लेखक की मृत्यु
>> 01 December 2009
लेखक मुझे लिखना चाहता था या यूँ कहूँ कि मेरे बारे में लिखना चाहता था. उसने एक कहानी बुननी चाही थी और वो चाहता था कि मैं उसकी कहानी का हिस्सा बनूँ. एक ऐसा हिस्सा जिससे कहानी का नज़रिया बदल जाए.
वो चाहता था कि मैं उसका नायक बनूँ, एक ऐसी कहानी का नायक जो न तो मैंने सुनी थी और न ही उसने ठीक से सोची थी. इन सबके बावजूद वो मुझे नायक बनाना चाहता था, अपनी कहानी का नायक. मेरी नज़र में नायक कई तरह के होते थे. एक वो जो पूरी कहानी पर छाये रहते हैं और एक वो जिन पर पूरी कहानी छायी रहती है. पर मुझे इन सब से क्या ? मैं क्यों इस तरह से सोचने लगा, न तो मुझे नायक बनने में दिलचस्पी थी और ना ही ये सोचने में कि अगर वह मुझे नायक बनाएगा तो किस तरह का नायक गढ़ेगा. मैं सोच ही रहा था कि उसने मुझसे पूँछा "क्या सोच रहे हो ?" मैंने कहा "मुझे दिलचस्पी नहीं और फिर मैं क्यों बनूँ नायक तुम्हारी कहानी का, जबकि मैं जानता तक नहीं कि कहानी क्या है ?" वह काफी देर तक सोचने की मुद्रा में मुझे देखता रहा और फिर उसने सिगरेट जला ली. फिर होश में आते हुए मेरी आँखों में झाँकते हुए पूँछा "तुम जानते हो कोई कहानी, कोई ऐसी कहानी जो अब तक ना लिखी गयी हो"
मैंने उसे आश्चर्यचकित होते हुए देखा, उसकी सफ़ेद बढ़ी हुई दाढ़ी जोकि शायद उसके लेखक होने का पक्का सबूत देने के लिए अभी तक मौजूद हो, उसकी आँखों पर एक चश्मा रखा हुआ था जिसके उस पार दो आँखें मेरे चेहरे पर मेरे उन होठों के खुलने और फिर बंद होने का इंतजार कर रही थीं. मैंने कहा "नहीं मैं कोई भी कहानी नहीं जानता. आप कैसे लेखक हैं जोकि बिना कहानी सोचे कहानी के नायक की तलाश में जुटे हुए हैं. जब आपके पास कोई कहानी ही नहीं तो नायक का क्या करेंगे" वो मुस्कुराया, उस पल ऐसा लगा कि उसकी सफ़ेद दाढ़ी में उसके लेखक होने के कई साल छुपे हुए हैं. वो बोला "क्योंकि मैं जानता हूँ कि मेरा नायक ही मुझे मेरी कहानी के प्रारंभ से अंत तक पहुँचायेगा" मुझे उसकी इस बात पर ताज़्जुब जैसा कुछ हुआ. फिर भी ठीक से याद नहीं कि वो ताज़्जुब ही था या उससे मिलता जुलता कुछ. मैंने उसे अपनी बात दोहरायी "नहीं मुझे दिलचस्पी नहीं" वो बोला "किस में कहानी कहने में या नायक बनने में ?" मैंने कहा "कि दोनों में से किसी में भी नहीं" वो होले से उठ बैठा और फिर माथे पर शिकन लाते हुए उस चाय को गर्म रखने वाले डब्बे से दो रखे हुए कप में चाय उड़ेल दी. मेरी ओर मेज पर बढ़ाते हुए बोला "अफ़सोस तो मैं नहीं कर सकता लेकिन तुमने कुछ तो किया होगा जिंदगी में, ऐसा कुछ जो कि कहने लायक हो, जिससे कहानी बन सके"
मैंने हैरानी से फिर उसे देखा और मन में जो सोच रहा था वही कहा "मैं तो यही सोचता था कि लेखक के पास बहुत कहानियाँ होती हैं या वो जब चाहे कोई भी कहानी गढ़ सकता है और उसका लेखक होना ही इसी में है कि वह तमाम कहानियाँ गढ़ सके, उन्हें कह सके"
मैंने मेज पर रखे हुए चाय के कप को एक नज़र देखा फिर उसकी चाय की ली गयी एक चुस्की पर कहा " मुझे नहीं लगता कि यह कोई भी कहानी बन सकती है और ना ही मैं आपकी कहानी का नायक बनना चाहता. जो कुछ भी है या जो भी सच है वो मैं बता देना चाहता हूँ, क्योंकि आप सुनना चाहते हैं" फिर मैंने उसकी आँखों में झाँकते हुए कहा " मैं एक मानसिक रोगी हूँ, एक ऐसा मानसिक रोगी जिसका इलाज अधूरा रह गया" उसने दिलचस्पी दिखायी जैसे कि मैं कोई असाधारण बात कह रहा हूँ. फिर मैंने उससे आगे कहा -
"मैं एक मानसिक रोगी हूँ जोकि कभी सही रहता है और कभी मानसिक अवसाद का शिकार हो जाता है लेकिन मैं पहले ऐसा नहीं था. आपको जानकर ताज्ज़ुब होगा कि मैं एक वैज्ञानिक रह चुका हूँ. ठीक उसी तरह बातें किया करता और सोचा करता था जैसे कि आप सोचते और कहते हैं या शायद आप से बेहतर. मेरे विभाग को मुझ पर गर्व था और वो कहा करते थे कि मैं एक महान वैज्ञानिक बनूँगा. मैं सपने देखा करता था और खुश था. मेरी जिंदगी शुरू हुई थी और बहुत अच्छी रफ़्तार से चल रही थी.
आपको जानकार सुखद अनुभूति होगी कि मेरी उस अच्छी और सुखद जिंदगी में एक लड़की आयी. जो फूलों की तरह सुन्दर और किसी झरने की तरह पवित्र जान थी. मुझे उससे और उसे मुझसे प्यार हो गया. बिलकुल आपकी कहानियों की तरह. हम खुश थे, हमारे सपने थे और ढेर सारी खुशियों के साथ हम जिंदगी जीना चाहते थे. हम दोनों फिर एक साथ रहने लगे और अपने आगे के जीवन की भावी योजना बनाने लगे लेकिन एक साल बाद ही उसने एक नया साथी खोज लिया. वो बेवफा निकली. उसका स्वभाव दिलफेंक आशिक की तरह निकला जो कि अपनी महबूबा बदलता रहता है. उसे मुझमें दिलचस्पी नहीं रही थी. एक दिन वो मुझे छोड़ कर चली गयी.
मैं हमेशा उसकी यादों में रहता और उसी के बारे में सोचता. मैंने कई बार उससे बात करनी चाही. वो हर बार मुझसे झूठ बोल कर चली जाती. जब मुझे पता चला कि उसका नया आशिक कोई और नहीं मेरा नया बना हुआ दोस्त है. मैं धीरे धीरे मानसिक रोगी बन गया. लोग कहते कि मैं पागल हो गया हूँ. मैं उसी हालत में अपने घर में पड़ा रहता और उसी के बारे में सोचता रहता. एक दिन मुझे मेरे विभाग के लोग डॉक्टर के यहाँ ले गए और फिर मुझे सही हो जाने तक के लिए पागल खाने में भेज दिया गया.
मैं वहाँ कब तक रहूँगा न तो वो जानते थे और ना ही मैं. मैं पूरे दो साल उस पागलखाने में रहा. डॉक्टर कहते कि शायद अब में ठीक हो रहा हूँ या अब बहुत जल्द में ठीक हो जाउँगा और घर जा सकूँगा. यही बात मैं पिछले कई महीनों से सुनता आ रहा था. मैं तंग आ गया था उस पागलखाने से और उस सोच से जो मेरे साथ हरदम रहती थी. वो लड़की हरदम मेरी सोच पर हावी रहती थी. मुझे लगा कि अब शायद मैं कभी ठीक नहीं हो सकूँगा. मैं उस लड़की के बारे में सोच सोच कर और भी पागल होता जाता था. फिर एक दिन मैं उस पागलखाने से भाग निकला"
इसके साथ ही वो मेरे सामने बैठा सफ़ेद दाढ़ी वाला लेखक खाँसने लगा. उसने बहुत पहले ही अपनी चाय ख़त्म कर ली थी और मेरी पिछली ज़िन्दगी में खोया हुआ था. मैंने उससे पूँछा कि तुम बेहतरीन कहानी क्यों लिखना चाहते हो. वो कुछ देर सोचता रहा और फिर थोडा खाँसते हुए बोला "ताकि अच्छी कहानियों की खातिर मुझे याद रखा जाए और मैं इस साहित्य जगत में अमर हो जाऊं" मैं थोडा सा मुस्कुराया और कहा "अमर होने के लिए पहले लेखक की मृत्यु होना भी बहुत जरूरी है. उसकी कहानियां उसके मरने के बाद ज्यादा पढ़ी जाती हैं. लेखक की मृत्यु ही उसे अमरता प्रदान करती है" उसकी आँखें थोड़ी सी मुस्कुरायीं और माथे पर थोड़ी सी रेखाएं खिचीं. वो खांसते हुए बोला "फिर क्या हुआ ?" और फिर तेज़ खांसने लगा और इस बार उसके मुँह से खून आया. वो आश्चर्यचकित होते हुए खुद के खून को देखने लगा और अपने रुमाल से साफ़ करते हुए बैठ गया.
"फिर आगे नहीं जानना चाहेंगे आप" मैं बोला. वो अपनी खांसी की वजह से परेशान होने लगा. मैंने कहा "पता है फिर मैं पागलखाने से भाग कर सीधा अपने उस दोस्त के कमरे पर गया जो कि उस वक़्त किसी नयी लड़की की बाँहों में था. मैं उसके उसी कमरे के बाहर उसके अकेले होने का इंतज़ार करने लगा और जब वह लड़की चली गयी तो मैं उसके कमरे में पहुँच गया. वह मुझे देखते ही चौंक गया. मैंने उसे उसी बेरहमी से क़त्ल किया जिस बेरहमी से उसने मेरा जीवन क़त्ल किया था और बिना कोई सबूत छोड़े मैं वहाँ से चला आया" वो लेखक और ज्यादा परेशान होने लगा. उसकी खाँसी रुकने का नाम ही नहीं ले रही थी. बार बार खून आ रहा था.
मैंने अपने बारे में आगे बताते हुए कहा "उसके बाद मैं उस लड़की के पास गया. वो मुझे देखकर घबरा गयी. डरी सी, सहमी सी अपनी जिंदगी की भीख माँगने लगी. मैं उसे भीख तो दे देता लेकिन वो इस काबिल नहीं थी कि उसे भीख दी जा सके. मैंने उसे इतनी बुरी तरह क़त्ल किया कि पुलिस भी उसकी लाश को देखकर रोयेगी और जाहिर सी बात है कि मैंने बिना कोई सबूत छोड़े वो स्थान भी छोड़ दिया. मैं फिर से जाकर उस पागलखाने में रहने लगा ताकि जल्दी से ठीक होकर बाहर आ सकूँ"
अब वह खाँसी और खून उस लेखक की सहन शक्ति के बाहर हो गया था. वो बोला मुझे डॉक्टर के पास ले चलो. मैंने कहा "क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि वह लड़की कौन थी ?" उस लेखक ने अपनी आँखों से मेरी ओर प्रश्नवाचक चिन्ह बनाया. मैंने उसके सवाल का जवाब देते हुए कहा "वो तुम्हारी लड़की थी जिसने मेरे साथ ऐसा किया और मैंने उसका क़त्ल" लेखक की खांसी और मुँह से खून निकलने की कोई सीमा नहीं बची थी. वह तड़प रहा था.
मैंने मेज से दूसरा चाय का कप उठाते हुए और फिर चाय को नीचे गिराते हुए बोला "इसमें ज़हर था. क्या ये नहीं जानना चाहोगे कि मैंने तुम्हें जहर क्यों दिया ? क्योंकि मैंने तुम्हारी लड़की से वादा किया था कि मैं तुम्हारे बाप का ख्याल रखूँगा और उसकी हर इच्छा पूरी करूँगा. क्योंकि वो सिर्फ इसलिए नहीं मरना चाहती थी कि उसे तुम्हारी फ़िक्र थी और मैं वादा पूरा करने में यकीन रखता हूँ" मेरे सामने पड़ा लेखक खाँसते हुए चिल्ला रहा था और जो कुछ वो बोल सकता था वो उसके मुँह से आधा अधूरा निकल रहा था. मैंने उसके कानों में पास जाकर कहा "आज के बाद तुम अमर हो जाओगे. हमेशा के लिए अमर"
21 comments:
bahut achcha laga padh kr....
anil ji
is baar kya likh diya.........bahut hi dardnak.
shuru se ant tak baandhe rakhi mujhe is kahani ne.... bahut hi achchi kahani aur aapki kalam....
achchhi kahani!
बहुत सुन्दरता से आपने हर एक शब्द लिखा है जिससे ये कहानी शानदार बन पड़ी ! आपकी लेखनी को सलाम !
बेहतरीन बहता आलेख!!
बेहतरीन। बधाई।
bahut badhiyaa
Ek hee saans me padh gayi...katha wishay behad hatke hai...aur katha beej ka wistar bhi ati sundar!
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अच्छी कहानी.
बडा मजा आया पढकर । इस पर तो फिल्म बन सकती है ।
That was heart wrenching!
पूरे उतार-चढाव के साथ एक बढिया कहानी! शुरु में लगा ही नहीं कि अंत कहां पहुंचेगा।
KAHAANI MEIN KAI PADHAAV AAYE .... HAA AAPKI DOOSRI POST PADHNE KE BAAD YE KAHAANI PADI ...
शुक्रिया, कि आपने इतना समय निकाला !
बहुत अच्छी लगी आपकी लिखी यह कहानी ..शुक्रिया
Really beyond the imagination !!
Thanks Amit Bhai !
भई बड़ा खतरनाक किस्म का है आपका यह नायक..इसे तो खलनायक होना चाहिये था..प्रेम चोपड़ा टाइप..
और अपने दोस्त का कत्ल करने की क्या जरूरत थी..आखिरकार उसे भी तो मानसिक रोगी बनना था एक दिन..;-)
मस्त है भाई मगर...मद्रास-कट!!! ;-)
kuch khas nahi thi anilji
socha nahi tha ant kuch is tarah hoga.
topic thoda alag hatkar tha magar itni achi nahi lagi
ANIL JI,
IS BAAR TO AAPNE HILA DALA.
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