जाति प्रथा, आरक्षण, आर्थिक पिछड़ापन, वैचारिक पिछड़ापन और बराबरी की बातें
>> 30 August 2011
मैं अक्सर देखता और सुनता हूँ कि आरक्षण के मुद्दे पर वो वर्ग जिसकी वजह से आरक्षण की नौबत आई बहुत ज्यादा बेचैन हो उठता है. कभी कोई स्टेटस ठेल रहा है, कभी कोई स्टेटस फॉरवर्ड कर रहा है, कभी कोई फ़ोटो शेयर कर रहा है. लेकिन कभी जाति प्रथा को समाप्त करने के लिए इस वर्ग ने कभी कोई स्टेटस न तो लिखा और न ही फॉरवर्ड किया. एक नार्मल मनोरंजन वाले स्टेटस पर आपको इतने लाइक मिल जायेंगे और यदि आप जाति प्रथा से सम्बंधित कोई लेख, कोई फ़ोटो, कोई स्टेटस डालेंगे तो मज़ाल है कि उतने लाइक या कमेंट मिल जाएं.
यह है मानसिकता जो हज़ारों सालों से वहीँ की वहीँ जमी हुई है. उखड़ने का नाम ही नहीं लेती.
मैं अपने उन साथ में पढ़ने वाले लड़कों से पूंछना चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ पढ़ने वाले उस वर्ग के सभी के सभी 75% लड़के क्या मुझसे बेहतर थे. मैं किसी एक का नाम नहीं लेना चाहता किन्तु क्या वो फलाना लड़का क्या मुझसे हर मामले में बेहतर था. क्या ज्यादातर वे 75% लड़के कोचिंग करके नहीं आये थे. और शेष 25% बामुश्किल कोई कोई ने कोचिंग की शक्ल देखी होगी.
और आप खुद जानते हैं कि उन 75% में से बहुत से कान्वेंट और प्राइवेट स्कूल के पढ़े हुए थे. कुछ की अंग्रेजी दूसरों को inferiority complex पैदा करने के लिए काफी थी. और आप चाहते हैं कि आपके उन अस्त्र शस्त्रों से निहत्ते लोग लडें और जीत जाएं.
आपकी जाति प्रथा को ख़त्म करने की ललक तो उसी दिन दिख गयी थी जब आपमें से ही एक लड़का अपने बचपन से लेकर बड़े होने तक के संस्कारों के साथ शराब पीकर 'चमार' शब्द का हीनता के साथ प्रयोग कर रहा था. और दरवाजे पीट पीटकर गालियाँ बक रहा था. तब आपमें से कोई आगे नहीं आया. आपने उसको 25% के क्रोध से बचाने के लिए एक कमरे में बंद कर लिया था. आपने बाद के दिनों में भी कभी उसको नहीं समझाया कि उसने जो किया वो गलत था. उसकी सोच गलत है. वो अपने में सुधार कर ले.
उन 75% में से ज्यादातर जिनके पहले से नाते रिश्तेदार कंपनियों में बैठे हैं और जिनके नंबर, जिनका ज्ञान मुझसे कितना दूर था. वे सबके सब उन्हीं कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं. कोई क्षेत्रीयता की दुहाई देकर तो कोई जाति का उपयोग कर सबके सब चिपक गए. तो आप बताइये मेरे उनसे ज्यादा नंबर, ज्यादा ज्ञान किस काम का हुआ.
और आप जो दलितों, आदिवासियों के जलाये जाने, उनका शोषण किये जाने, उनकी बेटी बहुओं का बलात्कार किये जाने, उनको उनकी ज़मीनों से बेदखल किये जाने को एक सामान्य प्रक्रिया मानते चले आ रहे हैं और मान रहे हैं तो आप ये जान लीजिए कि आप कहीं से भी बराबरी की बात न तो सोच रहे हैं और ना ही कर रहे हैं.
न तो आप खबरें पढ़ते और ना ही उन ख़बरों का कोई संज्ञान लेते जिन ख़बरों को हमारी मेन स्ट्रीम मीडिया कभी नहीं दिखाती.
तो माफ़ करना आपके द्वारा आरक्षण के विरोध में स्टेटस ठेलना, फ़ोटो शेयर करना या किसी और की स्टेटस को शेयर करना मुझे आपके द्वारा कहीं से भी सभी को बराबरी पर लाने की बात नहीं लगती.
यह है मानसिकता जो हज़ारों सालों से वहीँ की वहीँ जमी हुई है. उखड़ने का नाम ही नहीं लेती.
मैं अपने उन साथ में पढ़ने वाले लड़कों से पूंछना चाहता हूँ कि तुम्हारे साथ पढ़ने वाले उस वर्ग के सभी के सभी 75% लड़के क्या मुझसे बेहतर थे. मैं किसी एक का नाम नहीं लेना चाहता किन्तु क्या वो फलाना लड़का क्या मुझसे हर मामले में बेहतर था. क्या ज्यादातर वे 75% लड़के कोचिंग करके नहीं आये थे. और शेष 25% बामुश्किल कोई कोई ने कोचिंग की शक्ल देखी होगी.
और आप खुद जानते हैं कि उन 75% में से बहुत से कान्वेंट और प्राइवेट स्कूल के पढ़े हुए थे. कुछ की अंग्रेजी दूसरों को inferiority complex पैदा करने के लिए काफी थी. और आप चाहते हैं कि आपके उन अस्त्र शस्त्रों से निहत्ते लोग लडें और जीत जाएं.
आपकी जाति प्रथा को ख़त्म करने की ललक तो उसी दिन दिख गयी थी जब आपमें से ही एक लड़का अपने बचपन से लेकर बड़े होने तक के संस्कारों के साथ शराब पीकर 'चमार' शब्द का हीनता के साथ प्रयोग कर रहा था. और दरवाजे पीट पीटकर गालियाँ बक रहा था. तब आपमें से कोई आगे नहीं आया. आपने उसको 25% के क्रोध से बचाने के लिए एक कमरे में बंद कर लिया था. आपने बाद के दिनों में भी कभी उसको नहीं समझाया कि उसने जो किया वो गलत था. उसकी सोच गलत है. वो अपने में सुधार कर ले.
उन 75% में से ज्यादातर जिनके पहले से नाते रिश्तेदार कंपनियों में बैठे हैं और जिनके नंबर, जिनका ज्ञान मुझसे कितना दूर था. वे सबके सब उन्हीं कंपनियों में नौकरी कर रहे हैं. कोई क्षेत्रीयता की दुहाई देकर तो कोई जाति का उपयोग कर सबके सब चिपक गए. तो आप बताइये मेरे उनसे ज्यादा नंबर, ज्यादा ज्ञान किस काम का हुआ.
और आप जो दलितों, आदिवासियों के जलाये जाने, उनका शोषण किये जाने, उनकी बेटी बहुओं का बलात्कार किये जाने, उनको उनकी ज़मीनों से बेदखल किये जाने को एक सामान्य प्रक्रिया मानते चले आ रहे हैं और मान रहे हैं तो आप ये जान लीजिए कि आप कहीं से भी बराबरी की बात न तो सोच रहे हैं और ना ही कर रहे हैं.
न तो आप खबरें पढ़ते और ना ही उन ख़बरों का कोई संज्ञान लेते जिन ख़बरों को हमारी मेन स्ट्रीम मीडिया कभी नहीं दिखाती.
तो माफ़ करना आपके द्वारा आरक्षण के विरोध में स्टेटस ठेलना, फ़ोटो शेयर करना या किसी और की स्टेटस को शेयर करना मुझे आपके द्वारा कहीं से भी सभी को बराबरी पर लाने की बात नहीं लगती.
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