उसकी मुक़द्दस मोहब्बत !
>> 26 December 2009
दूर तक उड़ते हुए गर्म हवा के बवंडर हुआ करते और धूप वहाँ अपनी रूमानियत नहीं फैलाती । याद थी जो हर वक़्त उसके दामन से लिपटी रहती । उन यादों को साथ ले अपनी चौखट पर खड़ी हो वो दूर तक तलाशती उस चेहरे को । उन सभी पलों में इंतज़ार की लम्बी घड़ियाँ हुआ करती, उस घडी में चाहत घुली हुई सी किसी और ही लिबास में दबे पाँव आती, घंटों यूँ ही उन घड़ियों को थामे हुए उसके आँचल के ज़िस्म पर चिपक जाती।
रात को अचानक से उन आये हुए ख्वाबों में अपनी उस चाहत का अक्स देखती और नींद टूटने पर वो उस अक्स को यहाँ-वहाँ खोजती । तब वो उठकर उस मुंडेर पर से ताका करती कि कहीं दूर उसके क़दमों की आहट तो नहीं । दूर उस अँधेरे में उसे दिखाई देता तो एक सन्नाटा और कुत्तों के हूकने के स्वर, जो उसके दुःख को और स्याह काला कर देते ।
भोर के पहले पहर ही जब हाथ की चक्की पर वो गेहूं को मुट्ठियों में भर भर उनको चक्की में डालती तो पिछले बरस की गेहूं की बालियों के पीछे खड़ा मुस्कुराकर देखता हुआ वो चेहरा आँखों के सामने आकर खड़ा हो जाता । गोबर के उपले बनाते हुए कब उन पर उस चेहरे को वो उतार देती, उसे पता ही ना चलता । जब मिट्टी के उस चूल्हे से गरम गरम रोटियाँ निकालती तो लगता कि सामने वो चेहरा है जो मुस्कुराते हुए उसकी रोटियों की तारीफ़ कर रहा है । अचानक से ही उसकी आँखें डबडबा जातीं । तब साडी के पल्लू से अपने आँख के किनोर को पौंछ एकपल को मुस्कुरा जाती ।
उसके दामन में जो उसके साथ के किस्से थे, उन्हें याद करती । अगले रोज़ फिर वही दूर तक उठते बवंडर, और गर्म रेतीली हवा । वही खाली चौखट जिन पर अपने क़दमों को रख वो हर रोज़ उस चेहरे के लौट आने की राह तकती । फिर वो पहर स्याह काला अँधेरा बनकर उस अक्स को साथ लाता और वही चेहरा बनकर, नींद में आँखों को भिगो जाता । तब मुंडेर पर से वो हर रोज़ रात उन क़दमों की आहट सुनना चाहती । उसे दूर तक सुनाई देता तो सिर्फ वो शोर और अपने वजूद को कायम रखतीं हुई स्याह काली रातें ।
हर रोज़ ये जानते हुए भी कि उसका पति उस दूर शहर से बहुत दिनों बाद लौटेगा, वो राह तकती, इंतज़ार करती ।काम की तलाश में गये अपने पति के हर रोज़ लौट आने की दस्तक जैसे उसे हर पल सुनाई देती । दूर उठते हुए बवंडर ऐसे जान पड़ते कि शायद उनके पीछे वो चेहरा है, जो अभी सामने आ जाएगा ।
ये जानते हुए भी कि अभी बहुत वक़्त है लौटकर आने में, वो हर दिन, हर पल, कभी चौखट पर तो कभी मुंडेर पर से उस चेहरे को तलाश करती है...
* मुक़द्दस = पवित्र
* चित्र गूगल से
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पिछली पोस्ट : ज़िक्र (एक प्रेम कहानी)
22 comments:
wow Anil kaafi dino baad aapka lekh padha......bahut improve kiya aapne ...ek synchronization aur pathk ko ant tak jode rakhne ki kala mein padte hue aapke ye kadam.... sahityik utthan ki aur badhte paanv......Mubarak ho
शुक्रिया प्रिया जी !
Anil ji sachmuch api lekhni me samvednao ki gahri tees hai. Bhawo ki abhivyakti me maharat.
Apno ka door hona , pet ki aag ke liye dusare sharon me benam jindagi ki trasdi ko apne badi khubsurti ko se shabd diye hai.
Ek khoobsurat jazbe ki sundar prastuti.
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क्या आपने लोहे को तैरते देखा है?
पुरुषों के श्रेष्ठता के 'जींस' से कैसे निपटे नारी?
बहुत सुन्दर जैसे ुस औरत के दिल मे बैठ कर उस संवेदना को महसूस किया हो। बहुत गहरे मे उतर कर लिखते हैं आप धन्यवाद और शुभकामनायें
दूर उठते हुए बवंडर ऐसे जान पड़ते कि शायद उनके पीछे वो चेहरा है, जो अभी सामने आ जाएगा ।
ये जानते हुए भी कि अभी बहुत वक़्त है लौटकर आने में, वो हर दिन, हर पल, कभी चौखट पर तो कभी मुंडेर पर से उस चेहरे को तलाश करती है...
Bahut Sundar prastuti. Naari man ki vyatha ko bakhubi prastuti kiya aapne.
Shubhkamnayen.
बेहतरीन भावपूर्ण रचना। बधाई।
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति।बधाई।
राह तकना तो प्रेम और प्रतीक्षा की निशानी है॥
bahut hi behtar. dil se badhai!!
अनिल जी
कहानी को संवेदना की चाशनी मे पागने के साथ उसकी रोचकता का स्वाद भी बरकरार रखने मे सक्षम सितारों जड़ी एक खूबसूरत और सशक्त भाषा है आपके पास..
शुभकामनाएं आपके कृतित्व के लिये!
संपूर्ण प्रवाह और उम्दा भाव लिए अभिव्यक्ति बहुत पसंद आई...हमेशा की तरह!!
कोमल भावनाओं का प्रवाह है आपकी पोस्ट .......... दिल में चुपके से घर कर जाती है .........
इंतजार अपने आप में एक उम्मीद होती है...
सुन्दर प्रस्तुति...
phir ek behtareen aalekh.....
चित्र से जन्मे विचार या विचार से खोजा चित्र ?
कान्त जी माफ़ करना यह प्रश्न कुछ ऐसे ही है -
पहले मुर्गी या पहले अंडा ??
कमाल करते हो जी
अति सुन्दर मिलीजुली प्रस्तुति .
राकेश जी मैने पहले यह आलेख पूरा लिख लिया था उसके बाद सोचा क्यों ना कोई चित्र इसके साथ संलग्न किया जाए. जब गूगल पर खोजा तो यह चित्र मिला और मैने उसे इस आलेख को प्रकाशित करने के 1 घंटे बाद लगा दिया.
kavita jaisee kahaani lagi.
really vry nice story
भाई इतना ही कहूगा कि आप का जवाब नही..
रोचक अति रोचक
अनिल जी
एक मुद्दत के बाद आपके ब्लॉग पर आया बहुत ही मुक़द्दस रचना ......
नव वर्ष 2010 की हार्दिक शुभकामनायें.....!
ईश्वर से कामना है कि यह वर्ष आपके सुख और समृद्धि को और ऊँचाई प्रदान करे.
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