अहा !! ज़िन्दगी....
>> 12 July 2010
उसने एक बार कहा था कि उसकी जिंदगी का एक ही सच है और वो यह कि "वो मुझे चाहता है ।"....और मैं उस सच को हक़ीकत बनते हुए देखना चाहती थी .....मगर दुनिया कहती है कि "जिंदगी पैसों से चलती है ।".....सच यही है ....चाहे कडवा समझो, खट्टा समझो या मीठा .....सच यही है .....तब दुनिया को ठेंगा दिखाने का मन करता था ....सब कुछ जीत लेने का मन करता था .....लेकिन कहाँ जानती थी कि इसके परे भी लोगों के बने बनाये नियम है ....उनके हिसाब में जोड़े गये नये नियम कम और ज्यादा के थे .....जिंदगी कम पैसों में नहीं ज्यादा पैसों से चलती है....असली जिंदगी पैदल का नहीं हवा में बातें करने का नाम है....चाहे वो साइकिल हो, कार हो या हवाई जहाज .....चुनना हमें है ।
इस सच के बावजूद भी कि वह कॉलेज का सबसे ज्यादा अंक पाने वाला छात्र था .....जिंदगी में वह पीछे होता गया ....और इन सबके बीच जिंदगी के नये नियम मालूम चले और लोगों ने सिखाया, समझाया कि आगे बढ़ना जिंदगी का नाम है ....किसी ने इसे जिंदगी का नया नियम बताया था .....वो वक़्त, वो पीछे के नियम और वो खुद भी बहुत पीछे रह गया था....जब मैंने पिताजी के बताये हुए लड़के से शादी कर ली थी .....जिसकी नौकरी 5 लाख रिश्वत देकर लगी थी .....दुनिया के लिये मैं अब एक इंजीनियर की पत्नी थी....एक ऐसे इंसान की पत्नी जो महीने पर हज़ारों-लाखों रुपए ऊपर से कमाता है .....पर क्या मैं खुश थी ? आखिर जिंदगी क्या है ? इस सवाल के जवाब के लिये मैं हमेशा उलझी रही ....ना तो सवाल ही समझ आया कभी और जवाब तो बहुत कहीं पीछे छोड़ आयी थी ....कई बरस बीत गये खोज में लेकिन हासिल कुछ भी ना हुआ....कई बरस बाद भी मैं रही तो वहीँ की वहीँ ....
उस एक रोज़ जब ये अपने कारनामों की वजह से सस्पैंड कर दिये गये थे । उस नये आये शहर के डी.एम. ने.... तब पता चला कि शहर के नये आये डी.एम. कोई और नहीं मेरा वही पुराना अतीत है....जिसका अपना परिवार है, बीवी है और बच्चा है.....शायद हमारे परिवार से कहीं बेहतर....हाँ बेहतर ही होगा....इन्होने फिर से किसी मंत्री को ले देकर पोस्टिंग पा ली....लेकिन कुछ था जो अब कहीं नहीं बचा था....शायद वह प्रश्न ?.....और उसका जवाब खुद ब खुद मिल गया था.....कि जिंदगी जीने का कोई नियम नहीं होता !!
16 comments:
Bahut sashakt katha. Zindagi ke kayi pahluon ko ukerti hai yah kahani.
कितना बडा सच कहा…………………ज़िन्दगी कब नियमो मे बँधी है।
यही सच है अनिल जी. सुन्दर लघु-कथा.
जिन्दगी तो पतझड के पत्तों की तरह है।बस परिस्थितिओं के थपेडों पर चलना पडता है अच्छी लगी लघु कथा। बधाई
जिंदगी यूँ ही चलती है यूँ ही रंग बदलती है बहुत पसंद आई यह लघु कथा ..शुक्रिया
आज के समाज का कटु सत्य।
ऐसा ही तो होता है .. अच्छी लघु कथा !!
रंगारंग है जिंदगी
सदा संग है जिंदगी।
hamesha ki tereh...saadharana baat ki asaadharan abhivyakti...behad pasand aayi aapki ye kahani bhi...
वक़्त और हालात के साथ ना जाने कितने ही नियम बनते हैं और टूट जाते हैं... सच कहा... जिंदगी जीने का कोई नियम नहीं होता !!
सशक्त कथा....ज़िंदगी खुद ही बीत जाती है बिना नियमों के..
गुणों की बजाय धन , रूप आदि को प्राथमिकता देने वाले कई बार ऐसी स्थितियों से गुजरते हैं ...
सुन्दर लघु कथा ...!
बहुत बड़ा सच है जीवन का .... ज़िंदगी को जीने का नियम ... बस एक ही होता है ...
चलना तो सब को पढ़ता ही है .. तभी वो आगे निकलता है ... बहुत अच्छी पोस्ट अनिल जी ....
ज़िन्दगी जीने का नियम तलाशने में ही तो ज़िन्दगी बीत जाती है। अब अगर ये पता चल जाए कि ज़िन्दगी जीने का कोई नियम है ही नहीं - तो किसी और सार्थक काम में लग सकता है आदमी।
मगर सार्थक क्या है? जो ज़िन्दगी को आसान कर दे -अपने लिए - नहीं तो किसी और के लिए।
और फिर भी बहुत से लोग मिलते हैं जो क़दम-दर-क़दम, लम्हा-दर-लम्हा ज़िन्दगी को मुश्किल से मुश्किलतर बनाते चले जाते हैं - अपने लिए - नहीं तो किसी और के लिए।
ख़ूब लिखा है भाई, लिखते रहिए…
Haan Anil! Zindgi jeene ka koi Niyam nahi hota...tajurbe ke binaah par falsafe bantey hain...kaun sa falsafa kab kargar hoga kaha nahi ja sakta...lekin aage badhna hi jeevan hai....tharaav jeevan ki gati hi rok deta hai
nice!!
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