ज़िक्र (एक प्रेम कहानी)
>> 22 December 2009
कुछ रातें ऐसी होती हैं जो जिंदगी में अपना असर छोड़ जाती हैं । वो रात भले ही बीत जाए लेकिन उसके बाद उम्र भर कुछ अनकहे धुंधले-से अक्स स्मृतियों में उलझे रह जाते हैं । जो पानी के दाग की तरह वजूद के लिबास पर हमेशा के लिए नक्श हो जाते हैं ।
ऐसी ही उस रात जब सिद्धांत 2 बजे अपनी डायरी के चंद सफहों को देखता और उनके अल्फाजों पर अपनी उंगलियाँ रखता तो उसकी आँखें डबडबा जाती । एक एक अल्फाज़ उसने इन पिछले बरसों में दिल से लिखा था । आज भी जैसे हर अलफ़ाज़ अपनी एक अलग ही कहानी कहना चाहता है । फिर उस तस्वीर को निकालता है, बस यूँ ही उसे एकटक देखता है, अपनी भर आयीं आँखों के आँसू पौंछता है । तभी उसका दोस्त साकेत उसके कंधे पर पीछे से हाथ रखता है । "उसको बता क्यों नहीं देता कि तू उसे कितना चाहता है" कहते हुए साकेत उसके सामने आता है । सिद्धांत हँसते हुए फोटो को देखता है और कहता है कि "ऊपर वाला दिल क्यों देता है इंसान को ? न ये कमबख्त दिल होता और ना ही इस दिल की ये तमाम मुश्किलें होतीं ।"
साकेत कहता है " ताकि उसके दिये हुए दिल की वजह से इस धरती पर इंसानियत कायम रहे और तुझ जैसा दिल भी ना जाने उसने किस फुर्सत में बनाया होगा । जो हर रोज़ दर्द सहता है और उफ़ तक नहीं करता । उससे अपनी मोहब्बत का इज़हार क्यों नहीं कर देता । क्यों नहीं बता देता उसे कि तेरी रूह तक में उतर गयी है वो । अरे कोई जाने ना जाने पर मुझे एहसास है कि तेरे लिखे हुए वो अल्फाज़ भी दर्द से रो पड़ते होंगे । मैंने छूकर देखा है उन अल्फाजों को, बहुत आँसू बहाते हैं वो, जैसे कि अभी अपने दर्द की कहानी मुझसे कहना चाहते हों । अरे तूने उन सभी अल्फाजों को जमा कर रखा है । उन्हें आज़ाद क्यों नहीं कर देता ? कह क्यों नहीं देता उससे कि तू उसे कितना चाहता है । "
सिद्धांत डायरी में फोटो रखकर डायरी को बंद करते हुए गहरी साँस लेता है और कहता है " काश कि मैं जता सकता उसे कि मैं उसे कितना चाहता हूँ । मगर अफ़सोस ये मुमकिन नहीं । तू तो जानता है कि वो किसी और को चाहती है । " साकेत सिद्धांत की आँखों में देखते हुए कहता है " देख सिद्धांत मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि अगर तूने अपने दिल की बात उसे नहीं बतायी तो तू जिंदगी भर यूँ ही अन्दर ही अन्दर तड़पता रहेगा । कुछ एहसासों को शब्द देना बहुत जरूरी हो जाता है मेरे यार । नहीं तो वो ताउम्र वजूद के लिबास पर हमेशा चिपके रहते हैं । न तो जीने देते और न ही मरने देते । मोहब्बत को पा लेना ही मोहब्बत नहीं कहलाती । अरे जिसको तुमने चाहा अगर उसे उस चाहत, उस मोहब्बत का एहसास करा दिया, उसे अपने दिल का हाल बयाँ कर दिया तो उससे दिल को जो सुकूँ हासिल होगा, उससे बढ़कर कोई सुकूँ नहीं । मेरे दोस्त इन चन्द बचे हुए दिनों में तू अपने दिल का हाल बयाँ कर दे और सारी जिंदगी का सुकूँ हासिल कर ।"
सिद्धांत साकेत की बातें सुन अपनी आँखें बंद कर कुर्सी पर बैठा बैठा कुछ सोचने लगता है । साकेत, सिद्धांत का हाथ पकड़ अपने सर पर रखकर कहता है "तुझे मेरी कसम है कि तू इन चन्द बचे हुए दिनों में उसे अपने दिल का हाल बता देगा ।" सिद्धांत एक पल साकेत को देखता रहता है और कहता है "हाँ मैं कहूँगा ।"
अगले रोज़ कॉलेज के पुस्तकालय में किताबों की कतारों के दरमियाँ विद्या को पाकर सिद्धांत उसके पास जाकर पीछे से कहता है "विद्या मैं तुमसे कुछ बात करना चाहता हूँ ।" विद्या, सिद्धांत की ओर मुड़कर कहती है "हाँ, कहो, क्या बात है ?"
"न-न यहाँ नहीं, यहाँ मुनासिब नहीं, क्या तू शाम को 6 बजे शहर के मंदिर के पास वाले रेस्टोरेंट पर मिल सकती हो ।" कहते हुए सिद्धांत विद्या के चेहरे को देखता है । विद्या, सिद्धांत से कहती है "ठीक है, मैं आ जाऊँगी और अगर ना आ सकी तो मैं फ़ोन कर दूंगी ।" सिद्धांत कहता है "पक्का ?"
"हाँ बाबा पक्का" कहती हुई विद्या चली जाती है ।
वो इंजीनियरिंग कॉलेज में सिद्धांत की विद्या से की हुई आखिरी बात थी । उस शाम न तो विद्या आयी और न ही उसका कोई फ़ोन आया । सिद्धांत इंतज़ार करता ही रहा, करता ही रहा । वो तो ना जाने कब तक इंतज़ार करता रहता । जब सुबह तक सिद्धांत हॉस्टल नहीं लौटा तो साकेत उसे वहाँ से जाकर ले आया । "पागल हो गया है क्या, सारी रात यहाँ रेस्टोरेंट के बाहर गुजार दी । अरे नहीं आयी तो नहीं आयी । अब ख़त्म कर ये किस्सा । गलती मेरी ही थी जो मैंने तुझे कसम दी ।" कहता हुआ साकेत हॉस्टल के उस कमरे में बैठा हुआ खुद को दोषी पा रहा था ।
उस रात ने ऐसा असर छोड़ा कि हमेशा जहन में बैठ गयी । अगले 5 साल तक उसका असर रहा । लेकिन कुछ किस्से आसानी से ख़त्म नहीं होते । शायद उन्हें अपना बाकी का हिस्सा जीना होता है । शायद उन्हें टुकड़ों में जिंदा रखकर ऊपर वाला कोई बात कहना चाहता है । ऐसा ही हुआ जब 5 साल बाद एक रोज़....
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12 comments:
अपने मनोभावों को शब्दरूप देने में आप पूर्णतया सक्षम रहे हैं। अगले भाग की प्रतीक्षा बनी रहेगी।
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के साथ..... बेहतरीन कहानी.... अब आगे का इंतज़ार है....
बहुत ही खूबसूरत पोस्ट....अनिल भाई आपकी कलम और अभिव्यक्ति दोनों की धार बेहद सटीक है ..बहुत बढ़िया ..अच्छी लगी आपकी यह पोस्ट
वजूद का लिबास भा गया...
ऊफ़ ......... कहाँ जा कर आपने लिख दिया .......... "आगे जारी है..."
बहुत ही लाजवाब अनिल जी ........
jaldi kahiye aage
अरे कोई जाने ना जाने पर मुझे एहसास है कि तेरे लिखे हुए वो अल्फाज़ भी दर्द से रो पड़ते होंगे । मैंने छूकर देखा है उन अल्फाजों को, बहुत आँसू बहाते हैं वो, जैसे कि अभी अपने दर्द की कहानी मुझसे कहना चाहते हों । अरे तूने उन सभी अल्फाजों को जमा कर रखा है । उन्हें आज़ाद क्यों नहीं कर देता ? कह क्यों नहीं देता उससे कि तू उसे कितना चाहता है । "
कुछ एहसासों को शब्द देना बहुत जरूरी हो जाता है मेरे यार । नहीं तो वो ताउम्र वजूद के लिबास पर हमेशा चिपके रहते हैं । न तो जीने देते और न ही मरने देते । मोहब्बत को पा लेना ही मोहब्बत नहीं कहलाती । अरे जिसको तुमने चाहा अगर उसे उस चाहत, उस मोहब्बत का एहसास करा दिया, उसे अपने दिल का हाल बयाँ कर दिया तो उससे दिल को जो सुकूँ हासिल होगा, उससे बढ़कर कोई सुकूँ नहीं । मेरे दोस्त इन चन्द बचे हुए दिनों में तू अपने दिल का हाल बयाँ कर दे और सारी जिंदगी का सुकूँ हासिल कर ।"
bahut hi gahan.............na jaane kaun si peeda ko uker diya hai in shabdon mein ..........kahani bahut hi marmik hai agli kadi ka besabri se intzaar hai.
अति संवेदनशील
अति संवेदनशील
बढ़िया प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई.
ढेर सारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
अच्छी लगी आपकी यह कहानी अगले अंक का इन्तजार रहेगा शुक्रिया
बहुत जबरदस्त...अब अगली कड़ी पर....
aapki ye rachna hai to lazavaab....lekin kisi hindi film ki patkatha ki si pratit hoti hai......
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