बहुत समय पहले की बात थी

>> 05 March 2010

नानी माँ की गोद में लेटा हुआ मैं नाना जी के ये कहने पर कि "बहुत समय पहले की बात थी " सोच में पड़ जाता हूँ । बहुत समय पहले की बात इन्हें कैसे याद रह जाती होगी । फिर मैं नाना जी से पूँछता हूँ कि "कितने समय पहले की नाना जी ?" । नाना जी प्यार(मक्का की फसल पकने के बाद सूखे पौधे) पर लेटे लेटे एक तरफ से दूसरी तरफ करवट लेते और फिर कुछ देर सोचते । कभी कभी तो वो सोचते सोचते बहुत दूर तक निकल जाते । फिर उन्हें वापस बुलाने के लिये नानी आवाज़ देतीं "सो गये क्या ?" । फिर नाना जी वापस लौटते हुए कहते "ह्म्म्म , नहीं" । मैं नानी की गोद में लेटा लेटा कहता "नाना जी आगे" । फिर नाना जी कहते "बहुत समय पहले की बात थी ।"

नाना जी की कहानियाँ अक्सर "बहुत समय पहले की बात थी" से शुरू होती थीं । मैं अक्सर सोच मैं पड़ जाता था कि कितने समय पहले की बात होगी । कभी कभी नाना जी जवाब में कहते थे कि तब दूध की नदियाँ बहा करती थीं । मैं जब कहता की सच में, तो वे कहते कि यह तो एक कहावत है । असल में इसका मतलब है कि लोग सुखी थे और सबके पास ढेर सारी गाय भेंसे हुआ करती थीं, खाने पीने की कमी नहीं हुआ करती थी ।

फिर मैं धीरे-धीरे बड़ा होने लगा तो सोचता कि मुझसे जब कोई कहानी सुना करेगा तो क्या मैं भी अपनी कहानी की शुरुआत इसी तरह किया करूँगा कि "बहुत समय पहले की बात थी" । फिर मैं सोचता कि जब वह पूँछेगा कि कितने समय पहले की तब मैं क्या जवाब दूँगा । क्योंकि बहुत समय पहले का समय तो मैंने देखा नहीं था । जब सब लोग सुखी थे और खाने पीने की कमी ना रही हो । फिर मैं सोचता कि अगर कोई ज्यादा पूँछेगा तो कह दूँगा कि उतनी पहले की जब हमारे नाना जी ने देखा होगा या फिर उनके नाना जी ने ।

जब मैं और बड़ा हुआ तो सोचता कि क्या मेरे तरह वे लोग मेरी बात का विश्वास करेंगे । जब मैं कहूँगा कि "बहुत समय पहले की बात थी ।" । फिर मैं सोचता कि जब मैं विश्वास करता था तो आने वाले लोग भी करेंगे । फिर धीरे धीरे संशय बढ़ने लगा कि शायद विश्वास ना करें । लोग धीरे धीरे तर्क वितर्क ज्यादा करने लगे हैं । मेरे ये कहने पर कि "बहुत समय पहले की बात थी" पर वे तमाम सवाल करेंगे । फिर मैंने सोचा कि मैं अपनी कहानी की शुरुआत कभी "बहुत समय पहले की बात थी" से नहीं कर सकूँगा । लोग शायद विश्वास नहीं करेंगे ।

फिर मैंने निर्णय लिया कि मैं अपनी कहानी की शुरुआत किसी और ढंग से करूँगा । कोई और दिलचस्प तरीका खोजूँगा । इस तरह से कहूँगा कि वे विश्वास करें । मैंने एक रोज़ नाना जी से वो ढंग सीखना चाहा । मैंने उनसे अपना सवाल किया तो उनका जवाब बहुत सीधा और सादा था कि "तुम्हें इसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी ।"

मैंने मन में सोचा किसकी आवश्यकता नहीं पड़ेगी । कहानी के शुरुआत की ? या फिर उस ढंग की ? कहीं ऐसा तो नहीं कि कहानी कहने की आवश्यकता नहीं पड़े ? मेरे मन में ढेर सारे सवाल आये और उलझ गये ।

मैं कई बरस मन में यह बात लिये बड़ा होता रहा । मुझे आज तक कहानी की शुरुआत की आवश्यकता नहीं पड़ी । दादा-दादी और नाना-नानी के किस्से-कहानियों की बात अब "बहुत समय पहले की बात थी" बनकर रह गयी ......

16 comments:

monali 5 March 2010 at 23:05  

Ho sakta h k sahi kaha ho lkn mujh nasamajh ko to samajh nahi aaya...

रानीविशाल 6 March 2010 at 06:07  

Bilkul sahi kaha bhai aapane....Bahut accha laga aapka yah alekh aur likhane ka andaaz bhi!!
Shubhkaamnae

प्रिया 6 March 2010 at 11:00  

sahi hai....aane waali peedhiya is ras se vanchit hi rahegi

अजित गुप्ता का कोना 6 March 2010 at 11:13  

बहुत ही मार्मिक बात को सरल शब्‍दों में बता दिया। सच है आज कहानियां बीती बात रह गयी हैं। हमने भी अपनी माँ से सुनी थी लेकिन अब हमारे पास भी बच्‍चों को सुनाने के लिए कुछ नहीं है।

दिगम्बर नासवा 6 March 2010 at 16:53  

नाना नानी .... दादा दादी की कहानियों की याद तो करा दी है आपकी पोस्ट ने ...

संगीता पुरी 6 March 2010 at 16:54  

कहानियां सुनना अब पुराने दिनों की बात रह गयी है .. सच कहा आपने !!

Anonymous,  6 March 2010 at 22:33  

सादगी और अंदाज़...
और कहानियां....खूब...

सुशील छौक्कर 8 March 2010 at 15:24  

सही कहा अनिल भाई।

हरकीरत ' हीर' 8 March 2010 at 22:18  

नानी माँ की गोद में लेटा हुआ मैं नाना जी के ये कहने पर कि "बहुत समय पहले की बात थी " सोच में पड़ जाता हूँ । बहुत समय पहले की बात इन्हें कैसे याद रह जाती होगी ।

बहुत खूब......!!

Parul kanani 10 March 2010 at 23:07  

waqt khud bhi ab khud ko dhoondh raha hai...

अपूर्व 11 March 2010 at 01:45  

बातों बातों मे बड़ी बात कह गये दोस्त..मगर सोचने वाली बात यह भी है कि हमारे दौर की कहानियों की बातें भी क्या बहुत जल्द ही ’बहुत दिन पहले की बात है’ मे तब्दील हो कर तो नही रह जायेंगी...?

अनिल कान्त 11 March 2010 at 10:24  

@अपूर्व...
यह इस दौर के कहानीकारों पर निर्भर करता है और साथ ही साथ कहानी को कहने वालों पर भी कि कहानी का अंजाम "बहुत समय पहले की बात है " होकर ना रह जाए

निर्मला कपिला 11 March 2010 at 16:53  

कई दिनो बाद आने के लिये क्षमा चाहती हूँ। बिलकुल सही कहा। सब कुछ बदल रहा है।
दूर है दादी और नानी आज के इस दौर मे
फिर सुनू किस से कहानी आज के इस दौर मे।
बहुत अच्छी लगी अपकी पोस्ट। शुभकामनायें

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