पढी है...

हा हा हा

मनोज कुमार 3 December 2009 at 20:58  

खूबसूरत रचना/ भावपूर्ण रचना/ Nice Post"
इनमें से किसा पर टिक लगा लें यह नहीं कहूंगा। पर रचना तो अच्छी लगी। तो यही तो कहूंगा।

Amrendra Nath Tripathi 3 December 2009 at 21:15  

वाह भाई ...
एक साथ जाने कितना कह डाले ...
पर , आप अब कहीं चार-पांच शब्दों की टिप्पणी न करना ...
शुरुआत स्वयं से हो तो और फबता है ...
लक्षणों को गजब चुना ... मजा आ गया ...
पर '' सबै धान बाईस पसेरी '' वाली बात हर जगह नहीं है ...
...............आभार .................

laveena rastoggi 3 December 2009 at 21:15  

one more thing Anil...some ppl dont have those beautiful words which can compliment to your post...like mee...kya kare..???

प्रिया 3 December 2009 at 21:17  

as usual jaldi mein hai ham .....lekin is baar kuch kah ke jayenge......Wat a observation....shat pratishat satya vachan

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 3 December 2009 at 21:36  

ये सब दुर्गुण तो हममे और हमारे ब्लॉगों में सहज ही दृष्टिगोचर होते हैं जी!

Udan Tashtari 3 December 2009 at 21:56  

विचारणीय बिन्दु उठाये हैं. कुछ बातेण तो आपके हाथ में नहीं है किन्तु जितना कर सकें, उतना अच्छा.

वैसे तो बेहतर लिखते चलें और दूसरों को भले ही बहुत अच्छा कह कर प्रोत्साहित करते रहें तो कोई बुराई तो नहीं.

आलेख अच्छा लगा.

अनिल कान्त 3 December 2009 at 21:57  

@ पं.डी.के.शर्मा"वत्स"
आपने बहुत दमदार बात कही !

@ Apoorv
तो आपको ग्यारह वाँ तरीका पसंद आ ही गया :)

विनोद कुमार पांडेय 3 December 2009 at 22:22  

बातें सौ आने सच है..हक़ीकत यहीं है...ब्लॉगिंग को पारदर्शक बनाने के लिए बेहतर उपाय बताए आपने

Sandhya 4 December 2009 at 05:54  

did read your last post and it was heart wrenching!!
Thanks for these tips though!

अनूप शुक्ल 4 December 2009 at 07:35  

कोई अलग सी टिप्पणी सोचते दिन गुजर गया। अब केवल सुन्दर कहकर वापस हो रहे हैं।

mehek 4 December 2009 at 10:07  

bahut kam ki jankari di hai .in kamiyon ko door karke traffic jaur badhaya jaa sakta hai blog ka.

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 4 December 2009 at 10:23  

क्या बात है अनिल जी , बहुत ही सारगर्भित विश्लेषण !

अनिल कान्त 4 December 2009 at 10:52  

@ mehek
आपने सही कहा इनमें से बहुत सी कमियों को दूर करके कोई भी ब्लॉग में जान डाल सकता है.

@ पी.सी.गोदियाल

आपका शुक्रिया

Dr. Zakir Ali Rajnish 4 December 2009 at 11:48  

ये लो भइया, आपने तो इसी बहाने झउवा भर कमेंट जुटा लिये।
बधाई स्वीकारें।
------------------
सांसद/विधायक की बात की तनख्वाह लेते हैं?
अंधविश्वास से जूझे बिना नारीवाद कैसे सफल होगा ?

Shiv 4 December 2009 at 13:02  

बहुत बढ़िया पोस्ट लिखी आपने. ऐसी पोस्ट लिखने के लिए बहुत ईमानदारी चाहिए.

रश्मि प्रभा... 4 December 2009 at 14:31  

सूक्ष्म विश्लेषण.......टिप्पणी आवश्यक नहीं, पर लिखो तो सही विचार ही हों........
प्रतिक्रया तो होती ही है.......खासकर जो पढनेवाले हैं , जिनकी यही रुचि है

निर्मला कपिला 4 December 2009 at 14:54  

सही विश्लेशण है सुलभ जी की बात से भी सहमत हूँ । बाकी सब कुछ सब ने कह दिया है धन्यवाद इस जानकारी के लिये

अर्कजेश Arkjesh 4 December 2009 at 15:58  

बहुत बढिया बढिया नुस्‍खे आजमाते रहते हैं आप । बडा अच्‍छा लगता है देखकर ।

Chandan Kumar Jha 4 December 2009 at 22:17  

अरे इस बीमारी के बहुत सारे लक्ष्ण तो हमसे मिलते जुलते लग रहे है जी……………अच्छा किया जी जो आपने उपचार बता दिया……………देखते है कितना फायदा होता है । आपका बहुत बहुत धन्यवाद………………वैसे अगर कोई एंटीबायोटिक हो तो उसके बारे में भी बताईयेगा, आजकल बहुत ही शक्त जरूरत है इसकी हमें :)

padmja sharma 5 December 2009 at 00:58  

अनिल
ब्लॉगरों को दी गयी टिप्स वाकई रोचक और काम की हैं .आप सृजन पथ में मेरे साथ चल रहे हैं .बहुत धन्यवाद .

अनिल कान्त 5 December 2009 at 09:54  

चंदन जी तो बस फायदा उठाइए जितना भी उठा सकते हैं.

@ डॉ.पदमजा शर्मा जी
आपका बहुत बहुत शुक्रिया

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